सरकारी योजनाएं

मृदा परीक्षण और मृदा स्वास्थ्य पत्रक(MP)
मृदा परीक्षण और मृदा स्वास्थ्य पत्रक(MP)

राज्य शासन द्वारा किसानों की दी जाने वाली सुविधाएं

योजना

प्रदेश के समस्त खेतों का मृदा परीक्षण कर शत प्रतिशत स्वाईल हैल्थ कार्ड जारी करने का लक्ष्य रखा गया है। मृदा स्वास्थ्य कार्ड में कृषकों के खेतों के मिट्‌टी नमूना विश्लेषण के परिणाम एवं उनके आधार पर उर्वरक उपयोग की अनुशंसा उपलब्ध रहती है। मध्यप्रदेश में मृदा परीक्षण को पर्याप्त महत्व दिया जा रहा है। दिसम्बर 2014 तक कुल 17,68,684 स्वाईल हैल्थ कार्ड बनाये जा चुके हैं। विभाग के अंतर्गत 24 मिट्‌टी परीक्षण प्रयोग शालाएं, म.प्र. राज्य कृषि विपणन बोर्ड के अंतर्गत 26, जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय द्वारा 09 एवं राजमाता कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर द्वारा 16 प्रयोगशालाएं चलाई जा रही हैं। इस प्रकार प्रदेश के सभी जिलों में कुल 75 प्रयोगशालाएं कार्यरत हैं, जिनमें से

MP1

विभागीय समस्त प्रयोगशालाओं में सूक्ष्म तत्वों के परीक्षण की भी व्यवस्था है मिट्‌टी परीक्षण कैसे करवाएं मुख्य तत्व विश्लेषण हेतु सामान्य कृषकों के लिये 5 रूपये प्रति नमूना, तथा अ.जा./अ.ज.जा. कृषकों के लिये 3 रूपये प्रति नमूना की दर शासन द्वारा निर्धारित की गई है। इसी प्रकार सूक्ष्म तत्व विश्लेषण के लिये सामान्य कृषकों के लिये 40 रूपये प्रति नमूना तथा अ.जा./अ.ज.जा. कृषकों के लिये 30 रूपये प्रति नमूना की दर शासन द्वारा निर्धारित है। क्षेत्रीय ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी के मार्गदर्शन में खेत का आदर्श मिट्‌टी का नमूना तैयार कर प्रयोगशाला भेजा जाता है।

मिट्‌टी परीक्षण कैसे करवाएं

मुख्य तत्व विश्लेषण हेतु सामान्य कृषकों के लिये 5 रूपये प्रति नमूना, तथा अ.जा./अ.ज.जा. कृषकों के लिये 3 रूपये प्रति नमूना की दर शासन द्वारा निर्धारित की गई है। इसी प्रकार सूक्ष्म तत्व विश्लेषण के लिये सामान्य कृषकों के लिये 40 रूपये प्रति नमूना तथा अ.जा./अ.ज.जा. कृषकों के लिये 30 रूपये प्रति नमूना की दर शासन द्वारा निर्धारित है। क्षेत्रीय ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी के मार्गदर्शन में खेत का आदर्श मिट्‌टी का नमूना तैयार कर प्रयोगशाला भेजा जाता है।

प्रयोगशालाएं

प्रदेश में मिट्‌टी परीक्षण प्रयोगशालाएं कहां-कहां हैं ?

विभागीय मिट्‌टी परीक्षण केंद्र- भोपाल, सीहोर, पवारखेड़ा (जिला होशंगाबाद), उज्जैन, मंदसौर, धार, खरगोन, खंडवा, झाबुआ, इंदौर, बालाघाट, छिंदवाड़ा, नरसिंहपुर, छतरपुर, सागर, रीवा, मुरैना, भिंड, बैतूल, दमोह, जबलपुर, टीकमगढ़, ग्वालियर, सीधी में कार्यरत हैं।

स्त्रोत : किसान पोर्टल, भारत सरकार

मुख्यमंत्री कृषक समृद्धि योजना(MP)
मुख्यमंत्री कृषक समृद्धि योजना(MP)

परिचय

राज्य की प्रमुख कृषि फसलें गेहूँ, चना, मसूर, सरसों एवं धान की कृषि लागत बढने, उत्पादकता बढ़ाने के लिए कृषकों को प्रोत्साहित किए जाने तथा फेयर एवरेज क्वालिटी (FAQ) गुणवत्ता उत्पादन को प्रोत्साहित किए जाने हेतु मंत्री – परिषद आदेश आयटम क्रमांक 18 दिनांक 27 मार्च, 2018 से मुख्यमंत्री कृषक समृद्धि योजना को स्वीकृति प्रदान की गई है ।

योजनान्तर्गत प्रक्रिया एवं प्रावधान

योजनान्तर्गत प्रक्रिया एवं प्रावधान निम्नानुसार हैं-

  • योजना में खरीफ 2016 में धान एवं रबी 2016 -17 में गेहूँ की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर प्राथमिक साख सहकारी समितियों के माध्यम से ई – उपार्जित मात्रा पर रु 200 /- प्रति क्विंटन का प्रोत्साहन राशि लाभान्वित पात्र किसान के बैंक खाते में जमा कराई जाएँ ।

  • प्रदेश में रबी 2017 -18 में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूँ उपार्जित कराने वाले किसानों को रू.265 प्रति क्विंटल प्रोत्साहन राशि उपार्जित कराने वाले किसानों के बैंक खातों में जमा किए जाने का निर्णय लिया गया । पंजीकृत किसान द्वारा बोनी एवं उत्पादकता के आधार पर उत्पादन की पात्रता की सीमा तक दिनांक 15 मार्च, 2018 से 26 मई 2018 के मध्य कृषि उपज मंडी में विक्रय पर भी रु. 265 प्रति क्विंटल की प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाए । कृषि उत्पाद मंडी में न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे बेचा गया हो अथवा न्यूनतम समर्थन मूल्य से ऊपर बेचा गया हो, दोनों स्थिति में मुख्यमंत्री कृषक समृद्धि योजना का लाभ पंजीकृत किसान को देय होगा ।
  • प्रदेश में रबी 2017 -2018 में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर चना, मसूर एवं सरसों उपार्जित कराने वाले किसानों को रु. 100/- प्रति क्विंटल प्रोत्साहन राशि उपार्जन कराने वाले पात्र किसानों के बैंक खातों में जमा किए जाने का निर्णय लिया गया । पंजीकृत किसान द्वारा बोनी एवं उत्पादकता के आधार पर उत्पादन की पात्रता की सीमा तक दिनांक 10 अप्रैल, 2018 से लेकर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी की अंतिम नियत तिथि तक कृषि उपज मंडी में विक्रय पर भी रु. 100/- प्रति क्विंटल की प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाए । कृषि उत्पाद मंडी में न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे बेचा गया हो अथवा न्यूनतम समर्थन मूल्य से ऊपर बेचा गया हो, दोनों स्थिति में मुख्यमंत्री कृषक समृद्धि योजना का लाभ पंजीकृत किसान को देय होगा ।
  • आयुक्त, खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग द्वारा रबी 2016 -17 में गेहूँ तथा खरीफ 2017 में धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ई –उपार्जित कराए गए समस्त किसानवार डाटाबैस का सत्यापन एवं प्रमाणीकरण किए जाने के उपरांत प्रमाणीकृत डाटाबेस संचालक, किसान कल्याण तथा कृषि विकास संचालनालय को उपलब्ध कराया जाएगा । उक्त सत्यापित एवं प्रमाणित डाटाबेस के आधार पर रु. 200/- प्रति क्विंटल की प्रोत्साहन राशि किसान तथा कृषि विकास संचालनालय द्वारा उप संचालक, किसान कल्याण तथा कृषि विकास को जिलावार उपलब्ध कराया जाएगा ।
  • योजना के क्रियान्वयन के लिए जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में निम्नानुसार जिला क्रियान्वयन समिति उत्तरदायी होगी :-

  1. जिला कलेक्टर                                   –      अध्यक्ष
  2. उप संचालक,किसान कल्याण तथा कृषि विकास        –     सदस्य सचिव
  3. मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत              –     सदस्य
  4. अतिरिक्त कलेक्टर (राजस्व)                        –      सदस्य
  5. उप पंजीयक, सहकारी संस्थाएं                        –    सदस्य
  6. जिला खाद्य अधिकारी                              –     सदस्य
  7. मुख्य कार्यपालन अधिकारी

जिला केन्द्रीय सहकारी बैंक                        –      सदस्य

  1. जिला प्रबंधक,नागरिक आपूर्ति निगम                –       सदस्य
  2. जिला प्रबंधक, म.प्र. राज्य सहकारी

विपणन संघ                                    –       सदस्य

10.  जिला लीड बैंक अधिकारी                          –      सदस्य

  • उपरोक्त समिति द्वारा खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग के ई – उपार्जन पोर्टल पर रबी 2016 -2017 एवं खरीफ 2017 के क्रमशः गेहूँ एवं धान के प्रेषित डाटाबेस की परीक्षण पुष्टि की जाएगी । उक्त समिति के मार्गदर्शन में प्रत्येक लाभान्वित किसान के बैंक खाता क्रमांक की पुष्टि की जाएगी । रबी 2017 -18 के गेहूँ,चना,मसूर एवं सरसों के पंजीयन किसानों द्वारा ई-उपार्जन कराने तथा/अथवा विहित अवधि में पात्रता की सीमा तक विक्रय की गई मात्रा पर प्रोत्साहन राशि जमा कराए जाने से पूर्व परिपत्र में उल्लेखित प्रक्रिया का पालन कर बैंक खातों का सत्यापन तथा विधिवत आरटीजीएस /एनईएफटी भुगतान सुनिश्चित किया जाएगा । उपसंचालक (किसान कल्याण तथा कृषि विकास) उपरोक्त समिति के अनुमोदन उपरांत ही विधिवत भुगतान सुनिश्चित करेंगे ।

तदोपरान्त ई –उपार्जन गेहूँ तथा धान के लिए प्राप्त आवंटन जिला कोषालय से आरटीजीएस /एनईएफटी के माध्यम से ई – उपार्जन पोर्टल पर उपलब्ध लाभान्वित किसानों के सत्यापित किए गए खातों में योजना प्रावधान अनुसार राशि जमा कराई जाएगी । ई- उपार्जन के पोर्टल पर दर्ज मोबाईल नम्बर पर योजनान्तर्गत जमा कराई गई राशि का समस्त लाभान्वित किसानों को एसएमएस के माध्यम से अवगत कराया जाएगा । जिले के लीड बैंक अधिकारी आरटीजीएस /एनईएफटी के माध्यम से प्रदान राशि समस्त लाभान्वित किसानों को बैंक खातों में पहुँचने की पुष्टि की जानकारी सम्बन्धित बैंक शाखाओं से प्राप्त करेंगे । प्रत्येक प्राथमिक कृषि सहकारी साख के कार्यालय में किसानों के नाम तथा प्रदान की गई राशि की जानकारी उल्लेखित कर प्रदर्शित की जाएगी ।

  • कण्डिका 1 (क),(ख) एवं (ग) के पात्र लाभान्वित किसानों के सत्यापित बैंक खाते आरटीजीएस /एनईएफटी फेल हो जाने या बैंक खातों के संबंध में किसी भी विवाद की स्थिति में जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में गठित समिति स्थानीय जाँच कराने तथा जाँच उपरांत 15 दिवस में राशि प्रदान करने हेतु अधिकृत होगी । मुख्यमंत्री कृषक समृद्धि योजना के अंतर्गत सत्यापित बैंक खातों में राशि प्रदान किए जाने के उपरांत जिला कलेक्टर द्वारा उपयोगिता प्रमाण पत्र किसान तथा कृषि विकास संचालनालय को प्रोषित किया जाएगा ।

प्रशासकीय व्यय

योजना के व्यापक प्रचार-प्रसार, पर व्यय, आरटीजीएस /एनईएफटी से भुगतान पर व्यय, मोबाईल द्वारा एसएमएस व्यय पर, योजना के प्रमाण पत्र मुद्रण पर व्यय, प्रमाण पत्र के वितरण के लिए किसान सम्मेलन आयोजन आदि पर व्यय के लिए योजना अंतर्गत 2 प्रतिशत राशि प्रावधान होगी । जिसका व्यय विभागीय प्रशासकीय अनुमोदन के आधार पर प्रदत्त स्वीकृत अनुसार किया जाएगा ।

योजना का पर्यवेक्षण

राज्य स्तर पर उक्त योजना के क्रियान्वयन का पर्यवेक्षण कृषि केबिनेट द्वारा किया जाएगा । जिला स्तर पर उक्त योजना का क्रियान्वयन पर्यवेक्षण कण्डिका (5) अनुसार जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा किया जाएगा । योजना के क्रियान्वयन से गेहूँ, धान, चना,मसूर एवं सरसोँ की खेती करने वाले कृषकों की खेती में प्रोन्नति तथा उक्त योजना से इन फसलों के उत्पादक किसानों की संतुष्टि के आंकलन संबंधी सर्वेक्षण कार्य अटल बिहारी बाजपेय सुशासन एवं नीति विश्लेषण संस्थान द्वारा कराया जाएगा ।
उक्तानुसार नियत प्रकिया के आधार पर योजनान्तर्गत कार्यवाही सुनिश्चित की जाए ।

स्रोत: किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग, मध्य प्रदेश

मछली पालन से जुड़ी प्रश्नोत्तरी(MP)
मछली पालन से जुड़ी प्रश्नोत्तरी(MP)

मछली पालन क्यों करें, इसकी विशेषताएं क्या हैं ?

मत्स्य पालन सहायक व्यवसाय के रूप में ग्रामीण अंचलों में कम श्रम, कम लागत, कम समय में अधिक लाभ देने वाला व्यवसाय है। बाजार की समस्या नहीं है । हर साईज की उत्पादित मछली का विक्रय आसानी से हो जाता है । इस कारण घाटे की संभावना अत्यन्त कम होती है । मत्स्य बीज उत्पादन से 3 माह में रु. 45,000 की आय प्राप्त कर सकते हैं , जो की अन्य व्यवसाय के लाभ की तुलना में बहुत अधिक है ।

तालाब जलाशय के प्रबंधन के अधिकार किस संस्था को प्राप्त हैं ?

तालाब/जलाशय के प्रबंधन के अधिकार त्रि-स्तरीय पंचायतों, मछली पालन विभाग एवं मध्यप्रदेश मत्स्य महासंघ को निम्नानुसार प्राप्त हैं:-

  1. 10 हैक्टेयर औसत जलक्षेत्र तक के तालाब/जलाशय – ग्राम पंचायत ।
  2. 10 हैक्टेयर से अधिक 100 हैक्टेयर औसत जलक्षेत्र तक के तालाब/ जलाशय – जनपद पंचायत ।
  3. 100 हैक्टेयर से अधिक 1000 हैक्टेयर औसत जलक्षेत्र तक के तालाब/ जलाशय – जिला पंचायत ।
  4. 1000 हैक्टेयर औसत जलक्षेत्र से 2000 औसत जलक्षेत्र  तक के उपलब्ध एवं निर्माणाधीन जलाशय के पूर्ण होने पर शासन निर्णय अनुसार मछली पालन विभाग / मध्य प्रदेश मत्स्य महासंघ के अधीन रखा जायेगा  ।
  5. 2000 हैक्टेयर से अधिक औसत जलक्षेत्र के जलाशय मत्स्य महासंघ के अधिनस्थ रहेंगे|

त्रि-स्तरीय पंचायतों के तालाब/जलाशय प्रबंध के अधिकारों को सुरक्षित रखते हुए केवल मत्स्य पालन के आवंटन की प्रक्रिया/तकनीकी प्रक्रिया के अधिकार मत्स्य पालन विभाग के पास रहेंगे ।

तालाब/जलाशय आवंटन के प्राथमिकता क्रम क्या हैं ?

प्राथमिकता क्रम निम्नानुसार है:-

  1. वंशानुगत मछुआ जाति
  2. अनुसूचित जनजाति
  3. अनुसूचित जाति
  4. पिछड़ावर्ग
  5. सामान्य वर्ग
  6. गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले व्यक्ति
  7. स्व-सहायता समूह
  8. पंजीकृत सहकारी समितियां ।
  9. मछली पालन के लिये नीलामी

क्या तालाब/जलाशय को मछली पालन के लिये नीलामी या ठेके पर प्राप्त किया जा सकता है?

जी नहीं| प्रदेश के शासकीय /अर्धशासकीय संस्थाओं यथा नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर पालिका निगम, वन, ऊर्जा विभाग के सभी तालाब/जलाशय को नीलामी या ठेके पर देना प्रतिबंधित किया गया है । राज्य शासन द्वारा त्रि-स्तरीय पंचायतों को तालाब/जलाशय पट्टे पर देने के अधिकार दिये गये हैं परन्तु यदि कोई तालाब/जलाशय नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर पालिका निगम, वन, ऊर्जा विभाग की किसी संस्था / निकाय के अधीन हों तो उनके पट्टे का आवंटन उन निकाय / विभाग के सक्षम अधिकारी द्वारा मछली पालन विभाग की मत्स्य पालन नीति के अनुसार 10 वर्ष की अवधि के लिये किया जायेगा  ।

प्रदेश में मछुआ किसको कहते हैं तथा किसको प्राथमिकता प्राप्त है ?

मछुआ वह है जो अपनी आजीविका का अर्जन मछली पालन, मछली पकड़ने या मछली बीज उत्पादन आदि कार्य से करता हो ।

वंशानुगत मछुआ जाति/ धीवर – धीरम -ढीमर, भोई, कहार – कश्यम – सिंगराहा – सोंधिया – रायकवार – बाथम, मल्लाह, नावड़ा, केवट – मुड़हा – मुढ़ाहा – निषाद, कीर, मांझी को प्राथमिकता प्राप्त है

तालाब/जलाशय दिये जाने का प्रावधान

व्यक्ति विशेष / मछुआ स्व-सहायता समूह / मछुआ सहकारी समितियों को कितने जलक्षेत्र के तालाब/जलाशय दिये जाने का प्रावधान हैं ?

मछली पालन नीति के अनुसार –

  • एक हैक्टेयर औसत जलक्षेत्र के तालाब व्यक्ति विशेष हितग्राही को प्राथमिकता क्रम अनुसार आवंटित किये जाते हैं ।
  • 1 हैक्टेयर से 5 हैक्टेयर औसत जलक्षेत्र तक के तालाब/जलाशय यदि इस क्षेत्र में पंजीकृत मछुआ सहाकारी समिति नहीं है तब स्व-सहायता समूह / मछुआ समूह को प्राथमिकता क्रम अनुसार आवंटित किये जाते हैं ।

क्या प्रदेश में मछली नीति लागू है ?

जी हां – मध्यप्रदेश शासन, मछली पालन विभाग द्वारा दिनांक 08 अक्टूबर 2008 से मछली पालन की नीति का क्रियान्वयन किया गया है ।

मछली या मछली बीज की हानि की भरपाई

मछली पालन में मछली या मछली बीज की हानि होती है तो क्या उसकी भरपाई शासन करेगा?

प्राकृतिक आपदा से जिस वर्ष तालाब/जलाशय में मत्स्यबीज संचय न होने एवं मत्स्य बीज तथा मत्स्य की क्षति होती है तो उस वर्ष की पट्टा राशि हितग्राहियों को देय नहीं होगी ।

राजस्व पुस्तक परिपत्र की धारा -6 (4) के प्रावधान अनुसार:-

  1. नैसर्गिक आपदा यथा अतिवृष्टि, बाढ़, भूस्खलन, भूकम्प आदि से मछली फार्म (फिशफार्म) क्षतिग्रस्त होने पर मरम्मत के लिए प्रभावित को रूपये 6000/- तक प्रति हैक्टेयर के मान से सहायता अनुदान दिया जायेगा । अनुदान की यह राशि उन मामलों में देय नहीं होगी जिनमें सरकार की किसी अन्य योजना के अन्तर्गत सहायता / अनुदान दिया गया है ।
  2. नैसर्गिक आपदा यथा सूखा, अतिवृष्टि, बाढ़, भूस्खलन, भूकम्प आदि से मछली पालने वालों को मछली बीज नष्ट हो जाने पर प्रभावित को रूपये 4000/- तक प्रति हैक्टेयर के मान से सहायता अनुदान दिया जायेगा। अनुदान की यह राशि उन मामलों में देय नहीं होगी जिनमें मछली पालन विभाग योजना के अन्तर्गत एक बार दिये गये आदान-अनुदान (सबसिडी) के अतिरिक्त, सरकारी की किसी अन्य योजना के अन्तर्गत सहायता / अनुदान दिया गया है ।

मछली पालन के साथ-साथ सिंघाड़ा लगाने के लिये पट्टा राशि

क्या तालाब में मछली पालन के साथ-साथ सिंघाड़ा लगाने के लिये अलग से पट्टा राशि देनी पडेगी ?

जिन तालाब/जलाशय में मछली पालन के साथ पूर्व से सिंघाड़ा, कमल गट्टा आदि जलोपज का पट्टा दिया जाता है उनसे सिर्फ मछली पालन कार्य हेतु निर्धारित पट्टा राशि ली जावेगी, पृथक से सिंघाड़ा/कमल गट्टा हेतु पट्टा राशि देय नहीं होगी ।

पंचायतों के ऐसे तालाब जिनमें पूर्व से सिंघाड़ा / कमल गट्टा आदि की फसल ली जाती रही है, को मछली पालन के साथ-साथ सिंघाड़ा / कमल गट्टा आदि की फसल के लिए उसी समिति/समूह/व्यक्ति को, जिसे मछली पालन का पट्टा दिया जा रहा है, उसे ही सिंघाड़ा / कमल गट्टा आदि के लिए पट्टा दिया जायेगा |

क्या नदी में मछली पकड़ सकते हैं ?

जी हां| मध्यप्रदेश में मछुआरों के लिये नदियों में निःशुल्क मत्स्याखेट का प्रावधान किया गया है । नदीय समृद्धि योजना के तहत् नदियों में मत्स्य भण्डारण को सुनिश्चित करने के लिये मत्स्यबीज संचयन का कार्यक्रम विभाग द्वारा किया जा रहा है ।

तालाब/जलाशयों में कौन-कौन सी मछलियां पाली जाती हैं ?

प्रदेश में प्रमुखतः कतला, रोहू, मृगल, मछली का पालन किया जाता है क्योंकि यह मछलियां आपसी प्रतिस्पर्धा नहीं करती हैं तथा व्यापारिक दृष्टिकोण से तेजी से बढ़ती हैं । सघन मत्स्य पालन के तहत् उक्त मछलियों के साथ-साथ सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प एवं कामन कार्प मछलियों का पालन किया जाता है ।

तालाब/जलाशय में कितनी संख्या में मछली के बच्चे डाले जाते हैं ?

ग्रामीण तालाबों में 10000 फ्राई प्रति हैक्टेयर प्रतिवर्ष संचित की जाती है जिसमें कतला 40 प्रतिशत, रोहू 30 प्रतिशत एवं मृगल 30 प्रतिशत का अनुपात होना चाहिये ।

सबसे अधिक कौन सी मछली बढ़ती है ?

सबसे अधिक बढ़ने वाली मछली कतला है जिसकी बढ़वार एक साल में लगभग 1 किलोग्राम होती है ।

स्पान, फ्राई एवं फिंगरलिंग क्या है ?

  • मछली बीज की लम्बाई के आधार पर मछली बीज का नामकरण है, 5 मिली मीटर लम्बाई के मत्स्य बीज को स्पान कहते हैं ।
  • 25 मिलीमीटर साइज के मछली बीज को फ्राई कहते हैं जो तालाब में संचित की जाती है|
  • 25 मिलीमीटर से 150 मिलीमीटर तक के मत्स्यबीज को फिंगरलिंग (अंगुलिकाए) कहते हैं जो बड़े जलाशयों में संचित की जाती है|

पट्टा धारक समिति/ समूह/ व्यक्ति विशेष को तालाब / जलाशय की पट्टा अवधि समाप्त होने पर पुनः तालाब/जलाशय पट्टे पर आवंटित किया जा सकता है ?

जी हां| यदि पट्टा धारक समिति/ समूह/ व्यक्ति विशेष नियमानुसार किसी प्रकार से डिफाल्टर नहीं है और पट्टा अवधि समाप्ति के पश्चात् उनको पात्रता आती है तो उन्हें पुनः: तालाब/जलाशय पट्टे पर आवंटित किया जा सकता है ।

क्या किसी व्यक्ति द्वारा स्वंय की भूमि पर तालाब निर्माण कराया जा सकता है ?

मत्स्य कृषक विकास अभिकरण योजनान्तर्गत किसी भी व्यक्ति द्वारा अपनी स्वंय की भूमि पर (तालाब बनाने योग्य भूमि) अभिकरण योजनान्तर्गत बैंक ऋण अथवा स्वंय के व्यय पर 5 हैक्टेयर तक का तालाब निर्माण लागत राशि रूपये 3.00 लाख प्रति हैक्टेयर की दर से कर सकता है जिस पर समान्य वर्ग को 20 प्रतिशत अनुदान तथा अनुसूचित जनजाति/जाति वर्ग को 25 प्रतिशत अनुदान प्रति हैक्टेयर तालाब निर्माण पर दिया जाता है ।

क्या पट्टे पर लिये गये ग्रामीण तालाबों के रखरखाव हेतु कोई सहायता उपलब्ध कराई जाती है ?

मत्स्य कृषक विकास अभिकरण योजनान्तर्गत पट्टे पर आवंटित तालाबों की इनपुट्स लागत (मत्स्यबीज, आहार, उर्वरक, खाद, रोग प्रतिरोधक दवाईयों के लिये) केवल एक बार प्रति हैक्टेयर रूपये 50000/- की लागत पर समान्य वर्ग को 20 प्रतिशत की दर से रूपये 10000/- अनुदान तथा अनुसूचित जनजाति/जाति वर्ग को 25 प्रतिशत की दर से रूपये 12500/- अनुदान प्रति इनपुट्स लागत पर दिया जाता है साथ ही तालाब मरम्मत एवं सुधार, पानी के आगम-निर्गम द्वारों पर जाली लगाने हेतु केवल एक बार प्रति हैक्टेयर रूपये 75000/- की लागत पर समान्य वर्ग को 20 प्रतिशत की दर से रूपये 15000/- अनुदान तथा अनुसूचित जनजाति/जाति वर्ग को 25 प्रतिशत की दर से रूपये 18750/- अनुदान दिया जाता है ।

स्रोत: मछुआ कल्याण तथा मत्स्य विकास विभाग, मध्यप्रदेश सरकार

मत्स्य पालन की योजनाएं(MP)
मत्स्य पालन की योजनाएं(MP)

भूमिका

राज्य में मत्स्योद्योग के विकास हेतु अनेक कल्याणकारी योजनायें क्रियान्वित हैं जिसके तहत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के कृषकों के साथसाथ सभी वर्गो के मछुओ को तकनीकी मार्गदर्शन एवं आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जाती है जिसका विवरण निम्नानुसार है ।

राज्य की योजनाएं

निजी क्षेत्र में मत्स्य बीज संवर्धन हेतु अनुदान योजना

योजना का उद्देश्य

मत्स्य पालकों को मत्स्य बीज उत्तम गुणवत्ता का स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कराना।

योजना का स्वरूप एवं आच्छादन

सम्पूर्ण प्रदेश

योजना क्रियान्वयन की प्रक्रिया

  1. हितग्राही अपनी भूमि के नक्शा खसरा की नकल सहित जिले के सहायक संचालक मत्स्योधोग को निर्धारित प्रपत्र में आवेदन प्रस्तुत करेगा। जिला मत्स्योधोग अधिकारी द्वारा भूमि का निरीक्षण कर मिटटी का परीक्षण करवाया जायेगा  एवं उपयुक्त पाये जाने पर हितग्राही का ऋण प्रकरण बना कर स्वीकृति हेतु बैंक को प्रेषित किया जायेगा ।
  2. बैंक द्वारा ऋण स्वीकृत होने पर बैंक की मांग के आधार पर बैंक एण्डेड सबिसडी बैंक को उपलब्ध करार्इ जायेगी ।
  3. विभाग के जिला अधिकारी द्वारा अधोसंरचना का निर्माण कार्य पूर्ण होने पर एवं हितग्राही द्वारा आवेदन करने पर अनुदान राशि वितरित की जायेगी ।

हितग्राही की अर्हताएं

सभी वर्ग के भूस्वामी योजना के हितग्राही हो सकते है।

अनुदान राशि

50 प्रतिशत अनुदान पर उक्त योजना क्रियानिवत की जा रही है। (न्यूनतम 0.5 हैक्टेयर एवं अधिकतम 5.00 हैक्टेयर जलक्षेत्र)

अन्य जानकारी

उक्त योजना वर्ष 201011 से प्रदेश के समस्त जिलों में संचालित की जा रही है।

मत्स्य विक्रय को बढावा देने हेतु मत्स्य बाज़ार निर्माण योजना

योजना का उद्देश्य

ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में सुव्यवस्थित  मत्स्य विपणन एवं उत्तम गुणवत्ता की मछली उपलब्ध कराना।

योजना का स्वरूप एवं आच्छादन

सम्पूर्ण प्रदेश

योजना क्रियान्वयन की प्रक्रिया

  1. मत्स्योधोग विभाग के अधिकारी द्वारा हाट बाजार में प्रतिदिवस बिक्री होने वाली मछली का आकंलन किया जाएगा।
  2. चयनित स्थल पर बाजार निर्माण हेतु प्लान एवं प्राक्कलन स्थानीय निकाय के द्वारा मत्स्योधोग विभाग के अधिकारियों की सहमति से तैयार किया जाएगा।
  3. निर्मित प्लान एवं प्राक्कलन के अनुसार राशि स्थानीय निकाय को प्रदाय कर बाजार का निर्माण कराया जाएगा।
  4. निर्मित बाजारों में दुकानों का आवंटन स्थानीय निकाय एवं मत्स्योधोग विभाग की सहमति से किया जाएगा।
  5. दुकानों का प्रबंध एवं सुधार कार्य का दायित्व भी स्थानीय निकाय का होगा।

अनुदान राशि

शतप्रतिशत अनुदान से मत्स्य बाजारों का निर्माण किया जाता है।

अन्य जानकारी

उक्त योजना वर्ष 2012 से प्रदेश के समस्त जिलों में संचालित की जा रही है।

शिक्षण प्रशिक्षण (मछुआरों का प्रशिक्षण)

योजना का उद्देश्य

सभी श्रेणी के मछुओं को मछली पालन की तकनीकी एवं मछली पकड़ने, जाल बुनने, सुधारने एवं नाव चलाने का प्रशिक्षण, मत्स्यबीज उत्पादन संवर्धन कार्य |

योजना का स्वरूप एवं आच्छादन

  1. प्रत्येक प्रशिक्षणार्थियों को उनके निवास स्थान से प्रशिक्षण केन्द्र तक आने जाने का एक बार का वास्तविक किराया या अधिकतम राशि रू. 100 एवं रू. 750 की छात्रवृत्ति दी जाती है ।
  2. जाल बुनने के लिए रू. 400 मूल्य का नायलान धागा भी नि:शुल्क उपलब्ध कराया जाता है ।
  3. प्रति प्रशिक्षणार्थी रू. 1250 का व्यय किया जाता है यह योजना प्रदेश के सभी जिलों में संचालित है ।

योजना क्रियान्वयन की प्रक्रिया

चयन किए गए मछुआरों को जिले में स्थित  मत्स्योत्पादन मत्स्यबीज उत्पादन केन्द्रों पर विभाग के अधिकारियों द्वारा सैद्धान्तिक  एवं प्रायोगिक प्रशिक्षण दिया जाता है । जिला पंचायत की अध्यक्षता में गठित समिति जिसमें 2 नामांकित अशासकीय सदस्य तथा सहायक संचालक मत्स्योधोग होते हैं, द्वारा मछुआरों का चयन किया जाता है जिसमें विभाग द्वारा 15 दिवसीय मत्स्य पालन प्रशिक्षण दिया जाता है ।

हितग्राही की अर्हताएं

मछुआ सहकारी समितियों के सक्रिय सदस्यस्व सहायता समूह के सदस्य मत्स्य कृषक विकास अभिकरण का हितग्राही मत्स्यबीज उत्पादक संवर्धनकर्ता, मत्स्य पालन गतिविधियों में संलग्न व्यकित, तालाब जलाशय पटटे पर लेकर मत्स्य पालन करने वाला हितग्राही ।

प्रशिक्षण अवधि

15 दिवस

अनुदान राशि

प्रति प्रशिक्षणार्थी रू. 1250 का प्रावधान है ।

ग्रामीण तालाबों में मत्स्य आहार प्रबंधन योजना

योजना का उद्देश्य

ग्रामीण तालाबो की मत्स्य उत्पादकता वृद्धि हेतु फारमुलेटेड फ्लोटिंग या नान फ्लोटिंग फीड (परिपूरक मत्स्य आहार) के उपयोग एवं महत्व से अवगत कराये जाने के उददेश्य से योजना प्रस्तावित है |

योजना का स्वरूप एवं आच्छादन

प्रदेश के समस्त जिलों में क्रियाविन्त हैं।

हितग्राही की अर्हताएं

निम्नानुसार अर्हाताऐं प्राप्त हितग्राही योजना के तहत सम्मलित होगे,

एकल हितग्राही,समूह में प्राप्त ग्रामीण तालाब के हितग्राही,
जाति एवं प्राथमिकता बंधन नहीं,

ग्रामीण तालाब की पात्रता

  • पानी की उपलब्घता के आधार पर ग्रामीण तालाबों की पात्रता समस्त बारहमासी ग्रामीण तालाब, समस्त लांग सीजनल ग्रामीण तालाब, जिसमें माह अप्रैल के पश्चात तक अनिर्वायता पानी रहता हो |
  • स्वामित्व के आधार पर ग्रामीण तालाबों की पात्रता ग्राम पंचायत स्वामित्व के समस्त ग्रामीण तालाब,
  • मत्स्य कृषक विकास अभिकरण योजना के तहत निर्मित तालाब,
  • मीनाक्षी योजना के तहत मत्स्य पालन हेतु निर्मित तालाब,
  • अन्य विभागीय योजना के तहत निर्मित तालाब, जिसमें मत्स्योधोग  विभाग की योजनाओं एवं मार्गदर्शन के तहत मत्स्य पालन कार्य किया जा रहा हो,
  • निजी क्षेत्र के तालाब, जिसमें मत्स्योधोग विभाग की योजनाओं एवं मार्गदर्शन के तहत मत्स्य पालन कार्य किया जा रहा हो,
  • समस्त सिंचार्इ जलाशय एवं शार्ट सीजनल ग्रामीण तालाब जिनमें माह अप्रैल के पूर्व पानी सूख जाता है, इस योजना में सम्मिलित  नहीं होगें,

जलक्षेत्र के आधार पर ग्रामीण तालाबों की पात्रता

  • बारहमासी ग्रामीण तालाब
  • न्यूनतम 0.2 हे. जलक्षेत्र के छोटे ग्रामीण तालाब योजना में सम्मिलित नहीं होगें,
  • अधिकतम 10.00 हे. जलक्षेत्र से बडे़ ग्रामीण तालाब योजना में सम्मिलित नहीं होग,
  • बारहमासी तालाबों को चयन में प्राथमिकता दी जाये ,
  • लांग सीजनल ग्रामीण तालाब
  • न्यूनतम 0.4 हे0 जलक्षेत्र के छोटे ग्रामीण तालाब योजना में सम्मिलित नहीं होगें |
  • अधिकतम 5.0 हे0 जलक्षेत्र से बडे ग्रामीण तालाब योजना में सम्मिलित  नहीं होगें।

प्रशिक्षण अवधि

  1. चयनित हितग्राही को एक दिवसीय प्रथम प्रशिक्षण मत्स्य आहार उपयोग प्रारम्भ करने के पूर्व दिया जायेगा , जिसमें मत्स्य आहार के उपयोग के बारे में जानकारी दी जायेगी।
  2. द्वितीय प्रशिक्षण (प्री हार्वेस्टिंग ट्रेनिंग) मत्स्य आहार उपयोग के दौरान दी जायेगी , जिसमें कार्बनिक, अकार्बनिक खाद के उपयोग के साथसाथ मत्स्य आहार के उपयोग से मछली की बढ़वार आदि के बारे में सं‍बधित मतस्य कृषक के साथ अन्य मत्स्य कृषकों केा भी प्रशिक्षण दिया जायेगा ।
  3. तृतीय प्रशिक्षण, (पोस्ट हार्वेस्टिंग ट्रेनिंग) आसपास के मत्स्य कृषकों के समक्ष जाल चलाकर मछली की बढ़वार आदि के बारे में प्रशिक्षण दिया जायेगा ।
  4. विकास खण्ड स्तर पर पदस्थ विभागीय अधिकारी का दायित्व होगा कि वह मत्स्य आहार के उपयोग के संबंध में  आवश्यक तकनीकी मार्गदर्शन देवे तथा मत्स्य आहार का उपयोग सुनिश्चित करावे,
  5. मत्स्य आहार की गतिविधि प्रारंभ होने पर संबंधित विकास खण्ड में  पदस्थ विभागीय अधिकारी समय समय पर हितग्राही को तकनीकी मार्गदर्शन उपलब्घ करायेगे|

अनुदान राशि

”मत्स्य आहार” के रूप में प्रदान की जाती हैं जिसमें:

योजना इकार्इ लागत का 90 प्रतिशत अर्थात रू. 45,000प्रति हे. की दर से हितग्राहियों को वित्तीय सहायता ,अनुदान केवल एक बार देय।

योजना इकार्इ लागत का 10 प्रतिशत ,अर्थात रू. 5,000 प्रति हे0 की दर से हतग्राहियों द्वारा वहन किया जायेगा । कुल रू. 50,000 का मत्स्य आहार जिला कार्यालय एमी.एग्रो से देय होगा।

अन्य जानकारी

हितग्राही को यह भी सहमति पत्र देना अनिवार्य होगा, कि वह चयनित होने पर हितग्राही अपने हिस्से की 10 प्रतिशत राशि का बैंक ड्राफ्ट जमा करेगा। विभागीय जिला अधिकारी चयनित हितग्राही को यह भी निर्देशित करेगें कि हितग्राही द्वारा देय 10 प्रतिशत की राशि का बैंक ड्राफ्ट जो एम.पी.एग्रो में देय होगा शीघ्र प्रस्तुत करेगें।

फिशरमेंन क्रेडिट कार्ड योजना

योजना का उद्देश्य

मत्स्यपालन, मत्स्यबीज उत्पादन,एवं महासंध के जलाशयों में मत्सयाखेट करने वाले मछुओं को कार्यशील पूंजी हेतु अल्पावधि ऋण उपलब्ध कराना ।

योजना का स्वरूप एवं आच्छादन

सम्पूर्ण म.प्र.(सहकारी बैंको के माध्‍यम से)

योजना क्रियान्वयन की प्रक्रिया

हितग्राही संबंधित विकास खण्ड तहसील स्तर पर पदस्थ सहायक मत्स्य अधिकारी मत्स्य निरीक्षक तथा संबंधित जिले के सहायक संचालक मत्स्योधोग से सम्पर्क कर अपना आवेदन प्रस्तुत करेगा। चयन किये गये हितग्राहियों का जिला अधिकारी द्वारा प्रस्ताव तैयार कर सहकारी बैंकों को क्रेडिट कार्ड बनाने हेतु भेजा जायेगा ,  म.प्र. राज्य सहकारी बैंक मर्यादित भोपाल (शीर्ष बैंक) के द्वारा ब्याज अन्तर अनुदान राशि जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित को उपलब्ध करायी जायेगी । जिससे जिला सहकारी केन्द्रीय बैंकों की शाखाओं के माध्यम से मत्स्य कृषकों के खातों में ब्याज अनुदान समायोजित किया जायेगा।

हितग्राही की अर्हताएं

प्रदेश की मत्स्य पालन की नवीन नीति अनुसार त्रिस्तरीय पंचायतों के अधीन पटटे पर उपलब्ध कराये गये सिंचार्इ जलाशयों तथा ग्रामीण तालाबों के विभिन्न पटटा धारक मत्स्य कृषक, मत्स्योधोग सहकारी समितियों, स्व सहायता समूहों के सदस्य, मौसमी तालाबों में मत्स्य बीज संवर्धन का कार्य करने वाले तथा मत्स्य महासंध के अधिनस्थ जलाशयों में मत्स्याखेट का कार्य करने वाले मछुआरें पात्र हितग्राही होगें । पटटा धारक मत्स्य कृषक गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करता हो,विभागीय तकनीकी मार्गदर्शन में मत्स्यपालन का व्यवसाय कर रहा हो तथा बैंक का डिफाल्टर न हो ।

ऋण राशि

”0” प्रतिशत ब्याज दर पर सहकारी बैंकों के माध्यम से कार्यशील पूंजी हेतु अल्पावधि ऋण निम्न योजनाओं हेतु उपलब्ध करवाया जाता हैं।

विभागीय योजना

  1. ग्रामीण तालाबों में  मत्स्य पालन हेतु: रूपये 18300प्रति हे.
  2. सिंचार्इ तालाबों में मत्स्य पालन हेतु: रूपये 2000प्रति हे.
  3. मौसमी तालाबों में स्पान संवर्धन कर मत्स्य बीज उत्पादन हेतु:रूपये 23000प्रति 0.25 हे.

महासंघ की योजना

  1. महासंघ के जलाशयों में  मत्‍स्‍याखेट हेतु नाव क्रयकरण हेतु :रूपये 10000/ प्रति व्‍यक्ति (5 वर्ष में एक बार)
  2. 10 किलो जाल हेतु: रूपये 5000प्रति हे. (1वर्ष में एक बार)रूपये 5000/प्रति व्‍यक्ति (1 वर्ष में एक बार)
  3. मौसमी तालाबों में स्पान संवर्धन कर मत्स्य बीज उत्पादन हेतु: रूपये 23000/प्रति 0.25 हे.

विभागीय जलाशयों में मत्स्योत्पादन योजना

योजना का उद्देश्य

विभागीय जलाशयों में मत्स्यबीज उत्पादन, प्रजनक एकत्रीकरण तथा प्रशिक्षण

योजना का स्वरूप एवं आच्छादन

मध्यप्रदेश मत्स्यपालन नीति के अनुरूप विभाग में रखे गए जलाशयों में उददेश्‍य की पूर्ति के साथ ही स्वत्व शुल्क पद्धति से मत्स्याखेट करना तथा समिति समूह के सदस्यों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करना ।

योजना क्रियान्वयन की प्रक्रिया

विभागीय जलाशयों में कार्य हेतु मछुआ सहकारी समिति समूह के द्वारा आवेदन जिले में पदस्थ सहायक मत्स्य अधिकारी मत्स्य निरीक्षक को देते हुए उक्त आवेदन पत्र में निम्न बिन्दुओं का समावेश होना आवश्यक है :

  1. क्रियाशील एवं सक्रिय मछुआ सहकारी समिति समूह का आवेदन पत्र
  2. समिति समूह का प्रस्ताव ठहराव
  3. समिति समूह की सूची जो उक्त जलाशय में मत्स्याखेट कार्य करेगी ।
  4. विभागीय स्वत्व शुल्क की दर एवं नीति निर्देशों के अनुरूप ही कार्य का उल्लेख हो ।
  5. सिक्यूरिटी राशि जमा करने एवं एडवांस रायल्टी जमा करने तथा अनुबंध निष्पादित करने के पश्चात ही मत्स्याखेट कार्य प्रारंभ कराना एवं समिति समूह के मछुआ सदस्यों को परिचय पत्र प्रदाय करना तथा परिचय पत्र प्रदाय किए गए सदस्यों से ही मत्स्याखेट कार्य करवाना
  6. निर्धारित समय पर प्रतिदिन मत्स्याखेट की तौल करवाना एवं मत्स्याखेट रजिस्टर में प्रतिष्ठित  करना
  7. मध्यप्रदेश फिशरीज एक्ट, 1948 के नियमों का पालन अनिवार्य है।

हितग्राही की अर्हताएं

क्रियाशील एवं सक्रिय मछुआ सहकारी समिति/समूह

प्रशिक्षण अवधि:10 दिवस

नवीन मत्स्य समृद्धि योजना

योजना का उद्देश्य

प्रदेश की नदियों में मत्स्य सम्पदा समृद्धि हेतु नैसर्गिक रूप से पार्इ जाने वाली प्रजातियों के बीज का गहरे दहों में संचयन

  1. नदियों के किनारे रहने वाले वंशानुगत मातिस्यकी जन मछुआरों अनुसूचित  जाति, जनजाति के व्यक्तियों  को नदियों में मत्स्याखेट से रोजगार उपलब्ध कराकर जीवन यापन के संसाधन जुटाना ।
  2. नदियों में जैव विविधता का संरक्षण
  3. प्रदेश में मत्स्योत्पादन में वृद्धि
  4. कुपोषण के उन्मूलन में सस्ते प्रोटीन के रूप में मत्स्य आहार

योजना का स्वरूप एवं आच्छादन

  1. प्रदेश में प्रवाहित 17088 किलोमीटर नदियों में 890 गहरे दहों में 5000 फिंगरलिंग प्रति हैक्टयर की दर से मत्स्यबीज संचय किया जाना ।
  2. मत्स्यबीज संवर्धन हेतु ग्रामीण तालाबों का उपयोग ।
  3. गहरे दहों के किनारे के ग्रामीण तालाबों को मत्स्यबीज संवर्धन हेतु  प्राथमिकता ।
  4. नदियों 100 एम.एम. एवं इससे बड़े आकार का मत्स्यबीज संचय किया जाना
  5. मत्स्यबीज संवर्धन मत्स्य सहकारी समितियोंस्व सहायता समूहों से बायबैक पद्धति से कराया जाना ।
  6. मत्स्यबीज संवर्धन पश्चात शासन की दरों पर मत्स्यबीज क्रय मत्स्यबीज संचित किया जाना ।
  7. नदियों में मत्स्य संरक्षण के प्रति मछुआरों को जागृत करना।

योजना क्रियान्वयन की प्रक्रिया

  1. नदियों में मत्स्य सम्पदा समृद्धि के लिए जनभागीदारी सुनिश्चित करना ।
  2. स्थानीय स्तर पर एक समिति गठित कर उनके समक्ष मत्स्य बीज संचयन का कार्य कराया जाना ।
  3. संचित मत्स्यबीज की सुरक्षा हेतु ग्रा सभा जैसे आयोजन में मत्स्य विभाग के कर्मचारी उपस्थित  होकर ग्रामीण जनों को नदी में मत्स्य सम्पदा संरक्षण हेतु जानकारी देना एवं प्रेरित करना ।
  4. आवश्यकयतानुसार नदीय सुरक्षा समिति गठित कर जैव विविधता का कार्य सौंपा जाना ।

हितग्राही की अर्हताएं

नदियों किनारे निवास करने वाले अनुसूचित जाति जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग के व्यकित

प्रशिक्षण अवधि: 10 दिवस

अनुदान राशि

विभाग द्वारा रूपये 500 प्रति हजार मत्स्य अंगुलिका उत्पादन एवं परिवहन व्यय |

अन्य जानकारी

प्रदेश में नदियों से मत्स्याखेट नि:शुल्क है ।

नदियों में मध्यप्रदेश फिशरीज एक्ट, 1948 के नियमों का पालन अनिवार्य है ।

मत्स्यबीज उत्पादन योजना

योजना का उद्देश्य

पालने योग्‍य मछलियों का मत्स्यबीज उत्पादन, कर प्रदेश के मत्स्यपालकों को निर्धारित शासकीय दर पर मत्स्यबीज उपलब्ध कराना , विभागीय जलाशयों एवं नदियों में मत्स्यबीज संचयन हेतु उपलब्ध कराना ।

योजना का स्वरूप एवं आच्छादन

सम्पूर्ण प्रदेश

योजना क्रियान्वयन की प्रक्रिया

विभागीय मत्स्यबीज उत्पादन इकार्इयों व्दारा अधुनिक तकनीक से मिश्रित एवं सुदृढ कतला मत्स्यबीज उत्पादित करना इस कार्य हेतु व्यय राज्य बजट से सामान्य योजना,अनुसूचित जाति विशेष घटक योजना तथा आदिवासी उपयोजना मदों से प्राप्त होता है । विक्रय किये गये मत्स्य बीज सें प्राप्त आय विभागीय मद में जमा की जाती है । मत्स्य बीज की दरें संलग्न है । निजी क्षेत्र में मत्स्य बीज उत्पादन को प्रोत्साहित करने हेतु बैंक से ऋण प्राप्त कर हैचरी कम्पोनेन्ट निर्माण पर अधिकतम रूपये 1.00 लाख की सहायता उपलब्ध करार्इ जाति है ।

हितग्राही की अर्हताएं

सभी वर्ग के मत्स्य कृषक ।

अनुदान राशि

निजी क्षेत्र में मत्स्य बीज उत्पादन को प्रोत्साहित करने हेतु बैंक से ऋण प्राप्त कर हैचरी कम्पोनेन्ट के निर्माण पर अधिकतम रूपये 1.00 लाख की सहायता उपलब्ध करार्इ जाती है ।

ग्रामीण तालाब/नगर निकाय के तालाबो के मत्स्य पालको को अनुदान सहायता

योजना का उद्देश्य

ग्रामीण तालाब/नगर निकाय के तालाबो के मत्स्यपालको को मत्स्यपालन के विभिन्न कार्यो के लिये आर्थिक सहायता दे कर एवं उत्पादकता में  वृद्धि कर मछुआरों की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति के सुधार के उद्देश्य से योजना प्रस्तावित है,

योजना का स्वरूप एवं आच्छादन

योजना का कार्य क्षेत्र सम्पूर्ण प्रदेश में  रहेगा,

योजना क्रियान्वयन की प्रक्रिया

  1. विभागीय जिला अधिकारी एवं विभागीय मैदानी अधिकारी योजना का व्यापक प्रचार प्रसार करेगे तथा बैठक आदि आयोजित कर योजना के बारे में  विस्तृत जानकारी देगे।
  2. मत्स्यपालक हितग्राही निर्धारित प्रारूप में  योजना के तहत आर्थिक   सहायता प्राप्त करने हेतु आवेदन पत्र विभागीय जिला अधिकारी को देगे |
  3. संबंधित विभागीय क्षेत्रीय अधिकारी प्रस्ताव का कंडिका क्र. 4 एवं 6 अनुसार परीक्षण कर उचित पाये जाने पर अनुशंसा सहित प्रस्ताव विभागीय जिला कार्यालय में  प्रस्तुत करेगें|
  4. विभागीय जिला अधिकारी, हितग्राही का आवेदन योजना प्रावधानो के तहत उचित पाये जाने पर, कंडिका क्र. 6 अनुसार निर्धारित मापदण्डों के आधार पर गणना कर, 15 दिवस की समयावधि में अनुदान राशि का निर्धारण करेंगे, तथा उचित पाए गए समस्त आवेदन पत्रो को सूचीबद्ध कर प्रस्ताव स्वीकृति हेतु जिला पंचायत की कृषि स्थाई समिति को प्रस्तुत करेगें|
  5. विभागीय जिला अधिकारी, वित्तीय वर्ष के लिये घटकवार (सामान्य श्रेणी, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जन जाति) आवंटित धन राशि की जानकारी कृषि स्थाई समिति को देगे तथा आवंटित धन राशि की सीमा तक घटकवार हितग्राहियो को सूचीबद्ध कर अनुदान प्रदाय हेतु अनुमोदन प्राप्त करेगें।
  6. जिला पंचायत की कृषि स्थाई समिति द्वारा यदि 45 दिवस में प्रस्ताव का अनुमोदन नही करती है, तो जिले के कलेक्टर अधिकृत होगें, कि वे विभागीय जिला अधिकारी द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव का अनुमोदन कर अग्रिम कार्यवाही करावें।
  7. विभागीय जिला अधिकारी, कृषि स्थाई समिति के अनुमोदन उपरान्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत से स्वीकृति प्राप्त कर योजना अनुसार भुगतान की कार्यवाही करेंगे ।
  8. किसी भी दशा में  किसी भी संस्था, ऐजेन्सी, व्यक्ति को नगद भुगतान पूर्णतः वर्जित है । भुगतान बैंक खाते या बैंक ड्राफ्ट के माध्यम से किया जाना अनिवार्य होगा|

हितग्राही की अर्हताएं

  1. जाति का बंधन नही है सभी जातियों के मत्स्यपालक योजना का लाभ प्राप्त कर सकते है ।
  2. वे ही हितग्राही, जिन्होने मछुआ नीति 2008 के तहत ग्राम पंचायत/नगर निकाय के तालाबो को नियमानुसार पट्टे पर प्राप्त कर मछली पालन का कार्य कर रहे हो, योजना हेतु पात्र होगें|
  3. तालाब पट्टा अनुबंध की शर्ते, एवं मत्स्यपालन नीति 2008 के तहत दोषी/बकायादार मत्स्यपालक, योजना हेतु पात्र नही होगें|

प्रशिक्षण अवधि

विभागीय मछुआ प्रशिक्षण योजना के तहत हितग्राहियो को 15 दिवसीय प्रशिक्षण दिया जाता है जिनमें  योजना के तहत लाभांवित हितग्राहियो को प्रशिक्षण के लिये चयनित कर प्रशिक्षित किया जायेगा |

अनुदान राशि

  1. मत्स्यपालक हितग्राही को 10 वर्षीय पट्टा अवधि में  योजना प्रावधानो के तहत लगातार 10 वर्षो तक पात्रता अनुसार अनुदान प्रदाय किया जायेगा ।
  2. अनुदान की सीमा 1 हेक्टेयर जलक्षेत्र हेतु निम्न तालिका अनुसार निर्धारित है। तालाब के जलक्षेत्र के मान से अनुदान की गणना की जाकर अनुदान स्वीकृत किया जायेगा |
  3. अनुदान राशि एक अप्रेल से प्रारंभ होने वाले तथा 31 मार्च को समाप्त होने वाले एक वित्तीय वर्ष की अवधि में  किये गए वास्तविक व्यय पर आधारित होगी।
  4. मछुआ हितग्राही को तालाब की पट्टा राशि, मछली बीज, नाव , जाल एवं मत्स्य खादय, उर्वरक, खाद, दवा, क्रय की कार्यवाही, हितग्राही को स्वयं करनी होगी|
  5. पंचायतों/निकायों में तालाब की जमा पट्टा राशि की रसीद, प्रदेश के मत्स्यबीज उत्पादकों से मत्स्यबीज तथा अधिकृत विक्रेताओं से क्रय किए गए नाव एवं जाल एवं मत्स्य खादय, उर्वरक, खाद, दवा, क्रय की रसीद प्रस्तुत करने पर विभागीय जिला अधिकारी द्वारा कण्डिका क्रमांक 6.6 से 6.9 के तहत परीक्षण उपरांत उचित पाए जाने पर पात्रता अनुसार अनुदान का भुगतान हितग्राही के बैंक खाते में किया जायेगा  ।
  6. तालाब की पट्टा राशि मत्स्यपालन नीति वर्ष 2008 की कंडिका 1.5 के निर्धारित प्रावधानो के तहत ही मान्य होगी, किसी भी दशा में  निर्धारित दर से अधिक पट्टा राशि स्वीकृत नही की जाये  ।
  7. तालाब में  मत्स्यबीज संचयन दस हजार फ्राई प्रति हेक्टेयर के मान से, विभाग द्वारा मत्स्यबीज के निर्धारित दर अनुसार गणना कर, राशि स्वीकृत की जाये  । किसी भी दशा में  निर्धारित मान तथा दर से अधिक राशि स्वीकृत नही की जाये ।
  8. नाव, जाल हेतु प्रस्तावित कुल अनुदान की सीमा का अधिकतम 50 प्रतिशत, द्वितीय वर्ष अधिकतम 25 प्रतिशत तथा तृतीय वर्ष अधिकतम 25 प्रतिशत या जो भी जलक्षेत्र के गणना के मान से कम हो स्वीकृत की जाये  ।
  9. मत्स्य खादय, उर्वरक, खाद एवं दवा आदि हेतु प्रस्तावित कुल अनुदान की सीमा का प्रथम वर्ष अधिकतम 33 प्रतिशत, द्वितीय वर्ष अधिकतम 25 प्रतिशत एवं तृतीय वर्ष अधिकतम 25 प्रतिशत, चतुर्थ वर्ष शेष राशि या जो भी जलक्षेत्र के गणना के मान से कम हो स्वीकृत की जाये ।
  10. हितग्राही को प्रथम वर्ष यदि अनुदान का लाभ दिया गया है तो उसे आगामी वर्षो में  भी योजना के प्रावधानो के तहत लाभांवित किया जाना अनिवार्य है ।
  11. मत्स्यपालको को द्वितीय एवं आगामी वर्षो में  अनुदान की पात्रता पूर्व वर्षो की स्वीकृत अनुदान के सदुपयोग किये जाने की दशा में  पंचायत एवं विभाग के मार्गदर्शन अनुसार नवीन मत्स्यपालन तकनीक अपनाने एवं मूल्यांकन हेतु नियमित जानकारी देते रहने की दशा में  हो सकेगी|
  12. योजनान्तर्गत लाभार्थी को किसी दशा में अन्य योजनाओं में  मछलीपालन के लिये अनुदान की पात्रता नही होगी ।
  13. पूर्व स्वीकृत एवं संचालित योजना के तहत् लाभांवित सतत् मत्स्यपालक पूनरीक्षित दर पर शेष सहायता के लिये पात्र रहेगें ।

वित्तीय व्यवस्था

योजना के तहत सामान्य जाति, (पिछड़ा वर्ग सहित) अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के मत्स्यपालक हितग्राहियो को अनुदान सहायता राज्य आयोजना मद से प्रदान की जायेगी । विकासात्मक गतिविधियों  के परिपेक्ष्य में  उक्त योजना की वित्तीय व्यवस्था अन्य योजनाओं  से भी की जा सकेगी ।

अन्य जानकारी

मॉनिटरिंग एवं रिर्पोटिग :

जिले के मछली पालन विभाग के जिला अधिकारी शत प्रतिशत कार्यो की गुणवत्ता व समय क्रियान्वन की नियमित मानिटरिग करेगे|

योजना की प्रगति की मासिक, त्रैमासिक जानकारी विकास खण्ड प्रभारी सहायक मत्स्य अधिकारी या मत्स्य निरीक्षक द्वारा विभाग के जिला अधिकारी के माध्यम से संचालनालय को नियमित रूप से निर्धारित प्रपत्र पर प्रेषित की जायेगी ।

संभागीय अधिकारी उक्त योजना नोडल अधिकारी होगे।

केन्द्रक प्रवर्तित योजनाएं

स्वयं की भूमि में नवीन तालाब निर्माण,तालाब पुनर्रूद्वार

मत्स्य कृषक विकास अभिकरण अन्तर्गत स्वयं की भूमि में नवीन तालाब निर्माण,तालाब पुनर्रूद्वार/सुधार, इन्पुटस् लागत ।

योजना का उद्देश्य

आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को ग्रामीण तालाब 10 वर्षीय पट्टे पर उपलब्ध कराकर मछली पालन के स्वरोजगार के साधन उपलब्ध कराकर उनकी आर्थिक तथा सामाजिक उन्नति करना, तालाब की मरम्मत तथा मत्स्य पालन व्यवसाय प्रारंभ करने के लिये प्रथम वर्ष की पूजी के लिये बैंक से लंबी अवधि का ऋण तथा शासकीय अनुदान उपलब्ध कराना ।

योजना का स्वरूप एवं आच्छादन

सम्पूर्ण म0प्र0

योजना क्रियान्वयन की प्रक्रिया

ग्रामीण तालाब पट्टे पर लेकर मत्स्य पालन का व्यवसाय करना , स्वंय की भूमि में तालाब निर्माण कर मत्स्य पालन का व्यवसाय करना

हितग्राही की अर्हताएं

  1. आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग, जो गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे है को हितग्राही वनाया जाता हैं। इस संबंध में प्राथमिकतायें निम्नानुसार निर्धारित हैं
  2. वंशानुगत मछुआ जाति /अनुसूचित जनजाति /अनु सूचित जाति /पिछड़ावर्ग / सामान्यवर्ग की पंजीकृत मछुआ सहकारी समिति ।,
  3. वंशानुगत मछुआ जाति /अनुसूचित जनजाति /अनु सूचित जाति /पिछड़ावर्ग / सामान्यवर्ग के स्व सहायता समूह /मछुआ समूह
  4. वंशानुगत मछुआ जाति /अनुसूचित जनजाति /अनु सूचित जाति /पिछड़ावर्ग / सामान्यवर्ग का व्यक्ति विशेष ।

अनुदान राशि

योजनान्तर्गत मत्स्य पालको को निम्नानुसार सहायता/ अनुदान उपलब्ध करायी जाती है:

  1. स्वंय की भूमी में नवीन तालाब निर्माण की योजनान्तर्गत राशि रू. 3.00 लाख प्रति हेक्टेयर लागत का सामान्य वर्ग के हितग्राहियों को 20 प्रतिशत (अधिकतम सीमा रू. 60,000/) प्रति हेक्टेयर एवं अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति वर्ग के हितग्राहियो को लागत का 25 प्रतिशत (अधिकतम सीमा रू. 75,000/) प्रति हेक्टेयर अनुदान देने का प्रावधान हैं। (अधिकतम 5 हेक्‍ट. तक अनुदान देने का प्रावधान है)
  2. पटटे पर आवंटित ग्रामीण तालाबों के पुनरूद्वार/सुधार योजनान्तर्गत राशि रू. 75000/ प्रति हेक्टेयर लागत का सामान्य वर्ग के हितग्राहियों को 20 प्रतिशत (अधिकतम सीमा रू. 15,000/) प्रति हेक्टेयर एवं अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति वर्ग के हितग्राहियो को लागत का 25 प्रतिशत (अधिकतम सीमा रू. 18750/) प्रति हेक्टेयर अनुदान देने का प्रावधान हैं। (अधिकतम 5 हेक्‍ट. तक अनुदान देने का प्रावधान है)
  3. पटटे पर आवंटित ग्रामीण तालाबों को प्रथम वर्ष इनपुट पर राशि रू. 50,000/ प्रति हेक्टेयर लागत का सामान्य वर्ग के हितग्राहियों को 20 प्रतिशत (अधिकतम सीमा रू. 10,000/) प्रति हेक्टेयर एवं अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति वर्ग के हितग्राहियो को लागत का 25 प्रतिशत (अधिकतम सीमा रू. 12500/) प्रति हेक्टेयर अनुदान देने का प्रावधान हैं। (अधिकतम 5 हेक्‍ट. तक अनुदान देने का प्रावधान है)

मछुआ आवास योजना

योजना का उद्देश्य

प्रदेश की अधिकांश मछुआ आबादी, नदी, नालों, तालाबों, एवं जलाशयों के किनारे ग्रामीण/नगर निकाय क्षेत्रों में निवास करती है जिनके आवास प्रायः कच्चे तथा जीर्ण-शीर्ण अवस्था में होते हैं। मध्य प्रदेश के ग्रामीण/निकाय क्षेत्रों के ऐसे मछुआ परिवार जो मछली पालन के व्यवसाय से जुड़े हैं को मूलभूत सुविधाएं जैसे सुरक्षित आवास, शुद्ध पेयजल, सामुदायिक भवन आदि उपलब्ध कराने के उद्देश्य से मछुआ आवास योजना क्रियान्वित है ।

योजना का स्वरूप एवं आच्छादन

  1. योजना का क्रियान्वयन प्रदेश के जिलों में किया जायेगा । ग्रामीण/नगर निकाय क्षेत्रों में निवासरत क्रियाशील मछुआरों का प्रारंभिक चयन मत्स्योद्योग विभाग के क्षेत्रीय अधिकारियों द्वारा किया जाकर ग्राम पंचायत/नगर निकाय की अनुशंसा एंव प्रमाणीकरण पश्चात् प्रकरण जिला स्तरीय चयन समिति को हितग्राहियो के चयन हेतु प्रस्तुत किए जायेगे ।
  2. एक मछुआ आवास की न्यूनतम लागत रूपये 50,000/ (पच्चास हजार रूपये मात्र) निर्धारित है, जो हितग्राही को शतप्रतिशत अनुदान के रूप में देय होगी । शासन की अनुदान राशि रूपये 50,000/ में केन्द्रांश एवं राज्यांश 50:50 है ।
  3. मछुआ आवास हेतु प्रस्तावित रूपये 50,000/ की लागत से संलग्न प्लान/प्राक्कलन अनुसार न्यूनतम 35 वर्गमीटर के आवास का निर्माण किया जायेगा ।
  4. आवास में एक कमरा, रसोई का स्थान, बरामदा एवं शौचालय/स्नानगाह का स्थान रहेगा|
  5. मछुआ हितग्राही यदि चाहे तो आवश्यकता अनुसार स्वंय की योगदान राशि बढ़ाकर स्वंय के व्यय से आवास निर्माण कर सकेगा।
  6. मछुआ हितग्राही, आवास का निर्माण पृथक रूप से स्वंय की भूमि पर निर्धारित अभिन्यास के अनुसार करेगा ।
  7. मछुआ आवास निर्माण क्लस्टर में होने पर, एक समान अभिन्यास के अनुसार निर्माण किया जायेगा  तथा बाहरी आवरण एवं रंगरोगन निर्धारित योजना अनुसार किया जाना अनिवार्य होगा ।
  8. 10 से 20 आवासों के निर्माण पर एक ट्यूबवेल लागत रूपये 30,000/ एवं 75 आवास निर्माण पर 1 कम्यूनिटी हॉल लागत रूपये 1,75,000 का निर्माण किया जायेगा |

योजना क्रियान्वयन की प्रक्रिया

  1. संबंधित विकास खण्ड के मत्स्योद्योग विभाग के अधिकारी मत्स्य पालन / मत्स्याखेट / मत्स्य विक्रय / मत्स्यबीज उत्पादन आदि कार्यों में संलग्न क्रियाशील मछुआरों से निर्धारित प्रपत्र पर आवेदन मय भूमि के नक्शा/खसरा (यदि हो तो) सहित प्राप्त करेंगे ।
  2. मछुआ हितग्राही जहां मछुआ आवास का निर्माण करना चाहता हैं उस संबंधित ग्राम पंचायत/निकाय का निर्धारित आवेदन पत्र में अनुशंसा एवं प्रमाणीकरण अनिवार्य होगा ।
  3. आवेदन पत्र प्राप्त होने पर संबंधित विकास खण्ड के मत्स्य पालन विभाग के अधिकारी, हितग्राही की पात्रता जैसे वह मछुआ है उसकी आजीविका का प्रमुख आधार मत्स्य पालन /मत्स्याखेट/मत्स्य विक्रय/मत्स्यबीज उत्पादन है, हितग्राही के पास आवास हेतु भूमि उपलब्ध है हितग्राही को गरीबी रेखा सर्वे क्रमांक आवंटित है वह समिति/ समूह का सदस्य है अथवा नहीं, संबंधी सत्यापन करेंगे तथा प्रमाण पत्र अंकित करेंगे ।
  4. विभाग के सहायक यंत्री / उपयंत्री स्थल का निरीक्षण कर उपयुक्तता प्रमाण पत्र देगें एवं सतत् निरीक्षण कर निर्धारित प्लान/प्राक्कलन अनुसार कार्य कराए जाने हेतु जिम्मेदार होंगे।
  5. जिला स्तर पर, प्राप्त समस्त आवेदन पत्रों का परीक्षण संबंधित जिले के सहायक संचालक मत्स्योद्योग द्वारा किया जायेगा । आवेदन उपयुक्त पाए जाने पर आवेदन पत्र पर अपनी सहमति अंकित कर अग्रिम कार्यवाही करेंगे ।
  6. मछुआ आवास हेतु प्राप्त आवेदन पत्र पर उपरोक्त कण्डिका क्र0 3.1 से 3.5 अनुसार कार्यवाही पूर्ण करने की अवधि 30 दिवस निर्धारित है। सम्बन्धित विभागीय जिला अधिकारी निर्धारित समयावधि में कार्यवाही पूर्ण करना सुनिश्चित करेंगें।
  7. जिला स्तर पर उपयुक्त पाए गए समस्त आवेदकों का चयन ‘‘जिला स्तरीय चयन कमें टी” द्वारा किया जायेगा  ।
  8. ‘‘जिला स्तरीय चयन कमें टी” में जिला पंचायत की कृषि स्थाई समिति के अध्यक्ष, पदेन अध्यक्ष होंगे । मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत या उनके द्वारा नामांकित अधिकारी एवं जिला पंचायत की कृषि स्थाई समिति द्वारा नामांकित एक अशासकीय सदस्य, सदस्य होंगे । जिले के सहायक संचालक मत्स्योद्योग पदेन सचिव होंगे ।
  9. जिला स्तरीय चयन कमें टी 15 दिवस में हितग्राहियों का चयन करेगी। निर्धारित समय अवधि में चयन न होने की स्थिति में जिले के कलेक्टर अधिकृत होगें, कि वे स्वयं के निर्णय से 07 दिवस में हितग्राहियों का चयन पूर्ण कर अग्रिम कार्यवाही करावें।
  10. चयनित सूची का अनुमोदन जिला पंचायत की कृषि स्थाई समिति से कराया जाना होगा।
  11. जिला पंचायत की कृषि स्थाई समिति द्वारा यदि 45 दिवस में हितग्राहियों की चयनित सूची का अनुमोदन नही करती है, तो जिले के कलेक्टर अधिकृत होगें, कि वे हितग्राहियों की चयनित सूची का अनुमोदन कर अग्रिम कार्यवाही करावें।
  12. हितग्राहियों की चयनित सूची का प्रदर्शन एवं वाचन सम्बन्धित ग्राम सभा में किया जायेगा ।
  13. या कच्चा स्ट्रक्चर हितग्राही की अर्हताएं
  14. मत्स्य पालन विभाग द्वारा चिन्हित मत्स्य पालन / मत्स्याखेट / मत्स्य  विक्रय / मत्स्यबीज उत्पादन आदि कार्यों में संलग्न क्रियाशील मछुए ।
  15. गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले एवं भूमि विहीन, आवास विहीन मछुआ को प्राथमिकता ।
  16. मछुआ जिसकी स्वयं की भूमि हो वो भी आवास हेतु मान्य ।
  17. एक मछुआ परिवार को एक आवास की पात्रता होगी ।

अनुदान राशि

आवास निर्माण की लागत रूपये 50,000/ का भुगतान निम्नानुसार चार कि़स्तों में हितग्राही को, बैंक खाते के माध्यम से किया जायेगा  ।

आवास निर्माण की किस्त, अनुदान राशि, कराये जाने वाले कार्य का विवरण निम्न तालिका अनुसार निर्धारित है ।

कि़स्त अनुदान राशि रू. कार्य विवरण

  1. 10000/राशि नीव की खुदाई, कुर्सी भराई,
  2. 15000/ राशि छत स्तर तक पक्की दीवारों का निर्माण,खड़की, दरवाजे लगाना आदि
  3. 15000/ राशि अन्दर, बाहर सीमेंट प्लास्टर, छत निर्माण पुताई सहित समस्त कार्य,
  4. 10000/ राशि आवास से जुडे साधन जैसे रोड, नाली, बिजली की व्यवस्था तथा स्वच्छता से जुडे कार्य आदि|

हितग्राही को प्रथम किस्त का भुगतान अग्रिम किया जायेगा ।

  • उक्त तालिका अनुसार कार्य कराये जाने पर नियमानुसार कार्य के मूल्यांकन पश्चात् क्रमशः अग्रिम किस्त का भुगतान बैंक के माध्यम से किया जायेगा ।
  • कार्य प्रारंभ करने के पूर्व कार्य स्थल का, द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ किस्त जारी करने के पूर्व किये गये कार्यों के तथा कार्य पूर्ण होने पर आवास के फोटोग्राफ लिये जाये तथा रिकार्ड संधारित किया जाये  ।
  • किस्तों का भुगतान कंडिका 4.2 अनुसार कार्य पूर्ण होने पर तथा हितग्राही के आवेदन पर संबंधित मत्स्य पालन विभाग के अधिकारी तथा सहायक यंत्री /उप यंत्री के स्थल निरीक्षण, मूल्यांकन, प्रस्तुती उपरांत अनुशंसा पर बैंक के माध्यम से प्रदाय की जायेगी |
  • हितग्राही के कार्य पूर्ण होने संबंधि आवेदन पत्र प्राप्त होने के दिनांक से 15 दिवस की अवधि में उक्त कण्डिका 4.5 अनुसार कार्यवाही पूर्ण कर, किस्तों का भुगतान बैंक के माध्यम से तत्काल किया जाना अनिवार्य होगा।
  • मछुआ हितग्राही कच्चा/अर्द्ध पक्के आवास के स्थान पर योजनान्तर्गत् न्यूनतम 35 वर्गमीटर का निर्माण कर सकेगा|
  • हितग्राही अपने स्वामित्व के खाते की भूमि पर भी इन आवासों को बनाने के लिये पात्र होंगे ।
  • स्वंय का भूखण्ड उपलब्ध नहीं होने के स्थिति में ग्राम पंचायत / तहसीलदार से प्राप्त भूखण्ड के पट्टे पर आवास का निर्माण किया जा सकेगा  ।
  • भूमिहीन/आवासहीन मछुआ हितग्राहियों को नियमानुसार आवंटित, शासकीय भूमि में सामूहिक रूप से आवास निर्माण का कार्य भी कराया जा सकेगा ।
  • आवास निर्माण का कार्य, निर्माण सामग्री की व्यवस्था, हितग्राही स्वंय करेगा ।
  • यदि किसी ग्राम में 10 से 20 से अधिक मछुआ आवास का निर्माण होने के स्थिति में आवासों के मध्य 1 ट्यूबवेल खनन किया जाकर पम्प को संधारित किया जायेगा  । जिसका संधारण ग्राम पंचायत / लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग द्वारा कराया जायेगा|
  • 75 मछुआ आवासो के मछुआ ग्राम में, मछुआ हितग्राहियों के सामाजिक कार्यों हेतु 200 वर्ग मीटर का सामुदायिक भवन लागत राशि रूपये 1.75 लाख से कराया जायेगा  ।
  • यदि चयनित हितग्राही योजना अनुसार निर्माण कार्य नहीं करता है तथा राशि का दुरूपयोग करता है तो उसके प्रस्ताव को निरस्त कर, समस्त विभागीय योजनाओं के लाभ से वंचित कर दिया जायेगा  तथा भविष्य में किसी भी विभागीय योजना का लाभ नहीं दिया जायेगा ।

मत्स्य जीवियों का दुर्घटना बीमा योजना

योजना का उद्देश्य

मत्स्य पालन करते समय दुर्घटना की स्थिति निर्मित होने पर मछुआ कल्याण तथा मत्स्य विकास विभाग द्वारा मछुओं को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने हेतु निःशुल्क बीमा सुरक्षा प्रदान की जाती है ।

योजना का स्वरूप एवं आच्छादन

योजना का कार्य क्षेत्र सम्पूर्ण प्रदेश में रहेगा|

योजना क्रियान्वयन की प्रक्रिया

मध्य प्रदेश शासन मछुआ कल्याण तथा मत्स्य विभाग/ मध्य प्रदेश मत्स्य महासंघ (सह) मर्यादित/मत्स्य कृषक विकास अभिकरण के माध्यम से निर्धारित प्रपत्र पर प्रस्ताव प्राप्त होने पर विभाग द्वारा एक वर्ष के लिए मछुआरों को बीमा सुरक्षा राष्ट्रीय मत्स्यजीवि सहकारी संघ मर्यादित नई दिल्ली के माध्यम से प्रदान की जाती है  ।

हितग्राही की अर्हताएं

1870 वर्ष की आयु वर्ग के सदस्य जो मछली पालन से संबंधित समस्त कार्यो में सक्रिय रूप से संलग्न पंजीकृत मछुआ सहकारी समिति/समूह/व्यक्ति योजना का लाभ ले सकते हैं ।

अनुदान राशि

मछुआरों को योजना अंतर्गत बीमा प्रीमियम की राशि केन्द्र एवं राज्य के परस्पर सहयोग (केन्द्रांश रूपये 14.50 एवं राज्यांश 14.50 इस प्रकार कुल रूपये 29/ प्रति मछुआ) बीमा कम्पनी राष्ट्रीय मत्स्यजीवि सहकारी संघ मर्यादित नई दिल्ली को दिया जाता है योजना अंतर्गत मछुआरों को आंशिक अपंगता होने पर रूपये 50,000/ एवं स्थाई अपंगता तथा मृत्यु होने पर रूपये 1.00 लाख की आर्थिक सहायता शत्प्रतिशत अनुदान के रूप में प्रदान की जाती है ।

केन्‍द्र क्षेत्र योजना

अन्तर्देशीय मत्स्योद्योग सांख्यिकीय का विकास योजना

योजना का उद्देश्य

केन्द्रीय अंर्तस्थलीय मात्स्यिकीय अनुसंधान योजना अंतर्गत मत्स्यबीज संचय मत्स्य उत्पादन के आंकड़े एकत्रीकरण एवं स्रोत निर्धारण सर्वेक्षण हेतु कार्य योजना ।

योजना का स्वरूप एवं आच्छादन

प्रदेश के 14 जिले जिनमें यह योजना क्रियान्वित है वह निम्नानुसार हैः

1.बालाघाट

2.शहडोल

3.कटनी

4.बैतूल

5.सिवनी

6.सीहोर

7.टीकमगढ़

8.मंडला

9.विदिशा

10.धार

11.रायसेन

12.मुरैना

13.देवास

14.शाजापुर

योजना क्रियान्वयन की प्रक्रिया

मध्यप्रदेश राज्य को कृषि जलवायु क्षेत्र के आधार पर तीन भागों में  विभक्त किया गया है नमूना सर्वेक्षण हेतु चयनित 14 जिलों को तीन स्टेट्रम में विभक्त कर प्रत्येक स्टेट्रम अन्तर्गत चयनित 20 ग्रामों के 4 कलस्टर बनाए गए प्रत्येक कलस्टर में एक मुख्य ग्राम एवं उसके आसपास के 4 अधीन ग्राम रखे जाते है। उक्त चयनित ग्रामों में स्थित सिंचाई ग्रामीण तालाबों की जानकारी निर्धारित प्रपत्र में प्राप्त की जाती है। केन्द्र शासन को भेजी जाती है। यह योजना वर्ष 2003-04 से क्रियान्वित है।

विश्व बैंक पोषित योजना

मध्य प्रदेश वाटर रिस्ट्रक्चरिंग परियोजना

योजना का उद्देश्य

राज्य के 5 नदी कछार के पूर्व निर्मित जलाशयों एवं उनके कमाण्ड क्षेत्र में स्थित तालाबों में मत्स्य पालन का विकास, मत्स्योत्पादकता में वृद्धि एवं हितग्राहियों की भागीदारी ।

योजना का स्वरूप एवं आच्छादन

  1. मत्स्योद्योग विकास हेतु राज्य की पांच नदी कछार यथा चम्बल, सिंध, बेतवा, केन, टोंस के जलाशय एवं उनके कमाण्ड क्षेत्र में स्थित तालाबों में मत्स्योद्योग विकास
  2. बडे़ आकार के मत्स्य बीजों का उपयोग।
  3. मत्स्य खाद्य की गुणवत्ता में सुधार
  4. उपभोगकर्ताओं का आर्थिक उन्नयन।
  5. मत्स्य सहकारी समितियों का सुदृढ़ीकरण करना, मत्स्याखेट के उपकरण नाव, जाल उपलब्ध कराना
  6. पोस्ट हारर्वेस्टिंग सुविधाएं जैसे लेंडिंग सेन्टर, इन्सुलेटेड बाक्स आदि की व्यवस्था करना
  7. उन्नत तकनीक से मत्स्य पालन हेतु हितग्राहियों को प्रशिक्षित करना ।
  8. जलाशयों में मत्स्योद्योग विकास
  9. कम अवधि के मौसमी तालाबों का मत्स्य पालन उपयोग।
  10. दीर्घ अवधि के मौसमी तालाबों का मत्स्य पालन उपयोग।
  11. बारहमासी तालाबों का मौसमी तालाबों का मत्स्य पालन उपयोग।
  12. प्रदर्शन तालाबों में उच्च तकनीकी से मत्स्य पालन कार्य।

योजना क्रियान्वयन की प्रक्रिया

चयनित जिले के नदी कछार के जलाशय एवं कमाण्ड एरिया के तालाबों में मत्स्योद्योग का विकास करना जिसके लिए मत्स्यपालन कार्य में संलग्न मत्स्य कृषक (सहकारी समिति/समुदाय/कृषक) संबंधित विकासखंड तहसील स्तर पर पदस्थ सहायक मत्स्य अधिकारी /मत्स्य निरीक्षक तथा संबंधित जिले के सहायक संचालक मत्स्योद्योग से सम्पर्क कर परियोजना का निम्नानुसार लाभ ले सकते हैं:

  1. प्रत्येक 100 हैक्टेयर जलक्षेत्र पर एक लेंडिंग सेंटर, 3040 हैक्टेयर पर एक नाव तथा एक नाव में 40 किलो मत्स्याखेट हेतु जाल का प्रावधान
  2. जलाशय के कमाण्ड क्षेत्र में, कम अवधि एवं दीर्घ अवधि के मौसमी एवं बारहमासी तालाबों में भारतीय प्रमुख सफर एवं कामनकार्प मत्स्य बीज संचयन के साथ खाद एवं पूरक आहर का उपयोग के फलस्वरूप 2250 से 2500 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर मत्स्योत्पादन संभावित।
  3. प्रदर्शन तालाब अंतर्गत उच्च तकनीकी से मत्स्य पालन करना ।
  4. मत्स्यबीज हैचरी एवं संवर्धन क्षेत्र का विकास तथा निर्मित अधोसंरचना का सुदृढ़ीकरण
  5. अल्प एवं दीर्घ अवधि के मौसमी तालाबों से स्टेण्डर्ड मत्स्यबीज का उत्पादन
  6. मत्स्यबीज की आवश्यकता की पूर्ति हेतु हैचरी का निर्माण
  7. संस्था का सुदृढ़ीकरण
  8. योजना अंतर्गत तकनीकी विशेषज्ञों तथा तकनीकी सहायकों का प्रावधान
  9. जल एवं मिट्टी परीक्षण का प्रावधान
  10. प्रशिक्षण अंतर्गत मछुआ सहकारी समिति, समुदाय को स्थानीय शहर तथा प्रदेश में प्रशिक्षण परियोजना में संलग्न मत्स्य कर्मियों को रिफ्रेशर प्रशिक्षण देश तथा विदेश में कम्प्युटर तथा साफ्टवेयर का प्रशिक्षण भी सम्मिलित है।
  11. स्थानीय कार्यशाला एवं अध्ययन भ्रमण ।

हितग्राही की अर्हताएं

परियोजना अंतर्गत जिलों के चयनित जलाशयों एवं कमाण्ड एरिया में मत्स्यपालन कार्य में संलग्न मत्स्य सहकारी समितियां/मछुआ समूह/मत्स्य कृषक जिनके पास मत्स्य पालन हेतु जलाशय/तालाब पट्टे पर आवंटित है

प्रशिक्षण अवधि:07 से 10 दिवस

अनुदान राशि

शत प्रतिशत अनुदान पर उक्त परियोजना क्रियान्वित की जा रही है।

अन्य जानकारी

उक्त परियोजना वर्ष 2005 से लागू है तथा मध्यप्रदेश के 27 जिलों (नीमच, मंदसौर, शाजापुर, राजगढ, मुरैना, शिवपुरी, श्योपुर, ग्वालियर, दतिया, गुना, विदिशा, टीकमगढ, छतरपुर,रीवा, पन्ना, दमोह, अशोकनगर, भोपाल, सीहोर, सतना, कटनी, रायसेन, सागर, देवास, धार, रतलाम, और उज्जैन) में संचालित है।

स्रोत: मछुआ कल्याण तथा मत्स्य विकास विभाग, मध्यप्रदेश सरकार

बीज संग्रहण मार्गदर्शिका(MP)
बीज संग्रहण मार्गदर्शिका(MP)

प्रस्तावना

मध्यप्रदेश वन विभाग के द्वारा प्रतिवर्ष लगभग 1.25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में वृक्षारोपण किया जाता है इसके साथ ही निजी क्षेत्र में आजकल बड़ी मात्रा में वृक्षारोपण किया जा रहा है। इसलिये विभिन्न वृक्ष प्रजातियों के बीजों का संग्रहण विभाग का प्रमुख कार्य हो गया है।

विश्व बैंक योजना के अंतर्गत 13 विस्तार एवं अनुसंधान केन्द्र स्थापित किये जा रहे हैं। इन केन्द्रों का एक मुख्य कार्य आनुवांशिक रूप में अच्छे गुण श्रेणी के बीज एकत्र करके विभाग,किसानों तथा नर्सरी धारकों को प्रदाय करना है। इसलिये इन केन्द्रों में कार्यरत कर्मचारियों को बीज संग्रहण के बारे में समुचित जानकारी होना आवश्यक है। बीज संग्रहण में निम्नलिखित क्रियायें सम्मिलित है –

  1. वृक्षों से फलों/बीजों का एकत्रीकरण (Collection of fruits/seeds)
  2. बीजों का उपचार (Processing of seeds)
  3. बीजों का भण्डारण (Storage of seeds)
  4. बीजों का परीक्षण (Testing of seeds)

बीजों का एकत्रीकरण

  1. वन विभाग में विभिन्न वृक्ष प्रजातियों एवं दूसरी प्रजातियों के बीजों की बड़ी मात्रा में आवश्यकता पड़ती है। वृक्षारोपण, बिगड़े वनों के सुधार, पड़त भूमि विकास आदि कार्यक्रमों के अंतर्गत किये जाने वाले रोपणों के लिये बड़ी मात्रा में बीज प्रतिवर्ष एकत्र किये जाते है। बीजों की गुणवत्ता मुख्य रूप से वृक्षों के आनुवंशिक गुण पर निर्भर होती है। इसलिये यह आवश्यक है कि बीज उन्हीं वृक्षों से एकत्र किये जायें जो आनुवंशिकीय रूप से श्रेष्ठ हों।
  2. आनुवंशिकीय रूप से श्रेष्ठ गुण श्रेणी के वृक्षों की पहचान करना नितांत कठिन कार्य है, इसलिए प्राकृतिक वनों में बीज उत्पादन क्षेत्र और बीज उद्यान की स्थापना की जाती है ताकि आनुवंशिकीय रूप से अच्छी गुण श्रेणी के वृक्षों से ही बीज एकत्र किये जायें। बीज उत्पादन क्षेत्र एवं बीज उद्यान के निर्माण में समय, धन आदि की आवश्यकता होती है और सभी प्रजातियों के लिये बीज उद्यान एवं बीज उत्पादन क्षेत्र का निर्माण करना भी कठिन है। इसलिए अनेक प्रजातियों के बीज प्राकृतिक वनों से ही एकत्र किये जाते रहेंगे।
  3. बीज एकत्रीकरण से संबंधित निम्नलिखित मुद्दे महत्वपूर्ण हैं –

1. बीज कितना एकत्र किया जाये ?

2.  बीज कब एकत्र किये जायें ?

3. बीज किन वृक्षों से एकत्र किये जायें ?

4. बीज कैसे एकत्र किये जायें ?

बीज कितना एकत्र किया जाये ?

  • बीज कितना एकत्र किय जाना है, इसकी जानकारी होना आवश्यक है। आवश्यकता से अधिक बीज एकत्र करने पर उसके खराब हो जाने का खतरा रहता है क्योंकि पुराने बीजों की अंकुरण क्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है। यदि बीज कम मात्रा में एकत्र किया गया तो जितने क्षेत्र में रोपण किया जाना था उसे प्राप्त करने में कठिनाई होगी।
  • बीज की मात्रा निम्निलखित बातों पर निर्भर करेगी

(1) प्रजाति

  • प्रति किलों बीजों की संख्या
  • अंकुरण प्रतिशत

(2) रोपण का लक्ष्य

(3) रोपण में अंतराल

(4) वितरण या विक्रय के लिये आवश्यकता

  • जिस प्रजाति का रोपण किया जाना है उसके बारे में, बीजों का आकार, अंकुरण क्षमता, प्रति किलोग्राम बीजों की संख्या आदि बातों की जानकारी होना चाहिये। उदाहरण के लिये सागौन के 2250 बीज एक किलोग्राम में होते हैं। जबकि यूकेलिप्टस के बीज बहुत ही छोटे होते हैं, और प्रतिकिलों उनकी संख्या लगभग 3,50,000 होती है। हल्दू के बीज तो और छोटे होते हैं और प्रति किलो उनकी संख्या 10 लाख तक होती है। इस तरह यह स्पष्ट होगा कि यदि बीज बड़े और भारी हो तो अधिक बीज (वजन में) एकत्र करना होगा।
  • विभिन्न प्रजातियों के बीजों की अंकुरण क्षमता भी अलग-अलग होती है। सागौन की अंकुरण क्षमता लगभग 30-40 प्रतिशत होती है। कुछ प्रजातियां जैसे बबूल, सुबबूल आदि इनकी अंकुरण क्षमता 70-90 प्रतिशत तक पायी जाती है इसलिए जिन प्रजातियों की अंकुरण क्षमता कम होती है, उनके लिए अधिक बीज की आवश्यकता होगी।
  • रोपण का लक्ष्य क्या है तथा कितने अंतराल पर रोपण किया जाना है यह भी जानना आवश्यक है क्योंकि इन्हीं के आधार पर निर्धारित होगा कि वस्तुतः बीज की आवश्यकता कितनी है ? इसके साथ ही बीज एकत्र करने वाले को भी यह भी जानकारी होना चाहिये कि किसानों और दूसरे नर्सरी धारकों के लिये कितने बीज की आवश्यकता होगी ?
  • उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखते हुए प्रति हेक्टे० रोपण के लिए विभिन्न प्रजातियों के बीज की मात्रा निर्धारित करनी चाहिये तथा इसी के आधार पर बीज एकत्र करना चाहिए । उदाहरण के लिए तालिका-1 में सागौन, बॉस, शीशम तथा यूकेलिप्टस के लिए प्रति हेक्टे० रोपण हेतु बीज की आवश्यकता का आंकलन किया गया है –

तालिका 1 -एक हेक्टेयर में रोपण के लिये बीज की आवश्यकता का निर्धारण

क्र. आयटम सागौन बांस शीशम  यूकेलिप्टस
1. रोपण का अंतराल/मीटर में 2 x  2 4 x4  3 x 3 2 x 2
2. आवश्यक पौधों की संख्या प्रति हेक्ट. 1670 625 1111 2500
3. अतिरिक्तअ. 50%नर्सरी,परिवहन आदि पर हानिब. 30%मृतक पौधों के स्थान पर रोपण हेतु  835557  363209  556371  1250834
4. प्रति हेक्टेयर आवश्यक पौधों की संख्या 3062 1197 2038 4584
5. बीजों की संख्या/ प्रति किलोग्राम 2250 50000 30000 350000
6. पौध प्रतिशत 25 40 40 20
7. एक किलो बीज से प्राप्त होने वाले पौधों की संख्या 560 20000 12000 70000
8. बीज की आवश्यकता कि.ग्रा./प्रति हेक्टेयर 5.5 0.06 0.17 0.65

  • इसी प्रकार प्रत्येक प्रजाति के लिये रोपण के क्षेत्रफल के अनुसार बीज की आवश्यक मात्रा का अनुमान लगाया जा सकता है। बीज एकत्र करने की योजना बनाने वाले अधिकारी को अपने क्षेत्र में अपने रोपण की आवश्यकता की पूर्ति के पश्चात कुछ बीज दूसरे वृत्तों या किसानों या नर्सरी धारकों के लिये भी एकत्र करना चाहिये।

बीज कब एकत्र किये जाए ?

  • बीज एकत्र करने का समय महत्वपूर्ण है। बीज एकत्र करने वाले को विभिन्न वृक्ष प्रजातियों के फलने-फूलने तथा फल पकने के समय की जानकारी होना आवश्यक है। अनेक वृक्ष प्रजातियों में प्रतिवर्ष अच्छी मात्रा में बीजन (सीडलिंग) नहीं होता है और 2-3 वर्ष के अन्तराल में अच्छी मात्रा में बीजन होता है।
  • सागौन में प्रति वर्ष अच्छी मात्रा में पुष्पन होता है परन्तु अच्छा बीजन (गुड सीडलिंग) आमतौर पर 3-4 वर्ष के अंतराल में होता है। खमार में अच्छी मात्रा में बीजन लगभग प्रतिवर्ष ही होता है। इसी प्रकार यूकेलिप्टस, बबूल, विलायती बबूल, सुबबूल, खैर, शीशम आदि में पर्याप्त बीज प्रतिवर्ष आता है। जिस वर्ष अच्छी मात्रा में बीजन (गुड सीडलिंग) हो उस वर्ष बीज एकत्र करना अधिक अच्छा रहता है क्योंकि

  1. अच्छे बीजन वर्ष में पर्याप्त बीज कुछ ही वृक्षों से एकत्र हो सकता है। अर्थात प्रति किलोग्राम बीज एकत्र करने का व्यय अपेक्षाकृत कम होता है।
  2. अच्छे बीज वर्ष में एकत्र किये गये बीजों में अंकुरण क्षमता अच्छी होती है और इन बीजों की भण्डारण क्षमता भी अधिक होती है।
  3. कीड़ों-मकोड़ों, चिडियों तथा अन्य बीमारियों द्वारा अपेक्षाकृत कम हानि होती है। खराब बीज वर्ष में इन तत्वों से बीजों को बहुत हानि होती है।
  4. अच्छे बीज वर्ष में लगभग सभी वृक्षों में पुष्पन अच्छी मात्रा में होता है। अतः परागण में लगभग सभी वृक्ष भाग लेते हैं। इस प्रकार बीजों में आनुवांशिकीय विभिन्नता बनी रहती है। जिस वर्ष अच्छा पुष्पन नहीं होता है उस वर्ष कुछ ही वृक्ष परागण में भाग लेते हैं। फलतः प्राप्त बीजों को आनुवंशिकीय विभिन्नता कम रहने की संभावना रहती है।

  • उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट होगा कि बीज एकत्रीकरण का कार्य अच्छे बीज वर्ष में किया जाना श्रेयस्कर है। इसके साथ ही यह जानकारी होना आवश्यक है कि वृक्ष से बीज कब एकत्र किये जायें। बीज एकत्र करते समय यह ध्यान देना आवश्यक है कि बीज परिपक्व होना चाहिये। अपरिपक्व बीज में अंकुरण क्षमता नहीं होती है और बीज एकत्रीकरण का व्यय व्यर्थ चला जाता है।
  • बीज परिपक्व हो गया है,  यह कैसे जाना जाए ? यदि बीज शीघ्र एकत्र कर लिया जाता है तो खतरा रहता है कि बीज अपरिपक्व हो। इसके साथ ही यदि बीज एकत्र करने में देरी की गई तो हो सकता है कि बीज अधिक पक जाए और कीड़े-मकोड़ों द्वारा खा लिया जाये अथवा बीज छिटक कर बिखर जाए ।
  • बीज एकत्रीकरण में अनुभव महत्वपूर्ण है। अनुभव से ही ज्ञात होता है कि बीज कब एकत्र किया जाय। फिर भी बीज एकत्र करने के लिए निम्नलिखित बातों की ओर ध्यान देना उपयोगी होगा-

1)वृक्ष में जब फल पककर गिरने लगते हैं तो आम तौर पर माना जाता है कि वृक्ष के फल पक चुके हैं और उन्हें तोड़ा जा सकता है, परन्तु अधिकतर यह पाया जाता है कि यह सोच ठीक नहीं है। जो फल या बीज पककर पहले गिरते हैं अधिकांशतः घटिया श्रेणी के होते हैं अतः इन फलों/बीजों को एकत्र नहीं करना चाहिये। कुछ समय तक प्रतीक्षा की जानी चाहिये और जब अधिकांश फल/ बीज पक जायें तब ही बीज एकत्र करना उत्तम रहता है।सागौन में पहले जो बीज पक कर दिसम्बर जनवरी में गिरते हैं वे खराब गुण श्रेणी के होते हैं जो फल बाद में गिरते हैं अर्थात जनवरी-फरवरी में गिरते हैं वे ही अच्छे होते हैं।

2)कुछ प्रजातियों के फलों के रंग में परिवर्तन को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि फल पकने वाला है। नीम में फल हरे रंग का होता है। जब यह फल पीला होने लगता है तो मान लेना चाहिये कि फल पक गया है, और बीज के लिये ऐसे फलों को तोड़ा जा सकता है।

3)यदि फलों के पक जाने पर बीजों के यत्र-तत्र बिखर जाने का खतरा हो अथवा वृक्ष से पककर फल न गिरते हो तो बीज एकत्र करने में कठिनाई आएगी। फील्ड में यह देखा जा सकता है कि फल पका हुआ है अथवा नहीं। इसके लिये वृक्ष से कुछ फल तोड़ें और देखें कि भ्रूण (एम्ब्र्यो) की स्थिति कैसी है ? यदि भ्रूण दूधिया हो तो फल अभी कच्चा है। यदि फल पक गया है तो भ्रूण कठोर तथा सफेद या भूरे रंग का होगा और ऐसी स्थिति में ही बीज के लिये फल तोड़ना ठीक रहेगा।

4)सीजन के प्रारम्भ में या अंत में आये बीजों के बजाय सीजन के मध्यकाल में बीजों को एकत्र करने का कार्य करना चाहिए। विभिन्न प्रजातियों के बीज पकने के सही समय का ज्ञान होना अत्यावश्यक है। यह ज्ञान इसलिये होना आवश्यक है, कि कुछ वृक्ष प्रजातियों के फल वृक्ष में लगे-लगे ही हवा में उड़ने लगते हैं, या कुछ प्रजातियों के फल केप्सूल पकने पर खुल जाते है जिससे बीज उड़ या गिर न जाये। अतः प्रत्येक प्रजाति के सही बीज एकत्र करने के समय का ध्यान रखना चाहिए , ताकि उत्तम बीज एकत्र किए जा सकें। क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति के अनुसार बीजों के एकत्र करने के समय में थोड़ा बहुत अंतर हो सकता है जैसे गरम क्षेत्र में बीज जल्द गिरने लगते है। कुछ प्रजातियों के बीज पकने का समय तालिका में दिया गया है।

तालिका 2 – प्रजातियों के बीज पकने का समय तालिका

प्रजाति बीज एकत्र करने का समय
आकाश मोनी (accacia auriculiformis) मार्च से अप्रैल
खैर (acacia catechu) दिसम्बर से मार्च
बबूल (acacia nilotica) मार्च से मई
कैस्टार (Albizia amara ) अप्रैल
काला सिरस (Albizia lebbeck ) जनवरी से मार्च
सफेद सिरस (albizia procera ) फरवरी से मार्च
सीताफल (Annona squamosa ) नवम्बर
नीम (Azadirachta indica ) जून से जुलाई
कचनार (bauhinia variegata ) मई से जून
केसिया सायामिया ( cassia siamea ) मार्च से अप्रैल
केजूरिना (Casuarina equisetifolia ) दिसम्बर से जनवरी
कर्रा /गरारी (Cliestantus collinus ) मई से जून
सिस्सू (Dalbergia sissoo) दिसम्बर से जनवरी
बांस (dendrocalamus strictus ) मार्च से मई
नीलगिरि (Eucalyptus ) दिसम्बर से मई
आंवला (Emblica officinalis ) जनवरी से फरवरी
खमैर (Gmelina arborea ) मई से जून
चिरोल (Holoptelia integrifolia ) अप्रैल से मई
लेंडिया (Lagestroemia parviflora ) फरवरी से अप्रैल, नवम्बर एवं दिसम्बर
सुबबूल (Leucaena leucocphala) मई से जून
करंज (Pongomia pinnata ) अप्रैल से मई
विलायती बबूल (Prosopis juliflora ) अप्रैल से मई
सागौन(Tectona grandis ) फरवरी से मार्च
अर्जुन (Terminalia arjuna ) अप्रैल से मई
महारुख (Ailanths excelsa ) मई से जून
मुनगा (Moringa olifera ) मई से जून
शेवरी (Sesbania aegyptica ) दिसम्बर से फरवरी
अगस्त (Sesbania grandiflora ) जनवरी से फरवरी
अंजन (Hardwickia binata ) अप्रैल से मई
जामुन (Sygygium cumini ) जून
आम (Mangifera indica ) जून से जुलाई
महुआ (Madhuca latifolia ) जून से जुलाई
बड़ (Ficus bengalensis ) अप्रैल से मई
पीपल (-Ficus religiosa ) अप्रैल से मई
काजू ( Anacardium occidentale ) अप्रैल से मई
बकायत (Melia azadirach ) फरवरी से मई
पर्किन्सोनिया (Parkinsonia aculeata ) दिसम्बर
विलायती इमली (Pithecellobium dulce) अप्रैल
बेर (Ziziphus jujuba ) दिसम्बर से जनवरी
कैथा ( Feronia elephantum ) जनवरी से मार्च
इमली (Tamarindus indica ) मार्च से अप्रैल
भूसरोडा/अंजन घास (Cenchrus ciliaris) अक्टूबर से फरवरी
पीला अंजन घास (Cenchrus setigerus) अक्टूबर से फरवरी
सेनघास (Chrysopogon fulvus ) अक्टूबर
छोटी मरबेल घास (dichanthium annulaum) अक्टूबर
दीनानाथ घास (Pennisetum pedicilatum) अक्टूबर से नवम्बर
शेड़ा,पुनिया घास (Sehima nervosum) अक्टूबर

उपर्युक्त तालिका में जो समय दिया गया है वह बड़ा है। प्रदेश में भौगोलिक स्थिति के अनुसार पुष्पन एवं बीजन होता है। यह देखा गया है कि उत्तरी जिलों जैसे सीधी, शहडोल की अपेक्षा बस्तर में उसी प्रजाति में पुष्पन एवं फलन 15-20 दिन पहले हो जाता है। अतः इतने समय का अंतर बीज एकत्र करने में भी हो सकता है।

बीज एकत्र करने के लिये वृक्ष का चयन

  1. यदि बीज एकत्रीकरण का कार्य बीज उद्यान या बीज उत्पादन क्षेत्र से किया जाना है तो उस स्थिति में सभी वृक्ष बीज वृक्ष हैं और ऐसी स्थिति में बीज एकत्रित करने के लिये वृक्षों के चयन का विशेष महत्व नहीं रहता है परन्तु यदि बीज सामान्य वनों से एकत्र किया जाना है तो बीज एकत्रित करने में बीज वृक्ष के चयन का विशेष महत्व रहता है।
  2. बीज वृक्ष के चयन में निम्नलिखित बातों पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है –

i. बीज ऐसे वृक्षों से एकत्र किया जाये जिनका आकार अच्छा हो, वे स्वस्थ हों और अच्छी वृद्धि कर रहे हों।

ii. अति प्रौढ़ वृक्षों और अल्प वयस्क वृक्षों से बीज एकत्र नही किया जाना चाहिये, क्योंकि ऐसे वृक्षों से प्राप्त बीज कम अंकुरण क्षमता वाले होते हैं।

iii. दूर-दूर खड़े हुये वृक्षों से से बीज एकत्र नहीं करना चाहिये क्योंकि ऐसे वृक्षों से प्राप्त बीज अंतत- आपस में परागण से प्राप्त होते हैं जिनकी अंकुरण क्षमता कम होती है।

iv. बीज हमेशा अच्छे वन क्षेत्रों से ही एकत्र किये जाना चाहिये। जिस वन में खराब, पतले तथा निम्न गुण श्रेणी के वृक्ष हों वहां से बीज एकत्र नहीं किया जाना चाहिये।

v.यदि बीज की आवश्यकता कम है और 2-4 वृक्षों से ही पर्याप्त बीज प्राप्त किया जा सकता हो फिर भी यह उचित रहेगा कि 10-15 वृक्षों से बीज एकत्र किया जाये। यदि बीज उत्पादन क्षेत्र से बीज एकत्र किया जाना है तो भी यही बात ध्यान में रखना उचित होगी।

बीज कैसे एकत्र किया जाए ?

वृक्षों से बीज एकत्र करने के अनेक तरीके प्रचलित हैं, परन्तु किस प्रजाति के लिए कौन सा तरीका उचित होगा, यह निर्धारित करने के लिये निम्न लिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है –

i. जिन प्रजातियों के फल/बीज बड़े आकार के होते हैं और जिनके बीज या फल आसानी से जमीन पर एकत्र किये जा सकते हैं उन प्रजातियों में प्राकृतिक रूप से फलों के गिरने पर उन्हें एकत्र किया जा सकता है। उदाहरण के लिये सागौन,महुआ, साल, अर्जुन आदि के फल बड़े आकार के होते हैं उन्हें जमीन पर गिरने के पश्चात एकत्र किया जा सकता है। इसके विपरीत यूकेलिप्टस, हल्दू जैसी प्रजातियों जिनके बीज बहुत छोटे होते हैं उनके बीज, वृक्ष से ही एकत्र करना आवश्यक होगा।

ii.वृक्ष के गुण – वृक्ष की ऊँचाई, तने की लम्बाई, मोटाई, शाखाओं के गुण, छत्र की ऊँचाई, आकार आदि, वृक्ष पर चढ़ने उतरने में कठिनाई आदि।

iii.फल के गुण – फल का प्रकार, फल के पकने तथा बीज के बिखरने के बीच का  समय, पेड़ को हिलाने से फल के गिरने या न गिरने का गुण।

iv.बीज प्रक्षेत्र का गुण – वृक्षों का घनत्व,  भूमि,  धरातल का स्वरूप आदि।

v.उपर्युक्त कारकों को ध्यान में रखते हुये आमतौर पर बीज एकत्र करने के लिए निम्न लिखित विधियाँ अपनाई जाती है –

  1. भूमि से गिरे हुये फल या बीज एकत्र करना
  2. खड़े वृक्षों से बीज एकत्र करना

(क) भूमि पर खड़े होकर

(ख) वृक्ष पर चढ़कर

(ग) दूसरे तरीके अपनाकर

भूमि से गिरे हुये फल या बीज एकत्र करना

2 बीज एकत्र

अनेक प्रजातियों जैसे, सागौन, साजा, अर्जुन, महुआ, तेंदू, नीम, बबूल, सिरस,खमार आदि प्रजातियों के फल जमीन से एकत्र किये जा सकते हैं। यह काम निम्न प्रकार से हो सकता है –

  • प्राकृतिक रूप से गिरे हुये बीज एकत्र किये जाए,
  • वृक्ष को हिलाकर फल गिरा लिये जाए,
  • हाथ से हिलाकर
  • मशीन से हिलाकर

प्राकृतिक रूप से गिरे हुए फल/बीज एकत्र करने का सबसे अधिक नुकसान यह है कि प्राकृतिक रूप से गिरे फल/बीज खराब, कीड़ों-मकोड़ों द्वारा खाये हुये, सड़े हुये और निम्न गुण श्रेणी के होते हैं। वृक्षों की शाखाओं को इंडे या रस्सी या हाथ लगाकर हिलाया जा सकता है जिससे पके फल आसानी से गिर जाते हैं। और इस प्रकार फल/बीज एकत्र किये जा सकते हैं। चित्र 1 में शाखाओं को रस्सी से हिलाने की विधि बताई गई है, भूमि पर फल या बीज गिरने पर तुरंत एकत्र कर लेना चाहिये अन्यथा रोडेन्टस (Rodents) एवं दूसरे प्राणियों द्वारा बीज खा लिये जाने का खतरा रहता है। यदि वृक्ष छोटे आकार के हों तो बीज एकत्र करने के लिये फनेल (Funnel) के आकार का सीड कलेक्टर (Seed collector) बनाया जा सकता है। (चित्र – 2)

खड़े हुये वृक्षों से बीज एकत्र करना

i. छोटे वृक्षों, झाडियों आदि के बीज भूमि पर खड़े होकर श्रमिक एकत्र कर सकते हैं। इन्हें हंसिया (Sicket) में फंसाकर फलदार शाखा/टहनी को तोड़ा या काटा जा सकता है और फिर बीज/फल एकत्र किया जा सकता है। वृक्षों पर चढ़कर बीज निम्न तरीके से एकत्र किये जा सकते हैं –

  • हाथ से तोड़कर
  • शाखाओं को हिलाकर फल/बीज नीचे गिराकर।

ii.खड़े हुये वृक्षों पर चढ़ना आसान काम नहीं है। कुछ श्रमिक जो वृक्षों पर चढ़ने में दक्ष होते हैं वे ही यह कार्य आसानी से कर सकते है। अकुशल श्रमिकों को यह काम नहीं देना चाहिये। वृक्षों पर चढ़ने में सहायता के लिये सीढियों का उपयोग किया जा सकता है । सीढियाँ 10 फीट से लेकर 25-30 फीट की बनाई जा सकती हैं। सीढियों के लिये अल्यूमीनियम का उपयोग होने से सीढियाँ हल्की तथा पोर्टेबल रहेगी। सीढियों के अतिरिक्त, चढ़ने के यंत्र भी उपलब्ध हैं जिनकी सहायता से बहुत ऊचे वृक्षों पर भी चढ़ा जा सकता है (चित्र स.-4)।

इसके अतिरिक्त दूसरे यंत्र ट्रेक्टर पर लगाये जा सकते हैं जिसकी सहायता से सीधे वृक्ष छत्र से फल या बीज एकत्र किये जा सकते हैं। जितना बीज एकत्र किया जाये उसका रिकार्ड रखना चाहिये। बीज एकत्र करने की डेटाशीट प्रपत्र-1 में वर्णित है।

बीज का उपचार

1)वृक्ष से फल/बीज प्राप्त कर लेने के पश्चात अनेक कार्य करने आवश्यक होते हैं। ये कार्य निम्नलिखित हैं –

i.फल/बीजों की प्राथमिक सफाई

ii.बीजों का पकाना

iii.बीज को फल से निकालना

  • सूखे फलों से बीज निकालना
  • गीले फलों से बीज निकालना

iv.फल/बीजों का सुखाना

छाया में सुखाना धूप में सुखाना

v. बीज तथा भूसा अलग करना

vi. बीजों की ग्रेडिंग

2)फल तथा बीजों की प्राथमिक सफाई

वन क्षेत्र से जब बीज/फल एकत्र किये जाते हैं तो उनके साथ पत्तियाँ, पतली-पतली टहनियाँ भी एकत्र हो जाती है, इसलिए सबसे पहले काम यह किया जाना चाहिए कि फल/बीज के अतिरिक्त जो भी वस्तु हो उसको अलग कर लिया जाये।

3)फलों/बीजों का पकाना

जब फल तोड़े जाते हैं तो पूर्ण पके हुये नहीं रहते। कुछ दिन रखे रहने पर फल पूरी तरह से पक जाते हैं। अतः आवश्यकतानुसार फलों के पूर्ण रूप से पक जाने पर ही बीजों को निकाला जाना चाहिये।

4)फल से बीजों को निकालना

सूखे फलों से बीजों को निकालने की प्रक्रिया और गीले फलों से बीज निकालने की प्रक्रिया अलग-अलग है। सूखे फलों जैसे बबूल, खैर, सुबबूल आदि की फलियों के चटकने से कुछ बीज अलग हो जाते हैं और सूखी फलियों को एकत्र करके इंडे से मारने पर बीज अलग-अलग हो जाते हैं। गीले फलों से बीज निकालने के लिये यह आवश्यक है कि बीज से गूदे को अलग कर दिया जाये। यह काम फलों को हाथ से मसलकर और पानी से धोकर किया जा सकता है। इस विधि से आम, जामून, नीम आदि के फलों के बीज निकाले जाते हैं।

5)बीजों को सुखाना

बीजों को भली-भांति सुखाकर रखना आवश्यक होता है। कुछ बीजों को तेज धूप में सुखाने पर उनकी अंकुरण क्षमता कम हो जाती है इसलियो उन्हें कमरे या छाया में सुखाना अधिक अच्छा है। नीम, साल आदि के बीजों को छाया में सुखाना अधिक अच्छा रहता है। बबूल, खैर, सागौन आदि के बीजों को धूप में सुखाया जा सकता है। सुखाने के लिये सवच्छ प्लेटफार्म का उपयोग किया जा सकता है।

6)बीज एवं भूसा अलग करना

बीज और भूसा अलग करने के लिये सबसे सरल तरीका यह है कि हवा में भूसा युक्त बीज उड़ाया जाय तो साफ बीज, हल्के बीज और भूसा अलग-अलग गिरेंगे (चित्र-5) यदि बीज की मात्रा कम हो तो सूपे का उपयोग किया जा सकता है (चित्र-6)।

7) बीजों की ग्रेडिंग

बीजों की ग्रेडिंग मुख्य रूप से आकार के आधार पर की जाती है। इसके लिये आवश्यक है कि विभिन्न आकार की छन्नी का प्रयोग किया जाये और छन्नी से छानकर बड़े, मध्यम और छोटे आकार के बीजों को अलग-अलग ग्रेड में रखा जा सकता है। बीज के उपचार का वर्णन भी शीडलाट के साथ दिया जाना आवश्यक है। बीज उपचार शीट प्रपत्र-2 में वर्णित है।

बीज भण्डार

1)बीज एकत्रित तथा उपचारित करने के पश्चात यदि तुरंत उपयोग कर लिया जाता है तो भण्डारण की आवश्यकता नहीं पड़ती है परन्तु यदि पर्याप्त मात्रा में विभिन्न प्रजातियों का बीज एकत्र किया जाता है तो विभिन्न संस्थाओं एवं किसानों को माँग आने पर बीज उपलब्ध कराने के लिये बीज के भण्डारण की समुचित व्यवस्था अनुसंधान तथा विस्तार केन्द्रों पर होना आवश्यक है। भण्डारण की दृष्टि से बीजों को दो श्रेणियों मेंविभक्त किया जाता है –

आर्थोडक्स बीज

  • रिकैलसीट्रेन्ट

2)आर्थोडक्स बीज वे बीज हैं जिनको 5 प्रतिशत जल रहने तक बिना अंकुरण क्षमता को प्रभावित किये सुखाया जा सकता है, और उन्हें दीर्घ अवधि तक कम तापमान में संग्रहित रखा जा सकता है। कुछ ऐसे बीज है। जिन्हें यदि 20-40 प्रतिशत जल की मात्रा से कम तक सुखाया जाता है तो उनकी अंकुरण क्षमता नष्ट हो जाती है साथ ही इन बीजों को दीर्घ अवधि के लिये भण्डारित नहीं किया जा सकता। ऐसे बीजों को रिकैलसीट्रेन्ट कहा जाता है। सागौन, बबूल, खैर, प्रोसोपिस, काला सिरस, सफेद सिरस, सिस्सू इत्यादि प्रजातियों के बीज सुखाकर भण्डारित किये जा सकते हैं परन्तु आम, जामुन, नीम, महुआ, साल, वकायन इत्यादि के बीजों की अंकुरण क्षमता 1-2 सप्ताह के बाद ही कम होने लगती है इसलिये इन बीजों का भण्डारण कठिनाई से ही होता है। इन बीजों को एकत्र करने के तुरंत बाद उपयोग कर लेना चाहिये।

3)अधिकांश वृक्ष प्रजातियों के बीज वर्ष के प्रारम्भ में या कुछ समय पूर्व पकते हैं। कुछ प्रजातियों के बीज सर्दियों में पकते हैं। इन प्रजातियों के बीज वर्षा के आगमन तक आसानी से सुरक्षित रखे जा सकते हैं लेकिन तैलीय बीज ज्यादा समय तक भण्डारण करके नहीं रखे जा सकते है। बीज के भण्डारण में निम्न बातों की ओर ध्यान देना आवश्यक है –

  • बीज भली-भांति सूखे होना चाहिये। यदि बीज सूखे रहते हैं तो कीड़े-मकोड़ों का  आक्रमण नहीं होता है और फफूद और वेक्टेरिया से भी हानि नहीं होती है।
  • बीज भण्डारण यदि लम्बी अवधि के लिये किया जाना हो तो कम तापमान में भण्डारण आवश्यक होगा, इसलिये डीप फ्रिज या कोल्ड स्टोरेज  में भण्डारण किया जाना चाहिये।
  • बीज भण्डारण के पूर्व बीजों को भली-भांति सुखा लेना चाहिये और सुखाने के पश्चात उन्हें फहूँद से बचाने के लिये फफूदनाशक दवा मिला देनी चाहिये। कीड़े मकोड़ों की राकथाम के लिये गमेक्सीन पाउडर या नीम से बनी कीटनाशक दवाई का प्रयोग करना चाहिये।
  • बीज भण्डारण के लिये अलग से बीज भण्डार बनाया जाना चाहिये। बीज भण्डारण के लिये ऐसे बर्तनों का प्रयोग किया जाय कि उनमें हवा प्रवेश न कर सके। बीज भण्डारण के लिये टीन के बने ड्रम जिसमें वायुरोधी ढक्कन हो, का उपयोग करना चाहिये।
  • बीज भण्डार गृह में पर्याप्त प्रकाश की व्यवस्था होनी चाहिये। कमरे में बड़े तथा छोटे ड्रमों को रखने के लिये अलग व्यवस्था होनी चाहिये।
  • बीज भण्डार करते समय बीज का पूर्ण विवरण एक टैग में लिखा होना चाहिये जिसमें प्रजाति, एकत्र करने का स्थल, दिनांक, एकत्र करने वाले कर्मचारी का नाम आदि की जानकारी दी जाना चाहिये।

कुछ महत्वपूर्ण प्रजातियों की अंकुरण क्षमता की अधिकतम अवधि की जानकारी तालिका 3 में दी गई है। बीज का वर्णन बीज के स्टाक रजिस्टर में दर्ज किया जाना चाहिए (प्रपत्र-3)।

तालिका 3 – उत्तम भण्डारण होने पर विभिन्न प्रजातियों की अंकुरण क्षमता की अवधि

खैर

30,000 से 40,000
बबूल 7,000 से 9,000
महारुख 8,000 से 10,000
कालासिरस 8,000 से 9,000
नीम 3,000 से 3,500
सफेद सिरस 18,000 से 20,000
सिस्सू 53,000
चिरोल 27,000
सुबबूल 20,000 से 26,000
मुनगा 8,000 से 9,000
करंज 800 से 1,000
खमार 1,000
बांस 32,000
प्रोसपिस जूलीफ्लोरा 25,000
कचनार 2,800 से 3,520
पलास 1,500 से 3,520
कसोंदन 37,040
केजुरिना 7,60,000
कर्रा 8,000 से 9,000
नीलगिरी 3 से 6 लाख (शुद्ध) 15-20000 (हस्कचाफ के साथ )
आंवला 55,000 से 60,000
लेंडिया 28,000 से 30,000
प्रोसोपिस 25,000
काजू 250 से 300
खमेर 1,000
विलायती इमली 6,000
इमली 1,500

बीज परीक्षण

  • विस्तार एवं अनुसंधान केन्द्रों में बीज परीक्षण के लिये एक छोटी सी प्रयोगशाला भी स्थापित की जा रही है। अतः इन केन्द्रों में बीज एकत्रीकरण, उपचार एवं भण्डारण के पश्चात विभाग के विभिन्न वन मण्डलों, नर्सरी धारकों एवं दूसरे विभागों को बीज प्रदाय करना एक प्रमुख कार्य होगा। इसलिये इन केन्द्रों में बीजों के परीक्षण की सुविधा होना आवश्यक है।
  • 7.2 इन केन्द्रों में मुख्य रूप से निम्नलिखित 3 परीक्षण किये जाना आवश्यक हैं –

  1. बीज शुद्धता परीक्षण
  2. जल की मात्रा का परीक्षण
  3. अंकुरण क्षमता संबंधी परीक्षण

  • जब भी इन केन्द्रों से वन मण्डलों या दूसरे विभागों या अन्य किसी को बीज प्रदाय किये जाते हैं तो उनमें उनके साथ इन परीक्षणों का विवरण भी उपलब्ध रहना चाहिये ताकि बीज प्राप्त करने वाले को बीज के संबंध में जानकारी उपलब्ध रहे। बीज परीक्षण हेतु विस्तार एवं अनुसंधान केन्द्र के कम से कम दो लोगों को प्रशिक्षित किया जाना उचित होगा ताकि वे बीज परीक्षण का कार्य सफलतापूर्वक कर सकें। उपर्युक्त परीक्षणों की प्रक्रिया नीचे बतलाई जा रही है।

बीज शुद्धता परीक्षण

इस परीक्षण से यह पता लगाया जाता है कि एकत्रित बीज कितना शुद्ध है। अर्थात् उसमें शुद्ध बीज तथा अन्य पदार्थ जैसे कंकड़, पत्थर, पत्तियाँ या दूसरे पदार्थों की मात्रा कितनी है ? इसके लिये आवश्यक है कि जिस सीडलाट (Seed lot) से परीक्षण किया जाना है, उसमें से विधिवत सेंपल प्राप्त किया जाय। सीडलाट से जो सेंपल निकाला जाय उसका सर्वप्रथम वजन (Weight) ज्ञात कर लेना चाहिये फिर सेंपल के बीजों को फैलाकर शुद्ध बीज, अन्य बीज तथा अन्य पदार्थ इस प्रकार तीन भागों में बाँट लेना चाहिये।

  • अंतरराष्ट्रीय बीज परीक्षण ऐसोसियेशन (ISTA) के नियम के अनुसार यदि सीड लाट से लिया गया सेंपल एक ग्राम से कम है तो तीनों अलग-अलग भागों का वजन दशमलव के 4 अंक तक ज्ञात किया जाना चाहिये। यदि सैंपल का वजन 1 ग्राम और 9.999 ग्राम के बीच है तो विभिन्न भागों का वजन दशमलव के 3 अंक तक निकाला जाना चाहिये। इसी प्रकार यदि सेंपल का वजन 10 ग्राम और 99.99 ग्राम के बीच है तो विभिन्न भागों का वजन दशमलव के 1 अंक तक निकाला जाना पर्याप्त होगा।

निम्न फार्मूले से शुद्धता प्रतिशत ज्ञात किया जा सकता है –

शुद्धता प्रतिशत =   शुद्ध बीज का वजन सेंपल का कुल वजन x 100

  • बीज में पानी की मात्रा ज्ञात करना

बीजों में पानी की मात्रा ज्ञात करना इसलिये आवश्यक है क्योंकि बीजों की आयु भण्डारण में बहुत कुछ पानी की मात्रा पर निर्भर करती है। विभिन्न प्रकार के बैक्टीरिया, कीड़े-मकोड़े आदि का आक्रमण पानी की मात्रा के प्रतिशत पर निर्भर करता है। बीजों को यदि 5-7 प्रतिशत पानी की मात्रा तक सुखा लिया जाय तो कीड़े-मकोड़ों का आक्रमण इन पर बहुत कम होता है। बीजों में पानी की मात्रा इलेक्ट्रोनिक मोइश्चयर मीटर (Electronic moisture metter) से आसानी से ज्ञात की जा सकता है। बड़े आकार के बीज तथा दूसरे बीज जिसमें इलेक्ट्रोनिक मोइश्चयर मीटर काम नहीं कर सकता है वहाँ बीज में पानी की मात्रा ज्ञात करने के लिये ओवन (Oven) की आवश्यकता होगी। भट्टी या ओवन को पहले 105 डिग्री तक गरम किया जाना चाहिये। बीजों का प्रारम्भिक वजन लेकर इनको भट्टी में 16-24 घण्टे तक रखना चाहिये इसके बाद बीजों का वजन लेकर बीज से जल की मात्रा निम्न सूत्र से ज्ञात कर लेना चाहिये –

जल की मात्रा =   शुष्क बीजों का वजन बीजों का प्रारम्भिक वजन x 100

अंकुरण परीक्षण

यह परीक्षण बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस परीक्षण से ज्ञात होता है कि कितने पौधे उपलब्ध बीज में बन सकेंगे। अंकुरण संबंधी परीक्षण करने के लिये निम्नलिखित बातों की ओर ध्यान दिया जाना आवश्यक है –

  1. पर्याप्त नमी (आद्रता लगभग 95 प्रतिशत)
  2. समुचित तापमान (20-35)
  3. पर्याप्त हवा
  4. पर्याप्त प्रकाश

अंकुरण परीक्षण करने के लिये कई प्रकार से सीड जरमिनेटर प्रयोग में लाये जाते हैं जहाँ नमी, तापमान, हवा, प्रकाश आदि को प्रजाति की आवश्यकतानुसार नियंत्रित किया जा सकता है। अंकुरण परीक्षण करने के लिये 30 से.मी. x 30 से.मी. तथा 10 से.मी. गहरी ट्रे का उपयोग करना उचित रहेगा। इस ट्रे में बालू या वरमीकुलाइट (Vermiculite) भर लेना चाहिये। बालू की सतह के ऊपर फिल्टर पेपर का प्रयोग किया जा सकता है। परीक्षण करने के शुद्ध 400 बीज लेकर इसे 100-100 बीजों के चार सैम्पल में बाँट लेना चाहिये। ट्रे में बालू या बरमीकुलाईट भरकर लगभग आधा लीटर पानी प्रत्येक ट्रे में डाल देना चाहिये। अब लिए गये बीजों को 2-3 से.मी. के अंतराल में बो देना चाहिये इसके बाद मिस्ट स्प्रेयर (Mist sprayer) से पानी इन ट्रे में ऊपर से दे देना चाहिये। तत्पश्चात पारदर्शी पोलीथिन शीट (Transparent Polythene sheet) से ढक देना चाहिये। पोलीथिन शीट पर पानी के कण दिखेंगे। यदि पानी के कण न दिखाई दें तो मिस्ट स्प्रेयर से और पानी दे देना उचित रहेगा। जब बीजों का अंकुरण प्रारम्भ हो जाय तो पोलीथिन शीट, ट्रे के ऊपर से हटा लेना चाहिये इसके पश्चात अंकुरण के आँकड़े लेना चाहिये।

अंतर्राष्ट्रीय बीज परीक्षण एसोसियेशन (ISTA) के अनुसार बीज अंकुरित तब माना जाता है जब बीजांकुर की ऊँचाई 1.0 से.मी. तथा बीज पत्र खुल गये हैं। 28 दिनों तक अंकुरण के आँकड़े लिये जाने चाहिये। उदाहरण के लिये 400 बीजों में यदि 220 बीज 28 दिवस तक अंकुरित पाये गये शेष 180 बीजों को काट कर देखने पर ज्ञात हुआ कि उनमें 60 बीज स्वस्थ है और शेष 120 बीज खराब हैं तब अंकुरण प्रतिशत तथा अंकुरण क्षमता निम्न प्रकार से ज्ञात की जा सकती है –

अंकुरण प्रतिशत = 220/ 40 x 100

अंकुरण क्षमता = 220+600/ 40 x 100

यदि बीजों का अंकुरण सातवे दिन से प्रारम्भ हुआ और जो बीज सातवे, आठवे, नौवे, दसवे तथा ग्यारहवे दिन अंकुरित हुये उनकी संख्या 20, 60, 80, 70 तथा 55 पाई गई तो अंकुरण शक्ति तथा अंकुरण अवधि निम्नानुसार ज्ञात की जाती है –

अंकुरण शक्ति = 20+60+80/ 400 x  100

अंकुरण अवधि = अधिकतम अंकुरण का दिन अर्थात् 9 दिन

अंकुरण का प्रयोग करके प्रतिवेदन संलग्न प्रपत्र 4 में दिया जाना चाहिये।

अभिलेख-

बीज एकत्रीकरण में निम्नलिखित जानकारी रखी जाना चाहिये –

  1. बीज एकत्रीकरण अभिलेख (प्रपत्र 1)
  2. बीज उपचार अभिलेख (प्रपत्र 2)
  3. बीज संग्रहण अभिलेख (प्रपत्र 3)
  4. बीज परीक्षण अभिलेख (प्रपत्र 4)

प्रपत्र 1 – बीज एकत्र करने की डेटाशीट(प्रत्येक बीज लाट के साथ)

दिनांक परीक्षण अवधि अंकुरित बीजों की संख्या
कुल अंकुरित बीज    
अंकुरण क्षमता वाले बीज    

शुद्ध बीजों की संख्या

कुल बीजों की संख्या अंकुरित बीज अंकुरण प्रतिशत

परीक्षण करने वाले अधिकारी का नाम

स्रोत: मध्यप्रदेश सरकार का आधिकारिक वेबसाइट

बीज योजना(MP)
बीज योजना(MP)

सीड रोलिंग प्लान

उत्तम गुणवत्ता के बीजों को उपलब्ध कराने के लिये मध्यप्रदेश में सीड रोलिंग प्लान बनाया गया है। विभाग द्वारा सभी फसलों की बीज प्रतिस्थापन दर बढ़ाने के लिये निरन्तर प्रयास किये जा रहे हैं जिसके कारण प्रमाणित बीजों की मांग प्रतिवर्ष बढ़ती जा रही है। नवीन किस्मों के विकास पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। प्रमाणित बीज के उत्पादन और वितरण में प्रदेश का स्थान देश में सर्वोच्च क्रम पर है। प्रदेश के आर्थिक रूप से पिछड़े अनुसूचित जाति एवं जन जाति के किसान अपने अल्प उत्पादक बीजों के स्थान पर नई किस्मों के उन्नत बीज क्रय कर सकें इस हेतु राज्य शासन द्वारा दो प्रमुख योजनाएं अन्नपूर्णा एवं सूरजधारा संचालित की जा रही हैं। अन्नपूर्णा योजना में अनाज के बीज तथा सूरजधारा योजनान्तर्गत दलहन व तिलहन बीजों के उन्नत बीज किसानों को दिये जाते हैं।

अन्नपूर्णा योजना

योजना का लाभ किसे

योजना सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में प्रचलित है। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लघु एवं सीमांत कृषक जो विपुल उत्पादन देने वाली खाद्यान्न फसलों की उन्नत किस्मों के बीज क्रय करने मे असमर्थ होते हैं, ऐसे कृषकों को उन्नत बीज उपलब्ध कराये जाते हैं, जिससे उत्पादकता एवं उत्पादन बढ़ाकर उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार लाया जा सके।

किस तरह के लाभ हैं

बीज अदला-बदली

कृषक द्वारा दिये गये अलाभकारी फसलों के बीज के बदले 1 हैक्टर की सीमा तक खाद्यान्न फसलों के उन्नत एवं संकर बीज प्रदाय किये जाते हैं। प्रदाय बीज पर 75 प्रतिशत अनुदान, अधिकतम रू. 1500/- की पात्रता होती है। कृषक के पास बीज उपलब्ध नहीं होने पर प्रदाय बीज की 25 प्रतिशत नगद राशि कृषक को देनी होती है।

बीज स्वावलम्बन :- कृषकों की धारित कृषि भूमि के 1/10 क्षेत्र के लिये आधार/प्रमाणित बीज, 75 प्रतिशत अनुदान पर प्रदाय।

बीज उत्पादन

शासकीय कृषि प्रक्षेत्रों की 10 किलोमीटर की परिधि में अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति के लघु एवं सीमांत कृषकों के खेतों पर कम से कम आधा एकड़ क्षेत्र में बीज उत्पादन कार्यक्रम लिये जाते हैं। कृषकों को आधार /प्रमाणित -1 श्रेणी का बीज 75 प्रतिशत अनुदान पर प्रदाय किया जाता है। अधिकतम 1 हैक्टर तक अनुदान की पात्रता होती है। पंजीयन हेतु प्रमाणीकरण संस्था को देय राशि का भुगतान योजना मद से किया जाता है। उत्पादित प्रमाणित बीज, आगामी वर्ष में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के कृषकों को निर्धारित कीमत पर वितरण किया जाता है।

सूरजधारा योजना

योजना का लाभ किसे

यह योजना भी सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में प्रचलित है। इसका उद्‌देद्गय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लघु एवं सीमांत कृषकों को अलाभकारी फसलों/किस्मों के स्थान पर लाभकारी दलहनी/तिलहनी फसलों के उन्नत एवं विपुल उत्पादन देने वाली किस्मों के बीज उपलब्ध कराना है।

क्या लाभ मिलेगा-

बीज अदला बदली –

कृषकों द्वारा दिये गये अलाभकारी बीज के बदले में लाभकारी दलहनी/तिलहनी फसलों के उन्नत बीज 1 हैक्टर की सीमा तक प्रदाय किये जाते हैं। कृषकों द्वारा दिये गये बीज के बराबर उसी फसल का उन्नत बीज (1 हैक्टर सीमा तक) प्रदाय किया जावेगा। अन्य फसल का बीज चाहने पर, प्रमाणित बीज की वास्तविक कीमत का 25 प्रतिशत मूल्य का बीज अथवा नगद राशि कृषक को देनी होगी।

बीज स्वावलम्बन –

कृषक की धारित कृषि भूमि के 1/10 क्षेत्र के लिये आधार/ प्रमाणित बीज, 75 प्रतिशत अनुदान पर दिया जाएगा।

बीज स्वावलम्बन –

कृषक की धारित कृषि भूमि के 1/10 क्षेत्र के लिये आधार/ प्रमाणित बीज, 75 प्रतिशत अनुदान पर दिया जाएगा।

स्त्रोत : किसान पोर्टल, भारत सरकार

जैविक खेती प्रोत्साहन योजना(MP)
जैविक खेती प्रोत्साहन योजना(MP)

छूट और अनुदान की सुविधा

देश में जैविक खेती के कुल रकबे का लगभग 40 प्रतिशत मध्यप्रदेश में है। अतः उत्पादन तथा क्षेत्रफल की दृष्टि से प्रदेश, पूरे देश में पहले स्थान पर है। वर्ष 2011 में प्रदेश की अपनी जैविक कृषि नीति बनाई गई है। जैविक खेती विकास के संबंध में निर्णय लेने के जैविक खेती विकास परिषद का गठन प्रदेश के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में बनाया गया है। किसानों को जैविक कृषि पद्धति अपनाने के लिये कई सुविधाएं प्रदेश में

दी जा रहीं हैं तथा उत्पादों के लाभकारी विपणन के लिये जैविक उत्पाद प्रमाणीकरण की व्यवस्था है, जिसमें पंजीयन कराने के लिये भी निर्धारित शुल्क में राज्य सरकार द्वारा छूट व अनुदान दिये जाते हैं।

समन्वित पोषक तत्व प्रबन्धन एवं उर्वरकों के संतुलित व समन्वित उपयोग द्वारा भूमि के स्वास्थ्य को बनाये रखते हुए दीर्घकाल तक टिकाऊ उत्पादन प्राप्त करना इस योजना का प्राथमिक उद्देश्य है। इसका कार्यक्षेत्र सम्पूर्ण राज्य है। समस्त श्रेणी के कृषक इन सुविधाओं के लिये पात्रता रखते हैं।

लाभ एवं सहायता

क्र किसानों को क्या लाभ है कितनी सहायता दी जाती है

1 आर्गेनिक फार्म फील्ड स्कूल रू. 1700 प्रति एफएफएस 2 एक दिवसीय जैविक कार्यशाला  के लिये रूपये 3 लाख मात्र
3 राज्य के अन्दर कृषक भ्रमण/प्रशिक्षण 30 किसानों के लिये कुल रू. 90 हजार प्रत्येक भ्रमण/प्रशिक्षण
4 भ्रमण राज्य स्तर 30 किसानों के लिये राज्य के बाहर कृषक प्रशिक्षण/ भ्रमण के लिये रू. 1.80 लाख प्रत्येक प्रद्गिा./भ्रमण
5 एक दिवसीय कृषक प्रशिक्षण जिला स्तर पर एक दिवसीय 30 कृषकों के प्रशिक्षण हेतु रूपये 10000 का प्रावधान
6 वर्मीकम्पोस्ट वर्मी कम्पोस्ट निर्माण पर लागत का 50 प्रतिशत अधिकतम रू. 3000 जो भी कम हो
7 जैव कीटनाशक लागत का 50 प्रतिशत अधिकतम रू. 500 8 जैव उर्वरक/हार्मोन्स लागत का 50 प्रतिशत, अधिकतम रू. 500
1 आर्गेनिक फार्म फील्ड स्कूल रू. 1700 प्रति एफएफएस 2 एक दिवसीय जैविक कार्यशाला एक दिवसीय कार्यशाला के लिये रूपये 3 लाख मात्र
3 राज्य के अन्दर कृषक भ्रमण/प्रशिक्षण 30 किसानों के लिये कुल रू. 90 हजार प्रत्येक भ्रमण/प्रशिक्षण
4 भ्रमण राज्य स्तर 30 किसानों के लिये राज्य के बाहर कृषक प्रशिक्षण/ भ्रमण के लिये रू. 1.80 लाख प्रत्येक प्रति/भ्रमण

जैविक प्रमाणीकरण प्रक्रिया

मध्यप्रदेश में जैविक प्रमाणीकरण संस्था राज्य के किसानों का जैविक कृषि उत्पादन प्रमाणीकृत करने के लिये कार्यरत है। इसका मुख्य उद्देश्य  जैविक उत्पादों का राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के मानकों के अनुरूप प्रमाणीकरण करना है।

स्त्रोत : किसान पोर्टल, भारत सरकार

सिंचाई क्षमता विकास एवं अध्ययन सहायता(MP)
सिंचाई क्षमता विकास एवं अध्ययन सहायता(MP)

सिंचाई-एक महत्वपूर्ण कारक

कृषि उत्पादन वृद्धि में सिंचाई अत्यंत महत्वपूर्ण कारक है। मध्यप्रदेश में सिंचाई का रकबा, कुल बोवाई के रकबे का लगभग एक तिहाई है। वर्तमान में अधिकाधिक फसल उत्पादन की आवश्यकताओं को देखते हुए सिंचाई का क्षेत्र बढ़ाया जाना आवश्यक है। हाल ही के 4-5 वर्षों में शासन द्वारा सिंचाई प्रबंधन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रयासों के कारण सिंचित क्षेत्रफल में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। विभाग द्वारा भी स्प्रिंकलर व ड्रिप सिंचाई पद्धति को प्रोत्साहित किया जाना सिंचाई जल की उपयोगिता में तथा बलराम ताल योजना, एवं जल संरक्षण के कार्य भू-जल संवर्धन में सहायक सिद्ध हो रहे हैं। सिंचाई से संबंधित योजनाओं की जानकारी निम्नलिखित है।

नलकूप खनन

कौन लाभान्वित होगा 

अनुसूचित जाति/जनजाति के कृषक इस योजना के वास्तविक हितग्राही हैं। यद्यपि सामान्य वर्ग के किसानों को पृथक योजना के अंतर्गत अनुदान दिया जाता है। यह योजना सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में केवल शाजापुर, इन्दौर को छोड़कर प्रभावी है।

क्या लाभ मिलेगा-

सफल/असफल नलकूप खनन पर लागत का 75 प्रतिशत अधिकतम रू. 25,000-/ जो भी कम हो अनुदान दिया जाता है। सफल नलकूप पर पंप स्थापना हेतु लागत का 75 प्रतिशत अधिकतम रू. 15000/- जो भी कम हो अनुदान दिया जाता है।

राज्य माइक्रोइर्रीगेशन मिशन योजना

योजना  है

उपलब्ध सिंचाई जल का अधिकतम उपयोग कर कृषि उत्पादन में वृद्धि करना इस योजना का उद्देश्य है।

योजना का लाभ किसे मिलेगा-

समस्त वर्गों के कृषक जिनके पास स्वयं की भूमि हो इस योजना के हितग्राही है ।

क्या लाभ मिलता है-

स्प्रिंरकलर :- लागत का 80 प्रतिशत या अधिकतम राशि रू.12000/- प्रति हेक्टेयर, जो भी कम हो, अनुदान

ड्रिप सिंचाई :- लागत का 80 प्रतिशत या अधिकतम राशि रू.40000/- प्रति हेक्टेयर, जो भी कम हो,अनुदान ।

मोबाईल रेनगन :- लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम राशि रू.15000/- प्रति रेनगन, जो भी कम हो, अनुदान

बलराम ताल योजना

योजना यह है –

सतही तथा भूमिगत जल की उपलब्धता को समृद्ध करना है।ये तालाब किसानों द्वारा स्वयं के खेतों पर बनाये जाते हैं, इनसे फसलों में जीवन रक्षक सिंचाई तो की ही जा सकती है किन्तु भू जल संवर्धन तथा समीप के कुओं और नलकूपों को चार्ज करने के लिये भी ये अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुए हैं।

किसे लाभ मिलेगा –

योजना सम्पूर्ण मध्य प्रदेश में संचालित है जिसमें सभी वर्ग के पात्र किसानों को ताल निर्माण के लिये अनुदान दिया जाता है। योजना का लाभ चयनित कृषक केवल एक बार ही ले सकते हैं।

कैसे लाभ ले सकते हैं-

इच्छुक कृषकों द्वारा क्षेत्रीय ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी को ताल बनाने हेतु दिये गये आवेदन के आधार पर उनका पंजीयन किया जाता है। ताल की तकनीकी स्वीकृति जिले के उप संचालक कृषि तथा प्रशासनिक स्वीकृति जिला पंचायत/जनपद पंचायत द्वारा प्रदाय की जाती है। अनुदान हेतु ताल निर्माण होने पर ‘प्रथम आये-प्रथम पाये’ के आधार पर वरीयता दी जाती है।

क्या लाभ मिलेगा-

बलराम ताल के निर्माण कार्य की प्रगति एवं मूल्यांकन के आधार पर पात्रतानुसार निम्न वित्तीय सहायता का प्रावधान है :-

अनुदान-

  • सामान्य वर्ग के कृषकों को लागत का 40 प्रतिशत अधिकतम रू. 80,000/-
  • लघु सीमांत कृषकों के लिये लागत का 50 प्रतिशत अधिकतम रू. 80,000/-
  • अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति हितग्राहियों को लागत का 75 प्रतिशत, अधिकतम रू.1,00,000/-

किसानों के लिये अध्ययन एवं प्रशिक्षण के अवसर

तकनीकी प्रसार के लिये उन्नतशील किसानों को परस्पर देख कर सीखने की प्रवृत्ति अधिक प्रभावी पाई गई है। अपने अनुभव और ज्ञान से उत्पादन बढ़ाने के लिये किसानों को अन्य उन्नतशील किसानों के प्रक्षेत्र पर, अनुसंधान केन्द्रों तथा राज्य के अंदर तथा राज्य के बाहर भी अध्ययन भ्रमण के अवसर दिये जाते हैं। इस संबंध में अधिक जानकारी नीचे दी जा रही है।

मुख्यमंत्री विदेश अध्ययन यात्रा

योजना है-

किसानों को विकसित देशों में प्रचलित कृषि तकनीकों का प्रत्यक्ष अवलोकन कराने तथा प्रायोगिक जानकारी दिलवाने के लिये तकनीकी रूप से अग्रणी देशों में भेजा जाता है।

लाभ किसे और कितना-

सम्पूर्ण मध्यप्रदेश के सभी वर्ग के लघु एवं सीमांत कृषकों को विदेद्गा अध्ययन यात्रा में चयनित किये जाने पर कुल व्यय का 90 प्रतिशत, अ.ज.जा. एवं अ.जा. वर्ग के कृषकों को 75 प्रतिशत तथा अन्य कृषकों को 50 प्रतिशत अनुदान विभाग द्वारा दिया जाता है। विगत वर्ष में, इस यात्रा के विभिन्न दल उन्नत कृषि, उद्यानिकी, कृषि अभियांत्रिकी, पद्गाुपालन, मत्स्यपालन आदि के लिये प्रतिष्ठित तकनीकी का अध्ययन करने के लिये भेजे गये।

मुख्यमंत्री खेत तीर्थ योजना

योजना क्या है ?

प्रगतिशील किसान नवीन कृषि शोध का प्रत्यक्ष अनुभव स्वयं लेकर, अन्य सम्पर्कित कृषकों तक उन्नत तकनीकों, को पहुँचाये, इस उद्देश्य से राज्य के अंदर अथवा अन्तर्राज्यीय शासकीय कृषि प्रक्षेत्र, कृषि विज्ञान केन्द्र, अनुसंधान केन्द्र एवं कृषि विश्वविद्यालय तथा जिले के किसानों के चयनित खेत तीर्थो पर भीं भ्रमण करवाया जाता है। इसके अलावा शासकीय एवं अर्धद्गाासकीय प्रक्षेत्रों को भी रबी, खरीफ तथा जायद फसलों के आदर्द्गा मॉडल प्रक्षेत्र विकसित करने के लिये सहायता दी जाती है।

योजना का लाभ किसे

योजनान्तर्गत किसानों को राज्य के बाहर तथा अपने प्रदेश में ही चयनित उन्नत कृषि केन्द्रों, प्रक्षेत्रों और कृषि विज्ञान केन्द्रों का भ्रमण करवाया जाता है तथा प्रगतिद्गाील किसानों के साथ विशेषज्ञों से मार्गदर्शन दिलवाया जाता है।

स्त्रोत : किसान पोर्टल,भारत सरकार

जय किसान फसल कर्ज माफी योजना(MP)
जय किसान फसल कर्ज माफी योजना(MP)

ऋणग्रस्तता निवारण पहल

कृषि क्षेत्र में विगत कई वर्षों से किसानों को प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ा है। इसके फलस्वरूप कई किसान चाहते हए भी बैंकों/समितियों से फसल ऋण प्राप्त करने के उपरांत नियमित भुगतान नहीं कर पाते हैं। कृषि क्षेत्र की ऋणग्रस्तता निवारण के लिए बैंकों दवारा कोई विशेष कदम नहीं उठाये जा सके हैं।

जारी होने की तिथि

इसी परिप्रेक्ष्य में किसानों को राहत देने उद्देश्य से शासन द्वारा लिये गये निर्णय के क्रम में किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग द्वारा 05 जनवरी, 2019 जय किसान फसल ऋण माफी योजना स्वीकृत की गई।
1. योजनांतर्गत सहकारी बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक तथा राष्ट्रीयकृत बैंक से फसल ऋण प्राप्त करने वाले किसानों को अधिकतम रूपये 2.00 लाख (रूपये दो लाख) की सीमा तक पात्रता अनुसार निम्नानुसार लाभ दिया जाएगा:-
(अ)दिनांक 31 मार्च, 2018 की स्थिति में किसान के नियमित ऋण खाते में ऋणप्रदाता संस्था द्वारा प्रदाय फसल ऋण की बकाया राशि (Regular Outstanding loan) के रूप में दर्ज है। जिन किसानों द्वारा दिनांक 31 मार्च, 2018 की स्थिति में Regular Outstanding loan था तथा दिनांक 12 दिसम्बर, 2018 तक पूर्णत: अथवा आंशिक रूप से पटा दिया है, उन्हें भी योजना का लाभ दिया जाएगा
(ब) दिनांक 01 अप्रैल, 2007 को अथवा उसके उपरांत ऋण प्रदाता संस्था से लिया गया फसल ऋण जो दिनांक 31 मार्च, 2018 की स्थिति में सहकारी बैंकों के लिए कालातीत अथवा अन्य ऋणप्रदाता बैंकों के लिए Non-Performing Asset (NPA) घोषित किया गया हो। जिन किसानों द्वारा दिनांक 31 मार्च, 2018 की स्थिति में NPA अथवा कालातीत घोषित फसल ऋण दिनांक 12 दिसम्बर, 2018 तक पूर्णत: अथवा आंशिक रूप से पटा दिया है, उन्हें भी योजना का लाभ दिया जाएगा।

ऋण माफी योजना हेतु परिभाषाएं

मुख्यमंत्री फसल ऋण माफी योजना हेतु परिभाषाएं

1 फसल ऋण
भारतीय रिजर्व बैंक/नाबार्ड दवारा परिभाषित फसल की पैदावार के लिए ऋणप्रदाता संस्थाओं द्वारा दिया जाने वाला अल्पकालीन फसल ऋण।
2.ऋणमान (Scale of Finance): प्रत्येक हेक्टेयर फसल ऋण का निर्धारण, जो उक्त कृषि सीजन में, जिला स्तरीय तकनीकी समिति द्वारा निश्चित किया गया हो।

ऋण प्रदाता संस्थाएं

प्रदेश में कार्यरत एवं ऋण प्रदान करने वाली निम्न वित्तीय संस्थाएं एवं इनकी शाखायें स्कीम के क्रियान्वयन के लिए पात्र हैं:
(i) राष्ट्रीकृत बैंक
(ii) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
(iii) सहकारी बैंक (प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों द्वारा प्रदत्त. फसल ऋण शामिल)।

फसल ऋण मुक्ति प्रमाण पत्र

ऋण प्रदाता संस्था के प्रबंधक के हस्ताक्षर से किसान को जारी किया जाने वाला समायोजित फसल ऋण खाता का ऋण मुक्ति प्रमाण पत्र।

किसान सम्मान पत्र
नियमित रूप से फसल ऋण चुकाने वाले किसानों को दिया जाने वाला सम्मान पत्र।

योजना के लिए मापदण्ड

मध्यप्रदेश में निवास करने वाले किसान जिनकी कृषि भूमि मध्यप्रदेश में स्थित हो एवं उनके द्वारा मध्यप्रदेश स्थित ऋण प्रदाता संस्था की बैंक शाखा से अल्पकालीन फसल ऋण लिया गया हो, योजना हेतु पात्र होगा। प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों द्वारा प्रदत्त अल्पकालीन फसल ऋण भी योजना में शामिल हैं।ऐसा किसान जिसके फसली ऋण को रिजर्व बैंक/नाबार्ड के दिशा निर्देशों के अनुसार प्राकृतिक आपदाओं के होने के कारण पुर्नरचना (Restructuring) कर दी गई हो, योजना में पात्र होगा।कंडिका 1 अथवा 2 में निम्न शामिल नहीं होंगे:

  • कम्पनियों या अन्य कार्पोरेट संस्थाओं द्वारा किसानों को प्रत्याभूत ऋण, जो भले ही ऋण प्रदाता संस्थाओं द्वारा वितरित किया गया हो।
  • किसानों के समूह द्वारा लिया गया फसल ऋण, फार्मर प्रोड्यूसर कम्पनी अथवा फार्मर प्रोड्यूसर संस्था (FPO) द्वारा लिया गया फसल ऋण।
  • सोना गिरवी रख प्राप्त किया गया कोई भी ऋण।

डायरेक्ट बेनिफेट ट्रांसफर (DBT)

योजनांतर्गत डायरेक्ट बेनिफेट ट्रांसफर DBT से राज्य के कोष से राशि पात्र किसान के फसल ऋण खाते में जमा कराई जाएगी। अतः योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए किसानों को फसल ऋण खातों में आधार नम्बर सीडिंग एवं अभिप्रमाणित कराया जाना आवश्यक होगा। जिन किसानों के फसल ऋण खाते में आधार नम्बर सीडिंग नहीं है, को इस प्रयोजन हेतु एक अवसर प्रदान किया जाएगा।

गैर निष्पादित आस्तियाँ (NPA)

रिजर्व बैंक के मानको के अनुरूप गैर-निष्पादित आस्तियों (NPA) के रूप में दिनांक 31 मार्च, 2018 तक वर्गीकृत फसल ऋण योजनांतर्गत मान्य होंगें, यदि उक्त फसल ऋण 1 अप्रैल, 2007 अथवा उसके उपरांत ऋण प्रदाता संस्था से प्राप्त किया गया हो। सहकारी बैंकों (तथा PACS) से 1 अप्रैल, 2007 या उसके उपरांत लिया गया फसल ऋण, जो दिनांक 31 मार्च, 2018 को कालातीत ऋण के रूप में दर्ज हो, योजनांतर्गत पात्र होगा। 3.6 पात्र किसानों के फसल ऋण खाते में योजनांतर्गत पात्रता अनुसार राशि जमा कराई जावेगी। लघु एवं सीमांत किसानों को प्राथमिकता प्रदान की जाएगी।

योजना के लिए निरहर्ता/अपात्रता

निम्न श्रेणी के फसल ऋण योजना अंतर्गत निरर्हत/अपात्र रहेंगे

  • निम्न श्रेणियों के वर्तमान एवं भूतपूर्व पदाधिकारी:- मान. सांसद, मान. विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष, नगरपालिका। नगर पंचायत । नगर निगम के अध्यक्ष/महापौर, कृषि उपज मण्डी के अध्यक्ष,सहकारी बैंकों के अध्यक्ष, केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा गठित निगम, मण्डल अथवा बोर्ड के अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष।
  • समस्त आयकर दाता।
  • भारत सरकार तथा प्रदेश सरकार के समस्त शासकीय अधिकारी ।
  • कर्मचारी तथा इनके निगम / मण्डल / अर्धशासकीय संस्थाओं में कार्यरत अधिकारी/कर्मचारी, (चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को छोड़कर) ।
  • रूपये 15,000/- प्रतिमाह या उससे अधिक पेंशन प्राप्तकर्ता (भूतपूर्व सैनिकों को छोड़कर)
  • GST में दिनांक 12 दिसम्बर, 2018 या उससे पूर्व पंजीकृत व्यक्ति/फर्म/ फर्म के संचालक/ फर्म के भागीदार।

दिये गये बिंदुओं की स्थिति में किसी भी निरर्हता की स्थिति में उक्त फसल ऋण प्राप्त कर्ता किसान निरर्हत/ अपात्र होगा। उपरोक्त निरर्हता/अपात्रता के लिए पात्र किसान द्वारा स्वप्रमाणीकरण किया जाना योजना हेतु मान्य होगा।निरर्हता / अपात्रता की सूची में बदलाव या सुधार करने के लिए एवं ऋणमान के युक्तियुक्तकरण के लिए राज्य स्तरीय क्रियान्वयन समिति अधिकृत रहेगी।

क्रियान्वयन प्रक्रिया

इस योजना के क्रियान्वयन के लिए एम.पी. ऑनलाईन (MP-online) दवारा पोर्टल तैयार किया गया है। पोर्टल का प्रबन्धन का कार्य सक्षम तकनीकी संस्था के सहयोग से किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग द्वारा किया जा रहा है।

आवेदन की प्रक्रिया

किसान दवारा जिस ग्राम पंचायत की सीमा में कृषि भूमि है, उस ग्राम पंचायत में ऑफ-लाईन आवेदन पत्र जमा कराया जाता है। नगरीय क्षेत्र में स्थित कृषि भूमि होने पर संबंधित नगरीय निकाय में आवेदन पत्र जमा कराया जाता है। आवेदन पत्र में आधारकार्ड की छायाप्रति तथा ऋण प्रदाता संस्था राष्ट्रीकृत बैंक अथवा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक होने की स्थिति में संबंधित बैंक शाखा द्वारा प्रदत्त. बैंक ऋण खाता पास बुक के मुख्य पृष्ठ की प्रतिलिपि संलग्न करना अनिवार्य होगा। सहकारी बैंक अथवा प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति (PACS) से ऋण की स्थिति में बैंक ऋण खाता पास बुक की आवश्यकता नहीं होगी। यदि किसान की कृषि भूमियाँ अनेक ग्राम पंचायतों में हैं तो उसे एक ही ग्राम पंचायत में (जिसमें सामान्यत: निवास हो) समस्त कृषि भूमियों के लिए फसल ऋण की जानकारियाँ एक ही आवेदन पत्र में जमा करनी होती। प्रत्येक ऑफ लाईन आवेदन पत्र जमा करने की रसीद ग्राम पंचायत (नगरीय क्षेत्र की सीमा में कृषि भूमि होने पर नगरीय निकाय) द्वारा आवेदक को प्रदान की जाती है।

स्त्रोत: किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग, मध्यप्रदेश सरकार

कृषि अभियांत्रिकी योजनाएं (MP)
कृषि अभियांत्रिकी योजनाएं (MP)

मशीन ट्रैक्टर स्टेशन योजना (टै्रक्टरों द्वारा मशीनी कार्य)

योजना

यह राज्य योजना है जिसके अंतर्गत कृषकों को कृषि कायों हेतु शासन द्वारा निर्धारित दर पर शासकीय टै्रक्टर व कृषि यंत्र उपलब्ध कराये जाते है। सभी कृषक इसका लाभ ले सकते हैं।यह प्रदेश के मध्यप्रदेश के 37 जिलों में प्रभावी है।

योजना का लाभ क्या है-

यंत्रदूत ग्रामों की स्थापना

प्रदेश में सामन्यतः अनुसूचित जाति/जनजाति तथा आर्थिक रूप से कमजोर कृषकों की बाहुल्यता वाले ग्राम चयनित किये जाते है। इन ग्रामों का माडल ग्राम के रूप में विकसित किया जाता है। इन्हें यंत्रदूत ग्राम के नाम से पहचाना जाता है।

पावर टिलर पर 25 प्रतिशत टॉपअप अनुदान

इसके अंतर्गत लघु एवं सीमांत वर्ग के हितग्राहियों को सब मिशन ऑन एग्रीकल्चर मेकेनाइजेशन के अंतर्गत देय अनुदान के अतिरिक्त राज्य शासन की ओर से 25 प्रतिशत या अधिकतम 25000/- की राशि दी जाती है।

कृषि यंत्रीकरण की प्रोत्साहन योजनाएं

इस योजना के अंतर्गत दो उप योजनाएं हैं-

योजना

कृषकों को अच्छी गुणवत्ता के कृषि यंत्र उपलब्ध कराना तथा कमजोर वर्ग के कृषकों हेतु कस्टम हायरिंग सुविधाओं का विस्तार करना।

कृषि यंत्र खरीदने पर क्या सहायता मिलती है –

शक्ति चलित कृषि यंत्रों पर टॉप अप अनुदान

शासन द्वारा विशेष कृषि क्रियाओं हेतु अथवा कृषकों की विशेष समस्याओं के निराकरण हेतु चिन्हित शक्ति चलित कृषि यंत्रों पर अन्य योजनाओं में उपलब्ध अनुदान के अतिरिक्त निम्नानुसार टॉपअप अनुदान दिया जाता है। रिज फरो अटेचमेंट पर वर्तमान में किसी अन्य योजना में अनुदान उपलब्ध नहीं है अतः इस परविशेष अनुदान देय होगा।

क्र. चिन्हित कृषि क्रियायें चिन्हित यंत्र
1 सोयाबीन की बुवाई की रिज फरोपद्धति को प्रोत्साहन रिज-फरो अटैचमेंट (कृषकों के पास वर्तमान मेंउपलब्ध सीड ड्रिल/सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल हेतु)
2 धान कटाई उपरांत गेहूँ कीसमय पर बुवाई जीरोटिल सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल
3 फसलों की कतार में बुवाई सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल
4 फसलों की एरोबिक खेत रेज्ड बेड प्लांटर
5 गहरी जुताई कार्य रिवर्सिबल प्लाऊ, एम.बी. प्लाऊ, डिस्क प्लाऊ
6 फसल कटाई कार्य रीपर कम बाइंडर
7 नरवाई से भूसा प्राप्त करना स्ट्रा रीपर
8 सघन कीट नियंत्रण एरोब्लास्ट स्प्रेयर

कहां सम्पर्क करना होगा-

योजना का लाभ लेने के लिये विकासखण्ड के वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी या अपने ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी से संपर्क करें।

कस्टम हायरिंग केन्द्र की स्थापना हेतु सहायता –

केन्द्र स्थापित करने के लिये टे्रक्टर एवं कृषि यंत्रों की लागत का 50 प्रतिशत अधिकतम रू. 10 लाख तक का अनुदान दिया जाता है।

अ)निजी क्षेत्र में कस्टम हायरिंग केन्द्रों की स्थापना इसके अतंर्गत 40 वर्ष की आयु तक के व्यक्ति केन्द्र की स्थापना कर सकेंगे। केन्द्र की स्थापना हेतु प्रकरण बनाकर बैंक से स्वीकृत कराया जाना होगा तथा अनुदान राशि भी बैंक के माध्यम से ही प्रदाय की जाएंगी।

ब) प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां, जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक से ऋण प्राप्त कर कस्टम हायरिंग सेन्टर स्थापित कर सकती हैं।

कहां सम्पर्क करना होगा-

संबंधित जिले के निकटतम सहायक कृषि यंत्री से

स्त्रोत : किसान पोर्टल,भारत सरकार

उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग योजना (MP)
उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग योजना (MP)

फलपौध रोपण अनुदान योजना

प्रदेश की भूमि, जलवायु तथा सिंचाई सुविधा की उपलब्धता के आधार पर यह योजना प्रदेश में संचालित है। इस योजना में कृषक द्वारा बैंक ऋण लेने पर अमरूद, अनार, ऑवला, आम, संतरा, मौसम्बी, नीबू, केला, पपीता एवं अंगूर के रोपण पर नाबार्ड के इकाई लागत पर 25 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है। किन्तु जो कृषक बैंक ऋण नहीं लेना चाहते हैं, उन्हें विभागीय फलोद्यान योजना अंतर्गत केवल संतरा, मौसम्बी, अमरूप, अनार, आंवला, आम एवं नीबू पर 25 प्रशित अनुदान नाबार्ड के इकाई लागत पर दिया जाता है।

अंगूर की खेती

अंगूर की खेती को बढ़ावा देने के लिये प्रदेश के हरदा, धार , खरगौन, गुना, अशोकनगर, उज्जैन, देवास एवं रतलाम जिले के कृषकों को टेबलग्रेप्स के लिये बैंक ऋण पर नावार्ड द्वारा निर्धारित इकाई लागत रू. 391060 प्रथम वर्ष का 25 प्रतिशत रूपये 98000 का अनुदान तथा द्वितीय वर्ष की लागत रूपये 66560 का 25 प्रतिशत अनुदान रूपये 16640 इन प्रकार कुल प्रति हेक्टर रूपये 4,57,620 का 25 प्रतिशत रूपये 1,14,640 का अनुदान देय है।

बाड़ी (किचन गार्डन) के लिये आदर्श कार्यक्रम

राज्य शासन की प्राथमिकता के अंतर्गत गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लघु/सीमान्त किसानों एवं खेतिहर मजदूरों को इस योजना के अंतर्गत प्रति हितग्राही को रूपये 57/- की सीमा तक उनकी बाड़ी हेतु स्थानीय कृषि जलवायु के आधार पर सब्जी बीजों के पैकेट वितरित करने का प्रावधान है।

सब्जी क्षेत्र विस्तार योजना

सब्जी क्षेत्र विस्तार की नवीन योजना अंतर्गत उन्नत/संकर सब्जी फसल के लिये आदान सामग्री का 50 प्रतिशत अधिकतम 12500 रूपये प्रति हैक्टर तथा सब्जी के कंदवाली फसल जैसे-आलू, अरबी के लिये आदान सामग्री का 50 प्रतिशत अधिकतम रूपये 25000/- अनुदान दिये जाने का प्रावधान किया गया है। योजना में एक कृषक को 0.25 हैक्टर से लेकर 2 हैक्टर तक का लाभ दिया जाना प्रावधानित है।

मसाला क्षेत्र विस्तार योजना

प्रदेश में मसाला क्षेत्र विस्तार की नवीन योजना अंतर्गत सभी वर्ग के कृषकों के लिये उन्नत/संकर मसाला फसल के क्षेत्र विस्तार के लिये आदान सामग्री का 50 प्रतिशत अधिकतम रूपये 12500/- प्रति हैक्टर तथा कंदवाली फसल जैसे-हल्दी, अदरक, लहसुन के लिये आदान सामग्री का ५० प्रतिशत अधिकतम रूप 25000/- दिये जाने का प्रावधान किया गया है।

प्रदर्शन/मिनिकिट की योजना

समस्त उद्यानिकी फसलों के प्रदेर्शन/मिनीकिट की नवीन योजनान्तर्गत आगामी तीन वर्षो का कार्यक्रम निर्धारित जिले की जलवायु एवं मिट्‌टी को देखते हुए किया जायेगा।

एकीकृत शीतश्रृंखला से संबंधित सहायता

उद्यानिकी फसलोत्तर प्रबंधन अंतर्गत एकीकृत शीतश्रृंखला की अधोसंरचना विकास की प्रोत्साहन योजना

अभी तक प्रदेश में इस तरह की योजना मिशन योजना अंतर्गत केवल मिशन जिलों के लिये क्रियान्वयन थी। नवीन योजना सभी जिलों के लिये वर्ष 2011-12 से प्रारंभ की जा रही है जिसके अंतर्गत एकीकृत शीतश्रृंखला की अधोसंरचना का विकास कर उद्यानिकी फसलों के उत्पादन की सेल्फ लाईफ बढ़ाना, कृषकों के उत्पादों का सही मूल्य उपलब्ध करवाना, प्रदेश एवं प्रदेश के बाहर निर्यात को बढ़ावा देना है, ताकि उद्यानिकी फसलों की खेती को लाभ का धंधा बनाया जा सकें।

संरक्षित खेती की प्रोत्साहन योजना

व्यावसायिक उद्यानिकी फसलों की संरक्षित खेती की प्रोत्साहन योजना

अभी तक प्रदेश में इस तरह की योजना मिशन अंतर्गत मिशन जिलों में लागू है। उसी अनुसार प्रदेश के सभी जिलों में नवीन योजना वर्ष 2011-12 से प्रारंभ की गई है। योजना में प्रावधान अनुसार राष्ट्रीय उद्यानिकी मिशन द्वारा निर्धारित मापदण्ड एवं बागवानी में प्लास्टिक कल्चर उपयोग संबंधी राष्ट्रीय समिति के द्वारा निर्धारित ड्राईंग डिजाइन के अनुसार ग्रीनहाऊस, शेडनेट एंव प्लास्टिक लो-टनल इत्यादि का निमार्ण किया जाएगा।

उद्यानिकी के विकास हेतु यंत्रीकरण को बढ़ावा देने की योजना

उद्यानिकी के क्षेत्र में यंत्रीकरण को बढ़ावा देने के लिये कोई योजना संचालित नहीं थी।वर्ष 2011-12 से नवीन योजना प्रारंभ की गई है। उद्यानिकी फसलों की खेती में उपयोग में आने वाले आधुनिक यंत्रों की इकाई लागत ज्यादा होने से सामान्य कृषक इसका उपयोग नहीं कर पाते है।

उद्यानिकी अधिकारी/कर्मचारी प्रशिक्षण योजना

योजनान्तर्गत संचालनालय उद्यानिकी एवं प्रक्षेत्र वानिकी के अधीन पदस्थ अधिकारी एवं कर्मचारियों को कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित नई तकनीक के विषय में जानकारी से अवगत कराने हेतु प्रशिक्षण एवं रिफ्रेसर कोर्स आयोजित किये जाते है, तथा राज्य शासन के बाहर विभिन्न संस्थाओंद्वारा आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भेजा जाता है।

कृषक प्रशिक्षण सह भ्रमण कार्यक्रम

कृषकों को उद्यानिकी फसलों की खेती की नवीन तकनीक एवं उससे होने वाले लाभ से अवगत कराया जाता है।

प्रदर्शनी मेला एवं प्रचार-प्रसार योजना

जिला एवं ब्लाक स्तर पर फल, फूल एवं सब्जी आदि की प्रदर्शनी एवं सेमिनार आयोजित कर कृषकों को नवीन तकनीकी विकास के कार्यक्रम प्रदर्शित किये जाते है।

कहां सम्पर्क करें

संबंधित जिले के उप संचालक/सहायक संचालक/वरिष्ठ उद्यान विकास अधिकारी

स्त्रोत : किसान पोर्टल,भारत सरकार

आईटी के माध्यम से कृषि विस्तार एवं प्रयोगशाला परीक्षण (MP)
आईटी के माध्यम से कृषि विस्तार एवं प्रयोगशाला परीक्षण (MP)

सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी कार्य

योजना है-

आधुनिक ई तकनीकी के माध्यम से किसानों को खेती से जुड़ी नवीनतम सूचनाएं त्वरितता से पहुँच जाती हैं। भारत शासन द्वारा प्रारंभ इस केन्द्र प्रवर्तित कार्यक्रम अंतर्गत मुखय रुप से किसानों को चयनित सेवाओं के प्रदाय हेतु राज्य कृषि पोर्टल एवं केन्द्रीय कृषि पोर्टल का विकास तथा इनके कुशल संचालन एवं संधारण हेतु आवश्यक व्यवस्थाएँ की जा रही है।

योजना का क्या लाभ है-

इस कार्यक्रम अंतर्गत कुल 12 सेवाएँ यथा उर्वरक, बीज एवं पौध संरक्षण दवाओं के प्रदायकर्ता, मृदा स्वास्थ्य, उत्तम कृषि क्रियाएँ, मौसम अनुमान, कृषि मूल्य, प्रमाणीकरण, आयात निर्यात, विपणन अधोसंरचना, च्ंहम 14 वि 25 मूल्यांकन एवं पर्यवेक्षण, सिंचाई, सूखा, मत्स्य एवं पशुपालन के संबंध में तकनिकी जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

सेवाएं कहां उपलब्ध हैं

राज्य (मुख्यालय), संभाग (10), जिला (51), कृषि विस्तार प्रशिक्षण केन्द्र (19) अनुविभागीय कृषि अधिकारी कार्या.(100), सहायक भूमि संरक्षण अधिकारी कार्या.(81), बीज/ उर्वरक/कीटनाशक/मिट्‌टी परीक्षण प्रयोगशालाएं (22), मृदा सर्वेक्षण अधिकारी कार्यालयों (08) एवं विकास खण्ड कार्यालयों (313) में क्रियान्वित है। साथ ही अन्य विभाग उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण, पशुपालन, मत्स्य पालन को भी संबद्ध किया गया है।

कृषि जलवायु क्षेत्र हेतु पायलेट प्रोजेक्ट

योजना यह है

प्रदेश की क्षेत्रीय समस्याओं के समाधान करने की दिशा में कृषि क्षेत्रीय जलवायु क्षेत्र हेतु पायलेट परियोजना (नवीन योजना) संचालित की जा रही है। योजना के अंतर्गत समस्याओं को क्षेत्रवार चिन्हित कर उनके समाधान हेतु कृषि की सर्वोत्तम विधियों को सघनता से अपनाने के प्रयास खोजना है। पायलेट क्षेत्र में समन्वित रूप से योजनाओं का अभिसरण होने से कृषकों को विभिन्न योजनाओं का समेकित लाभ अच्छे रूप में मिल सकेगा।

योजना यहां प्रचलन में है-

फसलों के आधार पर परियोजना का कार्यक्षेत्र निम्नानुसार है :-

  1. एस.आर.आई. पद्धति से धान की उत्पादकता में वृद्धि हेतु 11 जिले सिंगरौली, उमरिया, मुरैना सीधी, जबलपुर, सिवनी, श्योपुर, भिंड, ग्वालियर, बालाघाट, एवं छतरपुर चयनित हैं।
  2. हाईब्रिड मक्का बीज हेतु प्रदेश के 4 जिले झाबुआ, छिंदवाड़ा, बैतूल एवं अलीराजपुर परियोजना अंतर्गत चयनित है।
  3. रिज एवं फरो एंड रेज्ड बैड प्लांटिंग पद्धति से सोयाबीन फसल बोआई हेतु योजना प्रदेश के 27 सोयाबीन उत्पादक जिलों हेतु चयनित है।

क्या लाभ मिलते हैं-

  1. धान की एस.आर.आई. पद्धति के लिये प्रति प्रदर्शन हेतु अनुदान रू.3000/- देय है।
  2. रिज एवं फरो एंड रेज्ड बैड प्लांटिंग पद्धति से सोयाबीन फसल बोआई हेतु प्रतियंत्र अनुदान 50प्रतिशत या 2500 रू. अधिकतम अनुदान देय होगा।
  3. हाईब्रिड मक्का बीज हेतु कीमत का 90 प्रतिशत या 500 रू. प्रति एकड़ जो भी कम हो अनुदान देय होगा।

प्रदेश में गुण नियंत्रण तथा परीक्षण प्रयोगशालाए

महत्व

फसल उत्पादन में प्रयोग किये जाने वाले कृषि रसायन जैसे उर्वरक, बीज और कीटनाशक आदि मंहगे कृषि आदान हैं। उत्पादन वृद्धि के लिये इनकी मात्रा निश्चित होती है। यदि यह शुद्ध न हों या मानक स्तर के न हों तो किसानों को इनसे लाभ की जगह हानि हो सकती है। इसलिये निजी स्त्रोत तथा सहकारिता के माध्यम से किसानों को उपलब्ध होने वाले कृषि रसायनों का परीक्षण, अधिकृत विभागीय प्रयोगशालाओं किया जाता है।

इस तरह किया जाता है

किसानों को गुणवत्ता पूर्ण आदान सामग्री उपलब्ध कराने के लिये उर्वरक, बीज तथा कीटनाशक रसायन गुण नियंत्रण प्रयोगशालाएं संचालित हैं। विभागीय आदान निरीक्षकों द्वारा संकलित किये गये नमूनों का परीक्षण इन प्रयोगशालाओं में कर आदानों की गुणवत्ता की परख की जाती है। अमानक पाये गये नमूनों के प्रकरणों से संबंधित के विरूद्ध विभिन्न अधिनियमों में निहित प्रावधानों के तहत्‌ कार्यवाही की जाती है।

प्रयोगशालाएं यहां हैं

  • उर्वरक गुण नियंत्रण प्रयोगशाला – भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर।
  • बीज परीक्षण प्रयोगशाला – ग्वालियर।

कीट गुण नियंत्रण प्रयोगशाला – जबलपुर में स्थापित है तथा परीक्षण की सुविधा संभाग स्तर पर उपलब्ध कराने हेतु प्रदेश के सभी 10 संभागों में बीज एवं उर्वरक प्रयोगशालाओं की स्थापना प्रक्रियाधीन है।

स्त्रोत : किसान पोर्टल,भारत सरकार

निजी उद्यमी गारंटी (पीईजी) स्‍कीम
निजी उद्यमी गारंटी (पीईजी) स्‍कीम

भूमिका

विगत कुछ वर्षों के दौरान न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य में वृद्धि  के साथ बेहतर पहुंच के कारण खरीद बढ़ी है। खाद्यान्‍नों की अधिक खरीद के परिणामस्‍वरुप केन्‍द्रीय पूल स्‍टॉक दिनांक 1.4.2008 की स्‍थिति के अनुसार 196.38 लाख टन से बढ़कर दिनांक 1.6.2012 की स्‍थिति के अनुसार 823.17 लाख टन के उच्‍चतम स्‍तर पर पहुंच गया। अत: खाद्यान्‍नों के लिए भंडारण क्षमता को बढ़ाने की आवश्‍कयता महसूस की गई।

यह विभाग कवर्ड एंड प्‍लिन्‍थ (कैप) भंडारण पर निर्भरता कम करने के लिए कवर्ड गोदामों के रुप में  भंडारण क्षमता को बढ़ाने के लिए निजी उद्यमी गारंटी (पीईजी) स्‍कीम नामक एक स्‍कीम कार्यान्‍वित कर रहा है।

वर्ष 2008 में प्रारंभ की गई निजी उद्यमी गारंटी स्‍कीम के अंतर्गत भारतीय खाद्य निगम द्वारा गारंटी देकर किराए पर लेने के लिए सार्वजनिक-निजी-भागीदारी (पीपीपी) पद्धति के अंतर्गत निजी पार्टियों तथा सार्वजनिक क्षेत्र की विभिन्‍न एजेंसियों के माध्‍यम से गोदामों का निर्माण किया जाता है।

निजी पार्टियों के लिए गारंटी की अवधि 10 वर्ष है, जबकि निजी क्षेत्र की एजेंसियों के लिए यह अवधि 9 वर्ष है। निजी पार्टियों के मामले में दो-बोली प्रणाली के अंतर्गत निर्दिष्‍ट शीर्ष एजेंसियों द्वारा राज्‍यवार निविदाएं आमंत्रित की जाती हैं। तकनीकी बोली स्‍तर पर साईटों का निरीक्षण किया जाता है तथा जो साइटें उपयुक्‍त पाई जाती हैं उन्‍हीं से संबंधित बोलियों पर आगे कार्रवाई की जाती है।  सबसे कम बोली लगाने वाले बोलीकर्ताओं को निविदाएं आबंटित की जाती हैं। गैर-रेलवे साइडिंग गोदामों का निर्माण एक वर्ष में किया जाना अपेक्षित है, जबकि रेलवे साइडिंग वाले गोदामों के निर्माण के लिए 2 वर्ष की निर्माण अवधि की अनुमति दी गई है। इस अवधि को निवेशक के अनुरोध पर एक वर्ष और बढ़ाया जा सकता है। गोदाम का निर्माण कार्य पूरा होने के पश्‍चात भारतीय खाद्य निगम तथा शीर्ष एजेंसी की संयुक्‍त समिति द्वारा अंतिम निरीक्षण किया जाता है तथा पूर्ण रुप से तथा विनिर्दिष्‍टयों के अनुसार तैयार गोदामों का अधिग्रहण गारंटी आधार पर किया जाता है।

उद्देश्‍य

भंडारण स्‍थान की कमी को पूरा करने के उद्देश्‍य से गोदामों के निर्माण के लिए स्‍थानों की पहचान भारतीय खाद्य निगम द्वारा राज्‍य स्‍तरीय समितियों की सिफारिशों के आधार पर की गई थी। उपभोक्‍ता क्षेत्रों के लिए भंडारण अंतर का आकलन सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) तथा अन्‍य कल्‍याणकारी योजनाओं (ओडब्‍ल्‍यूएस) की चार माह की आवश्‍यकताओं के आधार पर किया जाता है, जबकि खरीद वाले राज्‍यों के संबंध में भंडारण अंतर का आकलन खरीद क्षमता को ध्‍यान में रखते हुए विगत तीन वर्षों में उच्‍चतम स्‍टॉक स्‍तर के आधार पर किया गया है।

स्थिति

तदनुसार, लगभग 200 लाख टन क्षमता के सृजन के लिए 20 राज्यों मे विभिन्न स्थान पर योजना बनाई गई थी। इसमे से 180 लाख टन क्षमता 20 लाख टन क्षमता आधुनिक इस्पात साइलो के निर्माण के लिए है ओर शेष 20 लाख टन पारंपरिक गोदामो की लिए है। प्रत्‍येक  साइलो की क्षमता 25000 अथवा 50000 टन होगी।

दिनाक 30.06.2014 की स्‍थिति के अनुसार 153.16 लाख टन की के गोदामो के निर्माण स्‍वीकृत दी गई है और 120.30 लाख टन का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। साइलो  के लिए बोली दस्तावेज ओर मॉडल रियायत करार को अंतिम रूप दिया जा रहा है। वियाबिलिटी गैप फंडिंग ( वी जी एफ)  ओर गैर – वी जी एफ मोड दोनों के लिए निर्माण सार्वजनिक – निजी – भागीदारी  पद्धति से करने की योजना बनाई जा रही है।

विभिन्‍न मॉडलों की स्‍थिति

साइलोज के संबंध में सार्वजनिक एवं निजी भागीदारी के विभिन्‍न मॉडलों की स्‍थिति का ब्‍यौरा नीचे दिया गया है:-

गैर-व्‍यवहार्यता अंतर वित्‍त पोषण (नॉन-वीजीएफ) पद्धति (17.50 लाख टन):  नवम्‍बर, 2013 में आबंटित निविदाओं को पर्याप्‍त प्रतिक्रिया नहीं मिली थी। बोली दस्‍तावेजों में संशोधन किया जा रहा है। शीघ्र ही नई निविदाएं आमंत्रित की जानी हैं।

व्‍यवहार्यता अंतर वित्‍त पोषण (वीजीएफ) पद्धति (योजना आयोग) (1.50 लाख टन): बोली दस्‍तावेजों को अंतिम रुप दिया जा रहा है। भारतीय खाद्य निगम रेलवे साइडिंग वाले भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में से साइटों को शामिल करने की संभावनाएं तलाश रहा है।

व्‍यवहार्यता अंतर वित्‍त पोषण पद्धति (डीईए) (1.00 लाख टन): आर्थिक कार्य विभाग द्वारा बोली दस्‍तावेज तैयार किए जा रहे हैं|

भंडारण गोदामों के निर्माण के लिए योजना स्‍कीम

यह विभाग पूर्वोत्‍तर क्षेत्रों में क्षमता को बढ़ाने के उद्देश्‍य से गोदामों के निर्माण के लिए एक योजना स्‍कीम कार्यान्‍वित कर रहा है। 11वीं पंचवर्षीय योजना के लिए योजना को अंतिम रुप देने के दौरान गोदामों के निर्माण के उद्देश्‍य से स्‍कीम का क्षेत्र हिमाचल प्रदेश, झारखंड, बिहार, उड़ीसा, पश्‍चिम बंगाल, छत्‍तीसगढ़, महाराष्‍ट्र तथा लक्षद्वीप जैसे राज्‍यों तक बढ़ाने का निर्णय लिया गया था।

इसके अलावा, खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग राज्‍य सरकारों से उचित दर दुकानों तक वितरण करने के लिए भारतीय खाद्य निगम के डिपुओं से एकत्रित खाद्यान्‍नों का भंडारण करने के लिए  राज्‍य सरकारों से ब्‍लाक/तहसील स्‍तर पर मध्‍यवर्ती भंडारण क्षमता का निर्माण करने का अनुरोध कर रहा है। यह लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए आपूर्ति श्रृंखला संभार तंत्र में सुधार करने के लिए आवश्‍यक है। चूंकि मध्‍यवर्ती गोदामों का निर्माण राज्‍य सरकारों की जिम्‍मेवारी है, अत: खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग पूर्वोत्‍तर राज्‍य सरकारों तथा जम्‍मू और कश्‍मीर सरकार को उनकी कठिन भौगोलिक स्‍थितियों को ध्‍यान में रखते हुए योजना निधि उपलब्‍ध करा रहा है।

इस योजना स्‍कीम के अंतर्गत भूमि के अधिग्रहण तथा गोदामों के निर्माण तथा संबंधित आधारभूत संरचनाओं जैसे रेलवे साइडिंग, विद्युतीकरण, तौल कांटा स्‍थापित करने आदि के लिए भारतीय खाद्य निगम को इक्‍विटी के रुप में निधियां जारी की जाती हैं। पूर्वोत्‍तर क्षेत्र की राज्‍य सरकारों तथा जम्‍मू और कश्‍मीर राज्‍य सरकार को मध्‍यवर्ती गोदामों के निर्माण के लिए अनुदान सहायता के रुप में निधियां जारी की जाती हैं।

12वीं पंचवर्षीय योजना के संबंध में योजना परिव्‍यय

12वीं पंचवर्षीय योजना के संबंध में योजना परिव्‍यय निम्‍नानुसार है:-

क्रम संख्‍या शीर्ष अनुमानित लागत (करोड़ रु0) 11वीं योजना काव्‍यय न किया गया शेष(करोड़ रु0) 12वीं योजना में परिव्‍यय(करोड़ रु0)
1 भारतीय खाद्य निगम द्वारा पूर्वोत्‍तर में 37 स्‍थानों पर गोदामों का निर्माण (2,92,730 टन) 509.76 51.20 458.56
2 भारतीय खाद्य निगम द्वारा 4 अन्‍य राज्‍यों में 9 स्‍थानों पर गोदामों का निर्माण (76,220 टन) 72.14 16.06 56.08
3 पूर्वोत्‍तर राज्‍यों को 74 स्‍थानों पर तात्‍कालिक भंडारण के लिए अनुदान सहायता 14.36 0.00 14.36
4 जम्‍मू और कश्‍मीर को एक स्‍थान पर  तात्‍कालिक भंडारण के लिए अनुदान सहायता। 1.00 0.00 1.00
5 जोड़ 597.26 67.26 530.00

उपलब्‍धियां

वर्ष 2012-13 तथा 2013-14 के दौरान भारतीय खाद्य निगम की भौतिक एवं वित्‍तीय उपलब्‍धियां निम्‍नानुसार हैं:-

वर्ष पूर्वोत्‍तर क्षेत्र अन्‍य राज्‍य जोड़(पूर्वोत्‍तर+अन्‍य राज्‍य)
भौतिक(टन में) वित्‍तीय(करोड़ रुपए में) भौतिक(टन में) वित्‍तीय(करोड़ रुपए में) भौतिक(टन में) वित्‍तीय(करोड़ रुपए में)
2012-13 2,910 27.72 1,160 2.64 4,070 30.36
2013-14 2,500 30.94 20,000 11.02 22,500 41.96
जोड़ 5,410 58.66 21,160 13.66 26,570 72.32

पूर्वोत्‍तर राज्‍यों तथा जम्‍मू और कश्‍मीर मे अनुदान सहायता का उपयोग करते हुए मध्‍यवर्ती भंडारण गोदामों के निर्माण के लिए 78,055 टन क्षमता की कुल 75 परियोजनाएं स्‍वीकृत की गई थी। दिनांक 30.06.2014 की स्‍थिति के अनुसार 33,220 टन क्षमता का कार्य पूरा कर लिया गया है।

पूर्वोत्‍तर राज्‍यों, सिक्‍किम तथा जम्‍मू-कश्‍मीर की राज्‍य सरकारों को अनुदान सहायता

खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग मध्‍यवर्ती भंडारण गोदामों के निर्माण के लिए पूर्वोत्‍तर राज्‍यों की राज्‍य सरकारों को योजना स्‍कीम के अंतर्गत अनुदान सहातया के रुप में भी निधियां जारी करता है।

दिनांक 1 अक्‍तूबर, 2014 की स्‍थिति के अनुसार जारी निधियों तथा क्षमता निर्माण की स्‍थिति का ब्‍यौरा नीचे दिया गया है:-

दिनांक 1 अक्‍तूबर, 2014 के अनुसार

क्र. सं. राज्‍य का नाम परियोजनाओं की संख्‍या निर्माण की जाने वाली कुल क्षमता (टन में) अनुमानित लागत(करोड़ रु0 में) पहले से जारी निधियां(करोड़ रु0 में) उपयोगिता प्रमाणपत्र प्राप्‍त(करोड़ रु0 में) निर्माण की गई क्षमता (टन में)
1 जम्‍मू और कश्‍मीर 1 6160 3.41 3.41 3.41 6160
2 असम 1 4000 3.52 3.43 1.69
3 मिजोरम 22 17500 14.94 13.30 11.30 8000
4 मेघालय 2 4500 2.07 1.74 1.74 4500
5 सिक्‍किम 1 375 1.15 1.15 0.60
6 त्रिपुरा 31 34000 28.11 17.60 16.94 12000
7 अरुणाचल प्रदेश 11 7680 7.60 6.49 4.71 2560
8 नगालैंड 06 3840 10.25 2.00
जोड़ 75 78055 71.05 49.12 40.39 33220

स्रोत: खाद्य व सार्वजनिक वितरण विभाग।

महात्मा गाँधी राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना
महात्मा गाँधी राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना

नरेगा के बारे में

  • राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून 25 अगस्‍त, 2005 को पारित हुआ। यह कानून हर वित्‍तीय वर्ष में इच्‍छुक ग्रामीण परिवार के किसी भी अकुशल वयस्‍क को अकुशल सार्वजनिक कार्य वैधानिक न्‍यूनतम भत्‍ते पर करने के लिए 100 दिनों की रोजगार की कानूनी गारंटी देता है। भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय राज्‍य सरकारों के साथ मिलकर इस योजना को क्रियान्‍वित कर रहा है।
  • यह कानून प्राथमिक तौर पर गरीबी रेखा से नीचे रह रहे अर्द्ध या अकुशल ग्रामीण लोगों की क्रय शक्ति को बढ़ाने के उद्देश्‍य के साथ शुरू किया गया। यह देश में अमीर और गरीब के बीच की दूरी को कम करने का प्रयास था। मोटे तौर पर कहें तो काम करने वाले लोगों में एक-तिहाई संख्‍या महिलाओं की होनी चाहिए।
  • ग्रामीण परिवारों के वयस्‍क सदस्‍य अपने नाम, आयु और पते के साथ फोटो ग्राम पंचायत के पास जमा करवाते हैं। ग्राम पंचायत परिवारों की जांच-पड़ताल करने के बाद एक जॉब कार्ड जारी करती है। जॉब कार्ड पर पंजीकृत वयस्‍क सदस्‍य की पूरी जानकारी उसकी फोटो के साथ होती है। पंजीकृत व्‍यक्ति काम के लिए लिखित में आवेदन पंचायत या कार्यक्रम अधिकारी के पास जमा करा सकता है (कम से कम 14 दिन तक लगातार काम के लिए)।
  • पंचायत/कार्यक्रम अधिकारी वैध आवेदन को स्‍वीकार करेगा और आवेदन की पावती तारीख समेत जारी करेगा। काम उपलब्‍ध कराने संबंधी पत्र आवेदक को भेज दिया जाएगा और पंचायत कार्यालय में प्रदर्शित होगा। इच्छुक व्यक्ति को रोजगार पांच किलोमीटर के दायरे के भीतर उपलब्‍ध कराया जाएगा और यदि यह पांच किलोमीटर के दायरे से बाहर होता है, तो उसके बदले में अतिरिक्‍त भत्‍ता दिया जाएगा।

क्रियान्‍वयन की स्थिति

  • वित्‍तीय वर्ष 2006-2007 के दौरान 200 जिलों और 2007-2008 के दौरान 130 जिलों में योजना की शुरुआत‍ हुई।
  • अप्रैल, 2008 में नरेगा का 34 राज्‍यों और केन्‍द्र शासित प्रदेशों के सभी 614 जिलों, 6096 ब्‍लॉकों और 2.65 लाख ग्राम पंचायतों में विस्‍तार किया गया।

महात्मा गाँधीराष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम पर सवाल-ज़वाब

अधिनियम के अधीन रोज़गार के लिए कौन आवेदन कर सकता है

ग्रामीण परिवारों के वे सभी व्यस्क सदस्य जिनके पास जॉब कार्ड है, वे आवेदन कर सकते हैं। यद्यपि वह व्यक्ति जो पहले से ही कहीं कार्य कर रहा है, वह भी इस अधिनियम के अंतर्गत अकुशल मज़दूर के रूप में रोजगार की माँग कर सकता है। इस कार्यक्रम में महिलाओं को वरीयता दी जाएगी और कार्यक्रम में एक-तिहाई लाभभोगी महिलाएँ होंगी।

क्या काम के लिए व्यक्तिगत आवेदन जमा किया जा सकता है ?

हाँ, रोजगार प्राप्तकर्त्ता का पंजीकरण परिवार-वार किया जाएगा। परन्तु पंजीकृत परिवार वर्ष में 100 दिन काम पाने के हकदार होंगे। साथ ही, परिवार के व्यक्तिगत सदस्य भी काम पाने के लिए आवेदन कर सकता है।

कोई व्यक्ति कार्य के लिए कैसे आवेदन कर सकता है ?

पंजीकृत व्यस्क, जिसके पास जॉब कार्ड है, एक सादे कागज़ पर आवेदन कर कार्य की माँग कर सकता है। आवेदन ग्राम पंचायत या कार्यक्रम अधिकारी (खंड स्तर पर) को संबोधित कर लिखा गया हो और उसमें आवेदन जमा करने की तिथि की माँग की जा सकती है।

एक व्यक्ति वर्ष में कितने दिन का रोज़गार पा सकता है ?

एक वित्तीय वर्ष में एक परिवार को 100 दिनों तक रोज़गार मिल सकेगा और इसे परिवार के वयस्क सदस्यों के बीच विभाजित किया जाएगा। कार्य की अवधि लगातार 14 दिन होगी लेकिन वह सप्ताह में 6 दिन से अधिक नहीं होगी।

व्यक्ति को रोज़गार की प्राप्ति कब होगी ?

आवेदन जमा करने के 15 दिनों के भीतर या कार्य की मांग के दिन से आवेदक को रोज़गार प्रदान किया जाएगा।

रोज़गार का आवंटन कौन करता है ?

ग्राम पंचायत या कार्यक्रम अधिकारी, जिसे भी प्राधिकृत किया गया हो, वह कार्य का आवंटन करेगा।

कोई व्यक्ति कैसे जान सकेगा कि किसे रोज़गार दिया गया है ?

आवेदन जमा करने के 15 दिनों के भीतर आवेदक को कार्य कब और कहाँ की जानकारी दी जाएगी जिसे ग्राम पंचायत/कार्यक्रम अधिकारी द्वारा पत्र के माध्यम से सूचित किया जाएगा। साथ ही, ग्राम पंचायत के सूचना बोर्ड तथा प्रखंड स्तर पर कार्यक्रम अधिकारी के कार्यालय में सूचना पट पर प्रकाशित की जाएगी जिसमें दिनांक, समय, स्थान की सूचना दी जाएगी।

रोज़गार प्राप्ति के तुरन्त बाद आवेदक को क्या करनी चाहिए ?

आवेदक को जॉब कार्ड के साथ निर्धारित तिथि पर कार्य के लिए उपस्थित होनी चाहिए।

यदि आवेदक कार्य पर रिपोर्ट नहीं करता तो क्या होगा ?

यदि कोई व्यक्ति ग्राम पंचायत या कार्यक्रम अधिकारी द्वारा सूचित किये गये समय से 15 दिनों के भीतर कार्यस्थल पर रिपोर्ट नहीं करता तो वह बेरोज़गारी भत्ते का हकदार नहीं होगा।

क्या ऐसा व्यक्ति कार्य हेतु पुनः आवेदन दे सकता है ?

हाँ।

उसका/उसकी मज़दूरी क्या होगी ?

उसे राज्य में कृषक मज़दूरों हेतु लागू न्यूनतम मज़दूरी प्राप्त होगी।

मज़दूरी का भुगतान किस प्रकार किया जाएगा दैनिक मज़दूरी या ठेका दर ?

अधिनियम के अंतर्गत दोनों ही लागू है। यदि मज़दूरों को ठेका के आधार पर भुगतान किया जाता है तो उसका निर्धारण इस प्रकार किया जाएगा किसी व्यक्ति को सात घंटे तक काम करने के बाद न्यूनतम मज़दूरी प्राप्त हो सके।

मज़दूरी का भुगतान कब किया जाएगा ?

मज़दूरी का भुगतान प्रति सप्ताह किया जाएगा या अन्य मामलों में काम के पूरा होने के 15 दिनों के भीतर। इस मज़दूरी का आँशिक भाग नगद रूप में प्रति दिन भुगतान किया जाएगा।

श्रमिकों को कार्यस्थल पर कौन सी सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएगी ?

श्रमिकों को स्वच्छ पेयजल, बच्चों के लिए शेड, विश्राम के लिए समय, प्राथमिक उपचार बॉक्स के साथ कार्य के दौरान घटित किसी आकस्मिक घटना का सामना करने के लिए अन्य सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएगी।

काम कहाँ दिये जाएंगे ?

आवेदक के निवास से पाँच किमी के भीतर काम उपलब्ध कराये जाएँगे। निवास स्थान से 5 किमी क्षेत्र की परिधि के बाहर काम प्रदान करने की स्थिति में संबंधित व्यक्ति को परिवहन व आजीविका मद में 10 प्रतिशत अतिरिक्त मजदूरी प्रदान की जाएगी। यदि किसी व्यक्ति को 5 किमी की दूरी से हटकर काम करने हेतु आदेश दिया जाता है तो अधिक उम्र के व्यक्ति एवं महिलाओं को उसके गाँव के नजदीक कार्य उपलब्ध कराने में प्राथमिकता दी जाएगी।

कामगारों के लिए क्या प्रावधान है ?

दुर्घटना की स्थिति में  यदि कोई कामगार कार्यस्थल पर कार्य के दौरान घायल होता है तो राज्य सरकार की ओर से वह निःशुल्क चिकित्सा सुविधा पाने का हकदार होगा।

घायल मज़दूर के अस्पताल में भर्ती करवाने पर – संबंधित राज्य सरकार द्वारा संपूर्ण चिकित्सा सुविधा, दवा, अस्पताल में निःशुल्क बेड उपलब्ध कराया जाएगा। साथ ही, घायल व्यक्ति प्रतिदिन कुल मजदूरी राशि का 50 प्रतिशत पाने का भी हकदार होगा

कार्यस्थल पर दुर्घटना के कारण पंजीकृत मजदूर की स्थायी विकलांगता या मृत्यृ हो जाने की स्थिति में  मृत्यृ या पूर्ण विकलाँगता की स्थिति में केन्द्र सरकार द्वारा अधिसूचित राशि या 25 हज़ार रुपये पीड़ित व्यक्ति के परिवार को दी जाएगी।

यदि योग्य व्यक्ति (आवेदनकर्त्ता) को रोज़गार नहीं प्रदान किया जाए तो क्या होगा ?

यदि योग्य आवेदक को माँग पर 15 दिनों के भीतर या फिर जिस दिन से उसे कार्य मिलना था अगर न मिल पाया तो आवेदक को आवेदन प्रस्तुत करने की तिथि से निर्धारित शर्तों और नियमों के अनुसार बेरोज़गारी भत्ता प्रदान किया जाएगा।

भत्ते की दर  पहले 30 दिनों के लिए बेरोज़गारी भत्ते की दर मज़दूरी दर का 25 प्रतिशत होगा और उसके बाद उस वित्तीय वर्ष में परिवार के रोजगार हक को देखते हुए मज़दूरी 50 प्रतिशत दर से दी जाएगी।

किस प्रकार का काम दिया जाएगा ?

स्थायी संपत्ति – योजना का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है कि स्थायी संपत्ति का सृज़न करना और ग्रामीण परिवारों के आज़ीविका साधन आधार को मज़बूत बनाना।

ठेकेदारों द्वारा कार्य निष्पादन की अनुमति नहीं

  1. जल संरक्षण और जल संग्रहण
  2. सूखा बचाव, वन रोपण और वृक्षारोपण
  3. सिंचाई नहरों के साथ सूक्ष्म एवं लघु सिंचाई कार्य।
  4. अनुसूचित जाति/जनजाति समुदाय की भूमि या भूमि सुधार के लाभभोगी की भूमि या भारत सरकार के इंदिरा आवास योजना के लाभभोगी परिवार के सदस्यों की भूमि के लिए सिंचाई की व्यवस्था।
  5. परंपरागत जल स्रोतों का पुनरुद्धार।
  6. भूमि विकास
  7. बाढ़ नियंत्रण तथा सुरक्षा एवं प्रभावित क्षेत्र में जल निकासी की व्यवस्था।
  8. बारहमासी सड़क की सुविधा। सड़क निर्माण में जहाँ कहीं भी आवश्यक हो वहाँ पर पुलिया का निर्माण करना।
  9. राज्य सरकार से परामर्श के बाद केन्द्र सरकार द्वारा अधिसूचित अन्य कोई कार्य।

कार्यक्रम कार्यकर्त्ता क्या करते हैंउसके लिए वे कैसे जवाबदेह है ?

कार्यक्रम कार्यकर्त्ता, निरंतर तथा समवर्ती मूल्यांकन और बाह्य एवं आंतरिक लेखा के माध्यम से अपने कार्य के प्रति ज़वाबदेह होंगे। सामाजिक लेखा परीक्षण की शक्ति ग्रामसभा में निहित होगी और ग्रामसभा द्वारा ग्राम स्तरीय निगरानी समिति का गठन किया जाएगा जो सभी कार्यों की देखरेख करेगा। अधिनियम के उल्लंघन की स्थिति में दोषी व्यक्ति को 1 हज़ार रुपये तक ज़ुर्माना हो सकेगा। इसके अलावे, प्रत्येक जिले में एक शिकायत निपटान तंत्र भी स्थापित की जाएगी।

एमएनआरईजीएस के तहत शामिल क्रियाकलाप

महत्मा गांधी नरेगा की अनुसूची—I के पैरा 1 में उल्लेख किए क्रियाकलाप इस प्रकार हैं:

  • जल संरक्षण तथा जल संभरण;
  • सूखे से बचाव (वन रोपण तथा वृक्षारोपण);
  • सींचाई नहर तथा माइक्रो तथा माइनर सींचाई कार्य;
  • सींचाई सुविधा, बागवानी वन रोपण तथा अनुसूचित जातियों तथा जन-जातियों या बीपीएल परिवारों अथवा भूमि विकास हेतु लाभार्थियों या भारत सरकार की इंदिरा आवास योजना के तहत अथवा कृषि ऋण माफी तथा ऋण राहत योजना 2008 के तहत आने वाले छोटे या सीमांत किसानों की भूमि का विकास करना।
  • पारंपरिक जलाशयों का नवीनीकरण तथा टंकियों का गादनाशन;
  • भूमि विकास;
  • भोजन नियंत्रण तथा सुरक्षा कार्य, जिनमें जल-जमाव वाले इलाकों में जल निकास के कार्य;
  • सभी मौसम में जुड़ाव के लिए ग्रामीण कनेक्टिविटी;
  • भारत निर्माण के तहत निर्माण कार्य, ग्रामीण ज्ञान संसाधन केंद्र के रूप में राजीव गांधी सेवा केंद्र, ग्राम पंचायत स्तर में ग्राम पंचायत भवन (11.11.2009 की तिथि पर दी गई अधिसूचना के अनुरूप) के कार्य;
  • कोई अन्य कार्य जो राज्य सरकार के परामर्श से केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित।

स्रोत :www.pib.nic.in

नरेगा के लिए टॉल फ्री सहायता सेवा

  • नई दिल्‍ली में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने नरेगा के अंतर्गत आने वाले परिवारों और अन्‍य के लिए एक राष्‍ट्रीय हेल्‍पलाइन सेवा शुरू की है जिससे ये लोग कानून के तहत अपने अधिकारों के संरक्षण और कानून के समुचित क्रियान्‍वयन व योजना संबंधी मदद ले सकें।
  • टॉल फ्री हेल्‍पलाइन नबंर है: 1800110707

ऑनलाइन जन शिकायत निपटारा प्रणाली

  • नरेगा की वेबसाइट पर ऑनलाइन जन शिकायत निपटारा प्रणाली के जरिए आप अपने क्षेत्र में नरेगा से सम्‍बन्धित मुद्दों पर शिकायत दर्ज कराने में लोगों की मदद कर सकते हैं।
  • अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए- http://nrega.nic.in/statepage.asp?check=pgrपर क्लिक करें, अपने राज्‍य का चुनाव करें और शिकायत दर्ज कराने के लिए निर्देशों का पालन करें।

न्यूनतम मजदूरी दर

केन्द्रीय स्तर पर श्रम की न्यूनतम दर 1 अक्टूबर 2010 को न्यूनतम श्रम अधिनियम 1948 के प्रावधानों के अंतर्गत पुनर्निर्धारित की गई। राज्य स्तर पर श्रम की न्यूनतम दरों का समय-समय पर उपयुक्त सरकारों द्वारा पुनर्निरीक्षण किया जाता है। कृषि क्षेत्रक सहित अनुसूचित रोजगारों के लिए निर्धारित न्यूनतम श्रम संगठित और गैर-संगठित क्षेत्रकों पर भी लागू होती है।
सभी अनुसूचित रोजगारों में और साथ ही केन्द्रीय और राज्य स्तर पर कृषि के अनुसूचित रोजगार में लगे हुए अप्रशिक्षित श्रमिकों के लिए श्रम की न्यूनतम दरों पर उपलब्ध नवीनतम जानकारी को दर्शाने वाला एक विवरण इस प्रकार है:

(रु. प्रतिदिन)
क्रम सं. राज्य / संघीय क्षेत्र का नाम सभी अनुसूचित रोजगारोंमें अप्रशिक्षित श्रमिक अप्रशिक्षित कृषि श्रमिक
1 2 3 4
A केन्द्रीय स्तर* 146.00-163.00 146.00 – 163.00
B राज्य स्तर    
1 आन्ध्रप्रदेश 69.00 112.00
2 अरुणाचल प्रदेश 134.62 134.62
3 असम 66.50 100.00
4 बिहार 109.12 114.00
5 छत्तीसगढ़ 100.00 100.00
6 गोआ 150.00 157.00
7 गुजरात 100.00 100.00
8 हरियाणा 167.23 167.23
9 हिमाचल प्रदेश 110.00 110.00
10 जम्मू और कश्मीर 110.00 110.00
11 झारखंड 111.00 111.00
12 कर्नाटक 72.94 133.80
13 केरल 100.00 150.00 (हल्के श्रम के लिए)
      200.00 (कठिन श्रम के लिए)
14 मध्यप्रदेश 110.00 110.00
15 महाराष्ट्र# 90.65 100.00 – 120.00
16 मणिपुर 81.40 81.40
17 मेघालय 100.00 100.00
18 मिजोरम 132.00 132.00
19 नागालैंड 80.00 80.00
20 उड़ीसा 90.00 90.00
21 पंजाब 127.25(भोजन सहित) 127.25 (भोजन सहित)
142.68 (बिना भोजन के) 142.68 (बिना भोजन के)
22 राजस्थान 81.00 100.00
23 सिक्किम 100.00
24 तमिलनाडु 87.60 100.00
25 त्रिपुरा 81.54 100.00
26 उत्तरप्रदेश 100.00 100.00
27 उत्तराखंड 91.98 113.68
28 प. बंगाल 96.00 96.00
29 अन्दमान और निकोबार द्वीपसमूह    
अन्दमान 156.00 156.00
निकोबार 167.00 167.00
30 चंडीगढ़ 170.44 170.44
31 दादरा और नगर हवेली 130.40 130.40
32 दमन और दीव 126.40
33 दिल्ली 203.00 203.00
34 लक्षद्वीप 147.40
35 पुदुचेरी    
पुदुचेरी/करैकल 100.00 100.00 (6 घंटे के लिए)
माहे 120.00 (8 घंटे में महिलाओं
द्वारा किए हल्के श्रम के लिए)
160.00 (पुरुषों द्वारा 8
घंटे में किए कठिन श्रम के लिए)
* विभिन्न क्षेत्रों के अंतर्गत।   # विभिन्न मंडलों के अंतर्गत।

अधिनियम को दो स्तरों पर लागू किया जाना है। केन्द्रीय स्तर पर मुख्य केन्द्रीय श्रम आयुक्त के निरीक्षण अधिकारियों द्वारा अधिनियम का प्रवर्तन सुनिश्चित किया जाता है। राज्य स्तर पर इसे राज्य प्रवर्तन तंत्र द्वारा सुनिश्चित किया जाता है। वे नियमित तौर पर निरीक्षण करते हैं और भुगतान नहीं किए जाने, अथवा न्यूनतम श्रम से कम भुगतान किए जाने की स्थिति में वे नियोक्ताओं को उचित भुगतान का निर्देश देते हैं। नियोक्ताओं द्वारा इसके निर्देश नहीं माने जाने पर दोषी नियोक्ताओं के विरुद्ध अधिनियम की धारा 22 के अनुसार दंडात्मक प्रक्रिया आरंभ की जाती है।

राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना संबंधी पूरी जानकारी करने के लिए यहाँ क्लिक करें।

कृषि क्लीनिक और कृषि व्यापार केंद्र योजना
कृषि क्लीनिक और कृषि व्यापार केंद्र योजना

योजना के बारे में

  • भारत सरकार के कृषि मंत्रालय ने राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) तथा मैनेज के सहयोग से यह योजना आरंभ की है, ताकि देश भर के किसानों तक कृषि के बेहतर तरीके पहुंचाये जा सकें। इस कार्यक्रम का उद्देश्य कृषि स्नातकों की बड़ी संख्या में उपलब्ध विशेषज्ञता का सदुपयोग है। आप नये स्नातक हैं या नहीं अथवा नियोजित हैं या नहीं, इस बात को ध्यान में रखे बिना आप अपना कृषि क्लीनिक या कृषि व्यापार केंद्र स्थापित कर सकते हैं और किसानों की बड़ी संख्या को पेशेवर प्रसार सेवाएं मुहैया करा सकते हैं।
  • इस कार्यक्रम के प्रति समर्पित रह कर सरकार अब कृषि और कृषि से संबंधित अन्य विषयों, जैसे बागवानी, रेशम उत्पादन, पशुपालन, वानिकी, गव्य पालन, मुर्गीपालन तथा मत्स्य पालन में स्नातकों को आरंभिक प्रशिक्षण भी दे रही है। प्रशिक्षण प्राप्त करनेवाले स्नातक उद्यम के लिए विशेष आरंभिक ऋण के लिए आवेदन भी कर सकते हैं।

उद्देश्य

सरकार की प्रसार प्रणाली के प्रयासों का पूरक बनना
जरूरतमंद किसानों को आपूर्ति और सेवाओं के पूरक स्रोत उपलब्ध कराना
कृषि स्नातकों को कृषि क्षेत्र में नये उभरते क्षेत्रों में लाभदायक नियोजन उपलब्ध कराना

परिकल्पना

कृषि क्लीनिक – कृषि क्लीनिक की परिकल्पना किसानों को खेती, फसलों के प्रकार, तकनीकी प्रसार, कीड़ों और बीमारियों से फसलों की सुरक्षा, बाजार की स्थिति, बाजार में फसलों की कीमत और पशुओं के स्वास्थ्य संबंधी विषयों पर विशेषज्ञ सेवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से की गयी है, जिससे फसलों या पशुओं की उत्पादकता बढ़ सके।

कृषि व्यापार केंद्र– कृषि व्यापार केंद्र की परिकल्पना आवश्यक सामग्री की आपूर्ति, किराये पर कृषि उपकरणों और अन्य सेवाओं की आपूर्ति के लिए की गयी है।
उद्यम को लाभदायक बनाने के लिए कृषि स्नातक कृषि क्लीनिक या कृषि व्यापार केंद्र के साथ खेती भी कर सकते हैं।

पात्रता

यह योजना कृषि स्नातकों या कृषि से संबंधित अन्य विषयों, जैसे बागवानी, रेशम उत्पादन, पशुपालन, वानिकी, गव्य पालन, मुर्गीपालन तथा मत्स्य पालन में स्नातकों के लिए खुली है।

परियोजना गतिविधियां

  • मृदा और जल गुणवत्ता सह इनपुट जांच प्रयोगशाला (आणविक संग्रहक स्पेक्ट्रो फोटोमीटर सहित)
  • कीटों पर नजर, उपचार और नियंत्रण सेवाएं
  • लघु सिंचाई प्रणाली (स्प्रिंलकर और ड्रिप समेत) के उपकरणों तथा अन्य कृषि उपकरणों के रख-रखाव, मरम्मत तथा किराये पर देना
  • ऊपर दी गई तीनों गतिविधियों (समूह गतिविधि) समेत कृषि सेवा केंद्र
  • बीज प्रसंस्करण इकाई
  • पौध टिश्यू कल्चर प्रयोगशाला और ठोसपरक इकाई के माध्यम से लघु प्रचालन
  • वर्मी कल्चर इकाइयों की स्थापना, जैव उर्वरकों, जैव कीटनाशकों तथा जैव नियंत्रक उपायों का उत्पादन
  • मधुमक्खी पालन और मधु तथा मक्खी के उत्पादों की प्रसंस्करण इकाई स्थापित करना
  • प्रसार परामर्शदातृ सेवाओं की व्यवस्था
  • मत्स्य पालन के लिए पालनगृहों और मत्स्य उत्पादन का निर्माण
  • मवेशियों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए पशु चिकित्सालयों का निर्माण और  फ्रोजेन सीमेन बैंक तथा द्रवीकृत नाइट्रोजन आपूर्ति की व्यवस्था
  • कृषि से संबंधित विभिन्न पोर्टलों तक पहुंच स्थापित करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में सूचना तकनीकी कियोस्क की स्थापना
  • चारा प्रसंस्करण और जांच इकाई
  • मूल्य वर्द्धन केंद्र
  • खेत स्तर से लेकर ऊपर तक शीतल चेन की स्थापना (समूह गतिविधि)
  • प्रसंस्करित कृषि उत्पादों के लिए खुदरा व्यापार केंद्र
  • कृषि की निवेश (इनपुट) और निर्गम (आउटपुट) के व्यापार के लिए ग्रामीण विपणन विक्रेता

उपरोक्त लाभप्रद गतिविधियों में से कोई दो या अधिक  के साथ स्नातकों द्वारा चयनित कोई अन्य लाभप्रद गतिविधि, जो बैंक को स्वीकार हो

परियोजना लागत और कवरेज

कोई भी कृषि स्नातक यह परियोजना निजी या संयुक्त अथवा समूह के आधार पर ले सकता है। व्यक्तिगत आधार पर ली गई परियोजना की अधिकतम सीमा 10 लाख रुपये है, जबकि सामूहिक आधार की परियोजना की अधिकतम सीमा 50 लाख है। समूह सामान्य तौर पर पांच का हो सकता है, जिसमें से एक  प्रबंधन का स्नातक हो अथवा  उसके पास व्यापार विकास तथा प्रबंधन का अनुभव हो।

सीमांत धन (डाउन पेमेंट) – भारतीय रिजर्व बैंक के नियमों के अनुरूप

10 हजार रुपये तक कोई मार्जिन नहीं
10 हजार रुपये से अधिक परियोजना लागत का 15 से 25 प्रतिशत

ब्याज दर
वित्त प्रदाता बैंकों द्वारा अंतिम लाभुक से वसूली जानेवाली ब्याज दर का विवरण नीचे दिया गया है-

अंतिम लाभुक तक ब्याज दर  
वाणिज्यिक बैंक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक सहकारी बैंक  
25 हजार रुपये तक बैंक द्वारा निर्धारित पर बैंक के पीएलआर का अधिकतम बैंक द्वारा निर्धारित एससीबी द्वारा निर्धारित, पर न्यूनतम 12 प्रतिशत
25 हजार से अधिक  व दो लाख तक वही वही वही
दो लाख से अधिक बैंक द्वारा निर्धारित वही वही

पुनर्भुगतान

ऋण की अवधि 5 से 10 साल के लिए गतिविधि पर आधारित होगी। पुनर्भुगतान अवधि में कृपा अवधि भी शामिल हो सकती है, जिसका फैसला वित्त प्रदाता बैंक अपनी नीतियों के अनुसार करेंगे और जिसकी अधिकतम अवधि दो साल होगी।

ऋण धारकों का चयन
ऋण धारकों और परियोजना स्थलों का चयन बैंकों द्वारा कृषि विश्वविद्यालयों या कृषि विज्ञान केंद्र या राज्य के कृषि विभाग से परामर्श कर उनके संचालन क्षेत्र में किया जा सकता है

ग्रामीण उद्योग समूहों के प्रचार कार्यक्रम
ग्रामीण उद्योग समूहों के प्रचार कार्यक्रम

खादी और ग्रामोद्योग के लिए ग्रामीण उद्योग सेवा केंद्र (आरआईएससी)

उद्देश्‍य

  • समूह में खादी और ग्रामोद्योग गतिविधियां उपलब्‍ध कराना
  • ग्रामीण समूहों को कच्‍चा माल समर्थन, कौशल उन्‍नयन, प्रशिक्षण, गुणवत्‍ता नियंत्रण, परीक्षण सुविधा, विपणन प्रचार, डिजाइन और उत्‍पाद विकास जैसी सेवाएं उपलब्‍ध कराना।

योजना

‘ग्रामीण उद्योग सेवा केन्‍द्र’ सामान्‍य सुविधा है जिसका उद्देश्‍य ढांचागत सहायता और स्‍थानीय इकाइयों को अपनी उत्‍पादन क्षमता, कौशल उन्‍नयन और बाजार प्रसार जैसी जरूरी सेवाएं उपलब्‍ध कराना है।

ग्रामीण उद्योग सेवा केन्‍द्र (आरआईएससी) को निम्‍नलिखित सेवाओं में से एक को कवर करना चाहिए-
(क) उत्‍पाद की गुणवत्‍ता सुनिश्चित करने के लिए स्‍थापित प्रयोगशा‍लाओं द्वारा परीक्षण सुविधा उपलब्‍ध कराना।
(ख) उत्‍पाद में मूल्‍य संवर्द्धन या उत्‍पादन क्षमता बढ़ाने के लिए सुविधा के तौर पर स्‍थानीय समूहों/कलाकारों द्वारा प्रयोग की जा सकने वाली सामान्‍य अच्‍छी मशीनरी/उपकरण उपलब्‍ध कराना
(ग) अपने उत्‍पादों के बेहतर विपणन के लिए स्‍थानीय समूहों/कलाकारों को आकर्षक और उपयुक्‍त पैकेजिंग सुविधा और मशीनरी उपलब्‍ध कराना।उपर्युक्‍त सुविधाओं के अलावा आरआईएससी निम्‍नलिखित सेवाएं भी प्रदान कराता है:

  1. आय को बढ़ाने के लिए कलाकारों के कौशल के उन्‍नयन के लिए प्रशिक्षण सुविधा उपलब्‍ध कराना।
  2. ग्रामीण विनिर्माण इकाइयों के मूल्‍य संवर्द्धन के लिए विशेषज्ञों/एजेंसियों के साथ सलाह-मशविरा कर नए डिजाइन या नए उत्‍पाद, उत्‍पाद में विविधता उपलब्‍ध कराना।
  3. मौसम पर निर्भर कच्‍चा माल उपलब्‍ध कराना।
  4. उत्‍पाद का कैटलॉग तैयार करना।

क्रियान्‍वयन एजेंसियां

  • केवीआईसी और राज्‍य स्‍तरीय केवीआईबी।
  • राष्‍ट्रीय स्‍तर/राज्‍य स्‍तर के खादी और ग्रामोद्योग संघ
  • केवीआईसी और केवीआईबी से मान्‍यता प्राप्‍त खादी और ग्रामोद्योग संस्‍थान
  • केवीआईसी की काली सूची को छोड़कर राज्‍य मंत्रालय/केन्‍द्रीय मंत्रालय, कपार्ट, नाबार्ड और संयुक्‍त राष्‍ट्र की एजेंसियों द्वारा वित्‍तीय सहायता प्राप्‍त कम से कम किन्‍हीं तीन परियोजनाओं में ग्रामीण दस्‍तकारों के विकास सम्‍ब‍न्‍धी कार्यक्रम के क्रियान्‍वयन में जो एनजीओ काम कर चुके हैं।

आरआईएससी के अंतर्गत आने वाले उद्योग

  • खादी और पॉली वस्‍त्र
  • हर्बल उत्‍पाद- कॉस्‍मैटिक्‍स और दवाइयां
  • खाद्य तेल
  • डिटर्जेंट और साबुन
  • शहद
  • हाथ से बना हुआ कागज
  • खाद्य प्रसंस्‍करण
  • जैव-उर्वरक/जैव-कीटनाशक/जैव खाद
  • मिट्टी के बर्तन
  • चमड़ा उद्योग
  • लकड़ी का काम
  • काली सूची में आने वाले उद्योगों को छोड़कर सभी ग्रामोद्योग

वित्‍तीय मॉडल

1. 25 लाख रुपये तक की गतिविधि के लिए

उत्‍तर पूर्वी राज्‍य अन्‍य क्षेत्र
(क) केवीआईसी की हिस्‍सेदारी 80% 75%
(ख) अपना योगदान 20% 25%

2. पांच लाख रुपये तक की गतिविधि के लिए

वित्‍तीय मॉडल उत्‍तर पूर्वी राज्‍य अन्‍य क्षेत्र
(क) केवीआईसी की हिस्‍सेदारी 90% 75%
(ख) अपना योगदान या बैंक /वित्‍तीय संस्‍थान से लोन 10% 25%

उत्‍तरी पूर्वी राज्‍यों के मामले में 5 लाख तक की परियोजना लागत के लिए परियोजना की 90 फीसदी लागत केवीआईसी द्वारा उपलब्‍ध करवाई जाएगी।

वित्‍तीय सहायता के नियम

1. 25 लाख रुपये तक की गतिविधि के लिए

1 कौशल उन्‍नयन और प्रशिक्षण और/या उत्‍पाद सूची (पहले ही कौशल उन्‍नयन प्रशिक्षण आदि उपलब्‍ध कराया जाएगा) परियोजना लागत का अधिकतम 5 फीसदी
2 क्रियान्‍वयन पूर्व और मंजूरी के बाद के खर्च परियोजना लागत का अधिकतम 5 फीसदी
3 निर्माण/ढांचा (क्रियान्‍वयन एजेंसी के पास अपनी भूमि होनी चाहिए, क्रियान्‍वयन एजेंसी के पास अपनी तैयार इमारत के मामले में परियोजना लागत का 15 फीसदी कम हो जाएगा) उपयुक्‍त प्राधिकरण द्वारा मूल्‍यांकन के अधीन। परियोजना लागत का अधिकतम 15 फीसदी
4 विनिर्माण और/या परीक्षण सुविधा के लिए संयंत्र और मशीनरी तथा पैकेजिंग (समझौते के मुताबिक पूर्ण पंजीकरण प्राप्‍त मशीनरी विनिर्माता/आपूर्तिकर्ता जिसके पास संस्‍थान/फेडरेशन से मान्‍यता प्राप्‍त बिक्री कर संख्‍या हो, उसे मशीनरी जारी की जानी चाहिए परियोजना लागत का अधिकतम 50 फीसदी 
5 कच्‍चा माल/नया डिजाइन, उत्‍पाद विविधीकरण आदि परियोजना लागत का अधिकतम 25 फीसदी

नोटः (परियोजना लागत में भूमि का मूल्‍य शामिल किया जाना चाहिए)

लाख रुपये तक की गतिविधि के लिए

नीचे दिए गए नियमों के मुता‍बिक वित्‍तीय सहायता होनी चाहिए-

निर्माण/ढांचा परियोजना लागत का अधिकतम 15 फीसदी
संयंत्र और विनिर्माण के लिए मशीनरी और/या परीक्षण सुविधा और पैकेजिंग परियोजना लागत का अधिकतम 50 फीसदी
कच्‍चा माल/नया डिजाइन, उत्‍पाद विविधीकरण, आदि परियोजना लागत का अधिकतम 25 फीसदी
कौशल उन्‍नयन और प्रशिक्षण और/या उत्‍पाद सूची परियोजना लागत का अधिकतम 10 फीसदी

नोटः हालांकि कग और घ में दी गई राशि को जरूरत के हिसाब से कम किया जा सकता है।

वित्‍तीय सहायता के लिए प्रक्रिया

(1) 25 लाख रुपये तक की गतिविधि के लिए राज्‍य/प्रखंड अधिकारियों की परिवीक्षा समिति

25 लाख रुपये तक के ग्रामीण उद्योग सेवा केन्‍द्र (आरआईएससी) की स्‍थापना और अनुदान के उद्देश्‍य के लिए राज्‍य/प्रखंड स्‍तरीय गठित की गई समिति द्वारा परियोजना प्रस्‍ताव की सिफारिश में निम्‍‍नलिखित शामिल होंगे।

(1) राज्‍य सरकार के सम्‍बन्धित निदेशक या उनके प्रतिनिधि लेकिन अतिरिक्‍त निदेशक के पद से नीचे के नहीं सदस्‍य
(2) सम्‍बन्धित राज्‍य केवीआई बोर्ड के सीईओ सदस्‍य
(3) राज्‍य/प्रखंड में बड़े बैंक के प्रतिनिधि सदस्‍य
(4) नाबार्ड के प्रतिनिधि सदस्‍य
(5) राज्‍य में अधिकतम कारोबार करने वाले केवीआई संस्‍थान के सचिव सदस्‍य
(6) एस एंड टी के प्रतिनिधि जो राज्‍य के करीब हों सदस्‍य
7) राज्‍य निदेशक, केवीआईसी सदस्‍य

शर्तें और संदर्भ:

  1. समिति संस्‍थान की क्रियान्‍वयन क्षमता का मूल्‍यांकन करेगी।
  2. समिति परियोजना की व्‍यावसायिक और तकनीकी संभावनाओं को जांचेगी।
  3. ग्रामीण उद्योग सेवा केन्‍द्र में कार्यक्रम के निष्‍पादन का नियंत्रण और मूल्‍यांकन।

तकनीकी संभाव्‍यता

परियोजना की संभाव्‍यता का केवीआईसी/इंजीनियरिंग कॉलेज/कृषि कॉलेज, विश्‍वविद्यालय/पॉलिटेक्निक के तकनीकी इंटरफेस द्वारा अध्‍ययन किया जा सकता है। इस अध्‍ययन की लागत क्रियान्‍वयन पूर्व खर्चों में जोड़ी जा सकती है अथवा इसके लिए किसी विशेषज्ञ को शामिल किया जा सकता है जिसके पास पर्याप्‍त तकनीकी ज्ञान हो।

अनुदान का तरीका

एक बार जब 25 लाख रुपये तक की परियोजना के राज्‍य स्‍तरीय मूल्‍यांकन समिति द्वारा मंजूर कर लिया जाता है, तो राज्‍य निदेशक द्वारा उसे मुख्‍यालय के सम्‍बन्धित कार्यक्रम निदेशक को अग्रसारित कर दिया जाता है जो मामले के मुताबिक उसे एसएफसी खादी या ग्रामोद्योग के समक्ष अंतिम मंजूरी के लिए रखेगा।

अनुदान का आवंटन

परियोजना के लिए मंजूर राशि को लाभार्थी संस्‍थान को तीन किस्‍तों में दिया जाएगा और ऐसे संस्‍थान को अपनी हिस्‍सेदारी को खर्च करने के बाद किया जाएगा।

1 संस्‍थान को कौशल उन्‍नयन और प्रशिक्षण और/या उत्‍पाद सूची के लिए संस्‍थान को अपनी तरफ से परियोजना के स्‍टाफ ऑपरेशन के लिए जरूरी प्रशिक्षण देना होगा जो उसके अपने खर्चों से होगा परियोजना लागत का अधिकतम 10 फीसदी 
2 क्रियान्‍वयन पूर्व और मंजूरी के बाद के खर्च।
परियोजना रिपोर्ट आदि की तैयारी, आपात स्थिति, परिवहन, विविध खर्चे में लगने वाली लागत को संस्‍थान खुद खर्च करता है।
परियोजना लागत का अधिकतम 5 फीसदी
3 निर्माण/ढांचा (क्रियान्‍वयन एजेंसी के पास अपनी भूमि होनी चाहिए, क्रियान्‍वयन एजेंसी के पास अपनी तैयार इमारत के मामले में परियोजना लागत का 15 फीसदी कम हो जाएगा) उपयुक्‍त प्राधिकरण द्वारा मूल्‍यांकन के अधीन। परियोजना लागत का अधिकतम 15 फीसदी 
4 विनिर्माण और/या परीक्षण सुविधा के लिए संयंत्र और मशीनरी तथा पैकेजिंग (समझौते के मुताबिक पूर्ण पंजीकरण प्राप्‍त मशीनरी विनिर्माता/आपूर्तिकर्ता जिसके पास संस्‍थान/संघ से मान्‍यता प्राप्‍त बिक्री कर संख्‍या हो, उसे मशीनरी जारी की जानी चाहिए परियोजना लागत का न्‍यूनतम 50 फीसदी 
5 कच्‍चा माल/नया डिजाइन, उत्‍पाद विविधीकरण आदि। परियोजना लागत का अधिकतम 25 फीसदी 

नोटः

  1. अपवाद मामलों में 1 और 4 के तहत दी गई हिस्‍सेदारी को बदला जा सकता है, जैसा कि राज्‍य/प्रखंड मंजूरी समिति के अधीन होगा।
  2. फील्‍ड अधिकारियों की संभावित रिपोर्ट के आधार पर पहली किस्‍त जारी की जाएगी और उसके बाद की किस्‍त सम्‍बन्धित राज्‍य/प्रखंड अधिकारी द्वारा पहली किस्‍त के प्रयोग के पर्यवेक्षण के आधार पर और राज्‍य/क्षेत्रीय निदेशक की पुष्टि द्वारा जारी की जाएगी।

क्रियान्‍वयन की औपचारिकताएं

  • ग्रामीण उद्योग सेवा केन्‍द्र स्‍थापित करने के उद्देश्‍य के लिए यह सुनिश्चित कर लिया जाना चाहिए कि लाभ प्राप्‍त दस्‍तकारों/ग्रामीण उद्योग इकाइयों की संख्‍या 125 दस्‍तकारों/25 आरईजीपी इकाइयों/ग्रामोद्योग संस्‍थानों/25 लाख रुपये तक की परियोजना के लिए सोसायटियों से कम नहीं होनी चाहिए
  • क्रियान्‍वयन एजेंसी/संस्‍थान के पास अपनी जमीन होनी चाहिए जहां ग्रामीण उद्योग सेवा केन्‍द्र स्‍थापित किया जाना है
  • परियोजना की स्‍थापना की अवधि छह महीने से अधिक नहीं होनी चाहिए
  • ग्रामीण उद्योग सेवा केन्‍द्र की स्‍थापना के लिए क्रियान्‍वयन एजेंसी प्रस्‍ताव के जमा करने के बाद ऊपर दिए गए दिशा-निर्देशों के मुताबिक तकनीकी संभाव्‍यता के साथ राज्‍य स्‍तरीय समिति के सामने अपनी सिफारिशों के साथ उनके प्रस्‍ताव को रखेगी।
  • राज्‍य/क्षेत्रीय निदेशक से समय-समय पर प्राप्‍त की गई कार्य रिपोर्ट की प्रगति और परियोजना की गतिविधि के आधार पर और खासकर परियोजना के समय के भीतर पूरा कर लिए जाने के आधार पर भी अनुदान जारी किए जाएंगे।
  • जिस राज्‍य में परियोजना स्थित है, उस राज्‍य के सम्‍बन्धित राज्‍य/क्षेत्रीय निदेशक परियोजना के समय पर पूरा होने और नियंत्रण और मूल्‍यांकन को सुनिश्चित करेगा।
  • परियोजना की स्‍थापना के लिए राज्‍य स्‍तरीय समिति द्वारा मंजूरी लेने के बाद राज्‍य/क्षेत्रीय निदेशक आयोग के केन्‍द्रीय कार्यालय में सम्‍बन्धित उद्योग कार्यक्रम निदेशकों को इसके बारे में बताएगा।

पर्यवेक्षण

  • आयोग का राज्‍य/क्षेत्रीय कार्यालय परियोजना के आरआईएससी के आधार के अनुसार चलने को सुनिश्चित करने के लिए समय-समय पर पर्यवेक्षण करेगा।
  • सम्‍बन्धित उद्योग/कार्यक्रम निदेशक परियोजना की स्‍था‍पना और उसके चालू होने पर एक बार पर्यवेक्षण करेगा।
  • वीआईसी महानिदेशालय परियोजना के शुरू होने के एक साल बाद शारीरिक जांच का प्रबंध करेगा।

पांच लाख रुपये तक की गतिविधि के लिए

पांच लाख रुपये तक के ग्रामीण उद्योग सेवा केन्‍द्र (आरआईएससी) की स्‍थापना और अनुदान के उद्देश्‍य के लिए राज्‍य/प्रखंड स्‍तरीय गठित की गई समिति द्वारा परियोजना प्रस्‍ताव की मंजूरी में निम्‍‍नलिखित शामिल होंगे।

(1) राज्‍य सरकार के सम्‍बन्धित निदेशक या उनके प्रतिनिधि लेकिन अतिरिक्‍त निदेशक के पद से नीचे के नहीं सदस्‍य
(2) सम्‍बन्धित राज्‍य केवीआई बोर्ड के सीईओ सदस्‍य
(3) राज्‍य/प्रखंड में बड़े बैंक के प्रतिनिधि सदस्‍य
(4) नाबार्ड के प्रतिनिधि सदस्‍य
(5) राज्‍य में अधिकतम कारोबार करने वाले केवीआई संस्‍थान के सचिव सदस्‍य
(6) एस एंड टी के प्रतिनिधि जो राज्‍य के करीब हों सदस्‍य
(7) राज्‍य निदेशक, केवीआईसी संयोजक

शर्तें और संदर्भ:

  1. समिति संस्‍थान की क्रियान्‍वयन क्षमता का मूल्‍यांकन करेगी।
  2. समिति परियोजना की व्‍यावसायिक संभाव्‍यता को जांचेगी।
  3. पांच लाख रुपये तक की परियोजना की मंजूरी।
  4. ग्रामीण उद्योग सेवा केन्‍द्र में

अनुदान का आवंटन

समिति द्वारा प्रस्‍ताव की मंजूरी के बाद राज्‍य/क्षेत्रीय निदेशकों द्वारा अनुदान दो किस्‍तों में जारी किया जाएगा। परियोजना के लिए पहली किस्‍त केवीआईसी की राशि का 50 फीसदी होगा। दूसरी और अंतिम किस्‍त केवीआईसी द्वारा राशि जारी किए जाने के बाद ही की जाएगी और संस्‍थान का 50 फीसदी शेयर इस्‍तेमाल किया जाएगा।

परिचालन और कार्यक्रम का क्रियान्‍वयन

  • पांच लाख रुपये तक की परियोजना के लिए ग्रामीण उद्योग सेवा केन्‍द्र की स्‍थापना के उद्देश्‍य के लिए दस्‍तकारों/ग्रामीण उद्योग इकाइयों की संख्‍या 25 दस्‍तकारों या 5 आरईजीपी इकाइयों/ग्रामीण उद्योग संस्‍थानों/सोसायटी से कम नहीं होनी चाहिए।
  • क्रियान्‍वय एजेंसी/संस्‍था के पास अपनी खुद की जमीन होनी चाहिए जहां ग्रामीण उद्योग सेवा केन्‍द्र को स्‍थापित किया जाएगा।
  • परियोजना की स्‍थापना की अवधि छह महीने से अधिक नहीं होनी चाहिए।
  • ग्रामीण उद्योग सेवा केन्‍द्र की स्‍थापना के लिए क्रियान्‍वयन एजेंसी द्वारा प्रस्‍ताव के जमा करने के बाद राज्‍य/क्षेत्रीय निदेशक तकनीकी संभाव्‍यता को देखेगा और राज्‍य स्‍तरीय समिति के सामने अपनी सिफारिशों के साथ उनके प्रस्‍ताव को रखेगा। तकनीकी संभाव्‍यता डीआईसी या राज्‍य कार्यालय या राज्‍य बोर्ड द्वारा की जा सकती है।
  • राज्‍य/क्षेत्रीय निदेशक से समय-समय पर प्राप्‍त की गई कार्य रिपोर्ट की प्रगति और परियोजना की गतिविधि के आधार पर और खासकर परियोजना के समय के भीतर पूरा कर लिए जाने के आधार पर भी अनुदान जारी किए जाएंगे।
  • जिस राज्‍य में परियोजना स्थित है, उस राज्‍य के सम्‍बन्धित राज्‍य/प्रखंड निदेशक परियोजना के समय पर पूरा होने और नियंत्रण और मूल्‍यांकन को सुनिश्चित करेगा।
  • परियोजना की स्‍थापना के लिए राज्‍य स्‍तरीय समिति द्वारा मंजूरी लेने के बाद राज्‍य/प्रखंड निदेशक आयोग के केन्‍द्रीय कार्यालय में सम्‍बन्धित उद्योग कार्यक्रम निदेशकों को इसके बारे में बताएगा।

कार्यक्रम कार्यान्‍वयन के चरण (5 लाख रुपये से 25 लाख तक)

  • समूहों को पहचानना
  • क्‍लस्‍टर डेवलपमेंट एजेंसी का चयन
  • एक विशेषज्ञ या एक विशेषज्ञता प्राप्‍त एजेंसी द्वारा तकनीकी संभाव्‍यता की जांच
  • परियोजना का सूत्रीकरण
  • परियोजना की स्‍वीकृति‍ और अनुदान की मंजूरी
  • पर्यवेक्षण और मूल्‍यांकन

प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (PMEGP)
प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (PMEGP)

प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) भारत सरकार का सब्सिडी युक्‍त कार्यक्रम है। यह दो योजनाओं- प्रधानमंत्री रोजगार योजना (पीएमआरवाई) और ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम को मिलाकर बनाया गया है। इस योजना का उद्घाटन 15 अगस्‍त, 2008 को किया गया।

उद्देश्‍य

  • नए स्‍वरोजगार उद्यम/परियोजनाएं/लघु उद्यम की स्‍थापना के जरिए देश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों दोनों में ही रोजगार के अवसर पैदा करना,
  • बड़े पैमाने पर अवसाद ग्रस्‍त पारम्‍परिक दस्‍तकारों/ग्रामीण और शहरी बेरोजगार युवाओं को साथ लाना और जितना संभव हो सके, उनके लिए उसी स्‍थान पर स्‍वरोजगार का अवसर उपलब्‍ध कराना,
  • देश में बड़े पैमाने पर पारम्‍परिक और संभावित दस्‍तकारों और ग्रामीण एवं शहरी बेरोजगार युवाओं को निरंतर और सतत रोजगार उपलब्‍ध कराना ताकि ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की तरफ जाने से रोका जा सके
  • दस्‍तकारों की रोजाना आमदनी क्षमता को बढ़ाना और ग्रामीण व शहरी रोजगार दर बढ़ाने में में योगदान देना।

वित्‍तीय सहायता की मात्रा और स्‍वरूप

पीएमईजीपी के तहत अनुदान के स्‍तर

पीएमईजीपी के तहत लाभार्थियों की श्रेणी लाभार्थियों का योगदान (परियोजना की लागत में) सब्सिडी की दर
(परियोजना की लागत के हिसाब से)
क्षेत्र (परियोजना/इकाई का स्‍थान) शहरी ग्रामीण
सामान्‍य श्रेणी 10% 15% 25%
विशेष (अनुसूचित  जाति/जनजाति/अन्‍य पिछड़ा वर्ग/अल्‍पसंख्‍यक/महिलाएं, पूर्व सैनिक, विकलांग, एनईआर, पहाड़ी और सीमावर्ती क्षेत्र आदि
समेत।
5% 25% 35%

नोट:

  • विनिर्माण क्षेत्र के तहत परियोजना/इकाई की अधिकतम स्वीपकार्य राशि 25 लाख रुपये है,
  • व्यिवसाय/सेवा क्षेत्र के तहत परियोजना/इकाई की अधिकतम स्वीाकार्य राशि 10 लाख रुपये है,
  • कुल परियोजना लागत की बची हुई राशि बैंक द्वारा लोन के जरिए उपलब्ध कराई जाएगी।

लाभार्थी की योग्‍यता के मानक

  • 18 वर्ष से अधिक का कोई भी व्‍यक्ति
  • पीएमईजीपी के तहत परियोजना की स्‍थापना में सहायता के लिए कोई भी राशि नहीं होगी,
  • विनिर्माण क्षेत्र में 10 लाख रुपये से अधिक लागत की परियोजना और व्‍यवसाय/सेवा क्षेत्र में 5 लाख रुपये से अधिक की परियोजना के लिए शैक्षणिक योग्‍यता के तौर पर लाभार्थी को आठवीं कक्षा उत्‍तीर्ण होना चाहिए,
  • पीएमईजीपी के अंतर्गत योजना के तहत सहायता केवल विशिष्‍ट नई स्‍वीकार्य परियोजना के लिए ही उपलब्‍ध है,
  • स्‍वयं सेवी समूह (बीपीएल समेत जिन्‍होंने अन्‍य किसी योजना के तहत लाभ न लिया हो) भी पीएमईजीपी के अंतर्गत सहायता के लिए योग्‍य हैं,
  • सोसायटी रजिस्‍ट्रेशन अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत संस्‍थान,
  • उत्‍पादक कोऑपरेटिव सोसायटी और
  • चैरिटेबल ट्रस्‍ट
  • मौजूदा इकाई (पीएम‍आरवाई, आरईजीपी के अंतर्गत या केन्‍द्र सरकार या राज्‍य सरकार की अन्‍य किसी योजना के अंतर्गत) और पहले से ही केन्‍द्र सरकार या राज्‍य सरकार की किसी सरकारी योजना के तहत सब्सिडी ले चुकीं इकाइयां इसके योग्‍य नहीं हैं।

अन्‍य योग्‍यताएं

  • लाभार्थी द्वारा जाति/समुदाय की एक प्रमाणित कॉपी या अन्‍य विशेष श्रेणी के मामले में सम्‍बन्धित प्राधिकरण द्वारा जारी किया गया दस्‍तावेज सब्सिडी पर दावे के साथ बैंक की सम्‍बन्धित शाखा को प्रस्‍तुत किया जाना जरूरी है,

  • जहां जरूरी हो, वहां संस्‍थान के बाई-लॉज की एक प्रमाणित कॉपी सब्सिडी पर दावे के लिए संलग्‍न करनी होगी,
  • योजना के अंतर्गत परियोजना लागत, वित्‍त के लिए पूंजी व्‍यय के बिना कार्यशील पूंजी परियोजना की एक साइकिल और पूंजी व्‍यय शामिल करेगी। 5 लाख रुपये से अधिक की परियोजना लागत जिन्‍हें कार्यशील पूंजी की आवश्‍यकता नहीं है, उन्हें क्षेत्रीय कार्यालय या बैंक शाखा के नियंत्रक से मंजूरी प्राप्त करना जरूरी है और दावे के लिए मामले के अनुसार नियंत्रक या क्षेत्रीय कार्यालय से स्‍वीकृत प्रति जमा करनी होगी,
  • परियोजना लागत में भूमि के मूल्‍य को नहीं जोड़ा जाना चाहिए। परियोजना लागत में तैयार भवन या दीर्घकालीन पट्टे या किराये की वर्कशेड/वर्कशॉप की लागत शामिल की जा सकती है। इसमें शर्त यह होगी कि यह लागत बने-बनाये और लंबी अवधि के पट्टे या किराये की वर्कशेड/वर्कशॉप के लिए लागू होगा जो अधिकतम तीन वर्ष के लिए होगा,
  • पीएमईजीपी ग्रामीण उद्योग की काली सूची को छोड़कर सभी ग्रामीण उद्योग परियोजनाओं समेत नए संभावित लघु उद्यम पर लागू है। मौजूदा/पुरानी इकाइयां योग्‍य नहीं हैं।

नोट:

  • संस्‍थान/उत्‍पादक कोऑपरेटिव सोसायटी/ट्रस्‍ट जो कि खासकर अनुसूचित जाति/ जन‍जाति/ अन्‍य पिछड़ा वर्ग/महिलाएं/विकलांग/पूर्व सैनिक और अल्‍पसंख्‍यक संस्‍थानों के तौर पर पंजीकृत हैं, विशेष श्रेणी के लिए सब्सिडी के लिए आवश्‍यक प्रावधानों के साथ बाई-लॉज में योग्‍य हैं। हालांकि संस्‍थानों/उत्‍पादक कोऑपरेटिव सोसाय‍टी/ट्रस्‍ट जो विशेष श्रेणी से सम्‍बन्धित नहीं हैं, सामान्‍य श्रेणी के लिए सब्सिडी के लिए योग्‍य नहीं होंगे।
  • पीएमईजीपी के अंतर्गत परियोजना की स्‍थापना के लिए वित्‍तीय सहायता प्राप्‍त करने के लिए एक परिवार से केवल एक व्‍यक्ति ही योग्‍य होगा। परिवार में वह और उसकी पत्‍नी शामिल होंगे।

क्रियान्‍वयन अभिकरण

योजना, राष्‍ट्रीय स्‍तर पर एकल केंद्रीय अभिकरण, खादी और ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम, 1956 द्वारा बनाई गई एक स्‍वायत्‍त संस्‍था खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी), मुम्‍बई द्वारा क्रियान्वित की जाएगी। राज्‍य स्‍तर पर योजना केवीआईसी के राज्‍य निदेशालयों, राज्‍य खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड (केवीआईबी) और ग्रामीण क्षेत्रों में जिला उद्योग केन्‍द्रों के जरिए क्रियान्वित की जाएगी। शहरी क्षेत्रों में योजना केवल राज्‍य जिला उद्योग केन्‍द्रों (डीआईसी) द्वारा ही क्रियान्वित की जाएगी।

पीएमईजीपी के अंतर्गत प्रस्‍तावित अनुमानित लक्ष्‍य

चार वर्षों (2008-09 से 2011-12) के दौरान पीएमईजीपी के अंतर्गत प्रस्‍तावित निम्‍न अनुमानित लक्ष्‍य हैं-

वर्ष रोजगार (संख्‍या में) मार्जिन राशि (सब्सिडी) (करोड़ में)
2008- 2009 616667 740.00
2009- 2010 740000 888.00
2010- 2011 962000 1154.40
2011- 2012 1418833 1702.60
योग 3737500 4485.00

नोट:

  • 250 करोड़ रुपये की अतिरिक्‍त राशि का प्रावधान पिछले और आगे के कामों के लिए किया गया है,
  • केवीआईसी और राजकीय डीआईसी के बीच इन लक्ष्‍यों को 60 और 40 के अनुपात में वितरित किया जाएगा जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में लघु उद्यमों पर विशेष जोर दिया जा सकेगा। मार्जिन राशि भी इसी अनुपात में आवंटित की जाएगी। डीआईसी यह सुनिश्चित करेगा कि कम से कम आधी राशि का उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में किया जाए,
  • क्रियान्‍वयन एजेंसियों को राज्‍यवार सालाना लक्ष्‍यों की प्राप्ति के लिए आवंटन किया जाएगा।

गतिविधियों की काली सूची

लघु उद्यम/परियोजना/इकाई के लिए पीएमईजीपी के अंतर्गत निम्‍न गतिविधियां स्‍वीकृत नहीं होंगी।

(क) मांस से सम्‍बन्धित कोई भी उद्योग/व्‍यवसाय जिसमें प्रसंस्‍करण, डिब्‍बाबंद और/या भोजन के रूप में परोसे जाने वाले व्‍यंजन, सृजन/विनिर्माण या बीड़ी/पान/सिगार/सिगरेट आदि जैसे नशे के पदार्थ की बिक्री, कोई होटल या ढाबा या शराब परोसने की दुकान, कच्‍ची सामग्री के तौर पर तंबाकू की तैयारी/सृजन, ताड़ी की बिक्री,
(ख) फसल उगाने/पौधारोपण जैसे चाय, कॉफी रबर आदि, रेशम की खेती, बागबानी, फूलों की खेती, पशुपालन जैसे सुअर पालन, मुर्गीपालन, कटाई मशीन आदि से सम्‍बन्धित कोई भी उद्योग/व्‍यवसाय,
(ग) 20 माइक्रॉन की मोटाई से कम के पॉलीथिन के लाने ले जाने वाले थैलों का विनिर्माण या संग्रहण के लिए, लाने ले जाने के लिए, आपूर्ति या खाने के सामान की पैकिंग के लिए या अन्‍य कोई भी सामान जो पर्यावरण प्रदूषण का कारण बने, जैसे रिसाइकिल की हुई प्‍लास्टिक से बने कंटेनर,
(घ) पश्‍मीना ऊन के प्रसंस्‍करण जैसे उद्योग और हथकरघा और बुनाई वाले अन्‍य उत्‍पाद,  जिसका प्रमाणन नियमों के तहत खादी कार्यक्रम के अंतर्गत फायदा उठाया जा सकता है और बिक्री में रियायत प्राप्‍त की जा सकती है।

(च) ग्रामीण परिवहन (अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में ऑटो रिक्‍शा, जम्‍मू-कश्‍मीर में हाउस बोट, शिकारा और पर्यटक बोट और साइकिल रिक्‍शा छोड़कर)।

पीएमईजीपी योजना पर अक्‍सर पूछे जाने वाले प्रश्‍न

प्रश्‍न: पीएमईजीपी के तहत अधिकतम परियोजना लागत क्‍या है ?

उत्‍तर: मैन्‍युफैक्‍चरिंग इकाई के लिए 25 लाख रुपये और सेवा इकाई के लिए 10 लाख रुपये।

प्रश्‍न: क्‍या भूमि का मूल्‍य भी परियोजना लागत में शामिल है ?

उत्‍तर:नहीं।

प्रश्‍न: कितना पैसा (सरकारी सब्सिडी) स्‍वीकार्य है ?

उत्‍तर:

पीएमईजीपी के तहत लाभार्थियों की श्रेणी

सब्सिडी का मूल्‍य (मार्जिन राशि)
(परियोजना लागत की)
क्षेत्र (परियोजना/इकाई का स्‍थान) शहरी ग्रामीण
सामान्‍य श्रेणी 15% 25%
विशेष (अनुसूचित जाति/जनजाति/अन्‍य पिछड़ा वर्ग/अल्‍पसंख्‍यक/महिलाएं, पूर्व सैनिक, विकलांग, एनईआर, पहाड़ी और सीमावर्ती क्षेत्र आदि। 25% 35%

प्रश्‍न: परियोजना लागत के घटक क्‍या हैं ?

उत्‍तर- पूंजी व्‍यय ऋण, कार्यकारी पूंजी का एक चक्र और सामान्‍य श्रेणी के मामले में अपने हिस्‍से के तौर पर परियोजना लागत का 10 प्रतिशत और कमजोर वर्ग के मामले में परियोजना लागत का 5 प्रतिशत।

प्रश्‍न: लाभार्थी कौन हैं ?

उत्‍तर: उद्यमी, संस्‍थान, सहकारी संस्‍थाएं, स्‍वयंसेवी समूह, ट्रस्‍ट।

प्रश्‍न: कौन सी वित्‍तीय एजेंसियां हैं ?

उत्‍तर: सार्वजनिक क्षेत्र के 27 बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी), सम्‍बन्धित राज्‍य कार्य बल समिति से स्‍वीकृत सहकारी और निजी सूचीबद्ध व्‍यावसायिक बैंक।

प्रश्‍न: पूंजी व्‍यय ऋण/नकद सीमा कैसे प्रयोग में लाई जाएगी ?

उत्‍तर: कार्यशील पूंजी को कम से कम एक बार एमएम की लॉक-इन अवधि के तीन वर्ष के भीतर नकद उधार की 100 प्रतिशत सीमा को छूना चाहिए और औसतन स्‍वीकृत की गई सीमा का 75 प्रतिशथ से कम का इस्‍तेमाल नहीं होना चाहिए।

प्रश्‍न: लाभार्थी को अपना आवेदन पत्र कहां जमा करना होगा ?

उत्‍तर: लाभार्थी अपना आवेदन नजदीकी केवीआईसी/केवीआईबी/डीआईसी अधिकारी के पास या किसी भी बैंक (जो कम से कम 2-3 हफ्ते का ईडीपी प्रशिक्षण ले चुका हो्) के पास जमा करवा सकते हैं। केवीआईसी/केवीआईबी/डीआईसी के कार्यालयों के पते www.pmegp.in पर उपलब्‍ध हैं।

प्रश्‍न: ग्रामोद्योग क्‍या हैं ?

उत्‍तर: ग्रामीण क्षेत्र में किसी भी ग्रामीण उद्योग (काली सूची में दिए गए को छोड़कर) जो किसी भी सामान का उत्‍पादन करता हो या फिर बिजली के प्रयोग और उसके बिना कोई सेवा देता और जिसमें मैदानी इलाकों में पूर्णकालिक दस्‍तकार या कार्यकर्ता के लिए अचल पूंजी निवेश एक लाख रुपये से अधिक न हो और पहाड़ी क्षेत्रों में डेढ़ लाख रुपये से अधिक।

प्रश्‍न: ग्रामीण क्षेत्र क्‍या होता है ?

उत्‍तर: जनसंख्‍या का कोई भी क्षेत्र जो राज्‍य के राजस्‍व रिकॉर्ड के मुताबिक गांव के तौर पर शामिल हो। इसमें वे क्षेत्र भी शामिल होते हैं जो कस्‍बे के तौर पर होते हैं, लेकिन जिनकी जनसंख्‍या 20 हजार से अधिक नहीं होती।

प्रश्‍न: आयु सीमा क्‍या है ?

उत्‍तर: 18 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी वयस्‍क आरईजीपी के तहत वित्‍त के लिए योग्‍य है।

प्रश्‍न: परियोजना की प्रमुख कसौटी क्‍या है ?

उत्‍तर: ग्रामीण क्षेत्र की (ग्रामीण क्षेत्र की परियोजना के लिए) प्रति व्‍यक्ति निवेश, अपना योगदान, काली सूची और इकाई के नए होने की कसौटी को पूरा करना चाहिए ।

प्रश्‍न: क्‍या ईडीपी प्रशिक्षण अनिवार्य है ?

उत्‍तर: लाभार्थी के लिए बैंक लोन की पहली किस्‍त के आने से पहले 2-3 हफ्ते का ईडीपी  प्रशिक्षण पूरा करना अनिवार्य है।

प्रश्‍न: क्‍या सुरक्षा की गारंटी आवश्‍यक है ?

उत्‍तर: भारतीय रिजर्व बैंक के दिशानिर्देशों के मुताबिक पीएमईजीपी लोन के तहत 5 लाख रुपये तक की  परियोजना लागत सुरक्षा गारंटी से मुक्‍त है। सीजीटीएसएमई 5 लाख रुपये तक और पीएमईजीपी योजना के तहत 25 लाख रुपये तक की परियोजना के लिए सुरक्षा गारंटी देते हैं।

प्रश्‍न: परियोजना की तैयारी के लिए लाभार्थी के लिए क्‍या हेल्‍पलाइन है ?

उत्‍तर: परियोजना रिपोर्ट की तैयारी में उद्यमियों की सहायता के लिए केवीआईसी ने 73 आरआईसीएस इकाइयां खोली हैं। संबंधित पता- www.pmegp.in या www.kvic.org.in पर देखी जा सकती है।

प्रश्‍न: क्‍या कोई उद्यमी एक से अधिक परियोजना जमा कर सकता है ?

उत्‍तर: पीएमईजीपी के तहत लाभाथियों को बड़ी संख्‍या में लाभ देने के लिए एक परिवार द्वारा  एक इकाई स्‍थापित की जा सकती है।

प्रश्‍न: परिवार की परिभाषा क्‍या है ?

उत्‍तर:पति और प‍त्‍नी।

प्रश्‍न: क्‍या शहरी क्षेत्र में इकाई स्‍थापित की जा सकती है ?

उत्‍तर: हां,लेकिन डीआईसी के जरिए।

प्रश्‍न: क्‍या मौजूदा इकाई पीएमईजीपी के तहत अनुदान को ले सकती है ?

उत्‍तर: नहीं, केवल नई इकाई ही।

प्रश्‍न: क्‍या केवीआईसी के साथ मॉडल परियोजनाएं उपलब्‍ध हैं ?

उत्‍तर: हां, उद्योगवार मॉडल परियोजनाएं www.pmegp.in पर उपलब्‍ध है।

प्रश्‍न: ईडीपी का प्रशिक्षण लेने के लिए प्रशिक्षण केन्‍द्र कहां हैं ?

उत्‍तर: हमारी वेबसाइट  www.pmegp.in पर ईडीपी प्रशिक्षण केन्‍द्रों की सूची उपलब्‍ध है।

प्रश्‍न: सरकारी सब्सिडी के लिए लॉक-इन अवधि क्‍या है ?

उत्‍तर: तीन वर्ष।

प्रश्‍न: क्‍या दो विभिन्‍न स्रोतों से संयुक्‍त रूप से वित्‍त लिया जा सकता है (बैंक/वित्‍तीय संस्‍थान) ?

उत्‍तर: नहीं, इसकी अनुमति नहीं है।

प्रश्‍न: आवेदक को स्वयं कितना योगदान करना होगा ?

उत्‍तर :

पीएमईजीपी के तहत लाभार्थियों की श्रेणी

लाभार्थी का योगदान
(परियोजना लागत की)
सामान्‍य श्रेणी 10%
विशेष (अनुसूचित जाति/जनजाति/अन्‍य पिछड़ा वर्ग/अल्‍पसंख्‍यक/महिलाएं, पूर्व सैनिक, विकलांग, एनईआर, पहाड़ी और सीमावर्ती क्षेत्र आदि 05%

योजना संबंधी पूर्ण जानकारी

स्रोत: www.kvic.org.in

समुद्री शैवालों की कृषि हेतु दिशा-निर्देश
समुद्री शैवालों की कृषि हेतु दिशा-निर्देश

परिचय

मारीकल्चर में समुद्री शैवालों की कृषि एक विविधीकरण क्रिया-कलाप के रुप में, भारतीय समुद्रतट के साथ-साथ असाधारण संभावना रखती है। समुद्री शैवालों में विटामिनों और खनिजों की प्रचुर मात्रा होती है और उन्हें विश्व के विभिन्न भागों में भोजन के रुप में उपभोग किया जाता है और फाइटो कैमिकलों अर्थात् कुकुरमुत्ता, आयरलैंड के दलदल में पैदा होने वाले एक प्रकार के खाने योग्य पौधे और शैवालों के उत्पादन के लिये प्रयोग किया जाता है जो खाद्य, मिष्ठान्न-गृह, भेषज विज्ञान, दुग्धशाला, वस्त्र उद्योग, कागज उद्योग, रंग-रोगन, इत्यादि के अनेक उद्योगों में ठोस चिपचिपे घोल बनाने, स्थिर बनाने और जमाने के कारकों के रूप में विस्तृत रुप में प्रयोग किये जाते हैं।

भारतवर्ष में, समुद्री शैवालों का कुकुरमुत्ता, शैवालों और द्रव समुद्री खादों (एल.एस.एफ.) के उत्पादन के लिये कच्चे मालों के रुप में प्रयोग किया जाता है। इस समय तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और गुजरात समुद्रतटीय राज्यों में विभिन्न स्थानों पर स्थित कुकुरमुत्ता के 20 उद्योग, आयरलैंड के दलदल में पैदा होने वाले एक प्रकार के खाने योग्य पौधों के 10 उद्योग और एल.एस.एफ. के कुछ उद्योग हैं। लाल शैवाल गेलिडियेल्ला एकोरोसा, ग्लेसिलारिया एडुलिस, जी.क्रास्सा, जी.फोलीफेरा और जी.वेरुकोसा कुकुरमुत्ता के निर्माण के लिये और भूरे शैवाल सारगैस्सम एस.पी.पी., टर्बिनारिया एस.पी.पी. और क्रिस्टोसेरा ट्रिनोडिस शैवालों और द्रव समुद्री शैवालों की खाद के उत्पादन के लिये प्रयोग किये जाते हैं। संदोहन किये गये समुद्री शैवालों की मात्रा भारतीय समुद्री शैवाल के उद्योगों के कच्चे माल की जरुरतों को पूरा करने के लिये अपर्याप्त है।

समुद्री शैवालों जैसे ग्लेसिलारिया एडुलिस, हाइपीनिया मस्कीफोरस, कप्पाफाईकस अल्वारेजी, एन्टेरोमोरफा फ्लेक्सुझोसा और एकंथोफोरा स्पिसिफेरा की वानस्पतिक प्रजनन पद्धति द्वारा लम्बी पंक्ति वाली रस्सियों और जालों में सफलतापूर्वक कृषि की जा सकती है। यह क्रिया-कलाप लगभग 2,00,000 परिवारों को आय और रोजगार प्रदान करने की संभावना रखता है।

सहायता के घटक

एन.एफ.डी.बी., समुद्री शैवालों की कृषि का समर्थन करने के लिये निम्नलिखित घटकों के लिये सहायता प्रदान करेगा।

  • प्रशिक्षण और प्रदर्शन
  • समुद्री शैवालों के प्रसंस्करण करने की इकाईयों की स्थापना

2.1 प्रशिक्षण और प्रदर्शन

2.1.1 पात्रता का मापदंड

प्रशिक्षण / प्रदर्शन कार्यक्रमों का संचालन करने के लिये अभिकरणों के चयन के लिये निम्नलिखित मापदंड लागू किये जायेंगे:

  • समुद्रतटीय जल-कृषि की पृष्ठभूमि के साथ मात्स्यिकी के संस्थान । राज्य के मात्स्यिकी के विभाग / मात्स्यिकी के महाविद्यालय / एन.जी.ओ. / स्व.स.स..
  • परम्परागत मछुआरों / मछुआरों के लिये अग्रपंक्ति के प्रदर्शन का आयोजन करने के लिये पर्याप्त जनशक्ति और विशेषज्ञता की उपलब्धता

प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिये किसानों / उद्यमियों का चयन करने के लिये निम्नलिखित मापदंड लागू होगा:

  • समुद्री शैवालों की कृषि करने में किसान का पिछला अनुभव
  • वैज्ञानिक आधारों पर समुद्री शैवालों की कृषि करने में किसान की उत्सुकता
  • कृषि के विद्यमान अभ्यासों का उच्चीकरण करने की उत्सुकता होनी चाहिए।

2.1.2 सहायता का प्रकार

एन.एफ.डी.बी. की सहायता, प्रशिक्षण और प्रदर्शन का आयोजन करने के लिये होगी, जैसा कि अनुलग्नक-1 और फार्म में नीचे विस्तार में दिया गया है:

(1) कृषक को सहायता : कृषक रु.125/दिन के दैनिक भत्ते के लिये पात्र होगा और आने-जाने की यात्रा (रेल/बस/ऑटो रिक्शा) की प्रतिपूर्ति वास्तविक खर्चे, वशर्ते रु. 500 अधिकतम के अधीन होगी।

(2) संसाधन वाले व्यक्ति को मानदेय : कार्यक्रम का आयोजन करने के लिये, कार्यान्वयन करने वाला अभिकरण प्रति प्रशिक्षण कार्यक्रम के अनुसार संसाधन वाले एक व्यक्ति की सेवाएं ले सकता है। संसाधन वाले व्यक्ति को रु. 1250 का मानदेय दिया जा सकता है और आने-जाने की यात्रा (रेल/बस/ऑटो रिक्शा) के व्यय वास्तविक के अनुसार, वशर्ते अधिकतम रु.1000/- की प्रतिपूर्ति की जायेगी।

(3) कार्यान्वयन करने वाले अभिकरणों को सहायता : कार्यान्वयन करने वाला अभिकरण, प्रशिक्षण का आयोजन करने के लिये रु. 75/प्रशिक्षणार्थी/दिवस अधिकतम 10 दिनों की अवधि के लिये प्राप्त करने के लिये पात्र होगा। इस लागत में प्रशिक्षणार्थी की पहचान और लामबंदी और पाठ्यक्रम सामग्री / प्रशिक्षण की किटों इत्यादि के खर्चे शामिल होंगे।

(4) प्रशिक्षण / प्रदर्शन-स्थल(लों) का विकास :

(क) सरकारी अभिकरण/एन.जी.ओ./अन्य अभिकरण, एक नियमित आधार पर प्रशिक्षण / प्रदर्शन-कार्यक्रमों का आयोजन करने के लिये प्रदर्शन-स्थल के विकास के लिये रु. एक लाख मात्र (रु. 100000/-) की एकबारगी अनुदान प्राप्त करने के पात्र होंगे। सरकारी अभिकरण/एन.जी.ओ./अन्य अभिकरण उसी प्रशिक्षण स्थल के लिये उसी उद्देश्य के वास्ते एन.एफ.डी.बी. से या किसी अन्य वित्तपोषण करने वाले अभिकरण से पाँच (5) वर्ष की अवधि के लिये किसी उत्तरवर्ती अनुदान के लिये पात्र नहीं होंगे।

(ख) यदि सरकारी अभिकरणों/एन.जी.ओ./अन्य अभिकरणों के पास उसकी अपनी वह सुविधा प्राप्त नहीं होती है जिसे प्रशिक्षण / प्रदर्शनों के लिये प्रयोग किया जा सके तो वह प्रशिक्षण / प्रदर्शन करने के लिये एक निजी अभिकरण की नियुक्ति करने के लिये पात्र होगी और पट्टे की धनराशि और प्रशिक्षण । प्रदर्शन करने के लिये रुपये पचास हजार (रु. 50,000/-) का एकबारगी अनुदान उपलब्ध होगा। यह पट्टा न्यूनतम पाँच (5) वर्षों की अवधि के लिये होगा।

(ग) उपरोक्त (क) और (ख) के अभाव में, सरकारी अभिकरण/एन.जी.ओ./अन्य अभिकरण एक निजी फर्म की सुविधाओं की नियुक्ति कर सकते हैं जिसके लिये रु.5,000/- की धनराशि प्रति प्रशिक्षण कार्यक्रम की दर से सुविधा उपलब्ध कराने के शुल्क के रुप में, उपलब्ध कराई जायेगी।

उपरोक्त के अतिरिक्त सरकारी अभिकरण / एन.जी.ओ. । अन्य अभिकरण निम्नलिखित शर्तों का पालन करेगी।

  • सरकारी अभिकरणों/एन.जी.ओ./अन्य अभिकरणों द्वारा विकसित की गई सुविधाएं, एन.एफ.डी.बी. के कार्यक्रमों के अन्तर्गत मत्स्य-कृषकों के प्रशिक्षण के लिये, कार्यान्वयन करने वाले अभिकरणों के लिये भी उपलब्ध होंगीं।
  • कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण द्वारा विकसित की गई प्रशिक्षण / प्रदर्शन की सुविधाएं, प्रशिक्षण स्थल से 25 कि.मी. से अधिक की दूरी पर नहीं होंगीं। किन्तु, ऐसी सुविधा यदि 25 कि.मी. के अंदर विकसित नहीं की जा सकती है तो पूर्ण न्यायसंगत तर्क दिये जायेंगे।
  • एन.एफ.डी.बी. किसी अन्य प्रशिक्षण / प्रदर्शन स्थल को, इसका अनुकूलतम उपयोग सुनिश्चित करने के लिये विकसित किये गये एक से अधिक का वित्तपोषण नहीं करेगी। प्रशिक्षण के प्रत्येक बैच में 25 प्रशिक्षणार्थी होंगे और किसी भी स्थिति में 30 प्रशिक्षणार्थी प्रति बैच से अधिक नहीं होंगे।
  • सभी राज्यों संघ-शासित क्षेत्रों की सरकारों को मूल रुप से अधिकतम प्रति जिला एक (1) प्रशिक्षण / प्रदर्शन स्थल की स्थापना करने के लिये सहायता दी जायेगी। अतिरिक्त स्थल । स्थलों की संस्वीकृति, पहले ही संस्वीकृत किये गये स्थल / स्थलों के कार्य-निष्पादन और अनुकूलतम उपयोग के आधार पर ही की जायेगी / जायेंगीं। अतिरिक्त स्थलों की स्थापना, जल- कृषि के क्रिया-कलाप करने के लिये प्रशिक्षित किये गये किसानों की संख्या, सम्मिलित किये गये क्षेत्रफल और प्रशिक्षित किसानों द्वारा उपभोग किये गये संस्थागत वित्त से भी जोड़ी जायेगी।
  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के अधीन मात्स्यिकी के संस्थानों और राज्य कृषि विश्वविद्यालय के अधीन मात्स्यिकी के महाविद्यालयों को शामिल करते हुए सभी अन्य कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण अपनी निजी सुविधाओं का उपभोग करेंगे जिसके लिये पाँच हजार रुपये मात्र (रु. 5000/-) की एकमुश्त धनराशि प्रति प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान की जायेगी। किन्तु, यदि ऐसे अभिकरणों के पास अपनी निजी सुविधा उपलब्ध नहीं है, तो वे राज्य सरकार द्वारा विकसित सुविधा का उपयोग करेंगे या एक निजी कृषक की सुविधा की नियुक्ति करेंगे, जिसके लिये प्रति प्रशिक्षण कार्यक्रम रुपये पाँच हजार (रु. 5000/-) प्रदान किये जायेंगे।
  • राज्य सरकार कम से कम 25 प्रशिक्षणार्थियों / उद्यमियों के एक बैच को भी प्रतिवर्ष प्रशिक्षित करेगी जिन्हें केवल हैचरियों की स्थापना करने और परिचालन करने में, विशेष रुप से पंख वाली मछलियों के संबंध में, प्रशिक्षित किया जायेगा।
  • कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण प्रत्येक प्रशिक्षणार्थी का रेखाचित्र सुस्थापित करेंगे और प्रत्येक प्रशिक्षित कृषक द्वारा कृषि किये गये क्षेत्रफल, किये गये पूँजी-निवेशों, सृजित किये गये रोजगार और उत्पादन तथा उत्पादकता में वृधि पर सूचना प्रदान करेंगे। उपरोक्त पर समेकित सूचना पाँच वर्षों तक की अवधि के लिये तिमाही अंतरालों पर एन.एफ.डी.बी. को उपलब्ध कराई जाती रहेगी।
  • कार्यांवयन करने वाला अभिकरण मत्स्य-कृषकों को संस्थागत वित्त सुलभ कराने के लिये भी उत्तरदायी होगा।
  • प्रशिक्षण और प्रदर्शन के लिये निधियाँ जारी करने से पहले कार्यान्वयन करने वाला अभिकरण और एन.एफ.डी.बी. एक समझौता ज्ञापन करेंगे। मार्ग-निर्देशों में निर्धारित शर्ते साथ-साथ एम.ओ.यू. का एक भाग होंगीं।

2.2 समुद्री शैवालों के प्रसंस्करण करने वाले संयंत्रों की स्थापना

आयरलैंड के दलदल में पैदा होने वाले एक प्रकार के खाने योग्य पौधे जैसे विशिष्ट रुप से उच्च मूल्य के उत्पाद के समुद्री शैवालों के प्रसंस्करण करने की विशिष्टीकृत प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, 20% की पूँजी-लागतों तक साम्या के रुप में एन.एफ.डी.बी. की सहायता के लिये विशिष्ट प्रस्तावों पर विचार किया जायेगा।

प्रस्तावों का प्रस्तुतीकरण

कार्यान्वयन करने वाले अभिकरणों द्वारा सभी प्रस्ताव निधियों के अनुमोदन और जारी किये जाने के लिये एन.एफ.डी.बी. को प्रस्तुत किये जायेंगे। कार्यान्वयन करने वाले अभिकरणों तथा किसानों के द्वारा दिये गये विस्तृत-विवरणों में एकरुपता सुनिश्चित करने के लिये, प्रार्थना-पत्र, निम्नलिखित प्रारुपों में प्रस्तुत किये जायेंगे।

फार्म-एस.डब्ल्यू.सी.-I : प्रशिक्षण और प्रदर्शन

फार्म-एस.डब्ल्यू.सी.-II : समुद्री शैवालों के प्रसंस्करण करने वाले संयंत्रों की स्थापना

प्रशिक्षण और प्रदर्शन के लिये आवेदन-पत्र कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण द्वारा भरे जायेंगे और निधियों के जारी किये जाने के लिये एन.एफ.डी.बी. को प्रस्तुत किये जायेंगे।

निधियों का जारी किया जाना

एन.एफ.डी.बी. द्वारा प्रस्ताव के अनुमोदन किये जाने पर, प्रशिक्षण और प्रदर्शन के लिये अनुदान, एक, एकल किश्त में जारी किया जायेगा।

उपभोग प्रमाण-पत्र का प्रस्तुतीकरण

कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण, बोर्ड द्वारा उनको जारी की गई निधियों के संबंध में उपभोग प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करेंगे। ऐसे प्रमाण-पत्र अद्ध-वार्षिक आधार पर अर्थात् प्रति वर्ष जुलाई और जनवरी की अवधि में फार्म – एस.डब्ल्यू.सी-III में प्रस्तुत किये जायेंगे। उपभोग प्रमाण-पत्र इस बीच में भी प्रस्तुत किये जा सकते हैं यदि वे क्रिया-कलाप जिनके लिये निधियाँ पूर्व में जारी की गई थीं, वे पूरे हो चुके हैं। और सहायता की दूसरी खुराक किसान के द्वारा शेष कार्य पूरे करने के लिये अपेक्षित है।

अनुश्रवण और मूल्यांकन

एन.एफ.डी.बी. के वित्तपोषण के अन्तर्गत कार्यान्वित किये गये क्रिया-कलापों की प्रगति का आवधिक आधार पर अनुश्रवण और मूल्यांकन करने के लिये एन.एफ.डी.बी. के मुख्य कार्यालयों में एक समर्पित अनुश्रवण और मूल्यांकन करने वाला कक्ष (एम.एंड ई.) सुस्थापित किया जायेगा। विषय-वस्तु, और वित्त तथा वित्तीय संगठनों के प्रतिनिधियों से मिलकर बनी हुई एक परियोजना अनुश्रवण समिति भौतिक, वित्तीय और उत्पादन के लक्ष्यों से सम्बन्धित उपलब्धियों को शामिल करते हुए क्रिया-कलापों की प्रगति की आवधिक रुप से पुनरीक्षा करने के लिये बनाई जा सकती है।

स्त्रोत: पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय

सजावटी मछलियों को भारत में आयात करने से संबंधित दिशानिर्देश
सजावटी मछलियों को भारत में आयात करने से संबंधित दिशानिर्देश

प्रस्तावना

सजावटी मछलियों का वैश्विक व्यापार जिसमें उसके उपसाधन तथा मछली आहार भी शामिल है, 8 प्रतिशत के वार्षिक विकास के साथ 15 बिलियन अमरीकी डालर से अधिक होने का अनुमान है। 145 देशों द्वारा वार्षिक लगभग 500 मिलियन मछलियों का व्यापार किया जाता है, जिसमें से 80-85 प्रतिशत उष्णकटिबंधी प्रजातियाँ हैं। भारत में सजावटी मछलियों का घरेलू बाजार भी काफी आशाजनक है। वर्तमान में गुणवत्तापूर्ण उष्णकटिबंधी मछली की मांग आपूर्ति से कही अधिक है। भारत में सजावटी मछलियों का घरेलू बाजार 20 करोड़ रुपए तक होने का अनुमान है और घरेलू बाजार 20 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ रहा है। देश में उच्च मूल्य वाली देशी सजावटी मछलियां पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने से भारत में सजावटी मछली उद्योग के विकास में बहुत योगदान मिला है। तथापि, अपने रंग, आकार, दिखावट आदि की विविधता है। कारण विदेशी मछलियों की भी बहुत मांग है। ऐसा अनुमान है कि भारत में 300 से ज्यादा विदेशी प्रजातियां पहले से ही सजावटी मछली व्यापार में मौजूद हैं। और अभी भी विदेशी मछलियों की बाजार में बहुत मांग है।

विदेशी जलीय प्रजातियों को शामिल करने से आनुवंशिक संदूषण, रोगों का आना तथा पारिस्थिति के संपर्क जैसे कुछ प्रभाव होंगे, जिससे मूल जर्मप्लाजम को खतरा हो सकता है। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू टी ओ) करार के अंतर्गत व्यापार उन्मुक्तीकरण के कारण भारत को अपने आपको तैयार करना है और ज्यादा प्रजातियों को शामिल करने से जुड़े संभावी परिस्थितिकी तथा रोग खतरे को कम करना है। बहुत से मामलों में विदेशी बीमारियों के प्रकोप विदेशी मछलियों के नए क्षेत्रों में आने से हुए हैं। उदाहरण के तौर पर कोई हर्षीस वाइरस रोग तथा एपिजूटिक अल्सरेटिव सिंड्रोम आने वाले वर्षों में सजावटी मछली तथा अन्य उत्पादों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में आशातित वृद्धि से मूल प्रमाणिजाति पर नकारात्मक प्रभाव के बढ़ने की संभावना है। इस संदर्भ में यह अत्यन्त आवश्यक है कि विदेशी जनीय सजावटी जन्तुओं के शामिल करने के लिये दिशानिर्देश और विनियमन बनाया जाये ताकि इस प्रकार इंट्रोडकशन का प्रभाव नियंत्रण तथा प्रबंध किया जा सके।

पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग (डीएएचडीएफ), कृषि मंत्रालय ने राष्ट्रीय मत्स्य आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (एनबीएफजीआर), केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (सीआईएमएफआरआई) तथा केंद्रीय खारा जल जलकृषि संस्थान (सीआईबीए) के साथ परामर्श करके ये दिशानिर्देश तैयार किए हैं।

परिभाषाएं

दुर्घटनावश पलायन का अर्थ है, आयातकों/शैकिया पालकों द्वारा अनजाने में जलीय जन्तुओं का प्राकृतिक जल निकाय में पलायन कर जाना।

जलीय जन्तु का अर्थ है जल कृषि प्रतिष्ठानों से उदभूत अथवा मानव उपभोग के लिए प्रकृतिक वास से पृथक कर के खेती प्रयोजनों के लिए, जलीय वातावरण में जारी करने के लिए मछली, मोलस्क और क्रसटेशियन के (अंडे और युग्मक सहित) जीवन चक्र की सभी अवस्थाएं।

जैव खतरे का अर्थ है किसी जीव, या किसी जीव से उत्पन्न पदार्थ जो प्राणी / मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा उत्पन्न करता हो। इनमे प्राणी / मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले चिकित्सा अपशिष्ट, सूक्ष्मजीव, वायरस या विषैले पदार्थ (जीब वज्ञानिक स्रोत से) भी शामिल है।

जैव सुरक्षा सामान्य शब्दों में अर्थ है, मानव तथा प्राणी (जलीय सहित), पयद जीव तथा स्वाथ्य के लिए प्रासंगिक जोखिम और पर्यावरण से जुड़े जोखिम के विश्लेषण और प्रबंधन के लिए एक रणनीतिक और एकीकृत अभिगम है। (एफएओ, 2007)

प्रमाणन अधिकारी का अर्थ है जलीय जन्तु के लिए स्वास्थ्य प्रमाण पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए सक्षम प्राधिकारी द्वारा अधिकृत व्यक्ति।

प्रेषित माल (शिपमेंट) का अर्थ है जलीय जन्तु आयात स्वास्थ्य मानक, अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रमाण पत्र अथवा एक स्वास्थ्य प्रमाणपत्र और / अथवा आयात / निर्यात करने के लिए परमिट में वर्णित जीवित जलीय जन्तु का एक समूह।

सक्षम प्राधिकारी का अर्थ है जलीय जन्तु स्वास्थ्य के लिए उत्तरदायी प्राधिकरण जो पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन विभाग, कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा अधिसूचित किया गया हो।

निर्यातक देश का अर्थ है एक देश जहां से जलीय जन्तु अथवा जलीय जन्तु उत्पादों, जैविकीय उत्पादों अथवा रोगात्मतक पदार्थों को दूसरे देश में गंतव्यत स्थान पर भेजा जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का अर्थ है आयात, निर्यात अथवा जलीय जन्तु का पारगमन, जलीय पशु उत्पाद, जैविकीय उत्पाद और रोगात्मक उत्पाद।

आयात परमिट का अर्थ है जलीय जीव आयात करने के लिए सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी अपेक्षित लाईसेंस।

आयातक का अर्थ है देश के बाहर से जलीय जीव/ एक्वेरियम सामानों को आयात करने वाला व्यक्ति / कंपनी।

तीव्र गति से प्रसार वाली प्रजातियां का अर्थ है गैर-देशी प्रजातियां (अर्थात् पादप अथवा जीव) जो निवास स्थानों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती हैं जहां वे आर्थिक, पर्यावरणीय अथवा पारिस्थितकीय रूप से हमला करती हैं।

ओआईई-अधिसूचित रोग का अर्थ है रोग जो जलीय आचार संहिता के अध्याय 1.2.3 में संदर्भित हैं। (समानार्थी ओआईई द्वारा अधिसूचित रोग)

सजावटी मछली सामान्य शब्दों में अर्थ है जलीय जन्तु जो की एक्वेरियम में रखता है, जिसमें मछलियों, अकशेरुकी जैसे कोरल, क्रसटेशियन (जैसे केकड़ों, हर्मिट केकड़े, झींगा), मौलस्क (जैसे घोंघे, क्लेम, स्काल्लप) और जीवित रॉक शामिल हैं।

पूर्व-संगरोध प्रमाणपत्र का अर्थ है प्रेषित माल जलीय जन्तुओं के स्वास्थ्य अवस्थो को प्रमाणित करता निर्यातक देश के सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी स्वास्थ्य प्रमाणपत्र ।

संगरोध का अर्थ है जलीय जन्तुओं के एक समूह को अलग रखना जिसमें अन्य जलीय जन्तुओं से कोई भी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष संपर्क न हो, ताकि एक निर्धारित समय सीमा के लिए उन्हें निगरानी में रखा जा सके और यदि उपयुक्त हो तो अपगामी जलों के उपयुक्त उपचार सहित परीक्षण और उपचार भी किया जा सके।

अंतर्राष्ट्रीय जलीय जंतु स्वास्थ्य प्रमाणपत्र का अर्थ है, निर्यात करने वाले देश के सक्षम प्राधिकरण के कार्मिक सदस्य द्वारा जारी प्रमाणपत्र जिसमें जलीय जन्तु के स्वास्थ्य की स्थिति को प्रमाणित किया गया हो तथा साथ में यह घोषणा भी हो कि ओआईई जलीय मैन्युअल में निर्धारित प्रक्रियाओं के अनुसार यह जन्तु आधिकारिक स्वास्थ्य निगरानी के अधीन वाले स्रोत से उत्पन्न हुआ है।

संगरोध अधिकारी का अर्थ है जीवित जलीय जंतुओ के आयात और निर्यात से संबंधित सक्षम प्राधिकरण की स्वास्थ्य अपेक्षाओं के अनुसार निरीक्षण और अनुपालन प्रमाणित करने के उद्देश्य से सक्षम प्राधिरण द्वारा प्राधिकृत तकनीकी रूप से सक्षम व्यक्ति।

संगरोध अवधि का अर्थ है संगरोध की न्यूनतम अवधि, जैसाकि विशिष्ट रूप से जलीय जन्तु आयात स्वास्थ्य मानक अथवा अन्य कानूनी रूप से बाध्य दस्तावेज में निर्धारित हो (उदाहरण के तौर पर राष्ट्रीय अथवा राज्य विनियम)।

जोखिम विश्लेषण का अर्थ जोखिम की पहचान, जोखिम के आकलन, जोखिम प्रबंधन तथा जोखिम संसूचना वाली संपूर्ण प्रक्रिया।

शिपमैंट का अर्थ है जलीय जन्तुओं अथवा उत्पादों का समूह जोकि गंतव्य रस्थान तक ले जया जाना हो।

निगरानी का अर्थ है नियंत्रण प्रायोजनों के लिए रोग प्रकट होने की पहचान करने के लिए जलीय जन्तुओं की एक निश्चित आबादी की सिलसिलेवार तरीके से जांच जिसमें किसी आबादी के नमूनों की जांच भी शामिल हो सकती है।

अति संवेदनशील प्रजातियों का अर्थ है जलीय जन्तुओं की ऐसी प्रजाति, जिसमें संक्रमण प्राकृतिक मामलों अथवा उन रोग एजेंटों जो के समक्ष द्वारा दर्शाया गया है प्रयोगात्मक अनावरण जो संक्रमण के लिए प्राकृतिक रास्तों की नकल करते हैं। जलीय मैन्युअल के प्रत्येक रोग संबंधी अध्याय में अभी तक जानी जाने वाली अति संवेदनशील प्रजातियों की सूची है।

पूर्वापेक्षितताएं

3.1 यदि मछली की प्रजाति निम्न में से किसी वगै के अंतर्गत आती है तो सजावटी मछली प्रजाति के आयात की अनुमति नहीं दी जाएगीः

क) खतरनाक घोषित किए गए जलीय जीव क्योंकिः

  • वे मनुष्यों को हानि पहुंचा करते है (उनमें जहरीले कांटे/जहरीला मांस/ विषाक्त पदार्थ/विशेष बचाव तंत्र हैं)।
  • उनमें मनुष्यों और जंतु पर आक्रमण करके उन्हें जख्मी करने की संभावना है।
  • उन्हें रोगजनक के वेक्टर अथवा संवाहक के रूप में जाना जाता है।

ख) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सम्मेलन के तहत संकटापन्न प्रजातियां (सीआईटीईएस) अथवा अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की संकटाधीन सूची में अथवा जो निर्यातक देश की संकटाधीन सूची के रूप में दर्ज प्रजातियां। तथापि, यदि संकटापन्न मछली का स्रोत पालन है और निर्यातक देश का सक्षम प्राधिकारी इसे प्रमाणित करता है, तब इसे अनुमति दी जा सकती है।

ग) राष्ट्रीय कानून अथवा अंतर्राष्ट्रीय संधियों/सम्मेलनों के कारण आयात पर लागू अन्य प्रतिबंध के तहत प्रजातियां

घ) भारत अथवा भारत के समान पर्यावरणीय स्थितियां रखने वाले अन्य देशों पर हानिकारक प्रभाव डालने वाली उचित दस्तावेज युक्त तेजी से फैलने वाली प्रजातियां।

यदि किसी प्रजाति के लिए पहली बार अनुरोध किया गया है तो, आयात के पश्चात् अनुमति के लिए आवेदन को परिष्कृत करते समय क्षमतावान फैलने वाली प्रजातियों पर मानक प्रोटोकॉल के रूप में सक्षम एजेंसी द्वारा जाखिम मूल्यांकन किया जाएगा।

पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग (डीएएचडीएफ), कृषि मंत्रालय, भारत सरकार से वैध अनुमति के बिना सजावटी मछली के आयात की अनुमति नहीं दी जाएगी।

केवल वह विदेशी सजावटी मछली प्रजातियां जो अनुमति सूची में दर्ज है, की अनुमति दी जाएगी।

(अनुबंध- I में दी गई है)

आवेदन का तरीका

4.1. विदेशी सजावटी मछली का आयात करने के इच्छुक उद्यमी अनुबंध-I दिये गये निर्धारित प्रारूप में आवेदन करेंगे।

4.2. विदेशी सजावटी मछली प्रजातियों के आयात के लिए अनुमति मांगने वाले आवदेन पत्र के साथ विभिन्न आकारों के नमूनों के रंगीन फोटो (एक किशोर अवस्था का और दूसरा वयस्क अवस्था का) होने चाहिए और उन प्रजातियों का वैज्ञानिक नाम भी दिया जाना चाहिए। फोटो उन प्रजातियों का नमूना होना चाहिए जहां से आयात प्रस्तावित है और प्रकाशित अथवा अन्य स्रोतों से नहीं होना चाहिए। इनके बिना अनुमति के लिए आवेदन पत्र को खारिज कर दिया जाएगा।

4.3. विभिन्न फेनोटाइप लक्षण रखने वाली प्रजातियों के नर और मादा के मामले में, दोनों लिंगों के फोटो शामिल होना चाहिए।

4.4. जारी आयात की अनुमति:

  • जारी करने की दिनांक से 1 वर्ष के लिए वैध होगी।
  • हस्तांतरित नहीं हो सकेगी।
  • उसमें कोई संशोधन जारी किया नहीं जायेगा।
  • जारीकर्ता प्राधिकारी को अनुमति की समाप्ति से पूर्व पर्याप्त स्पष्टीकरण के साथ वैधता के पुनः वैधीकरण का अनुरोध करने पर, जारीकर्ता प्राधिकारी एक बार अनुमति के पुनरूवैधीकरण, तीन महीनों तक विचार कर सकेंगे।

मछली के आयात की अनुमति केवल निर्दिष्ट बंदरगाहों/हवाई अड्डों के जरिये होगी। ( अनुबंध-III में दी गई है)

पैकेजिंग और ढुलाई

6.1 पैकेजिंग ऐसी होगी कि प्रवेश बिंदु पर संगरोध अधिकारी द्वारा प्रेषित माल का आसानी से निरीक्षण किया जा सके।

6.2 आयात की जाने वाली सजावटी मछली को लीकरोधी थैलों में पैक किया जाये, प्रत्येक थैले में एक ही प्रजाति होनी चाहिए तथा इनका घनत्व मानक स्टॉकिंग घनत्व से अधिक नहीं होना चाहिए। थैला पारदर्शी होना चाहिए ताकि जलीय जन्तु का उपयुक्त निरीक्षण और पहचान हो सके तथा उसमें कोई भी बाहरी पदार्थ, गैर अनुमोदित पौधा सामग्री, कीट अथवा अप्राधिकृत प्रजाति न हो।

6.3 प्रत्येक थैले को पॉलीस्टीरीन बॉक्सों अथवा कार्टनों में एक भीतरी लाइनिंग के साथ रखा जाना चाहिए। प्रत्येक बॉक्स अथवा कार्टन की स्पष्ट पहचान के लिये लेवल होनी चाहिए। उन पर मछली प्रजाति का नाम और संख्या तथा प्रत्येक बॉक्स/कार्टन की पहचान संख्या उल्लिखित होनी चाहिए। यदि ढुलाई के दौरान कोई सीडेटिवध्चेतना शून्य करने वाली औषधि का प्रयोग किया गया है तो पैकेजिंग सूची पर उसका स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए।

6.4 साथ के दस्तावेजः प्रेषित माल के साथ संगत दस्तावेज होने चाहिए, जिनमें प्रजातियों के मामले के इतिहास से संबंधी कागजात तथा फोटो, आयात परमिट की प्रति संगरोध प्रमाणपत्र की प्रति तथा निर्यातक देश के परिवहन प्राधिकरण द्वारा जारी अन्य दस्तावेज शामिल हैं।

6.5 आयातक को प्रेषित माल की जल्द से जल्द निकासी और उसे गंतव्य तक पहुंचाने के सभी यथोचित प्रयास करने चाहिए।

6.6 नावंतरणः नावंतरण के मामले में प्रेषित माल को नावंतरण क्षेत्र के जीवाणु रहित क्षेत्र में रखना चाहिए।

संगरोधा

7.1 देश में आयात की जाने वाली सजावटी मछली के प्रत्येक प्रजाति को सक्षम प्राधिकारी द्वारा मान्यता प्राप्त संगरोध सुविधा में संगरोध प्रक्रिया से गुजराना होगा।

7.2 आयातित सजावटी मछली के साथ कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आयात परमिट और साथ-साथ निर्यातक देश के सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी संगरोध-पूर्व प्रमाणपत्र होगा जिसमें यह कहा गया हो कि यह फार्म जहाँ से प्रेषित माल निर्यात किया जा रहा है उनके राष्ट्रीय जलीय जंतु स्वास्थ्य निगरानी के अंतर्गत आता है अथवा फार्म और निर्यातक देश की ओ.आई.ई तथा एन.ए.सी.ए सूचीबद्ध रोगों की स्थिति दर्शाने वाला एक संगरोधक–पूर्ण प्रमाण पत्र होगा। (अनुबंध-IV)।

7.3 प्रेषित माल के यहां आने पर उसके साथ आए संगरोध-पूर्व प्रमाणपत्रों को सत्यापित किया जाएगा तथा संगरोध सुविधा में आयातित प्रजातियों को पुनः जांचा जाएगा और निर्धारित प्राधिकारी द्वारा संगरोध प्रमाणपत्र जारी किया जाएगा।

7.4 प्रवेश बिंदु से अनुमति मिलने के पश्चात् प्रेषित माल को तत्काल परमिट पत्र (प्रारूप अनुबंध-V में दिया गया है।) में दर्शायी गए मान्यता प्राप्त संगरोध सुविधा में स्थानांतरित कर दिया जाएगा।

7.5 संगरोध सुविधा पर माल की प्राप्ति पर, प्रजातिया विशेष प्रजातियों के लिए निर्धारित संगरोध प्रोटोकाल के अधीन होंगी।

7.6 आयातित मछलिया अनुमोदित संगरोध स्थान में निम्नानुसार संगरोध में रहेगी।

क) गोल्ड फिश -21 दिन

ख) अन्य सजावटी मछलियां 15 दिन

7.7 संगरोध संतोषपूर्वक पूर्ण होने के पश्चात, माल को संगरोध प्रमाणपत्र के साथ आयातक को जारी कर दिया जायेगा।

7.8 आयातित बूडस्टॉक की घरेलू अथवा अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रत्यक्ष बिक्री की अनुमति नहीं होगी, केवल एफ-1 और एफ-2 संतति घरेलू अथवा अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिए जारी की जाएगी।

उल्लंघन पर दंड

8.1. आयातक जैव सुरक्षा, जैव खतरों तथा देश के आर्थिक हितों को ध्यान में रखेगा। प्राकृतिक जल में छोड़ी गई आयातक मछली के कारण कोई जैवसुरक्षा तथा अन्य उत्पन्न होने वाले संबंधित खतरों के लिए। आयातक/आयातक संगठन/समान मांगने वाले की संपूर्ण जिम्मेदारी होगी और भारत सरकार के प्रासंगिक नियमों के अनुपालन के अनुसार कार्यवाही होगी।

8.2 यदि किसी मामले में, माल संगरोध में सफल नहीं होता है तो सम्पूर्ण कंसाइनमेंट को निर्धारित प्रोटोकॉल के अनुसार आयातक की लागत पर नष्ट कर दिया जायेगा।

8.3 यदि निरीक्षण के दौरान, सक्ष्म प्राधिकारी के संज्ञान में यह आता है कि आयातक ने जान बूझकर निश्चित महत्वपूर्ण सूचना/जान बूझकर गलत सूचना भरी है अथवा आयात के लिए अनुमति मांगी गई प्रजातियां और वास्तविक आयातित प्रजातियां सामान नहीं है अथवा यह कि आयातित नमूनों में ऐसी प्रजातियां भी शामिल है जिनके लिए अनुमोदन प्राप्त नहीं किया गया है, आयात परमिट को तत्काल रद्द कर दिया जायेगा और सभी आयातित स्टॉक को बिना किसी सूचना अथवा आयातक की बिना अनुमति के नष्ट कर दिया जायेगा।

8.4 आयातक किसी आकस्मिक पलायन को रोकने और प्राकृतिक जल में जानबूझ कर विदेशी सजावटी मछलियों को छोड़ने से रोकने के लिए पर्याप्त देखभाल करेगा। इसके बावजूद, प्राकृतिक जल में मछली के आकस्मिक पलायन/जानबूझ कर छोड़ने वाली मामले को तुरन्त सक्षम प्राधिकारी और निकटस्थ संगरोध अधिकारी को सूचित किया जायेगा।

संगरोधा पश्चात निरीक्षण

सक्षम प्राधिकारी को आयातक की हैचरी, पालन सुविधा और फार्मों का संगरोध पश्चात् निरीक्षण करने का अधिकार होगा ताकि विशिष्ट दिशानिर्देशों की पुष्टि के साथ आयातित मछलियों का उसी उद्देश्य के लिए उपयोग हो रहा है जिसके लिए वे आयातित की गई थीं, और बहुगुणन के परिमाण तथा आयातित मछली प्रजातियों के क्षैतिक फैलाव को देखने का अधिकार होगा। आयातक आयात के बाद परिवहन, पालन, प्रजनन और खुदरा इत्यादि के बारे में तिमाही स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।

अनुबंध-I

आयात के लिए विचार करने हेतु सजावटी मछलियों की संकेतिक सूची

क्र.सं. सामान्यय नाम वैज्ञानिक नाम
1. टिंनफोयल बार्ब पुनटियस स्कवानेफेल्डीव/पी.आरफाइड/ पी.दारूफानी
2. टाइगर बार्ब  पुनटियस टेट्राजोना/पी.पार्टीपेन्टाजाना
3. ब्लेरक रूबी बार्ब  पुनटियस निग्रोफासीआटस
4. क्लाउन बार्ब  बारबोड्स एवरेट्टी
5. लांगफिन रोजि बार्ब  बारबस कानकोनियस
6. फ्लिामेंट बार्ब  बारबस कानकोनियस
7. सिसोरटेल रासबोरा  रासबोरा ट्रालिनिएटा
8. येलोटेल रासबोरा  रासबोरा सुनेनसिस
9. रेडटेल रासबोरा  रासबोरा बोरापेटेनेसिस
10. ड्वार्फ रासबोरा  रासबोरा मैकुलाटा
11. हार्लेक्वीगन रासबोरा  रासबोरा हेटेरोमोफ
12. ग्रीन लाइन रासबोरा  रासबोरा ब्योफोर्टी
13. स्लेंडर गोल्ड रासबोरा  रासबोरा आइनथोवेनी
14. गोलर्डन लाइन रासबोरा  रासबोरा एजिलिस
15. जेब्रा बार्ब  रासबोरा पौसिपरफोरराटा
16. रेडटेल ब्लैक शार्क  लेबियो बाइकलर
17. रेनबो शार्क  लेबियो ईरोथोरस
18. एलबिनों रेनबो शार्क  लेबियो फ्रेनाटस
19. ब्लैक शार्क  लेबियो क्रिसोफेकाडियन
20. सिल्वोर शार्क  बैलेंटियोचैलस मेलानोपटेरस
21. ब्लैड पैरट सिकलिडस  सिकलासोमा सिंसपिलम
22. टैक्ससि सिकलिडस  सिसलासोमा कारपिन्टे
23. इमराल्डय सिकलिडसध्पैरट फिश  सिकलासोमा टेम्पोडरेलिस
24. कॉनविक्ट सिकलिडस  सिकलासोमा निग्रोफेसिएटम
25. ट्राउट सिकलिडस  सिकलासोमा सिटीनेलम
26. पीकॉक बास  सिकलासोमा ओसीलेरिस
27. फायरमाउथ सिकलिड्स  सिकलासोमा मिकी
28. रेड टेरर  सिकलासोमा फेस्टेसई
29. ग्रीन टेरर  एक्वीडेन्सि रिवेलेटस
30. ड्वार्फ सिकलिड  एपिस्टोग्रम्मा लुलिंगी
31. फ्लावर हार्न  एम्फिलोफस लेविएटस
32. पर्ल गौरामी  टिकोगैस्टार लिरी
33. मूनलाइट गौरामी  टिकोगैस्टार माइक्रोलेपिस
34. ब्लू गौरामी  टिकोगैस्टार ट्राइकोपटेरस
35. ड्वार्फ गौरामी  टिकोगैस्टार लेलियस
36. थिकलिप्ड गौरामी  ट्किोगैस्टार लेबिओसा
37. स्नेककास्किन गौरामी  टिकोगैस्टार पेक्टोरेलिस
38. जाइन्ट गौरामी  ऑस्ओनेमस गोरेमी
39. गोल्ड् फीश  कैरेशियस ऑरेटस
40. रेड ओराण्डा  कैरेशियस ऑरेटस
41. रेड कैप ओराण्डा  कैरेशियस ऑरेटस
42. ब्लूस ओराण्डा  कैरेशियस ऑरेटस
43. रेड रयूकिंस  कैरेशियस ऑरेटस
44. रेड और वाइट रयूकिंस  कैरेशियस ऑरेटस
45. सेलेस्यिल गोल्डव  कैरेशियस ऑरेटस
46. पर्ल स्केल गोल्डं  कैरेशियस ऑरेटस
47. बबल आइ गोल्डे  कैरेशियस ऑरेटस
48. क्लासउन लोच  बोटिया मैक्राकांथा
49. ओरज फिन्डै लोच  बोटिया मोडेस्टा
50. स्कंयक लोच  बोटिया मोरलेटी
51. ड्वार्फ चेन्डट लोच  बोटिया सिड्थीमुंकी
52. सिल्वार लोच  बोटिया लेकोन्टेडई
53. जेब्रा लोच  बोटिया स्ट्रीयाटा
54. ब्लू लोच  बोटिया रूबीपिन्निस्
55. गप्पी  पोइसिलिया रेटीकुलाटा
56 मॉलीध्लाइव बियरर्स  पोइसिलिया लैटीपिन्नान
57. स्वोर्ड टेल  जिफोफोरस हेलेरी
58. प्लाफटी  जिफोफोरस मैकुलेटस
59. कोई कार्प  सिप्रीनस कैप्रियो
60. फायर गोबी  नेमेटीलियोटिस मैगिनपिफका
61. फाइटिंग फिश  बेट्टा स्प्लेंडेन्स्
62. शार्ट टेल  बेट्टा इमबेलिस
63. ब्लू बेट्टा  बेट्टा स्मारगदिना
64. बटरफलाइ फिश  चाइटोदोन इफिपियसी.अरनाहिमस
65. ओरेज क्लाइउन फिश  एम्फीदप्रियन परकुला
66. फायर क्लारउन फिश  एम्फीदप्रियन मेलानोपस
67. डैमशेल फिश  एबुडेफडफ वाइकलर
68. टौटोन टैंग  जेब्रासोमा स्को पस
69. ब्लूर पाउडर टैंग  एकैनथ्रस ल्यू कोस्टे राननध्ए. टायोसेगस
70. एंजल फिश  टैरोफाइलम स्के लेर
71. हाई र्फिन सकर  माइक्सोलसाइप्रिनस एसियाटिकस
72. ब्लेक घोस्ट  एप्टेसरोनोटस एल्बिफ्रोन्सन
73. ऑस्केर सिकिल्डस  एस्ट्रोलनोटस ओसिलेटस
74. डिसकश  सिम्फासोडोन डिसकस ध्एस.एक्वी फेसीआटा
75. ब्लूश डिसकस  सिम्फासोडोन एक्वी फेसियाटा एक्सेएलेरोडी
76. फैंटम टेट्रा  हिफेसोब्राइकॉन मेगालोप्टे रस
77. ब्लीसडिंग हर्ट टेट्रा  हिफेसोब्राइकॉन इथोस्टिग्मा
78. ब्लैसक नियान टेट्रा  हिफेसोबाइकॉन हर्बरटेकसेलरोडी
79. लेमन टेट्रा  हिफेसोबाइकॉन पलकिपीनिस
80. रोजी टेट्रा  हिफेसोब्राइकॉन औरनेटस
81. सरपाई टेट्रा  हिफेसोब्राइकॉन सर्पेई
82. गोल्डो स्पासटेड टेट्रा  हिफेसोब्राइकॉन ग्रिमी
83. कार्डिनल टेट्रा  पैरासियरोडोन एक्सगलरोडी
84. नियान टेट्रा  पैरासियरोडोन इनेसी
85. ग्रीन नियान टेट्रा  पैरासियरोडोन सिमुलेनस
86. रेड पेरेट  होपलारकस सिट्टेकस
87. यलो फेस एंजलफिश  पोमायस जैनथोमेटोपोन
88. रॉयल एंजल फिश  पाइगोप्लोइट्स डियाकैन्थ्स
89. इलिगेंट फायरफिश  निमेटिलियोटिस डिकोरा
90. सनसेट एंथियास  ज्यूटडानथियस पारवीरोसटिस
91. हम्पटहेड रेसी  चेलिनस अनडुलेटस
92. येलोटेल इम्पअरर  लेथीनस क्रोसिनियस

अनुबंध-॥

सजावटी मछली आयात करने के लिए आवेदन का प्रारूप

1.0 मछली का नाम (सामान्य नाम) :

  • 1.2 वैज्ञानिक नाम :
  • 1.3 उस देश का नाम जहां से प्रजाति को आयात किए जाने का प्रस्ताव है :

2.0 उत्पत्ति का स्रोत (वन्य/पालित) /

3.0 आयात का उद्देश्य (प्रजनन/सीधी बिक्री आदि) :

  • 3.1 आयात की विस्तुत जानकारी :
  • 3.2 कौन सा जीवन चरण आयातित किया जाना है
  • (छोटा/अवयस्क/वयस्क/ ब्रूड स्टॉक) :
  • 3.3 आयात की मात्रा/आकार :
  • 3.4 औसत भार (ग्राम) :
  • 3.5 औसत लम्बाई (सें मी) :

4.0 प्रजाति का जैविक चरित्र

  • 4.1 अधिकतम आकार (सेमी)
  • 4.2 अधिकतम भार
  • 4.3 प्राकृतिक पर्यावास

4.3.1 व्यस्क

4.3.2 अवयस्क

4.3.3 छोटा

  • 4.4 विभिन्न अवस्था के लिए आवश्यक तापमान
  • 4.5 क्या प्रवासी प्रकृति का है :

4.5.1 यदि हां, क्या प्रजनन/आहार के लिए

  • 4.6 प्रजनन

4.6.1 उभयलिंगी/सिलिंगी

4.6.2 ओविपेरस/विविपरेस

4.6.3 वयस्कता पर आयु

4.6.4 प्रजनन अवधि/समय

4.6.5 प्रजनन अंतराल

4.6.6 उपजाऊपन

4.6.7 प्रजनन पर्यावास

4.6.8 तापमान आवश्यकताएं

  • 4.7 आहार संबंधी आदतें (तृणभक्षी/मांसभक्षी/सर्व भक्षी) :

4.7.1 प्राकृतिक खाद्य वस्तुएं

4.7.1.1 लर्वो

4.7.1.2 अवयस्क

4.7.1.3 वयस्क

  • 4.8 आनुवांशिक प्रोफाइल

4.8.1 यदि विकसित- विकास के लिए प्रयोग की गई मूल/ स्टॉक :

4.8.2 विकास के लिए प्रयोग की गई आनुवांशिक प्रद्धति

(चयन/संकरण/आंनुवाशिक यांत्रिकी)

5.0 पूर्व आयात का विवरण :

  • 5.8.1 अनुमोदन संख्या एवं दिनांक (मंत्रालय द्वारा जारी) :
  • 5.8.2 डीजीएफटी द्वारा जारी लाईसेंस का विवरण
  • 5.8.3 आयात का वर्ष
  • 5.8.4 अनुमति प्रदान की गई प्रजातियों की संख्या :
  • 5.8.5 कुल आयातित संख्या :
  • 5.8.6 प्रत्येक अनुमति प्रदान की गई किस्म के मुकाबले आयातित मछलियों की संख्या :
  • 5.8.7 आयातित किस्मों का अंत में उपयोग का विवरण :

6.0 आयातित सजावटी मछली निर्यात/आंतरिक बाजार के लिए है :

7.0 मछली आयात करने वाली फर्म/व्यक्ति का नाम और पता :

8.0 स्थान/हैचरी जहां आयातित मछली को रखा जाएगा :

9.0 क्या वहां संगरोध सुविधा हैं अथवा नहीं :

दिनांक                                                   आयातक के हस्ताक्षर

मोहर

आवश्यक प्रमाणपत्र :

  1. आयात की जाने वाली मछली के चित्र (फोटोग्राफ उस मछली की प्रतिलिपि होनी चाहिए जहां से आयात प्रस्तावित है तथा प्रकाशित या अन्य स्रोत से नहीं हो)
  2. हैचरी/फार्म का पता जहां आयात के बाद मछली का रख-रखाव किया जायेगा।

प्रारूप भरने के लिए दिशा-निर्देश

1. प्रत्येक प्रजाति के लिए अलग प्रारूप का उपयोग करें।

2. किसी कॉलम को खाली न छोड़ा जाये। यदि सूचना उपलब्ध नहीं है तो एन.ए. भरे और यदि आइटम प्रासंगिक नहीं है तो एन.आर. लिखें।

अनुबंध – III

विदेशी सजावट मछ्ली के आयात के लिए निर्धारित बन्दरगाह/ हवाई अड्डा

  • बंगलुरु
  • चेन्नई
  • दिल्ली
  • हैदराबाद
  • कोचीन
  • कोलकाता
  • मुंबई
  • विशाखापत्तनम

अनुबंध – IV

ओआई सूचीबद्ध जलीय जन्तु रोग (ओआईई कोड 2012)

मछली के रोग

  • एपिजूटिक हैमैटोपोइटिक नेक्रोसिस
  • एपिजोटिक अल्सरेटिव सिण्ड्रोम
  • गाइरोडैक्टाइलस सलासिस से संक्रमित
  • इंफेक्सस हैमैटोपोइटिक नेक्रोसिस
  • इंफेक्सस सालमान एनिमिया
  • कोई हर्पोस वाइस रोग
  • रेड सी ब्रीम इरीडोवायरल रोग
  • कार्प की स्प्रिग विरेमिया
  • वायरल हेमोरजिक सेप्टिसेमिया

मोलस्क रोग

  • एवेलोनहपीवायरस से संक्रमित
  • वोनामिया एजिटिएसा संक्रमिता
  • मार्टिलिया रिफ्रिजेंस संक्रमित
  • पार्किनसस मैरीनस संक्रमित
  • पार्किनसस आलसेनी संक्रमित
  • जीनोहोलिओटिस कैलीफारनिएनसिसा संक्रमित

क्रसटेशियन का रोग

  • क्रेफिश महामारी (एफानोमाइस एस्टैसी)
  • हाइपोडरमल और हिमैटोपोइटिक नेक्रोसिस
  • मायोनेक्रोसस
  • नेक्रोटाइजिंग हिपैटोपैक्रियाटाइटिस
  • टौरा सिण्ड्रोम
  • सफेद धब्बे वाला रोग
  • सफेद पूंछ वाला रोग
  • पीली गर्दन वाला रोग

अभयचरों के रोग

  • बटाकोकाईदीयम डेनोड्रोबैटिडिस से संक्रमित
  • रानावाईरस से संक्रमित

अनुबंध – V

सं ___

भारत सरकार

कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय

पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन विभाग

कृषि भवन, नई दिल्ली

दिनांक ________

सेवा में,

कंपनी का नाम और पता

विषयः जीवित सजावटी मछली आयात करने संबंधी प्रस्ताव अनुमोदन से संबंधित।

महोदय,

मुझे जीवित सजावटी मछली के आयात की अनुमति से संबंधित आपके प्रस्ताव/आवेदन (संदर्भ सं….. और तिथि) का संदर्भ देने और बीच दी गई तालिका में उल्लिखित ब्यौरे तथा मात्रा के अनुसार आप/आपकी कंपनी (निर्यातक कंपनी का नाम) द्वारा निम्नलिखित सजावटी मछलियों के आयात संबंधी संलग्न दिशानिर्देशों में उल्लिखित शर्तों के आधार पर आयात के लिए इस मंत्रालय के अनुमोदन के संबंध में सूचित करने का निदेश हुआ है।

क्र.सं. सामान्य नाम वैज्ञानिक नाम मात्रा, संख्याक
       
       

यह अनुमति विदेश व्यापार महानिर्देशालय (डीजीएफटी) द्वारा आयात लाइसेंस जारी किए जाने की तारीख से एक वर्ष के अवधि के लिए दी गई है। यह अनुमोदन हस्तांतरणीय नहीं है और इस अनुमोदन का संशोधन जारी नहीं किया जाएगा।

यह भारतीय जलों में विदेशी जलीय प्रजातियों को शामिल करने संबंधी राष्ट्रीय समिति के अध्यक्ष के अनुमोदन से जारी किया गया है। संलग्नक सजावटी मछलियों के आयात संबंधी दिशानिर्देश

भवदीय,

जारी करने वाले अधिकारी के हस्ताक्षर व मुहर

स्त्रोत: पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय

भारत में तिलापिया के उत्तरदायी पालन के लिए दिशानिर्देश
भारत में तिलापिया के उत्तरदायी पालन के लिए दिशानिर्देश

पृष्ठभूमि

तिलापिया अफ्रीका और मध्यपूर्व की मूल प्रजाति है जोकि पहले लुप्त-प्रायः और अप्रसिद्ध थी लेकिन अब यह विश्व में एक सर्वाधिक उत्पादनशील और अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक खाद्य मछलियों में से एक के रूप में उभरी है। तिलापिया का पालन, विशेष रूप से नाईल तिलापिया (ओरियोक्रोमिस निलोटिकस) की उत्पत्ति अपने अपरिष्कृत रूप में मिस्र में 4000 वर्ष से पहले की मानी जाती है। तिलापिया का पहला अभिलेखित वैज्ञानिकोन्मुख पालन केन्या में 1924 में किया गया था, और जल्द ही यह विश्व के कई भागों में फैल गया।

तालाबों में तिलापिया के अनियंत्रित प्रजनन ने इसके घनत्व को अत्यधिक बढ़ा दिया था, जिस कारण उसका विकास अवरुद्ध हुआ और बाजार—योग्य आकार की मछली के निम्न प्रतिशत उपलब्ध होने से, तिलापिया को खाद्य-रूप में उपयोग के प्रारंभिक उत्साह को कम कर दिया था। तथापि, 1970 के दशक में हार्मोनल लिंग-उत्क्रमण के विकास, उसके बाद पोषण और पालन प्रणालियों पर अनुसंधान के अनुपालन के साथ-साथ बाजार विकास और प्रसंस्क्रण उन्नति ने 1980 के दशक के मध्य में इस उद्योग के तीव्र विस्तार को पुनः बढ़ावा दिया। हालांकि वाणिज्यिक रूप से तिलापिया की कई प्रजातियों का पालन हो रहा है लेकिन नाईल तिलापिया विश्व भर में सर्वाधिक पाली जाने वाली प्रजाति है।

पिछले तीन दशकों में विश्वभर में तिलापिया के पालन में महत्व पूर्ण विकास देखा गया। विश्व भर में लगभग 85 देशों में इसका पालन किया जा रहा है (एफएओ, 2008) और इन देशों में उत्पादित लगभग 98 प्रतिशत तिलापिया उसके मूल निवास के बाहर पाली जा रही है (शेल्टन, 2002)। चीन, इंडोनेशिया, मिस्र और फिलीपींस जैसे उच्च उत्पादकों के साथ 2009 में तिलापिया जलीय-कृषि का वैश्विक उत्पादन 3.08 मी. टन था।

जलकृषि के लिए प्रजातियां

तिलापिया पर्सीफार्मिस गण के अंतर्गत सिक्लिडी कुल से संबंध रखती हैं। हाल ही मे, तिलापिया को अण्डों की पैतश गर्मी के आधार पर तीन वंशों में वर्गीकृत किया गया है। सेरोथरोडोन वंश की प्रजाती और ओरियोक्रोमिस मुख–ब्रूडर्स हैं, जबकि तिलापिया झील अथवा तालाब के तल में निर्मित घोसले में अंडों का ऊष्मायन करते है। तिलापिया की लगभग 70 प्रजातियां हैं, जिसमें से 9 प्रजातियां विश्वभर में जलीय कृषि में उपयोग में लाई जाती हैं (एफएओ 2008)। महत्वपूर्ण वाणिज्यिक प्रजातियों में हैं: मोजाम्बिक तिलापिया (ओरियोक्रोमिस मोजाम्बिकस), नीली तिलापिया (ओ. ओरियस), नाईल तिलापिया (ओ. निलोटिकस), जंजीबार तिलापिया (ओ. हारनोरम), और लाल बेली तिलापिया (ओ. जिली)।

निवास स्थान और जीवविज्ञान

नाईल तिलापिया एक उष्णकटिबंधीय प्रजाति है जो उथले जल में रहना पसंद करती है। यह एक सर्वभक्षी है जो पादप प्लवक, पेरीफाईटॉन, जलीय पौधों, लघु अवशेसकी, बैंथिक फौना, अपरद और अपरदों से संबंधित बैक्टीरियल–परतों का आहार लेती है। तालाबों में ये 5-6 महीने के समय में लैंगिक परिपक्वता तक पहुँच जाती हैं। जब जल का तापमान 24 डिग्री सेल्सियस पहुंच जाता है। तो यह अण्डे देना शुरू कर देती है। मादा अण्डों को अपने मुँह में सेती है और तत्पश्चात बच्चों को सेती है जब तक की जर्दी की थैली सूख नहीं जाती। मादा की प्रजनन क्षमता उसके शरीर–भार के आनुपात में होती है। एक 100 ग्रा. की मादा प्रत्येक अंडे देने के समय लगभग 100 अंडे देगी, जबकि 100-600 ग्रा. भार की मादाएँ 1000 से 1500 तक अंडे उत्पादित करती हैं। नाईल तिलापिया 10 वर्षों से अधिक जीवित रह सकती है और 5 कि.ग्रा. से अधिक भार तक पहुँच सकती है।

पालन प्रौद्योगिकियों का विकास

तिलापिया की जनसंख्या में मादाओं की तुलना में नर तेजी से और अधिक आकार में बढ़ते हैं। इस कारण, तिलापिया की मोनोसेक्स जनसंख्या के पालन को, जो मैन्युअल लैंगीकरण, प्रत्यक्ष हार्मोनल लिंग-उत्क्रमण, संकरण अथवा आनुवांशिक हेर-फेर द्वारा प्राप्त की जा रही है; पूर्व-लैंगिक परिवक्तता और अवांछित प्रजनन की समस्या के समाधान के रूप में देखा गया है। मैन्युअल संसर्ग जोकि मादाओं के सामीप्य पर जोर देता है, यह मूत्र-जननांगी-पैपीला में देखे गये लैंगिक-छविरूपता पर आधारित है, यह आसान तो है, परंतु काफी समय लेता है एवं इसके लिए योग्य व्यक्ति की आवश्यकता होती है, तथा आमतौर पर इसके परिणामों में 3-10 प्रतिशत की त्रुटियां पाई जाती है।

विभिन्न प्रजातियों के बीच संकरण मुख्य रूप से सभी नर संकर के सतत उत्पादन में कठिनाई के कारण प्रभावी रूप से अवांछित पुनः उत्पादन की समस्या को हल नहीं करता है। हार्मोनल लिंग-उत्क्रमण, फ्राई–अवस्था के दौरान लघु-अवधि के लिए आहार में स्टेरॉयड को शामिल कर के प्राप्त की जाती है। तथापि इस तकनीक का प्रयोग मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव की चिंता के कारण कुछ देशों में पूर्ण रूप से स्वीकृत नहीं किया जा सका है। आनुवांशिक जोड़तोड़ के जरिये ‘सुपर नरों का उत्पादन इस मुद्दे का हल कर सकेगा।

पालन प्रणालियां

तिलापिया-पालन ग्रामीण जीविका से (सघन, निम्न आदान सेवायें, गैरवाणिज्यिक और घरेलू उपयोग के लिये) से लेकर बड़े पैमाने (पूंजी प्रधान, वाणिज्यिक उद्देश्य और बाजार प्रेरित) तक किया जाता है, जो इसके प्रबंधन के काम में लगे लोगों की संख्या पर निर्भर करता है।

जल आधारित प्रणालियां

पिंजरा (केज) पालन

तिलापिया का केज-पालन अधिक प्रजनन की समस्याओं से बचाता है। क्योकि अण्डे केज जाली से गिर जाते हैं। दूसरा प्रमुख लाभ यह है कि पालकों के लिए जहां केज रखे जाने होते हैं वह जल निकाय स्वयं का होना आवश्यक नहीं है। केजों को जाल अथवा बांस से, अथवा स्थानीय स्तकर पर उपलब्ध अन्य सामग्री से बनाया जा सकता है। मछली अपना अधिकांश पोषण चारों ओर के जल से लेती है, तथापि उन्हें अनुपूरक आहार भी खिलाया जा सकता हैं। विशेष रूप से पालन की फसल-संग्रहण-दर अधिकतम 10 कि.ग्रा. प्रति धन. मी. है। सधन पिंजरा पालन सहित लगभग 25 कि.ग्रा प्रति धन. मी. की संग्रहण दर भी लोकप्रिय हो रही है। औसत उत्पाहदन स्तर विभिन्न प्रणालियों और देशों में परिवर्तनशील है। सघनीकृत केज-पालन के तहत 100–305 कि. ग्रा. प्रति धन. मी. का उत्पादन स्तोर दर्ज किया गया है (एक्लेस्टे और जोरी, 2002, कोस्टा इत्यादि, 2000)।

भूमि आधारित प्रणालियां

तालाब

तालाबों का मुख्य लाभ यह है कि निषेचन के जरिये बहुत सस्ते में मछली को बड़ा किया जा सकता है। तिलापिया पालन के लिए कई विभिन्न प्रकार के तालाबों का उपयोग किया जाता है। सर्वाधिक बड़े पैमाने पर इन्हे निम्न लागत वाले तालाबों में पाला जाता है, परंतु ये सर्वाधिक अनुत्पादक, अनियंत्रित प्रजनन और अनियमित हार्वेस्टिंग देते हैं; इनका उत्पादन 500-2000 कि.ग्रा./हे./वर्ष होता है, एवं मछली आसामान्य आकार की होती है। यदि मोनोसेक्स मछली का स्टॉक किया जाता है और नियमित खाद एवं अनुपूरक आहार दिया जाता है तो उत्पादन 8000 कि.ग्रा./हे./वर्ष तक एक समान आकार की मछली हो सकती है। मीठे-जल के तालाबों में, कृषि एवं पशुपालन के साथ एकीकृत रूप से तिलापिया का अन्य देशी मछलियों के साथ पालन भी विस्तृत रूप से किया जा रहा है।

सघन टैंक

सघन टैंक पालन अत्यधिक प्रजनन की समस्याओं से बचाता है क्योंकि नर के पास अपना अलग क्षेत्र बसाने के लिए जगह नहीं होती है। यह गुरुत्वीय प्रवाह अथवा पम्प के जरिये निरंतर जल की आपूर्ति मांगता है। प्रायः टैंक में अधिकतम स्टॉकिंग दर जहां जल प्रत्येक 1-2 घंटे में बदला जाता है, लगभग 25-50 कि.ग्रा./मी के आसपास होती है।

पालन की तकनीक

पिछले बीस वर्षों के दौरान विकसित मछली पालन की तकनीकों ने तिलापिया पालन की उम्मीदों में एक क्रांति ला दी है और इसे विश्व में फिनफिश जलीयकृषि का सर्वाधिक उत्पादन तरीका बनाया है। इस परिवर्तन मे चार प्रकार की हैचरी और स्टॉकिंग सेवाओं ने सर्वाधिक योगदान दिया है:-

  • अच्छी प्रजातियों की स्टॉकिंग जैसेकि ओरियोक्रोमिस मोजाम्बिकस की बजाय ओरियोक्रोमिस निलोटिकस
  • जुवेनाइल मछली में हस्त संसर्ग : तिलापिया प्रजातियों में लिंगों के बीच स्पष्ट विभिन्नतायें विशेष रूप से मूत्रजनन—मार्ग में, फिन मोरफोलोजी और वयस्क रंगों में होतीं हैं। दक्ष हैचरी कर्मी 5-7 से.मी. मछली की 95 प्रतिशत से अधिक नर जनसंख्यां प्राप्त कर सकता है।
  • संकरण : ओ. हॉरनोरम एकमात्र ज्ञात प्रजाति है जो ओ. निलोटिकस अथवा ओ. मोसाम्बिकस से संकर कराने पर नियमित रूप से केवल नर फ्राई ही उत्पादित करती है। हालांकि शुद्ध वंश बनाए रखना एक मुख्य समस्या है।
  • हारमोनल लिंग-उत्क्रमण : मादा से अलग होने के एक हफ्ते के अन्दर ही छोटी मछलियों को अंडे की जर्दी की थैली से फ्राई को एकत्र किया जा सकता है, और प्रथम आहार चरण मे लिंग-उत्क्रमण हार्मोन मिश्रित हुआ आहार खिलाया जाता है।

भारतीय परिदृश्य

भारत में, तिलापिया (ओरियोक्रोमिस मोसाम्बिकस) का पालन खाली आलों जैसेकि तालाबों और जलाशयों को भरने के दृष्टिकोण के साथ 1952 में प्रारंभ किया गया था। कुछ वर्षों के अंदर ही यह प्रजाति अपनी विपुल प्रजनन क्षमता और विस्तृत श्रेणी की पर्यावरणीय अवस्थाओं की अनुकूलनशीलता के कारण सम्पूर्ण देश में फैल गई। प्रजाति की अधिक जनसंख्या ने नए जलाशयों और झीलों जैसेकि तमिलनाडु में वाईगई, कृष्णागिरी, अमरावती, भवानीसागर, त्रिमूर्थी, उप्पर और पम्बर जलाशय, केरल के वलायार, मालमपुजा, पोथंडी, मीनकरा, चुल्लिपर और पीची जलाशय, कर्नाटक के कबोनी, जलाशय और राजस्थान की जयसमंद झील की मात्स्यिकी को प्रभावित किया। जयसमंद झील में ओ. मोसाम्बिकस पालन की शुरूआत का परिणाम से न केवल प्रमुख कॉर्प के औसत भार में कमी के रूप में बल्कि महसीर (टोर टोर और टी. पुटीतोरा) जैसी प्रजातियों पर भी खतरा मंडरा गया, जोकि विलुप्त होने की कगार पर हैं। भारत की मात्स्यिकी अनुसंधान समिति ने तिलापिया के प्रसार पर 1959 में प्रतिबंध लगा दिया था।

नाईल तिलापिया की शुरूआत भारत में 1970 के अन्तिम दौर में हुई। 2005 में, यमुना नदी में नाईल तिलापिया की केवल नगण्य मात्रा को आश्रय दिया गया था, लेकिन दो वर्षों के समय में, इसका अनुपात नदी में कुल मछली प्रजातियों का लगभग 3.5 प्रतिशत हो गया। वर्तमान में गंगानदी प्रणाली में तिलापिया का अनुपात कुल मछली प्रजातियों का लगभग 7 प्रतिशत है।

तथापि, अधिक मछली की मांग पर विचार करते हुए तिलापिया भारत में जलकृषि के लिए एक महत्वपूर्ण प्रजाति बनने के लिए व्यापक उम्मीद रखती है। मैसर्स वोरिओन केमिकल्स, चेन्नई ने तिलापिया की कुछ किस्मों का सफलतापूर्वक पालन और विपणन किया था, और न तो प्राकृतिक जल निकायों में पलायन और न ही किसी परिस्थितिकीय खतरों को दर्ज किया। था। तमिलनाडु और भारत के कुछ अन्य राज्यों के जलाशयों में तिलापिया के उपलब्धिता के बारे में बहुत सा अप्रकाशित जानकारी है। कोलकाता आर्द्र भूमियों में, कछ किसान मोनोसेक्स तिलापिया का अपशिष्ट जल में वाणिज्यिक स्तर पर उत्पादन कर रहे हैं।

सीआईएफए द्वारा जीआईएफटी के साथ 1998 से 2000 के दौरान तीन वर्षों की अवधि के लिए किये गये अध्यायन में तिलापिया का 4-6 महीनों की अवधि में उत्पौदन स्तर 5-6 मी. प्रति फसल प्रदर्शित किया। साथ ही, अध्ययन पॉली कल्चर के अंतर्गत तीन भारतीय प्रमुख कॉर्प के साथ तिलापिया पालन की संभावना भी दिखाता है और समान स्टॉककिंग स्तरों पर रोहु और मृगल से अधिक वृद्धि दिखाता है। चार सप्ताह की 170 मेथाईल टेस्टोस्टेरोन मिश्रित चारे के प्रावधान से मोनोसेक्स आबादी (केवल नर) भी उत्पादित किये जा सकते है।

केवल चार मत्स्य पालन समूहों, मैसर्स आरेसन बायोटेक, ए.पी., विजयवाड़ा, मैसर्स आनंद एक्वा एक्सपोर्टस (पी) लि., भीमावरम, ए.पी., मैसर्स इंडीपेस्का प्रा. लि., मुंबई, मैसर्स सीपी एक्वा (एस.) प्रा. लि., चेन्नकई और मैसर्स राजीव गांधी सेंटरफॉर एक्वाकल्चर (आरजीसीए), समुद्री उत्पातद निर्यात विकास प्राधिकरण (एमपीईडीए) की अनुसंधान एवं विकास शाखा को भारत सरकार द्वारा पहले ही तिलापिया के बीज उत्पादन और पालन (नाईल/गिफ्ट/गोल्डन तिलापिया का मोनोसेक्स और मोनोकल्चर) की, भारतीय जल में आकर्षक जलीय प्रजातियों की शुरूआत पर राष्ट्रीय समति के तहत उप–समिति द्वारा विकसित हैचरी परिचालन और तिलापिया के पालन के लिए दिशानिर्देशों के अनुसार अनुमति दी जा चुकी है।

भारत में तिलापिया पालन की क्षमता

जैसे-जैसे मछली की मांग बढ़ रही है, उत्पादन स्तरों को बढ़ाने के लिए अधिक प्रजातियों के साथ-साथ जलीयकृषि में प्रजातियों का विविधीकरण भी आवश्यक हो जाता है। हमारी मत्स्य पालन प्रणाली में तिलापिया का स्थान लाभदायक है क्योंकि यह खाद्य श्रृंखला में निम्न स्तर का प्रतिनिधित्व करती है, अतः इसका पालन किफायती और पर्यावरण-अनुकूल होता है। तिलापिया का मोनोसेक्स पालन नरों के बड़े तथा अधिक एक समान आकार के एवं तीव्र वृद्धि के कारण लाभदायक है।

आनुवांशिक रूप से उन्नत तिलापिया (गिफ्ट) विकास की तकनीक परम्परागत चयनित प्रजनन पर आधारित है और उष्ण कटिबंधीय फार्म की मछली के महत्वपूर्ण गुणों को वाणिज्यिक रूप से सुधारने के लिए, तिलापिया जलकृषि के इतिहास में एक प्रमुख मील का पत्थर है। संयुक्त चयन प्रौद्योगिकी के जरिये, गिफ्ट कार्यक्रम ने पांच पीढियों से अधिक प्रत्येक पीढ़ी तक 12.17 प्रतिशत औसत आनुवांशिक वृद्धि और ओ. निलोटीकस में 85 प्रतिशत संचयी वृद्धि दर प्राप्त की है (एकनाथ और अकोस्टा, 1998)। अन्य किस्मों, जैसे कि लाल तिलापिया से भी उम्मीदें हैं। तिलापिया की अमेरिका, यूरोप और जापान में निर्यात की अपार संभावनाएं है।

भारत में तिलापिया पालन के दिशानिर्देश

1. संचालन समिति

i. कृषि मंत्रालय (एमओए), भारत सरकार तिलापिया बीज और बढ़ते उत्पादन को देखने और निगरानी के लिए राष्ट्रीय स्तर पर संचालन समिति का गठन करेगी। यह समिति संबंधित राज्य मात्स्यिकी विभाग को हैचरी/ पालन (बढ़ने के साथ-साथ नर्सरी) सुविधा की देखरेख, नियंत्रण और निगरानी (एमसीएस) के लिए अधिकार दे सकते है।

ii. कृषि मंत्रालय द्वारा गठित संचालन समिति हैचरी और प्रजनन कार्यक्रमों के लिए तिलापिया ब्रूड बीज (स्टॉक) के आयात के लिए आवश्यक संगरोध उपायों के संबंधित मानक दिशानिर्देशों की संस्तुति करेगी।

iii. इस संचालन समिति को दिशानिर्देशों को जब और जैसे आवश्यक हो, संशोधित/संशोधन का अधिकार होगा। संचालन समिति दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन के फीडबैक के आधार पर संवदेनशील क्षेत्रों/सेंचुरियों और अनुमति योग्य चिकित्सा विज्ञान पर और अधिक विशिष्ट दिशानिर्देश देगी।

iv. संबंधित राज्य सरकार द्वारा गठित समिति तिलापिया जलकृषि के लिए। पंजीकृत किसी भी हैचरी/प्रजनन/ नर्सरी/फार्म सुविधा से निर्धारित दिशानिर्देशों के उल्लंघन के मामले में विवरण मांगने के लिए अधिकृत

v. किसान/उद्यमी जो तिलापिया हैचरी/प्रजनन/नर्सरी/पालन शुरू करने के इच्छुक हैं, को संचालन समिति द्वारा निर्धारित उचित प्रारूप का प्रयोग करते हुए संबंधित राज्य मात्स्यिकी विभाग के पास पंजीकृत कराना होगा।

II. पालन प्रणालियां एवं सेवायें

i. पंजीकरण : जो किसान तिलापिया पालन शुरू करना चाहते हैं, अनुमति के लिए निर्धारित प्रपत्र (अनुबंध- 1) में राज्य मात्स्यिकी विभाग में आवेदन करेंगे।

ii. स्थापन : खुले जल निकायों में पलायन से बचने के लिए फार्म ऐसे स्थान पर स्थित होना चाहिए जो बाढ़ संभावित क्षेत्र अथवा घोषित सैन्कचुरी के आसपास बफर जोन या जैव-रिजर्व या अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में नहीं होना चाहिए।

iii. प्रकार एवं पालन घनत्व : केवल मोनोसेक्स नर/बांझ (या तो हार्मोनल जोड़तोड़ अथवा संकर–प्रजनन के जरिये) के पालन की अनुमति है।

iv. पालन प्रणाली का क्षेत्र : प्रत्येक फार्म 1.0 एकड़ जल फैले क्षेत्र से कम नहीं होगा। प्रत्येक तालाब का आकार 10.0 एकड़ से अधिक नहीं होगा।

v. प्रजातियां : नाईल तिलापिया अथवा तिलापिया के उन्नत उपभेद/संकर अनुमोदित प्रजातियां है।

vi. स्टॉक किये जाने वाले बीज का आकार : पालन के तालाब में लिंग-उत्क्रमण–तिलापिया (एसआरटी) का 10 ग्राम से बड़ा बीज ऑन फार्म नर्सरियों अथवा पंजीकृत बीज फार्मों में लिंग उत्क्रमण तिलापिया (एसआरटी) को 10 ग्रा. आकार के बढ़ने तक पाली जायेगी।

vii. स्टॉकिंग घनत्वे : अधिकतम संख्या 5 संख्या वर्ग मी

  1. जैव सुरक्षा : तिलापिया पालन के लिए अनुमोदन केवल उन्हीं तालाबों/फार्मों की दी जायेगी जो फार्म की जैव सुरक्षा का रख-रखाव यह सुनिश्चित करने के लिए करेंगे कि फार्म से जैविकीय पदार्थ का पलायन जल स्रोत अथवा किसी अन्यक स्रोत यहां तक कि बाढ़ जैसी स्थितियों में भी नहीं होगा। इसलिए, वहां बांध ऊँचाई, जल प्रबंधन प्रणालियों और अन्य जैव-सुरक्षा उपायों जोकि पालन के लिए आवश्यक हैं, की न्यूनतम आवश्यकताओं को निर्दिष्ट करता मानक डिजाइन होगा। (क) पालन तालाबों से निर्गम जल को प्राकृतिक जल निकायों में अण्डों के पलायन को रोकने के लिए दोहन के बाद अथवा पालन के दौरान नालियों/ नहरों/नदियों में छोड़ने से पूर्व आवश्यक रूप से जांच और उपचार किया जायेगा। (ख) पक्षियों को भगाने का यंत्र/बाढ़ अनिवार्य है, (ग) बांध की ऊंचाई मछली पलायन से बचने के लिए पर्याप्त होनी चाहिए और (घ) मछली/अण्डे/बच्चे के पलायन को रोकने के लिए जलमार्गों को उपयुक्त आकार की जाली लगानी चाहिए।

ix. जलाशयों और टैंकों में पिंजरा पालन : तिलापिया का पिंजरा पालन उन जलाशयों के लिए सीमित होगा जहां पहले से ही तिलापिया का भंडार स्थापित हैं। ऐसे पालन के प्रारंभ से पहले ऐसे जलाशयों में तिलापिया जनसंख्या का उपस्थिति का पता लगाने के संबंध में संबंधित राज्य के मात्स्यिकी विभाग द्वारा मूल्यांकन अध्ययन किया जायेगा। जलाशय में केज क्षेत्र प्रभावी-जल-क्षेत्र (ईडब्ल्यूए) के 1 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। केज में छोड़े गए स्टॉक का आकार 50 ग्रा. भार से अधिक होना चाहिए। तदनुसार, केज जाल का आकार उपयुक्त होना चाहिए। केज पालन के लिए तैयार किये गए तैरते पेलेटेड आहार मे प्रोटीन तत्व की न्यूनतम 25 प्रतिशत मात्रा के साथ उपयोग को प्रोत्साहित किया जाता है।

x. सघन तिलापिया पालन : री-सर्कुलेटरी प्रणालियों को प्रारंभ करने की इच्छुक फार्म को 150 संख्या/घन मी से कम मछली स्टॉकिंग घनत्व समेत तैरने वाले आहार के साथ राज्य के मात्स्यिकी विभाग के पास पंजीकृत करना होगा। ऐसे मामले में मछली पालन वाले फार्मों के लिए निर्दिष्ट जैव सुरक्षा उपायों के मानकों की पुष्टि आवश्यक है।

xi. हैचरी की स्थापना : जो उद्यमी तिलापिया बीज हैचरियों की स्थापना करने के इच्छुक हैं, उनको संचालन समिति से अनुमोदन प्राप्त करना होगा और साथ ही राज्य मात्स्यिकी विभाग के पास पंजीकृत भी करना होगा। हैचरियां, स्वीकृत विदेशी/भारतीय कंपनियों से ब्रूड स्टॉक प्राप्त करेंगी। हैचरियां केवल पंजीकृत नर्सरियों/फार्मों को बीज बेचेंगे।

IV. तिलापिया का बीज उत्पादन

i. संचालन समिति आईसीएआर मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थानों और अन्य समान एजेंसियों के जरिये तिलापिया के लिये तिलापिया राष्ट्रीय प्रजनन कार्यक्रम (टीएनबीपी) की स्थापना की सिफारिश करेगी।

ii. संचालन समिति, विदेशी/भारतीय कंपनियों को चिन्हित और अनुमोदित करेंगी जो वाणिज्यिक हैचरियों के लिए ब्रूड स्टॉक की आपूर्ति की पात्र हैं।

iii. संचालन समिति संगरोध सुविधा समेत हैचरी के ले-आउट और डिजाइन की जांच और अनुमोदन करेगी। रोग प्रकोप की किसी घटना से बचने के लिए आयातित बीज का 21 दिनों के लिए संगरोध आवश्यक है। आयातित स्टाक की विदेशी रोगाणुओं के मुकाबले संवेदनशीलता प्रतिरोध के मूल्यांकन के संबंध में संगी प्रजातियों के साथ संगरोध की भी आवश्यकता है।

iv. हैचरियों द्वारा मोनोसेक्स नर तिलापिया का उत्पादन दिशानिर्देशों के अंतर्गत निर्दिष्ट प्रोटोकॉल के अनुपालन मे करना चाहिए।

v. क्रमानुसार पीढियों में आनुवांशिक सुधार के लिए आनुवांशिकी को शामिल करते हुए चयनित प्रजनन के उद्देश्य के साथ तिलापिया प्रजनन कार्यक्रम अन्तः प्रजनन के कारण भविष्य के विनाश से बचने को प्रोत्साहित किया जायेगा।

vi. लिंग उत्क्रमण का उपयोग करते हुए गैर-हार्मोनल तकनीक/प्रौद्योगिकी प्रोत्साहित की जायेंगी।

V. बीज नर्सरियां

जो नर्सरियां तिलापिया पालन के लिए बीज (बीज फार्म) विकसित करने की इच्छुक हैं उनको बढ़ते हुए फार्मों के लिए उपलब्ध दिशानिर्देशों के अनुपालन करते हुये राज्य के मात्स्यिकी विभाग के पास पंजीकृत कराना होगा। नर्सरियां केवल पंजीकृत हैचरियों से ही लिंग उत्क्रमित तिलापिया (एसआरटी) बीज प्राप्तं करे।

VI. स्वास्थ्य निगरानी

फार्म स्टॉक का स्वास्थ्य आवधिक रूप से जांचा जाये और रोग फैलने के मामले में केवल अनुज्ञेय उपचार का विवेकपूर्ण ढंग से प्रयोग किया जायेगा।

VII. दस्तावेज का रख-रखाव

स्टॉकिंग का विवरण, बीज का स्रोत, आदान, नमूने का विवरण, जल गुणवत्ता विवरण, स्वास्थ्य, वृद्धि आदि को दर्शाता दैनिक फार्म प्रबंधन का तालाब वार रजिस्टर रखा जायेगा। इन दस्तावेजों को संबंधित मात्स्यिकी प्राधिकारियों द्वारा निरीक्षण के समय उपलब्ध कराना होगा।

VIII. दोहन

दोहन से एक/दो दिन पूर्व आहार प्रक्रिया स्थगित कर देनी चाहिए। दोहन को खींच-जाल अथवा अन्य तीव्र दोहन प्रणालियों का प्रयोग करते हुए किया जायेगा।

IX. पोस्ट-हार्वेस्ट और परिवहन

दोहित मछली को तुरंत बर्फ में रखा जायेगा और घरेलू बाजारों/ प्रसंस्करण प्लांटों को भेज दिया जायेगा। तिलापिया के मूल्य संवर्धन मदों में प्रसंस्करण के लिए पर्याप्त अवसंरचना सुविधाओं को प्रोत्साहित किया जायेगा।

X. प्रशिक्षण एवं जागरूकता कार्यक्रम

धारणीयता प्राप्त करने के लिए तिलापिया को श्रेष्ठतर प्रबंधन प्रथाओं पर प्रशिक्षण कार्यक्रमों और जागरूकता शिविरों को प्रस्तावित किया जाता है। सरकारी अधिकारियों/अनुसंधान संगठनों/प्रगतिशील किसानों/उद्यमियों की उन देशों में प्रदर्शन यात्रा जहां तिलापिया पालन लोकप्रिय और सफल है। किसानों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम संबंधित राज्य के मात्स्यिकी विभाग/ अनुसंधान संगठन/केवीके द्वारा किये जायेंगे।

XI. मूल्यांकन एवं प्रभाव आकलन

i. तालाबों और पिंजरों से तिलापिया के पलायन को रोकने के लिए उठाये गये सुरक्षात्मक उपायों की प्रभावकारिता का मूल्यांकन करना और उन्हें सुधारना।

ii. पलायित मछलियों का पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव और इस बात का निर्धारण कि वें मौजूदा तिलापिया प्रजातियों के आक्रमण क्षमता में कैसे बदलाव करेंगी।

XII. अन्य तकनीकी सुझाव

i. उर्वरणः मृदा की पोषकीय अवस्था के आधार पर जब और जैसे आवश्यक | हो जैविक खादों का प्रयोग करते हुए तालाब पालन में उर्वरण किया जा सकता है।

ii. आहार का प्रकारः 20 प्रतिशत न्यूनतम प्रोटीन मात्रा सहित फारमूलित तैरने वाला पैलेट आहार/फार्म में तैयार पैलेट आहार।

iii. आहार भंडारणः फार्म पर उचित वायु संचार और आर्द्रता प्रबंधन समेत उचित आहार भंडारण सुविधा उपलब्ध कराई जाय। आहार को फंफूदी से बचाने के लिए दीवार को बिना छुये ऊंचे लकड़ी के चबूतरे पर रखा जाये। आहार को उत्पादन की दिनांक से तीन महीनों के अंदर प्रयोग कर लिया जाए।

iv. दोहन : दोहन से एक/दो दिन पूर्व आहार प्रक्रिया स्थगित कर देनी | चाहिए। दोहन को खींच-जाल अथवा अन्य तीव्र दोहन प्रणालियों का प्रयोग करते हुए किया जाये।

v. पोस्ट-हार्वेस्ट और परिवहन : दोहित मछली को तुरंत बर्फ में रखा जाये और घरेलू बाजारों/प्रसंस्करण प्लांटों को भेज दिया जाये। तिलापिया के मूल्य संवर्धन मदों में प्रसंस्करण के लिए पर्याप्त अवसंरचना सुविधाओं को प्रोत्सोहित किया जाये।

अनुबंध-I

आवेदन हेतु प्रपत्र

क्र.सं. विवरण  टिप्पणी 
1. आवेदक का नाम और पत्राचार का पता/पंजीकृत कंपनी/ स्थापना (स्थायी पते सहित)  
2. फार्म की स्थिति :वैयक्तिक/समिति/निजी/मालिकाना/ हिस्से दारी  
3. पत्राचार हेतु पता  
  गली :  
  शहर :  
  जिला :  
  राज्य :  
4. फार्म की स्थिति :  
  राज्य :  
  जिला :  
  तालुक/मंडल  
  राजस्व गांव :  
  सर्वेक्षण संख्या :  
5. स्वामित्व (स्वतंत्र रूप से या पट्टे पर)  
6. यदि पट्टे पर हो तो, पट्टे की अवधि और पट्टे की अवधि की प्रति संलग्न करे  
7. क्या फार्म मात्स्यिकी विभाग (डीओएफ) में पंजीकृत है और सीएएए/अन्य एजेंसी द्वारा अनुमोदित है। | (प्रमाणपत्र की प्रति संलग्न करे) ।  
8. डीओएफ/एमपीईडीए/चार्टर्ड इंजीनियर द्वारा अनुमोदित फार्म के लेआउट की प्रमाणित प्रति  
9. फार्म में पाली जाने वाली प्रजातियों की सूची  
10. जल का स्रोत  
11. तालाब का इतिहास  
  क) तालाब निर्माण का महीना और वर्ष और वित्तीय सहायता यदि कोई प्राप्त की गई हो  
  ख) निर्माण के वर्ष से मछली/झींगा के उत्पादन का ब्यौरा  
  ग) क्या मछली पालन हेतु केंद्र/राज्य सरकार की किसी योजना के अंतर्गत कोई सहायता प्राप्त हुई है ? यदि हां, तो ब्यौरा दें (रूपयो में)  
  घ) तालाबों की वर्तमान स्थिति, यदि मौजूदा है।  
12. प्रस्तावित तालाबों का निर्माण/नवीनीकरण/तालाबों की मरम्मत कार्यों का ब्योरा  
13. फार्म के परिचालन की प्रस्तावित तिथि और कार्य-कलापों की अंतरिम सूची  
14. फार्म में उपलब्ध सुविधाओं और मशीनरी की सूची (परिशिष्ट-1 प्रपत्र के अनुसार)  
15. तालाबों और केजो में तिलापिया के पालन में आवक लागत और परिचालनों की अर्थव्यवस्था के संबंध में अनुमान  

स्थान :                                                             आवेदक के हस्ताधक्षर    तिथि :                                                             नाम :

पता :

  • इस प्रपत्र के साथ परिशिष्ट- के अनुसार उपलब्ध अवसंरचना के संबंध में अतिरिक्त सूचना और परिशिष्ट-II के अनुसार आवेदक की घोषण लगा होना चाहिए।

परिशिष्ट-I

फार्म में उपलब्ध अवसंरचना के ब्योरे को प्रस्तुत करने हेतु प्रारूप

मालिक/पट्टेधारी का नाम  
स्थान  
वास्तविक सुविधाएं  
फार्म की वास्तिविक सीमा  
तालाबों की संख्या  
प्रत्येक तालाब का क्षेत्र  
प्रत्येक तालाब के बंध की ऊंचाई  
जलनिकासी (ह्यूम पाईप/स्लूईसगेट)  
अवसादन टैंक  
भवन  
क) कार्यालय/प्रशासन  
ख) आवासीय क्वार्टर  
ग) भंडार  
घ) प्राथमिक जांच हेतु प्रयोगशाला  
मशीनरी  
पम्प  
ऐरेर्ट जेनसेट  
मशीन रूम  
 
 
 

स्त्रोत: पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय

मॉडल ऑटोमेटिक दूध संग्रहण केंद्र योजना
मॉडल ऑटोमेटिक दूध संग्रहण केंद्र योजना

भारत के पास विश्व में सर्वाधिक पशुधन है। हमारे देश में पूरे विश्व की लगभग 57.3 प्रतिशत भैंस और 14.7 प्रतिशत पशु हैं। भारतीय डेयरी उद्योग का देश की अर्थव्यवस्था में प्रमुख योगदान है और राशि की दृष्टि से यह योगदान चावल से ज्यादा है। वर्ष 2011-12 में दुग्ध उत्पादों का मूल्य रु० 3,05,484 करोड़ रहा। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2011-12) की समाप्ति पर देश में कुल दुग्ध उत्पादन 127.9 मिलियन टन प्रति वर्ष रहा और इसकी मांग वर्ष 2020 तक 180 मिलियन टन हो जाने की संभावना है। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के तत्वावधान में वर्ष 1970 में डेयरी क्षेत्र के आधुनिकीकरण तथा डेयरी सहकारिताओं की मदद से 4 मेट्रो शहरों में दूध की आपूर्ति बढ़ाने के लिए “आपरेशन फ्लड” कार्यक्रम प्रारंभ किया गया था। वर्ष 1996-97 के अंत में तक 264 जिलों में 74383 ग्राम दुग्ध उत्पादक सहकारिताओं का गठन किया गया था और इनके माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों से प्रतिदिन औसतन 12.26 मिलियन लीटर दूध की अधिप्राप्ति की जा रही थी। इसके बाद, ग्रामीण आय को बढ़ाने के लिए “टेक्नोलॉजी मिशन ऑन डेयरी डेवलपमेंट” को प्रारंभ किया गया था, जिसका उद्देश्य उत्पादकता बढ़ाने एवं परिचालन लागत घटाने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी की अपनाना था और इस प्रकार दुग्ध और दुग्ध उत्पादों की ज्यादा से ज्यादा उपलब्धता सुनिश्चित करना था।

वर्ष 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के साथ ही, डेयरी क्षेत्र को भी लाइसेंस मुक्त कर दिया गया था। भारत सरकार ने 09 जून 1992 को दुग्ध एवं दुग्ध उत्पाद आदेश (एमएमपीओ) जारी किया था, जिसे वर्ष 2002 में संशोधित किया गया था। इसके अनुसार, डेयरी इकाइयों को केवल स्वच्छता तथा स्वास्थ्यकर पहलुओं के बारे में अनुमति प्राप्त करनी है। खाद्य सुरक्षा और मानक (लाइसेन्सिंग एवं रजिस्ट्रेशन ऑफ फ़ूड बिजनेस), विनिमय 2011 लागू होने के बाद, 05 अगस्त 2011 से डेयरी प्रसंस्करण इकाइयों सहित सभी खाद्य प्रसंस्करण इकाइयां इस अधिनियम के दायरे में आ गई हैं, हालाँकि, भारत सर्वाधिक दूध उत्पादित करने वाला देश है, लेकिन प्रति पशु दूध उत्पादन कम है। वर्तमान में, संगठित डेयरी क्षेत्र (सहकारी एवं निजी) देश में कुल दूध उत्पादन का 24 से 28 प्रतिशत भाग ही उत्पादित कर पर रहे हैं। इस प्रकार, घरेलू खपत और निर्यात के लिए अधिप्राप्ति, प्रसंस्करण और दूध के उत्पादों के विनिर्माण में वृद्धि की काफी गुंजाइश बनती है। एकत्र किये जाने वाले दुध की गुणवत्ता भी अच्छी नहीं है और यह विभिन्न प्रकार के मूल्य-संवर्धित उत्पादों के निर्माण/विपणन में रुकावट डालने वाला कारक है। आज भी देश का काफी हिस्सा संगठित दूध अधिप्राप्ति के दयारे में नहीं है।

उत्पादन और प्रसंस्करण के क्षेत्र में सार्थक कदम उठाने के बाद, अब अधिप्राप्ति-क्षमता  में  वृद्धि और गुणवत्ता हेतु दूध की जाँच करके दूध की गुणवत्ता बढ़ाने का समय आ गया है। भारत में दूध का मूल्य वसा के प्रतिशत कुछ सीमा तक सॉलिड नॉट फैट (एस एन एफ) पर निर्मर है। वसा का निर्धारण बुटीरोमिटर विधि पर आधारित है, जो कि दूध एकत्र करने वाले केन्द्रों/दुग्ध सहकारिताओं में अपनाई जाने वाली सबसे ज्यादा पुरानी प्रोधोगिकी है। वर्ष 1980 से, अनेक समितियाँ दूध में वसा के प्रतिशत की जाँच के लिए मिल्को टेस्टर्स को इस्तेमाल में ला रही हैं, क्योंकि इस तरीके से ऊपर बताये गए तरीके की तुलना में ज्यादा तेजी से काम किया जा सकता है। हाल ही में, दुग्ध एकत्रीकरण केद्रों/सहकारी समितियों ने ऑटोमेटिक मिल्क कलेक्शन स्टेशन (पीसी आधारित मिल्क कलेक्शन स्टेशन), स्मार्ट ऑटोमेटिक  मिल्क कलेक्शन स्टेशन और ऑटोमेटिक दूध संग्रहण केद्र का संस्थापन प्रारंभ कर दिया है, जो कि दूध का वजन, वसा की मात्रा माप करके कृषकों को (हर बार) मुद्रित भुगतान पर्ची दे देती हैं। इन प्रणालियों में 10 दिन/मासिक/वार्षिक आधार पर आंकड़े (डेटा) रखने की सुविधा है और जरुरत पड़ने पर, इनसे प्रत्येक बारी का समेकित सारांश मुद्रित करके दिया जा सकता है। ये मशीनें एक घंटें में 120 से 150 बार तक दुध एकत्र करने का काम कर सकती है। मिल्को टेस्टर्स की जगह अब दूध विशलेषक (मिल्क एनालाइजर) को काम में लाया जा रहा है।

उद्देश्य

निम्नलिखित उद्देश्यों  को ध्यान में रखते हुए, ऑटोमेटिक दूध संग्रहण केन्द्रों में विभिन्न प्रकार के उपकरणों की खरीद के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है-

  1. दूध में वसा की जाँच की क्षमता व जाँच की विशुद्धता को बढ़ाना दूध के अन्य घटकों जैसे- सॉलिड नॉट फैट (एस एन एफ) का प्रतिशत, पानी का प्रतिशत आदि अन्य घटकों की जाँच करना।
  2. ऑटोमेटिक के द्वारा समिति/दूध एकत्रीकरण केंद्र के स्टाफ को घटाना और मैन्युअल रजिस्टर न रखकर, परिचालनों को किफायती बनाना।
  3. पारदर्शी प्रणाली के माध्यम से दूध उत्पादकों का विश्वास जितना और आर इस तरह दूध की अधिप्राप्ति बढ़ाना।

सम्भावित क्षेत्र-सहकारी और निजी क्षेत्र में ज्यादातर दूध प्रसंस्करण संयत्रों ने अपने अधिप्राप्ति नेटवर्क में ऑटोमेटिक दूध संग्रहण केद्रों को प्रारंभ कर दिया है। उन समितियों/दूध एकत्रीकरण केद्रों में इन स्टेशनों के लिए वित्तपोषण किया जा सकता है, जहाँ प्रतिदिन दूध की अधिप्राप्ति 350 लीटर से अधिक है।

लाभार्थी: ये इकाइयां कोऑपरेटिव मिल्क यूनियन की मिल्क कोऑपरेटिव समितियों अथवा निजी डेयरी के दुग्ध एकत्रीकरण केन्द्रों द्वारा स्थापित की जा सकती है। विकल्पत:, व्यक्तियों को संगठित क्षेत्र के साथ गठबंधन करके इन स्टेशनों को स्थापित करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जा सकता है।

परियोजना विवरण

  1. घटक: ऑटोमेटिक दूध संग्रहण केन्द्र विशेष रूप से डिज़ाइन की गई समन्वित इकाई हैं। यह कई यूनिटों अर्थात् यह ऑटोमेटिक मिल्क तौल प्रणाली, इलेक्ट्रोनिक मिल्क टेस्टिंग, देता प्रोसेसिंग और आउटपुट देने हेतु पर्सनल कम्प्यूटर (प्रिंटर और बैटरी सहित) का संयोजन है। ज्यादा मात्रा में दूध की अधिप्राप्ति करने वाले केन्द्र आधुनिक प्रणाली खरीद सकते हैं, जिसमें मिल्क टेस्टिंग उपकरण की जगह ऑटोमेटिक मिल्क विश्लेषक (जो वसा का %, सॉलिड नॉट फैट (एस एन एफ) का % पानी का % इत्यादि दर्शा सकता है) का उपयोग किया जा सकता है। ये बड़ी अधिप्राप्ति एजेंसियों वेब आधारित डेटा प्रबंधन भी अपना सकती हैं, जिसमें एएमसीयू से कृषक-वार डेटा सर्वर को भेजा जायेगा और भुगतान सम्बन्धी विवरण मिल्क प्रोसेसिंग यूनिट से सीधे बैंक को भेर्जे जायेंगे। ऑटोमेटिक दूध संग्रहण यूनिटों को (एएमसीयू) को डेयरी टू बैंक की  अवधारणा को उपयोग करने योग्य बनाया जा सकता है, जिसमें कृषक की बिल राशि सीधे उसके खाते में जमा कर दी जाती है बैंक में जाए बिना, वह दूध संग्रहण  केन्द्र से अपनी जरूरत के मुताबिक राशि सीधे ही आहरित कर सकता/सकती है। कुछ ऑटोमेटिक मिल्क कलेक्शन यूनिटों को ((एएमसीयू)  को नीचे दिए गए चित्र में दर्शाया गया है:-
  2. क्षमता: ऑटोमेटिक मिल्क कलेक्शन स्टेशन प्रति घंटा दूध के 120 से 150 नमूनों की जाँच कर सकता है, उपयोग किये जाए वाले उपकरणों के आधार पर पैरामीटर्स में अंतर हो सकता है
  3. स्पेसिफिकेशन: उपयोग की जाने वाले मशीनरी बीआईएस स्पेसिफिकेशन के अनुसार  होनी चाहिए और इससे मापे जाने वाले पैरामीटर इस प्रकार है:-

(क)  वसा की माप:0-13% (ख)  मापन क्षमता:120 से 150 परिचालन प्रति घंटा

(ग)पावर सप्लाई; एसी 220 से 240 वाट 50HZ

मिल्क विश्लेषक के मामले में, वसा की मात्रा,  सॉलिड नॉट फैट (एस एन एफ)  की मात्रा 3 से 15 प्रतिशत तथा पानी की मात्रा और दूसरे अन्य पैरामीटरों की भी माप की जाएगी।

(क)  उपकरण आपूर्तिकर्ता: उपकरणों की आपूर्ति कई एंजेंसियों द्वारा की जाती है: इनके नाम निम्नवत हैं-

आईडीएमसी, आनन्द (गुजरात) डीएसके मिल्कोट्रोनिक्स, पुणे (महाराष्ट्र), कामधेनु, अहमदाबाद (गुजरात), डोडिया, हिम्मतनगर (गुजरात), प्राम्प्ट (PROMPT),  बड़ौदा (गुजरात), आपटेल, आनंद गुजरात), कैपिटल इलेक्ट्रोनिक्स, आनन्द (गुजरात), आरईआईएल, जयपुर (राजस्थान) यह सूची केवल निदर्शी है, उपयुक्त प्रणाली (सिस्टम) किसी भी प्रतिष्ठित एजेंसी से खरीदी जा सकती है

कार्य प्रणाली

प्रत्येक दूध आपूर्त करनेवाले किसान को संग्रह केन्द्र द्वारा दुग्ध प्रसंस्करण इकाई के परामर्श से एक विशिष्ट संख्या/कार्ड दिया जायेगा। किसान जब दूध आपूर्त करने के लिए आता है तो पहचान के लिए उसका नंबर या कार्ड इस्तेमाल किया जायेगा। नंबर फीड करने के बाद, नमूना विश्लेषण के लिए एकत्र किया जायेगा। इसके साथ ही उसका दूध जब कंटेनर में डाला जायेगा वह स्वचालित रूप से तौला जायेगा और वसा की मात्रा और दूध की मात्रा पर आधारित दर का हिसाब करके भुगतान पर्ची मुद्रित की जाएगी। एक दूध विश्लेषक की सेवा  उपयोग हो पाने की स्थिति में विश्लेषण के अन्य मापदंडों का इस्तेमाल किया जायेगा और  इन मानकों के आधार पर दूध की मात्रा और दर का हिसाब करते हुए इसे प्रदर्शित किया जायेगा। कुछ निर्माताओं के पास मोबाइल दूध संग्रह इकाइयां हैं, इन उपकरणों की वाहन पर लगाया जा सकता है और दूध को विभिन्न स्थानों से अधिप्राप्त किया जा सकता है

ऑटोमेटिक दूध संग्रहण यूनिट (AMCUs) के लाभ

  1. नमूना दूध की मात्रा  में बचत
  2. रसायन और डिटर्जेंट में बचत
  3. कांच के बने पदार्थ पर होने वाले खर्च में बचत
  4. स्टेशनरी और समय में बचत
  5. कमर्चारियों पर होने वाले खर्च में बचत
  6. पारदर्शी प्रणाली के माध्यम से दुग्ध उत्पादकों का aatmviआत्मविश्वास प्राप्त करना और दुध की अधिप्राप्ति बढ़ाना

तकनीक सहयोग

चूँकि यह यूनिट एक समन्वित है, परियोजना के लिए कोई तकनीकी सहयोग की परिकल्पना नहीं की गई है, हालांकि दुग्ध संघों/निजी डेयरी संयंत्र संग्रहण केन्द्रों की स्थापना ओंर दूध की खरीद में सोसाइटियों और दुग्ध संग्रहण केन्द्रों का मार्गदर्शन करेंगे तथा संचालन और अनुरक्षण में कर्मियों को प्रशिक्षण प्रदान करेंगे। व्यक्तिगत ऑटोमेटिक दूध संग्रहण यूनिट के मामले में बिक्री के बाद की सेवा के लिए आपूर्तिकर्ताओं के साथ आवश्यक व्यवस्था की जानी चाहिए।

पूंजी लागत

पूंजी लगात भी विनिर्देशों और निर्माताओं के साथ बदलती रहती है। हालाँकि, निर्माताओं द्वारा की गई जानकारी और क्षेत्रों से प्राप्त सूचना के आधार बैटरी की लागत सहित एक औसत इकाई लागत 1.25 लाख मानी गई है:

परियोजना की आर्थिकी

यह माना गया है कि ऑटोमेटिक दूध संग्रहण यूनिट मौजूदा संग्रह केंद्र की इमारत में ही कार्य कर सकेगा इसलिए ऑटोमेटिक दूध संग्रहण यूनिट की सिविल लागत पर विचार नहीं किया गया 1. अनुबंध-1 मैं प्रस्तुत विभिन्न तकनीकी आर्थिक मापदंडों के आधार पर इस परियोजना की आर्थिकी तैयारी की गई है और इसे अनुबंध II मैं प्रस्तुत किया है। व्यव की मदों में कर्मचारियों पर होने वाले खर्च में बचत, स्टेशनरी, रसायनों और डिटर्जेट और नमूना दूध की बचत, कांच के बने पदार्थ पर होने वाले खर्च में बचत तथा उपयोग्य वस्तुएं, मरम्मत और अनुरक्षण आदि व्यव शामिल हैं।

वित्तीय विश्लेषण

मॉडल के लिए नकदी प्रवाह विश्लेषण, लाभ लागत अनुपात (बीसीआर), निवल वर्तमान मूल्य (एनपीडब्लू) और आंतरिक प्रतिफल दर (आईआरआर) आदि को शामिल करते हुए अनुबध III  मैं प्रस्तुत किया गया है। विचाराधीन मॉडल के लिए, बीसीआर 1.41:1 एनपीडब्ल्यू 76,800 रूपये और आईआरआर 49% है। पूरे बैक ऋण किसी भी छूट अवधि के बिना सात साल में चुकौती योग्य हो सकता है। इसलिए मॉडल परियोजना के लिए चुकौती की अवधि सात साल निर्धारित की गई है (अनुबंध IV)

वित्तीय सहायता

ऑटोमेटिक दूध संग्रहण केन्द्रों  को राष्ट्रीय बैक द्वारा पुनर्वित्त प्रदान के लिए विचार किया जायेगा। इसलिए अभी सहभागी बैंक परियोजना की तकनीकी व्यवहार्यता, वित्तीय व्यवहार्यता और बैंकिंग व्यवहार्यता (bankability)  के आधार पर इस गतिविधि के वित्तपोषण पर विचार कर सकते हैं।

ऋण प्रदान करने की शर्तें

1. मार्जिन राशि: दूध सहकारी समिति या दूध संग्रहण केन्द्र को सामान्य रूप से परियोजना लागत का 25% अपने स्वयं के संसाधनों से पूरा करना चाहिए।

२. ब्याज दर: ब्याज दर वित्तपोषक बैंक द्वारा निर्धारित की जाएगी। हालाँकि आर्थिकी तैयार करने के लिए ब्याज दर 13.5% प्रति वर्ष मानी जाती है।

सुरक्षा

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा यथा निर्धारित।

बीमा

वित्तीयपोषक बैंक यह सुनिश्चित करें कि दूध समिति/संग्रहण केद्र परिसम्पति के लिए पर्याप्त बीमा सुरक्षा लेता है।

चुकौती अवधि

सृजित समग्र अधिशेष के आधार पर चुकौती अवधि किसी भी छूट अवधि के बिना 7 साल तक हो सकती है।

विशेष नियम और शर्तें

परियोजना की विशेष नियमों और शर्तों को अनुबध V  में दिया गया है।

अनुबंध-1

इकाई लागत और तकनीकी आर्थिकी मापदंड

क्रसं विवरण राशि रूपये में
क. इकाई लागत, बैंक ऋण और मार्जिन राशि  
ऑटोमेटिक दूध संग्रहण केन्द्र की लागत (रु.) 125000
2 मार्जिन राशि (रु०) 31250
3 बैंक ऋण (रु०) 93750
     
आय मापदंड  
1 अधिप्राप्ति दूध की मात्रा (लीटर/दिन) 400
2 दूध के नमूनों की संख्या/दिन 200
3 संरक्षित नमूना दूध की मात्रा (नमूना प्रति मिलीलीटर) 10
4 नमूना दूध की बिक्री @ 10ml/नमूना दूध (लीटर/ माह 60
5 नमूना दूध की बिक्री मूल्य (रु०/लीटर) 24
6. कमर्चारियों पर होने वाले खर्चे में बचत (रु०/माह) 2500
7 स्टेशनरी में बचत (रु०/माह) 250
8 कांच के बर्तनों पर होने वाले खर्च में बचत (रु०/नमूना/दिन) 0.05
9. रसायन एवं डिटर्जेट पर बचत 0.1
व्यव मापदंड  
1. मरम्मत और अनुरक्षण (रु०/माह) 1500
अन्य  
1 ऑटोमेटिक दूध संग्रहण यूनिट पर मुल्याह्रास(%) 15
2 ब्याज दर (%) 13.5
3 चुकौती अवधि (वर्ष) 7

अनुबंध–II

आय और व्यव – ऑटोमेटिक दूध संग्रहण केन्द्र

(रु० लाख में)

क्रसं विवरण वर्ष
  I II III IV V VI VII
1 अधिप्राप्ति दूध की मात्रा (लीटर/दिन) 400 400 400 400 400 400 400
2. दूध के नमूनों की संख्या प्रतिदिन 200 200 200 200 200 200 200
3 संरक्षित नमूना दूध की मात्रा (लीटर/दिन) 2 2 2 2 2 2 2
आय              
i नमूना दूध की बिक्री 0.1752 0.1752 0.1752 0.1752 0.1752 0.1752 0.1752
ii कमर्चारियों पर होने वाले खर्चे में बचत 0.3 0.3 0.3 0.3 0.3 0.3 0.3
iii स्टेशनरी में 0.03 0.03 0.03 0.03 0.03 0.03 0.03
  बचत              
iv कांच के बर्तनों पर होने वाले खर्च में बचत 0.0365 0.0365 0.0365 0.0365 0.0365 0.0365 0.0365
v रसायन एवं डिटर्जेट पर बचत 0.073 0.073 0.073 0.073 0.073 0.073 0.073
  कुल आय (क) 0.6147 0.6147 0.6147 0.6147 0.6147 0.6147 0.6147
व्यव              
i) मरम्मत और अनुरक्षण 0.18 0.18 0.18 0.18 0.18 0.18 0.18
  कुल व्यव (B) 0.18 0.18 0.18 0.18 0.18 0.18 0.18
C समग्र अधिशेष  (क-ख) 0.4347 0.4347 0.4347 0.4347 0.4347 0.4347 0.4347

अनुबंध–III

वित्तीय विश्लेषण- लाभ लागत विश्लेषण, निवल वर्तमान मूल्य और आंतरिक प्रतिफल दर

(रु० लाख में)

क्रसं विवरण वर्ष
I II III IV V VI VII
1 पूंजी  लागत 1.25
2 आवर्तो लागत 0.18 0.18 0.18 0.18 0.18 0.18 0.18
3 कुल लागत 1.43 0.18 0.18 0.18 0.18 0.18 0.18
4 लाभ 0.6147 0.6147 0.6147 0.6147 0.6147 0.6147 0.6147
5 ऑटोमेटिक दूध संग्रहण केन्द्र पर मूल्यह्रास 0 0 0 0 0 0 0 .125
6 कुल लाभ 0.6147 0.6147 0.6147 0.6147 0.6147 0.6147 0.7397
7 निविल लाभ -0.8153 0.4347 0.4347 0.4347 0.4347 0.4347 0.5597
8 डीएफ @ 15% 0.87 0.756 0.658 0.572 0.497 0.432 0.376
9 पीडब्ल्यूसी @ 15%  DF 1.2441 0.13608 0.11844 0.10296 0.08946 0.07776 0.06768
10 पीडब्ल्यूसी @ 15%  डीएफ 0.534789 0.464713 0.404473 0.351608 0.305506 0.26555 0.2781272
11 निवल वर्तमान मूल्य@ 15%  डीएफ 0.76828            
12 लाभ लागत अनुपात @ 15%  डीएफ 1.41:1            
13 आंतरिक प्रतिफल दर 49%            

अनुबंध –IV

चुकौती अनुसूची- ऑटोमेटिक दूध संग्रहण केन्द्र

(रु० लाख में)

वर्ष बैंक   बकाया ऋण समग्र अधिशेष ब्याज का भुगतान @ 13.5% p.a मूलधन की चुकौती कुल व्यव सोसाइटी संग्रहणकेन्द्र को उपलब्ध निवल प्रतिफल डीएससी आर
वर्ष केप्रारंभ में वर्ष के अंत में
1 0.9375 0.8175 0.4347 0.126563 0.12 0.246 0.188 1.763
II 0.8175 0.6975 0.4347 0.110363 0.12 0.214 0.141 1.66
III 0.6975 0.5775 0.4347 0.094163 0.12 0.208 0.147 1.708
IV 0.5775 0.4275 0.4347 0.077963 0.15 0.191 0.164 1.86
V 0.4275 0.2775 0.4347 0.057713 0.15 0.205 0.15 1.733
VI 0.2775 0.1275 0.4347 0.037463 0.15 0.184 0.171 1.93
VII 0.1275 0 0.4347 0.017213 0.1275 0.173 0.182 2.053

औसत डीसीआर/ DSCR 1.81 है

अनुबंध–V

विशिष्ट नियम एवं शर्तें

बैंक को यह सुनिश्चित करना चाहिए:-

  • ऑटोमेटिक मिल्क संग्रहण केन्द्र के वित्त पोषण हेतु, दुग्ध संघ/डेयरी उस दुग्ध समिति/एकत्रीकरण केन्द्र की पहचान करेगा, जिसका दूध एकत्रीकरण प्रतिदिन 400 लीटर से ज्यादा है।
  • दुग्ध संघ/डेयरी समिति/एकत्रीकरण केन्द्र को ऑटोमेटिक मिल्क कलेक्शन यूनिट की खरीद हेतु मागर्दशर्न प्रदान करेगा।
  • दुग्ध संघ/डेयरी मिल्क कोऑपरेटिव सोसाइटी/एकत्रीकरण केन्द्र के सचिव/कर्मियों को ऑटोमेटिक मिल्क कलेक्शन यूनिट के परिचालन एवं रखरखाव के बारे में प्रशिक्षण प्रदान करेगा।
  • दुग्ध संघ/डेयरी मिल्क कोऑपरेटिव सोसाइटी/एकत्रीकरण केन्द्र के लिए अपेक्षित स्टेशनरी आदि की आपूर्ति करेगा।
  • मिल्क कोऑपरेटिव सोसाइटी/एकत्रीकरण केन्द्र आपूर्तिकर्ता फर्म के साथ द्वितीय वर्ष एवं उससे आगे के लिए वार्षिक सेवा करार निष्पादन करेगा।
  • मिल्क कोऑपरेटिव सोसाइटी/एकत्रीकरण केन्द्र ऑटोमेटिक मिल्क संग्रहण केन्द्र को बीमा कम्पनियों से बीमाकृत करायेगा, बशतें कि इस प्रकार की बीमा सुरक्षा उपलब्ध हो।
  • दुग्ध संघ/डेयरी बैंक ऋण की चकौती हेतु गठबंधन व्यवस्था उपलब्ध कराएगा।

स्रोत:- क्षेत्रीय शाखा, नाबार्ड

पशुपालन से संबंधित योजनाएं
पशुपालन से संबंधित योजनाएं

पशुधन बीमा योजना

पशुधन बीमा योजना एक केंद्र प्रायोजित योजना है जो 10वीं पंचवर्षीय योजना के वर्ष 2005-06 तथा 2006-07 और 11वीं पंचवर्षीय योजना के वर्ष 2007-08 में प्रयोग के तौर पर देश के 100 चयनित जिलों में क्रियान्वित की गई थी। यह योजना देश के 300 चयनित जिलों में नियमित रूप से चलाया जा रहा है।

पशुधन बीमा योजना की शुरुआत दो उद्देश्यों, किसानों तथा पशुपालकों को पशुओं की मृत्यु के कारण हुए नुकसान से सुरक्षा मुहैया करवाने हेतु तथा पशुधन बीमा के लाभों को लोगों को बताने तथा इसे पशुधन तथा उनके उत्पादों के गुणवत्तापूर्ण विकास के चरम लक्ष्य के साथ लोकप्रिय बनाने के लिए किया गया।

योजना के अंतर्गत देशी/ संकर दुधारू मवेशियों और भैंसों का बीमा उनके अधिकतम वर्तमान बाजार मूल्य पर किया जाता है। बीमा का प्रीमियम 50 प्रतिशत तक अनुदानित होता है। अनुदान की पूरी लागत केंद्र सरकार द्वारा वहन की जाती है। अनुदान का लाभ अधिकतम दो पशु प्रति लाभार्थी को अधिकतम तीन साल की एक पॉलिसी के लिए मिलता है।

यह योजना गोवा को छोड़कर सभी राज्यों में संबंधित राज्य पशुधन विकास बोर्ड द्वारा क्रियान्वित की जा रही है।

योजना में शामिल पशु तथा लाभार्थियों का चयन

  • देशी/ संकर दुधारू मवेशी और भैंस योजना की परिधि के अंतर्गत आएंगे। दुधारू पशु/ भैंस में दूध देनेवाले और नहीं देनेवाले के अलावा वैसे गर्भवती मवेशी, जिन्होंने कम से कम एक बार बछड़े को जन्म दिया हो, शामिल होंगे।
  • ऐसे मवेशी जो किसी दूसरी बीमा योजना अथवा योजना के अंतर्गत शामिल किये गये हों, उन्हें इस योजना में शामिल नहीं किया जाएगा।
  • अनुदान का लाभ प्रत्येक लाभार्थी को 2 पशुओं तक सीमित रखा गया है तथा एक पशु की बीमा अधिकतम 3 वर्षों के लिए की जाती है।
  • किसानों को तीन साल की पॉलिसी लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा, जो सस्ती और बाढ़ तथा सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने पर बीमा का वास्तविक लाभ पाने में उपयोगी हो सकती हैं। फिर भी यदि कोई किसान तीन साल से कम अवधि की पॉलिसी लेना चाहता है, तो उसे वह भी दिया जाएगा और उसे उसी मवेशी का अगले साल योजना लागू रहने पर फिर से बीमा कराने पर प्रीमियम पर अनुदान उपलब्ध कराया जाएगा।

पशुओं के बाजार मूल्य का निर्धारण

किसी पशु की बीमा उसके अधिकतम बाजार मूल्य पर की जाएगी। जिस बाजार मूल्य पर बीमा की जाती है उसे लाभार्थी, अधिकृत पशु चिकित्सक एवं बीमा एजेंट द्वारा सम्मिलित रूप से की जाती है।

बीमाकृत पशुओं की पहचान

बीमा किये गये पशु की बीमा-राशि के दावा के समय उसकी सही तथा अनोखे तरीके से पहचान की जानी होगी। अतः कान में किये अंकन को हरसंभव तरीके से सुरक्षित किया जाना चाहिए। पॉलिसी लेने के समय कान में किये जाने वाले पारंपरिक अंकन या हाल के माइक्रोचिप लगाने की तकनीकी का प्रयोग किया जाना चाहिए। पहचान चिह्न लगाने का खर्च बीमा कंपनी द्वारा वहन किया जाएगा तथा इसके रख-रखाव की जिम्मेदारी संबंधित लाभार्थियों की होगी। अंकन की प्रकृति तथा उसकी सामग्री का चयन बीमा कंपनी तथा लाभार्थी, दोनों की सहमति से होता है।

बीमा की वैधता अवधि में स्वामित्व में परिवर्तन

पशु की बिक्री या अन्य दूसरे प्रकार के हस्तांतरण स्थिति में, यदि बीमा पॉलिसी की अवधि समाप्त न हुई हो तो बीमा पॉलिसी की शेष अवधि का लाभ नये स्वामी को हस्तांतरित किया जाएगा। पशुधन नीति के ढंग तथा शुल्क एवं हस्तांतरण हेतु आवश्यक विक्रय-पत्र आदि का निर्णय, बीमा कंपनी के साथ अनुबंध के समय ही कर लेनी चाहिए।

दावे का निपटारा

यदि दावा बाकी रह जाता है, तो आवश्यक दस्तावेज जमा करने के 15 दिन के भीतर बीमित राशि का भुगतान निश्चित तौर पर कर दिया जाना चाहिए। बीमा कंपनियों द्वारा दावों के निष्पादन के लिए केवल चार दस्तावेज आवश्यक होंगे, जैसे बीमा कंपनी के पास प्रथम सूचना रिपोर्ट, बीमा पॉलिसी, दावा प्रपत्र और अंत्यपरीक्षण रिपोर्ट। पशु की बीमा करते समय मुख्य कार्यकारी अधिकारी यह सुनिश्चित करते हैं दावा के निपटारे हेतु स्पष्ट प्रक्रिया का प्रावधान किया जाए तथा आवश्यक कागजों की सूची तैयार की जाए एवं पॉलिसी प्रपत्रों के साथ उसकी सूची संबंधित लाभार्थियों को भी उपलब्ध करवाई जाए।दावा प्रक्रियाएक जानवर की मौत की घटना में, तत्काल सूचना बीमा कंपनियों के लिए भेजा जाना चाहिए और निम्नलिखित आवश्यकताओं को प्रस्तुत किया जाना चाहिए:

  • विधिवत दावा प्रपत्र पूरा।
  • मृत्यु प्रमाण पत्र कंपनी के फार्म पर योग्य पशुचिकित्सा से प्राप्त की।
  • शवपरीक्षा परीक्षा रिपोर्ट अगर कंपनी द्वारा की आवश्यकता है।
  • कान टैग जानवर को लागू आत्मसमर्पण किया जाना चाहिए। ‘कोई टैग नहीं दावा’ की हालत अगर टैग नहीं की जरूरत है लागू किया जाएगा

पीटीडी दावा प्रक्रिया

  • योग्य चिकित्सक से एक प्रमाण पत्र प्राप्त किया जा करने के लिए।
  • पशु कंपनी के पशु चिकित्सा अधिकारी द्वारा भी निरीक्षण करेंगे।
  • उपचार के चार्ट पूरा इस्तेमाल किया, दवाओं, रसीदें, आदि प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
  • दावे की ग्राह्यता पशु चिकित्सक / कंपनी डॉक्टर की रिपोर्ट दो महीने के बाद विचार किया जाएगा।
  • क्षतिपूर्ति बीमित रकम का 75% तक ही सीमित है।

चारा और चारा विकास योजना

पशु पालन, डेयरी तथा मत्स्यपालन विभाग द्वारा एक केन्द्र प्रायोजित चारा विकास योजना चलाई जा रही है, जिसका उद्देश्य चारा विकास हेतु राज्यों के प्रयासों में सहयोग देना है। यह योजना 200506 से निम्नलिखित चार घटकों के साथ चलाई जा रही है:

  • चारा प्रखंड निर्माण इकाइयों की स्थापना
  • संरक्षित तृणभूमियों सहित तृणभूमि क्षेत्र
  • चारा फसलों के बीज का उत्पादन तथा वितरण
  • जैव प्रौद्योगिकी शोध परियोजना

केन्द्र प्रायोजित चारा विकास योजना का 2010 से उपलब्ध चारा के दक्ष प्रयोग को सुनिश्चित करने के लिए उन्नयन किया गया है। इस मद में 141.40 करोड़ रुपये की विनियोग राशि के साथ इस योजना में निम्नलिखित नए घटक/तकनीक मध्यस्थता शामिल हैं:

  • चारा परीक्षण प्रयोगशालाओं का सशक्तीकरण
  • कुट्टी काटने वाली मशीन से लोगों को परिचित कराना
  • साइलो-संरक्षण इकाइयों की स्थापना
  • एजोला की खेती और उत्पादन इकाइयों का प्रदर्शन
  • बाय-पास प्रोटीन उत्पादन इकाइयों की स्थापना
  • क्षेत्र विशेष खनिज मिश्रण (ASMM) इकाइयों/चारा गोली निर्माण इकाइयों/चारा उत्पादन इकाइयों की स्थापना

चल रहे घटक, चारा प्रखंड निर्माण ईकाइयों की स्थापना के अंतर्गत भागीदारी बढ़ाने के लिए अनुदान की राशि 50% बढ़ा दी गई है तथा संरक्षित तृणभूमियों सहित तृणभूमि विकास के अंतर्गत सहायता के लिए भूमि अधिग्रहण हेतु भूमि का रकवा 5-10 uw. कर दिया गया है।

घटकों के बारे में विवरणवित्त पोषण का रूपइकाई लागत तथा 11वीं योजना के शेष वर्षों के दौरान प्राप्त किए जाने वाले लक्ष्य निम्नलिखित हैं:

परिवर्तित घटकों का नाम/नए घटक लाभार्थी सहयोग का रूप इकाई लागत (लाख में)
चारा प्रखंड निर्माण इकाइयों की स्थापना सहकारी संस्थाओं तथा स्वयं सहायता समूहों सहित राजकीय/निजी उद्यमिता 50:50 85.00
संरक्षित तृणभूमियों सहित तृणभूमि विकास किसान, पशुपालन एवं वन विभाग। यद्यपि गैर-सरकारी संगठन/ग्राम पंचायत, पंचायत की भूमि पर तृणभूमि तथा अन्य सामूहिक संपदा संसाधनों के विकास में होंगे। 100:00 0.70
चारा फसलों के बीज का उत्पादन तथा वितरण किसान लाभान्वित होंगे। राज्य सरकार लघु उद्योग संघों/सहकारी डेयरियों/गैर-सहकारी संगठनों को परियोजना के क्रियान्वयन में शामिल करेगी। 5,000 रु./क्विंटल की दर से कुल 37,000 क्विंटल चारा के बीज राज्य सरकार द्वारा प्राप्त किए जाएंगे और बीजों को किसानों में वितरित किया जाएगा। 75:25 0.05
चारा परीक्षण प्रयोगशालाओं का सशक्तीकरण पशुपालन कॉलेजों/ कृषि विश्वविद्यालयों की  मौजूदा पशु-पोषण प्रयोगशालाएं। धनराशि चारा विश्लेषण हेतु आवश्यक  मशीनरी/ उपकरणों की खरीद के लिए स्वीकृत की जाएगी अनुमोदित उपकरणों की सूची जारी की जाएगी। 50:50 200.00
हाथ से चलने वाली कुट्टी काटने की मशीन किसान और सहकारी दुग्ध समितियों के सदस्य/ आत्मा/ कृषि विकास केंद्र 75:25 0.05
शक्ति चालित कुट्टी काटने की मशीन किसान और सहकारी दुग्ध समितियों के सदस्य/ आत्मा/ कृषि विकास केंद्र 75:25 0.20
साइलो-संरक्षण ईकाइयों की स्थापना किसान और सहकारी दुग्ध समितियों के सदस्य/ आत्मा/ कृषि विकास केंद्र 100:00 1.05
एजोला की खेती और उत्पादन इकाइयों का प्रदर्शन किसान और सहकारी दुग्ध समितियों के सदस्य/ आत्मा/ कृषि विकास केंद्र 50:50 0.10
बाय-पास प्रोटीन उत्पादन इकाइयों की स्थापना किसी व्यावसायिक बैंक द्वारा परियोजना की उपयुक्तता हेतु अभिप्रमाणित डेयरी संघ/निजी उद्यमी 25:75 145.00
क्षेत्र विशेष खनिज मिश्रण इकाइयों/चारा गोली निर्माण इकाइयों/चारा उत्पादन इकाइयों की स्थापना किसी व्यावसायिक बैंक द्वारा परियोजना की उपयुक्तता हेतु अभिप्रमाणित सहकारी दुग्ध समितियों तथा स्वयं सहायता समूहों सहित राजकीय/निजी उद्यमिता। धनराशि केवल मशीनरी और उपकरणों की खरीद के लिए ही स्वीकृत की जाएगी। 25:75 100.00

स्रोत:http://pib.nic.in/

वृक्षारोपण हेतु अनुदान सहायता राशि
वृक्षारोपण हेतु अनुदान सहायता राशि

पर्यावरण एवं वन मंत्रालय 10वीं  पंचवर्षीय योजना में विभिन्न क्रियान्वयन करने वाली संस्थाओं को, “हरित”-भारत” योजना के लिए अनुदान सहायता राशि के रूप में वितीय सहायता प्रदान कर रहा है | योजना के अन्तर्गत, वनीकरण और गुणवतापूर्ण रोपण सामग्री उत्पादन हेतु उच्च तकनीक वाली / उपग्रह पौधशालाओं की स्थापना सरकारी, सामुदायिक और निजीभूमि पर करने हेतु वितीय सहायता |प्रदान की जाती है | योजना की मार्गदर्शिका एवं आवेदन पत्र के प्रारूप की प्रतियाँ  सभी राज्यों/संघ शासित राज्यों के प्रधान मुख्य वन संरक्षकों के पास उपलब्ध करा दी गयी हैं, इसे मंत्रालय की वेबसाइट http//www.envfor.nic.in पर भी प्राप्त किया जा सकता है |

पात्रता की शर्ते

वृक्षारोपण उपग्रह पौधशाला की स्थापना करना केन्द्रीय उच्च तकनीक पौधशाला
थ्कयान्वय करने वाली संस्थायें सरकारी विभाग, नगरीय स्थानीय संस्थायें, पंचायती राज संस्थायें राज्य वन विभाग, पंजीकृत सामाजिक संस्थायें, अलाभकृत संस्थायें सहकारी समितियों, परोपकारी न्यास, स्वयं सेवी संस्थायें, सार्वजनिक संस्थान, स्वायत संस्थायें पंजीकृत विद्यालय, कालेज एवं विश्वविद्यालय (i) राज्य के वन विभाग या अन्य वानिकी /कृषि अनुसंधान संस्थानों / वन विकास अभिकरणों/किसान जो गरीबी रेखा से नीचे के हैं / वृक्ष उगाने वाली सहकारी समितियों / पंचायत के साथ मिलकर |(ii)  कोई भी व्यक्ति / किसान जो गरीबी रेखा के नीचे के हों और निजी कार्मिक | राज्य के वन विभाग स्वयं या वानिकी / कृषि अनुसंधान संस्थानों /वन विकास अभिकरणों /किसान जो गरीबी रेखा से नीचे हों /वृक्ष उगाने वाली सहकारी समितियों / पंचायत के साथ मिलकर |
पंजीकरण की कम से कम अवधि 31 मार्च तक पंजीकरण कराये हुए  5 वर्ष पुरे करे लिए हों | आवेदन करते समय स्थानीय नियमों एवं कानूनी प्रावधानों के अनुरूप पंजीकृत होना चाहिए | लागु नहीं
टनुभव पर्यावरण या उससे सम्बन्धित सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने का कम से कम 3 वर्ष का अनुभव गुणवता पूर्ण वृक्षारोपण की सामग्री तैयार करने, उसके साधनों की तथा पौधशला तैयार करने का कम से कम 3 वर्ष का अनुभव लागू नहीं  

राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (PCCF) को वृक्षारोपण और उपग्रह पौधशाला तैयार करने सम्बन्धी परियोजना प्रस्तावों को प्राप्त करने एवं उनकी जाँच करने के लिए राज्य में मुख्य बिन्दु के रूप में अधिकृति किया गया है | हर प्रकार से पूर्ण परियोजना प्रस्ताव निर्धारित प्रपत्र पर दो प्रतियों में सीधे सम्बन्धित राज्य/केन्द्र शासित राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक को प्रस्तुत किये जाने चाहिए| योजना की मार्गदर्शिका के अनुरूप तैयार परियोजना प्रस्ताव राज्य / केन्द्र शासित राज्य के वन-विभागों के पास प्रति वर्ष 30 जून तक प्राप्त किये जायेगें | प्रत्येक राज्य के परियोजना प्रस्तावों को प्रधान मुख्य वन संरक्षक  द्वारा अच्छी प्रकार से जाँच करके एवं प्राथमिकता के आधार पर अग्रसारित किया जाना चाहिए | प्रधान मुख्य वन संरक्षकों के पास से सभी आवश्यक सामग्री के साथ परियोजना प्रस्तावों को इस मंत्रालय के पास प्रति वर्ष 31 जुलाई तक भेजने की अंतिम तिथि है | सभी परियोजना प्रस्तावों/ आवश्यक सामग्री/ कागजातों को केवल पंजीकृत डाक द्वारा ही भेजा जा सकता है |

कोई भी परियोजना प्रस्ताव मंत्रालय द्वारा  सीधे प्राप्त अथवा ग्रहण नहीं किया जायेगा |

संचालक मार्गदर्शिका

राष्ट्रीय वन-नीति 1988 के प्रावधानों के अनुरूप देश के भौगोलिक क्षेत्र के एक तिहाई भाग पर वनों एवं वृक्षों का आवरण बढ़ाना, देश की आर्थिक एवं पारिस्थितिकी सुरक्षा की दृष्टि से विशेषकर ग्रामीण निर्धनों के लिए अत्यावश्यक है | एक तिहाई भूमि पर वन एवं वृक्षारोपण आवरण के लक्ष्य को प्राप्त करने में वनों के बाहरी क्षेत्रों के वर्तमान वार्षिक वृक्षारोपण कार्यक्रम में 4 गुना वृद्धि करनी होगी | वनों के बाहरी क्षेत्रों की भूमि पर वृक्षारोपण करने का कार्य वृक्षारोपण करने वालो को बहुत कम लाभ होने की वजह से बहुत मन्द हो गया | यह मुख्य रूप से कम उत्पाद और वनोत्पादनों की घटिया किस्म की वजह से हुआ | वृक्ष उगाने वालों को उच्च उत्पादकता वाले (क्यू.पी.एम.) पौधे आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाते, इसका कारण यह है कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छे किस्म के पौधे उगानें की सुविधा नहीं है और अच्छे किस्म के पौधों के उत्पादन से होने वाले लाभों के बारे में जागरूकता का भी अभाव है | इन बाधाओं को ध्यान में रखकर अनुदान सहायता राशि योजना के स्वरूप को बदलते हुए स्वैच्छिक संस्थाओं को वृक्षारोपण के लिए सहायता प्रदान करते हुए उसमें एक अतिरिक्त घटक अच्छी किस्म वाली पौध-सामग्री (क्यू.पी.एम.) का उत्पादन और उसके लिए जन-जागरण के कार्यक्रम को शामिल किया गया है | पुनगर्ठन योजना जिसका नाम “हरित भारत के लिए अनुदान सहायता राशि” योजना रखा  गया है यह विस्तृत रूप से वृक्षारोपण के 3 स्वरूपों पर केन्द्रित होगी-

(अ)   अच्छी किस्म वाली प्रजातियों के पौधें (क्यू.पी.एम.) और वृक्षारोपण के विषय में जन-जागरण उत्पन्न करना|

(ब) अच्छी किस्म वाली प्रजातियों (क्यू.पी.एम.) के उत्पादन की क्षमता बढ़ाना |

(स)   लोगों की भागीदारी द्वारा वृक्षारोपण करना |

योजना के उद्देश्य

इसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

(i) विभिन्न स्तरों पर वृक्षारोपण और अच्छी किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री के उत्पादन एवं उसके प्रयोग के विषय में क्षमता-संवर्ध्दन का वातावरण तैयार कर समर्थ बनाना|

(ii) उच्च तकनीकी पौधशालाओं (high tech nurseries) की स्थापना द्वारा अच्छी किस्म की वृक्षारोपण सामग्री उपलब्ध करवाना|

(iii) लोगों में वृक्षारोपण की उच्च तकनीक और अच्छी किस्म की वृक्षारोपण सामग्री (क्यू.पी.एम) के उत्पादन के प्रयोग के बारे में जागरूकता फैलाना|

(iv) अच्छी किस्म वाली प्रजातियों के उत्पादन तंत्र को विकसित करना तथा उसके उपयोग करने वालो के बीच समन्वय स्थापित करने में सहायता करना|

(v) गैर वन-भूमि को केन्द्रित कर देश में वन आवरण बढ़ाने में योगदान देना|

जनता की भागीदारी

जनता की भागीदारी का प्रकरण योजना का केन्द्र होगा |राज्य के वन विभाग और अन्य क्रियान्वयन /सहयोगी अभिकरणों और विभागों से इस प्रसंग/प्रकरण को ध्यान में रखकर अच्छी किस्म की उत्पादन सामग्री को उत्पन्न करने से सम्बन्धित सभी क्रिया-कलापों के बारे में योजना बनाने की अपेक्षा की जाती है | प्रजातियों का चयन, पौधशाला का स्थान,पौध-रोपण का स्थान,व्यक्तिगत स्तर पर लाभार्थी इत्यादि का चयन सम्बन्धित लोगों से परामर्श करके किया जाना चाहिए| कार्यक्रम में क्रियान्वयन/सहयोगी अभिकरण (जैसा 4.3.1 में दिया गया है)जनता की भागीदारी के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य करेंगी |

योजना के अन्तर्गत लाभर्थियों का चयन विशेषकर स्थानीय लोगों, गरीबी रेखा से नीचे वाले किसानों को ग्राम पंचायत /ग्राम सभा /संयुक्त वन-प्रबन्ध समिति/ स्थानीय संस्थाओं आदि से परामर्श के पश्चात किया जाना चाहिए| परियोजना स्थल पर पौध लगाने के लिए प्रजातियों का चयन और भूमि से मिलने वाली उपज के बँटवारे तथा वृक्षारोपण से होने वाले लाभ के वितरण की युक्ति ग्राम पंचायत/ग्राम सभा/ संयुक्त वन प्रबन्ध समिति/ स्थानीय निकाय से परामर्श के पश्चात निश्चित की जानी चाहिए और विचारों एवं लिये गये निर्णयों को सूक्ष्म योजना के रूप में क्षेत्र में क्रियान्वयन करने के लिए आकर देना चाहिए|परियोजना प्रस्ताव में पहचान किये गये लाभर्थियों की सूची और लाभार्थियों को शामिल करके तैयार की गयी सूक्ष्म योजना को भी शामिल किया जाना चाहिए| सूक्ष्म   योजना के अंतर्गत प्रजातियां जिनका वृक्षारोपण करना है, देखभाल करने का तरीका, किस वर्ष में लाभ मिलेगा और लाभ को वितरित करने का तरीका आदि को सम्मिलित किया जाना चाहिए|

फसल की कटाई और लाभ वितरण की प्रक्रिया

योजना का मुख्य उद्देश्य हरियाली को बढ़ाना और सुरक्षा के लिए लोगों को शामिल करना है| लोगों की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए, यह अति आवश्यक है कि एक ऐसी व्यवस्था की जाय कि लोगों को लगातार इससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लाभ मिलता रहे| एक बार प्रजातियाँ जिनका चयन वृक्षारोपण के लिए कर लिया गया है और फसल की कटाई या उसके तैयार होने की अवधि निश्चित कर ली गयी है, उसके पूरा होने पर एक तिहाई क्षेत्र, जिस पर वृक्षारोपण किया गया है, सिल्वीकल्चर के सिद्धान्त के अनुसार उसकी कटाई एवं उस पर पुन:वृक्षारोपण कर लेना चाहिए तथा बाकी भाग को अगले दो वर्षो में दोहराया जाना चाहिए जिससे पुरे क्षेत्र में पुन:वृक्षारोपण हो सके और लोगों को निकले हुए उत्पादों के रूप में लाभ प्राप्त हो सके |मध्य-कालिक एवं अन्तिम पैदावार के लिए सूक्ष्म योजना के एक भाग के रूप में लाभ-वितरण की युक्ति को तय किये जाने की आवश्यकता है| उपरोक्त बातें सामुदायिक भूमि के लिए लागू हैं | व्यक्तिगत भूमि के मामले में, शत-प्रतिशत लाभ भूमि के मालिक को मिलेगा| वन-भूमि के मामले में इस प्रकार की युक्ति को स्थानीय वन विभाग के अधिकारीयों से,जैसा कि राज्य के संयुक्त वन प्रबन्ध प्रस्ताव में दिया गया है, परामर्श के पश्चात अन्तिम रूप दिया जाना चाहिए| क्रियान्वयन करने वाली एजेंसी की यह जिम्मेदारी होगी कि वह सुनिश्चित करे कि उपरोक्त प्रक्रियाओं का पालन किया गया है |

योजना के घटक

योजना के मुख्य घटक निम्न हैं –

1   जागरूकता पैदा करना, विस्तार एवं प्रशिक्षण |

2   वृक्षारोपण हेतु अच्छे प्रकार के पौधों का उत्पादन|

3   वृक्षारोपण |

जागरूकता पैदा करना, विस्तार एवं प्रशिक्षण

राज्य के वन विभाग को वितीय सहायता केन्द्रीय वन विकास अभिकरण,जो राज्य की राजधानी में स्थित अथवा प्रधान मुख्य वन संरक्षक के कार्यलय के स्थान में गठित की गयी है, द्वारा दी जायेगी जिसका उद्देश्य निम्न प्रकार है:

1.1 निम्नलिखित चीजें प्रवाकर तथा उसे वितरित करवाकर जारुकता उत्पन्न करना-

– पौधशाला / वृक्षारोपण की तकनीक, महत्वपूर्ण वृक्षों की प्रजातियों की बाजार व्यवस्था एवं उससे होने वाले आर्थिक लाभ के विषय में पर्चे|

– उच्च तकनीक / सैटेलाइट पौधशाला की स्थापना, प्रजातियों (प्रकार एवं मात्रा) का आंकलन करना तथा भूमि की उपलब्धता का आंकलन|

1.2 अच्छी किस्म वाली पौध-सामग्री के उत्पादन, वृक्षारोपण, सूक्ष्म नियोजन के लिए प्रशिक्षण |

1.3 सर्वेक्षण – गैर वन भूमि एवं वन भूमि की उपलब्धता की सीमा, प्रजातियों का चयन एवं उनकी आवश्यक मात्रा, सुनिश्चित करने हेतु एक आंकलन सर्वेक्षण प्रत्येक राज्य के वन विभाग द्वारा संख्या जानने एवं केन्द्रीय उच्च तकनीक / सैटेलाइट पौधशालाओं के स्थान निर्धारित करने के लिए किया जायेगा |

उच्च कोटि की पौध-सामग्री उत्पन्न करना

2.1. योजना के अंतर्गत वितीय सहायता, राज्य के वन विभाग को एक केन्द्रीय वन विकास अभिकरण, जो राज्य की राजधानी में या प्रधान मुख्य वन संरक्षक के कार्यलय में स्थित होगी, जो उच्च कोटि की पौध सामग्री के उत्पादन एवं उपलब्धता की सुविधा प्रदान करेगी | केन्द्रीय वन विकास अभिकरण प्रधान मुख्य वन संरक्षक के आदेश पर वितीय सहायता जारी करेगी |

2.2. राज्य वन विभाग, उच्च कोटि की पौध सामग्री (क्यू.पी.एम.) के उत्पादन एवं उसकी उपलब्धता सुनिश्चित कराने हेतु एक अग्रणीय अभिकरण (नोडल एजेंसी) के रूप में कार्य करेगी |ये या तो  स्वयं वानिकी/कृषि अनुसंधान संगठनों /वन विकास अभिकरणों / गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले किसानों /पौधे उगाने वाली सहकारी संस्थाओं और पंचायतों के साथ सहयोग करके उच्च कोटि की पौध सामग्री तैयार करेंगे | व्यक्ति / निजी प्रतिष्ठान जिनमें गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले किसान / जो अपनी पौधशला स्थापित करना चाहते हैं उन्हें सैटेलाइट पौधशला स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा | इस प्रकार के व्यक्ति /प्रतिष्ठान/ गरीबी रेखा के नीचे वाले किसानों को आवेदन करते समय स्थानीय नियमों एवं अधिनियमों के प्रावधानों के अनुरूप पंजीकृत होने चाहिए |

उच्च कोटि की पौध-सामग्री की बिक्री से प्राप्त लाभ नोडल वन विकास अभिकरण के पास वापस आयेगा जिसका उपयोग एक चक्रीय कृषि के रूप में पौधशालाओं को भविष्य में चलते रहने के लिए किया जायेगा सैटेलाइट /उच्च तकनीक पौधशला की स्थापना हेतु दृष्टान्तयुक्त मार्गदर्शिका संलग्नक VI में दी गयी है |

2.3 उच्च कोटि वाली पौध-सामग्री के उत्पादन के अन्तर्गत क्रियायें समाहित होंगी –

(अ)  उच्च कोटि पौध सामग्री का उत्पादन हाइटेक पौधशाला / सैटेलाइट पौधशाला की स्थापना उच्च कोटि की तकनीकी सुविधा बढाकर करना, जिसमें प्रति हेक्टेयर क्षेत्र के अन्तर्गत प्रत्येक वर्ष 1 लाख पौधें उगाये जा सके (कम से कम एक सैटेलाइट पौधशाला के लिए 500 वर्ग मिटर भूमि उपलब्ध करानी होगी) |

(ब) उच्च कोटि की पौध-सामग्री को प्रमाणित करना |

– राज्य के वन विभाग को इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि एजेंसी / सरकारी विभाग जिन्हें योजना के अन्तर्गत वृक्षारोपण हेतु वितीय सहायता प्रदान की जा रही है या प्रदान की जाने वाली है, उनके द्वारा अच्छी किस्म वाली पौध-सामग्री की पौधशला स्थापित करने की योजना तथा स्थान का चुनाव करते समय पौध की खपत का सही आंकलन कर लिया है |

2.4 उच्च कोटि की पौध रोपण सामग्री के उत्पादन के लिए अर्हतायें (Eligibility criteria for production of QPM)

(अ)  राज्य में विशेषकर राज्य की राजधानी में पहले से बनी हुई पौधशालायें जिनकी क्षमता 1 लाख पौधें की है उन्हें केन्द्रीय उच्च तकनीकी पौधशालाओं की स्थापना हेतु वरीयता दी जा सकती है |

(ब)   सैटेलाइटे पौधशला स्थापित करने वाले आवेदक को आवश्यक सामग्री जैसे भूमि, पानी का स्रोत इत्यादि का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करना चाहिए जो पौधशालाओं को लम्बे समय तक जारी रखने के लिए आवश्यक है | आवेदक को पौधशालाओं के उगाने का कम से कम 3 वर्षो का अनुभव होना आवश्यक है, उसे अच्छी किस्म वाली पौध सामग्री प्राप्त करने वाले स्रोतों का ज्ञान जागरूकता होनी चाहिए |ऐसे व्यक्ति/प्रतिष्ठान /किसान को आवेदन करते समय वर्तमान स्थानीय अधिनियमों एवं नियमों के अन्तर्गत पंजीकृत होना चाहिए |

(स) सैटेलाइट /उच्च तकनीक पौधशालाओं की स्थापना हेतु सार्वजनिक, निजी अथवा व्यक्तिगत भूमि का उपयोग किया जा सकता है |

नोट: (वन विकास अभिकरण के कार्यकलापो एवं उतरदायित्वों के विषय में संलग्नक-| में दिया गया है) |

2.5 उच्च कोटि की पौध-रोपण सामग्री को प्रमाणित करना

उच्च कोटि की पौध-रोपण सामग्री जो उच्च तकनीकी पौधशालाओं या टिस्यू-कल्चर प्रयोगशाला में विश्वसनीय वनस्पतियों से या बीज से उत्पन्न हों और जिनका दीर्धकालिक समय तक जीवित (बने) रहले का उच्च स्तर का विश्वसनीय रिकार्ड हो, और तिव्र वृद्धि वाले अच्छी पैदावार वाले पौधों का, जो दीमक एवं अन्य रोगों से बचने की क्षमता रखते हों और जो स्थानीय जैव-भौतिकी, जलवायु और सामाजिक-आर्थिक दशाओं के अनुरूप हों तथा जिनकी बाजार में अत्यधिक माँग हो, वे ही अच्छी किस्म वाली पौधों सामग्री के लिए पात्र हैं | उच्च कोटि की पौध रोपण सामग्री का स्रोत समुचित रूप से स्थापित बीज-उद्यान, क्लोनल उद्यानों, टूटे (pins trees), वृक्षों एवं उच्च तकनीकी पौधशालायें ही होनी चाहिए | उत्पादक-कलम (mother stock) जिसका उपयोग उच्च तकनीक वाली और सैटेलाइट पौधशालाओं में अच्छे किस्म के पौध रोपण सामग्री के लिये किया जाना है, के भिन्न-भिन्न अनुवांशिक स्रोतों से प्राप्त की जानी चाहिए | राज्य के वन विभाग अच्छी किस्म वाली पौध-रोपण सामग्री को प्रमाणित करने के लिए उतरदायी होंगे | इसके लिए क्षेत्रीय/ सामाजिक वानिकी वन अधिकारियों को प्रमाणीकरण हेतु अधिकृत किया जा सकता है |प्राधिकारी उच्च कोटि की पौध रोपण सामग्री के उत्पादक स्रोत के रूप में बीज-उद्यानों , क्लोनल उद्यानों/छंटे वृक्षों /उच्च तकनीकी पौधशालाओं /टिस्यूकल्चर वाली सुविधाओं / सरकारी विभागों /व्यक्तिगत संस्थाओं /व्यक्तियों की सैटेलाइट पौधशालाओं का उच्च कोटि के पौधों के उत्पादक स्रोत में पंजीकरण करेगा | अधिकृत व्यक्ति को समय-समय पर यह सुनिश्चित करने के लिए निरिक्षण/जाँच करनी होगी कि वृक्षारोपण वाली सामग्री जो पौधशालाओं /प्रयोगशालाओं में उत्पन्न की जा रही है उच्च श्रेणी की हैं प्रमाणीकरण अधिकारी वृक्षारोपण सामग्री जो पंजीकृत पौधशालाओं के अलावा अन्य स्रोतों से अच्छी किस्म वाली पौधरोपण सामग्री के रूप में आ रही हैं, उन्हें भी प्रमाणित करने का अधिकार होगा | राज्य के वन विभाग प्रमाणीकरण अधिकारी अच्छी किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री को प्रमाणित करने में जिन प्रक्रियाओं का पालन करना होगा उसके लिए अधिसूचना जारी करेंगे |

वृक्षारोपण

वृक्षारोपण हेतु, वितिय सहायता सीधे स्वैच्छिक संस्थाओं, किसान समितियों, वृक्ष उगाने वाली समितियों,पंजीकृत शौक्षिक संस्थाओं, ट्रस्ट आदि प्रदान की जायेगी | सरकारी विभागों द्वारा  वृक्षारोपण कार्य करने के लिए वितीय सहायता राज्य के वन विभाग के माध्यम से प्रदान की जायेगी |

3.1. वृक्षारोपण हेतु संस्थायें,जिन्हें मदद की जा सकती है

राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद की “हरित भारत” योजना के लिए अनुदान सहायता राशि योजना के अन्तर्गत वितीय सहायता के लिए परियोजना प्रारूप जो परिषद को भेंजे गये हैं, केवल निम्नलिखित से ही स्वीकार किये जायेंगे |

(अ)   सरकारी विभाग, शहरी स्थानीय निकाय, पंचायती राज संस्थायें |

(ब)   सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, स्वायत निकाय |

(स)  पंजीकृत सहकारी समितियाँ, अलाभकारी संस्थायें, सहकारी समितियाँ, परोपकारी न्यास (चैरिटेबल ट्रस्ट),स्वैच्छिक संस्थाये |

(द)  पंजीकृत विध्यालय, महाविद्यालय  (कालेज), विश्व-विद्यालय   |

(य)  राज्य क वन विभाग |

1.2. केवल उन संस्थाओं को ही वितीय सहायता प्रदान करने पर विचार किया जायेगा , जिनका पंजीकरण 5 वर्ष पुराना हो और जिन्हें (कम से कम 3 वर्षे का) पर्यावरण के क्षेत्र में या इससे सम्बन्धित सामाजिक क्षेत्रों में लोगों के बीच कार्य करने का अनुभव हो | सरकारी विभागों के अलावा अन्य संस्थाओं के मामले में उन्हें पिछले लगातार 3 वर्षे के खातों का अंकेक्षित लेखा-जोखा भी भेजना होगा | उस समय जब तक उच्च कोटि की वृक्षारोपण सामग्री उच्च तकनीक/सैटलाइट पौधशाओं, जिन्हें इस योजना के अन्तर्गत सहायता मिली हो, से प्राप्त नहीं हो जाती, संस्थाओं को अच्छे किस्म वाली प्रमाणित वृक्षारोपण सामग्री दूसरे अन्य स्रोतों द्वारा प्राप्त करना होगा जिसे राज्य के वन विभाग द्वारा प्रमाणित किया गया हो |

1 उच्च तकनीकी / सैटेलाइट पौधाशालयें उच्च कोटि की रोपण सामग्री इस योजना से सहायता प्राप्त संस्थाओं को उपलब्ध करायेंगी लिकिन एक पौधें का मूल्य रु 10.00 से अधिक नही होगा | उच्च कोटि की रोपण सामग्री का उत्पादन और पूर्ति में लगभग दो वर्ष का समय लगेगा जो जागृति के स्तर व राज्य में उपलब्ध साधनों पर निर्भर होगा | जब तक उच्च कोटि की रोपण सामग्री उपलब्ध नही हो जाती योजना में सबसे अच्छी रोपण सामग्री जो राज्य वन विभाग द्वारा | प्रमाणित हो उसका प्रयोग किया जायेगा |

1.3. सरकारी विभागों के अतिरिक्त अन्य संस्थाओं में समुचित ढंग से गठित एक प्रबन्ध समिति होनी चाहिए, जिसके अधिकार, कर्तव्यों और उतरदायित्यों का वर्णन लिखित रूप से एवं संविधान/नियमावली में दिया गया हो |

1.4 संस्था की वितीय स्थिति, जिस प्रकार की परियोजना को चलाना चाहती है उसके लिए, ठीक होनी चाहिए | इसे किसी व्यक्ति या लोगों के समूह के लाभ के लिए नहीं चलाया जा सकता | परियोजना के सफल क्रियान्वयन हेतु उसके पास सुविधायें, संसाधन, अनुभव और कर्मचारी होने चाहिए |

1.5 क्रियान्वयन करने वाली एजेंसी नीचे दिये गये ढंग से वृक्षारोपण कार्य करेगी –

–  लाभ रहित संस्थायें/स्वैच्छिक संस्थाये (निजी भूमि, सामुदायिक /भूमि , वन भूमि राज्य के वन विभाग के सहयोग से)

–  शैक्षिक संस्थायें /ट्रस्ट /स्वायत-निकाय/ (अपनी/सामुदायिक / सार्वजनिक भूमि /खाली की गयी खदानों वाली भूमि जो औध्योगिक  कचरे द्वारा प्रभावित हो)|

–  सहकारी समितियाँ, संयुक्त वन प्रबन्ध समितियों के अलावा/स्थानीय निकाय (सार्वजनिक पार्क, पट्टी वृक्षारोपण, औध्योगिक कचरे से प्रभावित खदानों वाली भूमि जो खाली की गयी हो)|

–  सरकारी विभाग, पंचायती राज संस्थायें (निजी संस्थागत भूमि, सड़क के किनारे, नहर के किनारे, रेलवे-पटरी के किनारे, औध्योगिक कचरों की वजह से खाली पड़ी खदानों वाली भूमि पर) |

–  राज्य के वन विभाग (वन क्षेत्र,संयुक्त वन प्रबन्ध समितियों द्वारा) |

–  पंचायत (पंचायत भूमि) |

देखभाल एवं परामर्शदाता सेवायें

पहले से स्थापित क्लोनल उध्यानों  के रख-रखाब और योजना के मुल्यांकन का अलग प्रावधान किया गया है |

क्रिया-कलापों को सिलसिलेवार (अनुक्रम में) बनाना

राज्य के वन-विभाग योजना के सफल क्रियान्वयन के लिए तकनीकी सहयोग देंगे | 10वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान अच्छी किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री के उपयोग पौधशाला /वृक्षारोपण तकनीकों की जानकारी रखने वाले व्यक्तियों, विभिन्न प्रजातियों वाले पौधों /वृक्षों को उगाने पर लागत/ लाभ का विश्लेषण करने,पोषक क्षेत्रों और वृक्षारोपण हेतु प्रजातियों की पहचान करने के ऊपर विशेष ध्यान दिया जायेगा | राज्य के वन-विभाग हाइटेक पौधशालायें खुद या उपयुक्त संस्थाओं के साथ मिलकर तैयार करेंगे |सैटेलाइट पौधशालाओं की स्थापना हेतु निजी प्रतिष्ठानों /किसानों को प्रोत्साहन दिया जायेगा |राज्य के वन विभाग अपनी पौधशालाओं को उन्नतिशील किस्म का बनाने एवं उनके पुनर्स्थापन के लिए व्यक्तिगत लोगों को शामिल करके इस अवसर का लाभ उठा सकते हैं | अच्छी किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री की पौधशालाओं की स्थापना एवं उसके लिए स्थान का चयन करने की योजना बनाते समय राज्य के वन विभाग इस योजना के अन्तगर्त वृक्षारोपण हेतु वितीय सहायता प्राप्त कर रही/प्राप्त करने वाली एजेन्सी/सरकारी विभागों की माँगों को ध्यान में रखकर ही किया जायेगा |10वीं  पंचवर्षीय योजना (2005-06 से 2006-07) के अन्तर्गत वर्ष-वार क्रियाकलापों की विस्तृत रुपरेखा, जिसे किया जाना है, नीचे दी गयी है –

प्रथम-वर्ष (First year): स्थानीय भाषा में साहित्य तथा जिसमें आर्थिक एवं सामाजिक महत्व की दृष्टि से वृक्षों एवं पौधों की प्रजातियँ जिनका लागत /लाभ के रूप में विश्लेषण किया गया हो उन पर काफी मात्रा में साहित्य लोगों के लिए नि:शुल्क उपलब्ध कराया जायेगा| जन-संचार माध्यमों का प्रयोग वृक्षों/पौधों के आर्थिक, पर्यावरण सम्बन्धी एवं मामाजिक दृष्टि से महत्व को प्रभावशाली ढंग से करने के लिए जायेगा |प्रत्येक राज्य के वन विभाग द्वारा  केन्द्रीय/सैटेलाइट पौधशालाओं की संख्या एवं स्थान की स्थिति जानने के लिए एक अनुमानित सर्वेक्षण कराया जायेगा, ताकि गैर-वन भूमि कितनी उपलब्ध हो सकती है तथा प्रजातियों के प्रकार तथा आवश्यक मात्रा आदि का अनुमान लागया जा सके | राज्य के वन-विभाग ठीक प्रकार से आवश्यक सामग्री और वास्तविक रूप में हाइटेक/सैटेलाइट पौधशालाओं की स्थापना करने में अन्य सिविल/यान्त्रिक कार्यो के निर्माण की आवश्यकता पड़ेगी उसका विस्तृत विवरण उपलब्ध करायेंगे, जिससे कि प्रथम वर्ष में ही केन्द्रीय हाइटेक एवं सैटेलाइट पौधशालाओं की स्थापना की जा सके | राज्य के वन विभाग द्वारा अच्छी किस्म की वृक्षारोपण सामग्री के उत्पादन एवं वृक्षारोपण से सम्बन्धित प्रशिक्षण कार्यशालाओं/ संगोष्ठियों के रूप में निजी प्रतिष्ठानों/पौधशालाओं के कर्मचारियों/ किसानों एवं अन्य क्रियान्वयन करने वाले अभिकरणों को प्रदान की जायेगी | जहाँ तक वृक्षारोपण का प्रश्न है इसके लिए राज्य के वन विभाग द्वारा अभिकरणों/सरकारी विभागों से परियोजना प्रस्ताव आमन्त्रित किये जायेंगे तथा उनकी समुचित जाँच, मुल्यांकन, छंटनी और अग्रसारण के पश्चात उन्हें राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद को भेंजे जायेंगे |राज्य के वन विभागों द्वारा परियोजना प्रस्तावों को अग्रसारित करते समय यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रस्तावित संस्थाओं ने अच्छी किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री के प्रयोग के लिये परियोजना में प्राविधान किया है |

व्दितीय वर्ष (Second year): अधिक संख्या में केन्द्रीय उच्च तकनीकी पौधशालायें राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में स्थापित की जायेगी जिनकी क्षमता कम से कम प्रतिवर्ष 1लाख पौधों की होगी |ये पौधाशालायें नमूना (प्रतिरूप) पौधाशालायें होंगी और विभिन्न जैविक प्रकार की उच्च कोटि की वृक्षारोपण सामग्री का स्रोत होंगी जिन्हें जिसकी योजना राज्य के प्रत्येक जिले को सैटेलाइट पौधशालाओं द्वारा समाहित करने की है | ये पौधशालाओं में पौधे उगाने, वृक्षारोपण कार्य, स्थानीय रूप से महत्वपूर्ण वृक्षों/पौधों की प्रजातियों और उनके यौगिकों (derivatives) के विपणन से सम्बन्धित सभी पहलुओं के छपे हुए, मौखिक और इलेक्ट्रनिक सामग्री के विस्तार के लिए

सूचना केन्द्र के रूप में भी कार्य करेंगी | सैटेलाइट पौधशालायें जो स्थानीय उपलब्ध तकनीकों का उपयोग करेगी उन्हें जिले के सम्भावित वृक्षारोपण` क्षेत्रों के समीप स्थापित किया जायेगा | उच्च तकनीक/सैटेलाइट पौधशालाओं से उत्पन्न अच्छी किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री का उपयोग करके वृक्षारोपण कार्य करने से समन्धित परियोजना प्रस्ताव अधिक संख्या में राज्य के वन विभाग द्वारा राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद को अग्रसारित किये जायेंगे |

यह 10वीं पंचवर्षीय योजना का अन्तिम वर्ष होने के कारण इसे अब तक क्रियान्वित कार्यकलापों के मुल्यांकन हेतु उपयोग किया जायेगा| विस्तृत क्षेत्र स्तरीय अध्ययन कम से कम 7 प्रतिनिधि राज्यों द्वारा स्वतन्त्र मुल्यांकनकर्ताओं को रख कर कराया जायेगा|

परियोजना क्षेत्र और आकर

अवनत सरकारी (वन भूमि सहित) अथवा निजी भूमि,खाली की गयी खदानें, औध्योगिक कचरों से प्रभावित भूमि, सामुदायिक भूमि, सड़क के किनारे की भूमि, नहर, बैंक और रेलवे की भूमि, संस्थागत भूमि आदि को वृक्षारोपण के लिए लिया जा सकता है | ऐसे क्षेत्र जो विकास खण्डों के बहुत समीप हों, उन्हें वृक्षारोपण के लिए वरीयता दी जायेगी |उसके साथ जलाशय का भी निर्माण कराया जायेगा | हाइटेक/सैटेलाइट पौधशालाओं की स्थापना सार्वजनिक, व्यक्तिगत या निजी भूमि पर की जा सकती है | भूमि जहाँ पर क्रिया-कलाप प्रस्तावित हैं उसकी ठीक प्रकार से और पूरी तरह पहचान की जानी चाहिए | भूमि का विस्तृत विवरण जैसे सर्वेक्षण संख्या, क्षेत्र, मालिकों का नाम परियोजना के लिये इंगित विभिन्न क्षेत्रों की स्थिति तथा उनके क्षेत्रफल का योग दिया जाना चाहिए|ऐसे विस्तृत विवरण सम्बन्धित भूमि के मालिक/संस्था/प्राधिकारी से प्रमाणित करा लेनी चाहिए |

पहचान की गयी परियोजना-भूमि सैटेलाइट पौधशाला/वृक्षारोपण के लिए उपयुक्त होनी चाहिए और वह घोषित वन-भूमि क्षेत्र, जो राज्य के वन विभाग के लिए ही निर्धारित है, उसे छोड़कर कहीं भी स्थापित की जा सकती है |दूसरों के लिए परियोजना क्षेत्र की पहचान करते समय जंगल के पास वाली जमीनों को वरीयता दी जानी चाहिए संस्थाओं के मामलों में, जो सरकरी विभागों से भिन्न है PSUs वृक्षारोपण क्षेत्र 50 हेक्टेयर से सामान्यत: अधिक नही होना चाहिए|

सरकारी विभागों, PSUs के लिए परियोजना क्षेत्र के लिए कोई भी ऊपरी सीमा नहीं है | सैटेलाइट पौधशाला के मामले में न्यूनतम आकार 500 वर्गमीटर स्वीकृत किया जायेगा |

वित-पोषण का तरीका

योजना का क्रियान्वयन केन्द्रीय क्षेत्र योजना के रूप में शत-प्रतिशत केन्द्रीय वित-पोषण द्वारा किया जायेगा जिसके लिए परियोजनायें सीधे राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद द्वारा स्वीकृत की जायेंगी |

लागत का नमूना

(अ) अच्छी किस्म वाली उत्पादन सामग्री का उत्पादन (QPM Production)

i. जागरूकता, प्रसार एवं प्रशिक्षण रु 8.00 लाख (एक मुश्त केवल राज्य के वन विभाग के लिए)
ii. हाइटेक केन्द्रीय पौधशालायेंकुहरेनुमा कमरों व उसमें छिडंकाव करने वाली मशीन, रूट-ट्रेनर,अन्य उन्नत तकनीकों से भिन्न-भिन्न वानस्पतिक या बीजों से उत्पन्न पौध-सामग्री के उत्पादन मे सक्षम हो जो विधिवत स्थापित बीज उध्यानों, क्लोनल उध्यानों और उन्नत वृक्षों से प्राप्त की गई हो | रु० 10.00 लाख प्रति हेक्टेयर पौधशाला(एक बार अनुदान)प्रत्येक वर्ष कम से कम एक लाख पौधें उत्पन्न करने के लिए| यह अनुदान राशि अच्छी किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री उत्पन्न करने को बढ़ावा देने के लिए है |
iii. सैटेलाइट पौधशालायेंस्थानीय तकनीकों का उपयोग जैसे-छप्पर की छाया ,छिडंकाव करने वाली जारनुमा मशीन इत्यादि | रु० 1.00 लाख प्रति एक हेक्टेयर पौधशाला(एक बार अनुदान)प्रत्येक वर्ष एक लाख पौधे उत्पादन करने की क्षमता रखती हो |

२ छोटी पौधशालायें जिनकी क्षमता कम क्षेत्र वाली और कम उत्पादन की है, उन्हें वितीय सहायता रु.1.00 प्रत्येक उगाये गये पौधे की दर से स्वीकृत की जायेंगी |साधारणत: पौधशाला का क्षेत्रफल (आकर) 1/20 हेक्टेयर से कम नहीं होना चाहिए| सहायता पुरानी पौधशालाओं में सुधर एवं उसे उन्नतिशील बनाकर उसे चालू रखने हेतु भी दी जायेगी| यह सहायता राशि केवल अच्छी किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री के उत्पादन हेतु ही अनुदान के रूप में होगी|सहायता राशि का भुगतान करने से पहले ऐसे मामलों में पौधशालाओं को उन्नत किस्म का बनाने एवं नवीनीकरण से सम्बन्धित वास्तविक कार्य जो किया है, उसकी विधिवत जाँच की जायेगी |

(ब) वृक्षारोपण (Planting)

सरकारी /सामुदायिक भूमि(1100 पौधे/हेक्टेयर)

रु.25/-प्रति पौधे जिसमें सभी लागत शामिल है, जैसे पौधे का मूल्य, ढुलाई,अग्रिम कार्य,रोपण,मृदा एवं नमी संरक्षण (SMC) मृत पौधा का पुन: स्थापन,पुनर्स्थापन ,सुरक्षा, जागरूकता एवं ऊपरी व्यय (OVERHEADA) |

ii. निजी भूमि (1100 पौधे /हेक्टेयर)

रु. 18.0 प्रति पौधा जिसमें सभी लागत शामिल है जैसे-पौधे की कीमत, ढुलाई अग्रिम कार्य, रोपण, मृदा, एवं नमी संरक्षण (SMC), मृत पौधों का पुनर्स्थापन, सुरक्षा, जागरूकता एवं ऊपरी व्यय|

iii. खाली की गयी खानें /खदानें, औध्योगिक कचरों से प्रभावित भूमि, विशिष्ट समस्या युक्त भूमि जैसे लैटेराइट मृदा, कंकर पैन वाली ऊसर भूमि, काफी समय से पत्थर युक्त बंजर भूमि, अत्यधिक ढलान वाली भूमि इत्यादि |

(1100 पौधे /हेक्टेयर) रु.30 प्रति पौधे, जिसमें सभी लागत शामिल है जैसे-भूमि सुधर, पौधे की कीमत, ढुलाई, अग्रिम कार्य, वृक्षारोपण, मृदा एवं नमी संरक्षण आकस्मिक पुनर्स्थापन, सुरक्षा, जागरूकता एवं ऊपरी व्यय|

(स) क्लोन-उध्यानों का रख-रखाव /सुधर कार्य-

(Maintenance/improvement of clonal orchards)

रूपये 5,000 प्रति हेक्टेयर (एक मुश्त सहायता) केन्द्रीय वन विकास अभिकरणों द्वारा दो समान किश्तों में जारी होगी |

प्रजातियों का अनुपात

वृक्षारोपण के लिए पौधों की प्रजातियों और उनके अनुपात का सावधानी-पूर्वक निर्धारण लाभार्थियों और स्थानीय प्रतिनिधियों अथवा इस विषय का ज्ञान रखने वाले व्यक्तियों से परामर्श करके किया जाना चाहिए| प्रति हेक्टेयर पौधों की संख्या प्रत्येक प्रकार के पौधों की वानिकी आवश्यकताओं के ऊपर निर्भर करेगी और इसका निर्धारण इस विषय का तकनीकी ज्ञान रखने वाले व्यक्ति से परामर्श के बाद ही किया जाना चाहिए |प्रजातियाँ,  जिन्हें वन-भूमि, सामुदायिक भूमि और निजी भूमि पर वृक्षारोपण/वनीकरण के लिए शामिल करना है उनमें, तेजी से वृद्धि करने वाली स्थानीय जलाऊ लकड़ी, चारा, छोटी इमारती लकड़ियाँ, फल एवं दूसरी अन्य प्रजातियाँ जो समान अवधि में तैयार होने वाली हों तथा जो स्थानीय लोगों को भूमि का स्तर सुधरने के अलावा उन्हें फल एवं आमदनी दे सकें, जैसे- अर्जुन, शहतूत इत्यादि |इसे सूक्ष्म योजना के एक भाग के रूप में परियोजना प्रस्ताव के साथ संलग्न किया जाना चाहिए|

3 इस प्रकार की भूमि को विशिष्ट सुधर एवं उन्नत तकनीकों की आवश्यकता होती है इसलिए लागत प्रतिमान अधिक है |

परियोजना नियोजन

उच्च कोटि वृक्षारोपण सामग्री के उत्पादन/वृक्षारोपण कार्य की परियोजना एक सुनिश्चित स्थान पर और सम्भव हो सम्मलित खण्ड में होना चाहिए| परियोजन,जिसमें वृक्षारोपण कार्य करना है सामान्यत: विस्तृत क्षेत्र कई जिले शामिल हों, फैली नहीं होनी चाहिए|

  • संस्था/एजेंसी को परियोजना के प्रत्येक कार्य के भौतिक एवं वितीय लक्ष्यों, और विभिन्न कार्यो की कार्य  अवधि लिए वितीय सहायता की आवश्यकता है, का नियोजन कर लेना चाहिये |
  • परियोजना क्षेत्र के लिए सूक्ष्म-योजना तैयार करते समय जहाँ तक सम्भव हो, स्थानीय समुदाय/लाभार्थियों से पर कर लेना चाहिए |सूक्ष्म योजना में निम्नलिखित शामिल करें-
    • लाभार्थियों की सूची जो सूक्ष्म योजना बनाने में शामिल थे |
    • कार्य-स्थल के सीमांकन और प्रबन्धन को दर्शाते मानचित्र|
    • वृक्षारोपण कार्यक्रम जिनमें कार्ये के लक्ष्य और समय सारिणी शामिल हो|
    • कार्य-स्थल की तैयारी |
    • प्रजातियों का चुनाव और अच्छी किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री को तैयार करने की विधि एवं वृक्षारोपण की तकनीक,रख-रखाव इत्यादि को विस्तृत रूप से दिया जाना चाहिए|
    • चारे की कटाई |
    • वृक्षों/पौधों की परिपक्वता की अवधि और प्रत्येक वर्ष की जलावन लकड़ी, चारा, छोटी इमारती एवं इमारती लकडियों की प्राप्ति की सारिणी|
    • रख-रखाव एवं उसकी देखभाल,की विधि ग्रामीण समुदाय को स्थानीय दशाओं के अनुकूल बना लेना चाहिए|
    • लाभ वितरण की प्रकिया |

प्रलेखन

निम्नलिखित आवश्यक कागजात,जो जहाँ लागु हों, आवेदन पत्र के साथ जमा किये जायेंगे (वृक्षारोपण और सैटेलाइट/हाइटेक पौधशाला की स्थापना करने के लिए आवेदन पत्र का प्रारूप संलग्नक II एवं III में क्रमश: दिये गये हैं)|

I. संस्था/एजेंसी का पंजीकरण प्रमाणपत्र और संस्था के नियमों/सहचारिका पत्रकं की प्रमाणित प्रतिलिपि|
II. पिछले तीन लगातार वर्षो का महा-लेखा परीक्षक की सूची में शामिल लेखाकार द्वारा अंकेक्षित अभिलेखों की प्रमाणित प्रतिलिपियों |
III. पिछले किये गये कार्यो का संक्षिप्त नोट, विशेषकर वानिकी के विकास या इससे सम्बन्धित सामाजिक क्षेत्रों सम्बन्धित कार्य तथा अच्छी किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री को उगाने का तीन वर्ष का अनुभव एवं अच्छी किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री को प्राप्त करने के स्रोतों का ज्ञान एवं जानकारी |
IV. लाभार्थियों की सूची जिसमें भूमि का विस्तृत विवरण जिसमें पौधशाला तैयार करना/वृक्षारोपण करना विशेषकर सर्वेक्षण/खसरा नं०, क्षेत्र हेक्टेयर में, एवं प्रत्येक गांव के अनुसार जमीन के मालिक का नाम|
V. जमीन के मालिकों की लिखित सहमति कि उनकी जमीनों में जो पौधशाला/वनीकरण सम्बन्धी कार्यक्रम किये जाने वाले हैं उसमें उन्हें कोई आपति नहीं है |निजी भूमि के मामलों में, विस्तृत विवरण  जैसे ऊपर (iv) में है उन्हें सहमति के साथ आवेदन पत्र के साथ भेजा जाना चाहिए| इन विस्तृत विवरणों को सम्बन्धित राजस्व अधिकारीयों /ग्राम संभाओं (स्वायतशासी पूर्वीतर क्षेत्र के पहाड़ी जिलों के लिए) द्वारा प्रमाणित और सत्यापित करा लेनी चाहिए तथा उन्हें सम्बन्धित संयुक्त वन प्रबन्ध समिति/पारिस्थितिकी विकास समिति के सचिव अथवा सम्बन्धित वन-अधिकारी/क्षेत्रीय वन अधिकारी द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित करा लेनी चाहिए| एजेंसी को लाभार्थियों की सूची पर प्रमाणित करना होगा कि एजेंसी ने सभी सम्बन्धित लाभार्थियों से पौधशाला, वृक्षारोपण और रख-रखाव तथा तत्पश्चात देख-रेख से सम्बन्धित क्रिया-कलापों के बारे में सहमति प्राप्त कर ली है और वह जाँच के लिए एजेंसी के कार्यालय में उपलब्ध है |
VI. एक प्रमाण पत्र एजेंसी द्वारा कि इसमें कम से कम 50%सभार्थी अनुसूचित जाति/जनजाति अथवा समाज के पिछड़े वर्ग से सम्बन्धित हैं | इस पर अत्याधिक जोर वहाँ नहीं दिया जायेगा जहाँ पर अनुसूचित जाति/जनजाति की जनसंख्या इस नियम को पूरा करने में अपर्याप्त है| सम्पूर्ण लाभार्थियों में कम से कम  50% महिलायें होनी चाहिए| इसे सम्बन्धित ग्राम पंचायत/ग्राम सभा/स्थानीय निकाय द्वारा प्रति हस्ताक्षरित होना चाहिए|
VII. क्षेत्र में परियोजना का क्रियान्वयन करने वाली संस्था/एजेंसी के संगठनात्मक ढाँचें, बैंक खाता संख्या इत्यादि का विस्तृत विवरण |
जनता/लाभार्थियों से परामर्श के पश्चात तैयार की गयी सूक्ष्म-योजना|

परियोजना-प्रारूप को प्रस्तुत करना

अच्छी किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री तैयार करने के लिए परियोजना प्रारूप एजेंसी द्वारा सम्बन्धित राज्य के वन विभागों के पास भेंजे जायेंगे |राज्य के वन-विभाग उच्च कोटि की रोपण सामग्री के उत्पादन के प्रस्तावों को एकत्रित कर विधिवत जाँच के पश्चात इन्हें राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद के पास विचार करने के लिए अग्रसारित  करेंगे | इस प्रकार से स्वैच्छिक वृक्षारोपण के लिए परियोजना प्रस्ताव निर्धारित प्रारूप में सभी प्रकार से पूरा करने के पश्चात दो प्रतियों में विधिवत भरकर सम्बन्धित राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों के प्रधान मुख्य वन संरक्षकों के पास जमा किये जाने चाहिए| योजना की मार्गदर्शिका के अनुरूप पूरी तरह से भरे हुए परियोजना प्रस्तावों को राज्यों के वन विभागों द्वारा स्वीकार किया जायेगा और इनकी विधिवत जाँच के पश्चात इन्हें राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद को प्रकाशित निर्धारित तिथि के पहिले उनके पास अग्रसारित करेंगे| कुछ विशेष परिस्थितियों में राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद जारी तिथि के अनुसार इन्हें (एन.ए.इ.बी.) के पास अग्रसारित करेंगे| जबकि,कुछ विशेष परिस्थितियों में राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद निर्धारित सारिणी में परिवर्तन कर तिथि के आगे भी प्रधान मुख्य वन संरक्षकों के द्वारा  भेजें गये परियोजना प्रस्तावों को ग्रहण कर सकती है |राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद “स्वैच्छिक वृक्षारोपण” योजना के अर्न्तगत अथवा “अच्छे किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री के उत्पादन करने “सम्बन्धी कोई भी परियोजना प्रस्ताव परिषद के पास सीधे भेंजे जाने पर न तो ग्रहण करेगा और न उन पर विचार करेगा |

आवेदनों की छानबीन (सूक्ष्म जाँच)

वृक्षारोपण –Tree Planting

प्रधान मुख्य वन संरक्षकों के पास जमा परियोजना प्रस्तावों को उनकी श्रेष्ठता/योग्यता एवं तकनीकी उपयुक्ता  अनुसार उनकी वरीयता सूची बनाकर 10-15 प्रस्ताव अपनी अनुशंषा के साथ राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद के पास विचार  करने हेतु भेजा जायेगा| पूर्व अनुशंसा का निर्धारित प्रारूप संल्गन-IV मे दिया है |आवस्यक सूचनाओं/कागजातों सम्बन्धित प्रधान मुख्य वन संरक्षक/परियोजना प्रस्तावों की जाँच-परख और उनकी छंटनी करने की सम्बन्धित तरीके/उपायों को निर्धारित करेंगे| राज्यों के वन विभाग द्वारा  प्रधान मुख्य वन-संरक्षक की अध्यक्षता में प्रस्ताव की जाँच करने से सम्बन्धित एक विस्तृत समिति का गठन किया जायेगा जिसमें स्वैच्छिक संस्थाओं/गैर सरकारी और रेखांकित (Line) विभागों के प्रतिनिधि भी शामिल किये जायेंगे |

राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद के पास अग्रसारित करने के लिए परियोजना प्रस्तावों के चयन निम्नलिखित तरीका (सिद्धांत) लागु किया जा सकता है-

  • राज्य में एक तरफ से दूसरी तरफ क्षेत्रीय स्तर पर बँटवारे को सुनिश्चित करना|
  • परियोजनायें जिनमें अधिक अनुपात में समुसयिक अथवा शासकीय राजस्व विभाग की भूमि शामिल हो उन्हें वरियत दी जानी चाहिए|
  • परियोजना क्षेत्र व उनकी स्थिति
  • अवनत भूमि, भूमि-क्षरण क्षेत्र, सुखा प्रभावित, मानव विकास स्तर, बंजर-भूमि की उपलब्धता,वन/वृक्ष आच्छादार स्थिति
  • एजेंसी का पिछला कार्य-कलाप और उसकी विश्वसनीयता,जिसमें उसकी वितीय स्थिति और असामाजिक रष्ट्र-विरोधी कार्यो में शमिन न होने की स्थिति का भी आंकलन शामिल है |

अपनी संस्तुतियों को अग्रसरित करते समय प्रधान मुख्य वन संरक्षकों को सम्पूर्ण प्रस्ताव जो प्राप्त हुए हैं और जिन्हें परिषद के पास विचार करके अग्रसारित किया जा रहा है उनका संक्षिप्त सारांश बनाकर भेजना चाहिए | परिषद केवल एक   बार हैं अंतिम रूप से अग्रसारित परियोजना प्रस्तावों को जो राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद द्वारा विज्ञापित अन्तिम तिथि से पहले प्राप्त होंगे उन्हें स्वीकार करेगा | प्रधान मुख्य वन संरक्षकों द्वारा प्राथमिकता के तौर पर अग्रसारित किये गये परियोजना प्रस्ताव केवल उसी वितीय वर्ष के लिए वैध होंगे, उन्हें अगले वितीय वर्ष में विचार करने के लिए नही रखा जायेगा | अग्रसारित प्रस्तावों को वर्ष में केवल एक बार प्रधान मुख्य वन संरक्षकों द्वारा भेंजा जायेगा|

अच्छे किस्म की वृक्षारोपण सामग्री (Quality Planting Materials)

राज्यों के वन-विभाग से प्राप्त परियोजना प्रस्तावों की परिषद द्वारा गहन छानबीन की जायेगी और श्रेष्ठता के अनुसार उनकी सूची बनाकर उनके लिए स्वीकृत राशि राज्यों के पास भेंज दी जायेगी| (संलग्नक-V में प्रस्तावों के पूर्व-आंकलन के प्रारूप दिया गया है)|

परियोजना प्रस्तावों को स्वीकृत करना

सम्बन्धित प्रधान मुख्य वन संरक्षकों से परियोजना प्रस्ताव प्राप्त हो जाने पर एन.ए.इ.बी. इन्हें स्वीकृत करने के विषय में आगे कार्यवाही करने पर विचार कर सकता है | 10वीं पंचवर्षीय योजना में इस योजना के अन्तर्गत नये परियोजना प्रस्तावों को स्वीकृत करने के लिए निम्नलिखित निर्धारक तत्व शामिल होंगे-

  • राज्य में वनीकरण की सम्भावना के आधार पर देश के एक भाग से दुसरे भाग को वरीयता | वनिकरण सम्भावना की गणना बहुत से तत्वों के आधार पर की जाती है- जैसे हरित भागों वाले क्षेत्र का प्रतिशत, राज्य का क्षेत्रफल, भूमि की उपलब्धता, राज्य में अवनत भूमि,जलवायु, राज्य को हरा-भरा बनाने के विषय में उसकी बचनबध्दता आदि |
  • योजना के अन्तर्गत उपलब्ध धन राशि |
  • राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य/आकस्मिकता के आधार पर आपेक्षिक प्राथमिकतायें
  • राष्ट्रीय वनिकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद द्वारा अपनाया जाने वाला कोई अन्य तरीका

परियोजना प्रस्तावों की स्वीकृति के बारे में की जा रही कार्यवाही में अत्यधिक पारदर्शीता लाने के लिए आवेदन पत्रों के प्रारूपों के अलावा सभी प्राप्त परियोजना प्रस्तावों की स्थिति और जिन्हें स्वीकृत किया गया, उन्हें परिषद की वेबसाइट पर भी जारी किया जायेगा |

निगरानी और मुल्यांकन

राज्य के वन विभाग द्वारा योजना को सुचारू रूप से चलाते रहने के लिए सभी प्रकार के कार्यों जैसे-पौधशालाओं की तैयारी वृक्षारोपण कार्य, जिसकी जिम्मेदारी क्रियान्वयन एजेंसे को दी गयी है, उसका भौतिक सत्यापन तथा निगरानी एवं मुल्यांकन की व्यवस्था अगली किश्तों के जारी करते समय विशेषकर दुसरे एवं तीसरे वर्षों में की जायेगी| निगरानी एवं सत्यापन के लिए आवश्यक सहायता राज्यों के प्रधान मुख्य वन संरक्षकों को केन्द्रीय वन विकास अभिकरण द्वारा प्रदान की जायेगी| राज्यों के वन विभागों द्वारा राज्य में चल रही योजना की वार्षिक निगरानी भी की जायेगी | देश में चल रही योजना का एक साथ मुल्यांकन राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद द्वारा किसी स्वतन्त्र एजेंसे के माध्यम से कराया जायेगा, इसके मुल्यांकन का तरीका राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद द्वारा निर्धारित किया जायेगा |

अनुबन्ध एवं शर्ते

सरकारी विभागों को छोड़कर संस्थाओं के मामलें में वितीय सहायता प्राप्त करने वाली संस्था को सामान्य वितीय अधिनियमों के अन्तर्गत निर्धारित प्रपत्र पर भरकर एक अनुबन्ध (Bond) पत्र हस्ताक्षर करके परिषद के पास तथा उसकी प्रति प्रधान मुख्य वन संरक्षक के पास इस योजना के अन्तर्गत परियोजना प्रस्तावों की स्वीकृत के पश्चात और वितीय सहायता जारी करने से पहले, जमा करना होगा |

दुसरे सभी प्रकार की पूर्ववर्ति अनुबन्ध एवं शर्ते जो सामान्य वितीय अधिनियमों (G.F.R.) के अधीन अनुदान सहायता राशि प्राप्त करने वाली संस्थाओं, सरकारी विभागों समेत सभी पर लागू होंगी |

अनुदान सहायता राशि के दुरुप्योग के मामले में दंड

(Penalities in case of misutilization of grants)

1.स्वैच्छिक संस्थाओं के प्रशासनिक समिति के सदस्य दुरुप्योग की गयी अनुदान राशि की भरपायी के लिए कानूनी रूप से जिम्मेदार ठहराये जायेंगे | स्वैच्छिक संस्था और उसके प्रबन्ध समिति के सदस्यों को मंत्रालय की काली-सूची में शामिल किया जा सकता है |

2. मंत्रालय द्वारा दिये गये अनुदान राशि से जो भी अचल सम्पति (सामान) अर्जित की गयी होगी, अगर वह योजना के अन्तर्गत दी गयी शर्तो के अनुसार उपयोग में नहीं लायी गयी तो उसका अधिग्रहण स्थानीय निकायों, राज्य सरकार या एन.ए.इ.बी. द्वारा नामित किसी भी अभिकरण द्वारा कर  लिया जायेगा |

स्वैच्छिक संस्थाओं के क्रिया-कलापों को रोकना/बन्द करना

(Cessation of voluntary agencies activities)

स्वैच्छिक संस्थाओं द्वारा किसी क्षेत्र में परियोजना के पूर्ण रूपेण बन्द कर दिये जाने पर अचल सम्पति जो मंत्रालय द्वारा दिये गये अनुदान राशि द्वारा अर्जित की गयी है उसे स्थानीय निकाय या पंचायत को राज्य सरकार द्वारा सौंप दी जायेगी |

अनुदान सहायता राशि योजन के अन्तर्गत जारी परियोजनायें

(On-going projects under GIA Scheme)

वर्ष 2004-05 में अनुदान सहायता राशि योजना के अन्तर्गत  स्वीकृत परियोजनायें जिनका क्रियान्वयन हो रहा है वे पूर्ववर्ती अनुदान सहायता राशि (GIA) मार्गदर्शिका का अनुसरण करेंगे| इन परियोजनायें से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अच्छे किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री का उपयोग, जब उन्हें उपलब्ध होता है, करेंगे |

पर्यावरण एवं वन मंत्रालय , भारत सरकार

प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना
प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना

भूमिका

हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है। अतः किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए  भारत सरकार ने कई योजनाएं बनाई हैं जिसमें एक है प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (पीएमकेएसवाई)। इस योजना की शुरूआत अगस्त 2017 में की गयी। यह योजना पूरी तरह कृषि केन्द्रित योजना है। इस योजना से 20 लाख किसान लाभान्वित होंगे। इस किसान सम्‍पदा योजना का उद्देश्‍य कृषि का आधुनिकीकरण करना और कृषि-बर्बादी को कम करना है।

भारत सरकार ने 14वें वित्‍त आयोग चक्र की सह-समाप्ति के साथ वर्ष 2016-20 तक की अवधि के लिए 6,000 करोड़ रुपए के आवंटन से एक नई केंद्रीय क्षेत्र स्‍कीम- प्रधान मंत्री किसान सम्‍पदा योजना (कृषि-समुद्री प्रसंस्‍करण एवं कृषि-प्रसंस्‍करण क्‍लस्‍टर विकास स्‍कीम) को अनुमोदन दिया है । इस स्‍कीम का कार्यान्‍वयन खाद्य प्रसंस्‍करण उद्योग मंत्रालय द्वारा किया जाएगा । प्रधान मंत्री किसान सम्‍पदा योजना एक व्‍यापक पैकेज है जिसके परिणामस्‍वरूप खेत से लेकर खुदरा बिक्री केंद्रों तक दक्ष आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन के साथ आधुनिक अवसंरचना का सृजन होगा । इससे, देश में न केवल खाद्य प्रसंस्‍करण क्षेत्र की वृद्धि को तीव्र गति प्राप्‍त होगी बल्कि यह किसानों को बेहतर मूल्‍य दिलाने तथा किसानों की आय को दुगुना करने, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के भारी अवसरों का सृजन करने, कृषि उपज की बर्बादी में कमी लाने, प्रसंस्‍करण तथा प्रसंस्‍कृत खाद्य पदार्थों के निर्यात के स्‍तर को बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा ।

योजना का उद्देश्‍य

प्रधानमंत्री किसान सम्‍पदा योजना का उद्देश्‍य कृषि न्‍यूनता पूर्ण करना, प्रसंस्‍करण का आधुनिकीकरण करना और कृषि-बर्बादी को कम करना है।

वित्‍तीय आवंटन

6,000 करोड़ रुपए के आवंटन से प्रधानमंत्री किसान सम्‍पदा योजना से 2019-20 तक देश में 31,400 करोड़ रुपए के निवेश के लैवरेज होने, 1,04,125 करोड़ रुपये मूल्‍य के 334 लाख मीट्रिक टन कृषि उत्‍पाद के संचलन, 20 लाख किसानों को लाभ प्राप्‍त होने और 5,30,500 प्रत्‍यक्ष/अप्रत्‍यक्ष रोजगार सृजित होने की आशा है।

प्रधानमंत्री किसान सम्‍पदा योजना के अंतर्गत स्‍कीमों का कार्यान्‍वयन

प्रधानमंत्री किसान सम्‍पदा योजना एक व्‍यापक पैकेज है जिसके परिणामस्‍वरूप खेत से लेकर खुदरा बिक्री केंद्रों तक दक्ष आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन के साथ आधुनिक अवसंरचना का सृजन होगा । इससे, देश में न केवल खाद्य प्रसंस्‍करण क्षेत्र की वृद्धि को तीव्र गति प्राप्‍त होगी बल्कि यह किसानों को बेहतर मूल्‍य दिलाने तथा किसानों की आय को दुगुना करने, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के भारी अवसरों का सृजन करने, कृषि उपज की बर्बादी में कमी लाने, प्रसंस्‍करण तथा प्रसंस्‍कृत खाद्य पदार्थों के निर्यात के स्‍तर को बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा ।

प्रधानमंत्री किसान सम्‍पदा योजना के विभिन्न स्कीम

मेगा खाद्य पार्क

कोल्ड चेन

खाद्य प्रसंस्करण एवं परिरक्षण क्षमताओं का सृजन/विस्तार

कृषि प्रसंस्करण कलस्टर अवसंरचना

एग्रो प्रोसेसिंग क्लस्टर

बैकवर्ड और फारवर्ड लिंकेजों का सृजन

खाद्य संरक्षा एवं गुणवत्ता आश्वासन अवसंरचना

मानव संसाधन एवं संस्थान

योजना का प्रभाव

  1. पीएमकेएसवाई के कार्यान्‍वयन से आधुनिक आधारभूत संरचना का निर्माण और प्रभावी आपूर्ति श्रृंखला तथा फार्म के गेट से खुदरा दुकान तक प्रभावी प्रबंधन हो सकेगा।
  2. इससे देश में खाद्य प्रसंस्‍करण को व्‍यापक बढ़ावा मिलेगा।
  3. इससे किसानों को बेहतर मूल्‍य पाने में मदद मिलेगी और यह किसानों की आमदनी दोगुना करने के दिशा में एक बड़ा कदम है।
  4. इससे रोजगार के बड़े अवसर विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्‍ध हो सकेंगे।
  5. इससे कृषि उत्‍पादों की बर्बादी रोकने, प्रसंस्‍करण स्‍तर बढ़ाने, उपभोक्ताओं को उचित मूल्‍य पर सुरक्षित और सुविधाजनक प्रसंस्‍कृत खाद्यान्‍न की उपलब्‍धता के साथ प्रसंस्‍कृत खाद्यान्‍न का निर्यात बढ़ाने में मदद मिलेगी।
  6. प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना से 1,04,125 करोड़ रुपए मूल्य के 334 लाख मी.टन की कृषि उपज के संचलन हेतु 31,400 करोड़ रुपए के निवेश के लिवरेज, 20 लाख किसानों को लाभ होने तथा वर्ष 2019-20 तक देश में 5,30,500 प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित होने की संभावना है ।

योजना से होने वाले लाभ

  1. इस योजना के तहत किसानों को बेहतर मूल्‍य पाने में मदद मिलेगी। यह किसानों की आय दोगुना करने के दिशा में सरकार द्वारा उठाया गया एक बड़ा कदम है।
  2. किसान संपदा योजना से देश में खाद्य प्रसंस्‍करण को व्‍यापक बढ़ावा मिलेगा।
  3. सरकार ने खाद्य प्रसंस्‍करण और खुदरा क्षेत्र में निवेश को गति देने के लिए भारत में निर्मित और अथवा उत्‍पादित खाद्य उत्‍पादों के बारे में ई-कॉमर्स के माध्‍यम से व्‍यापार सहित व्‍यापार में 100 प्रतिशत प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दी है। इससे किसानों को बहुत अधिक लाभ होगा तथा बैक एंड अवसंरचना का सृजन होगा और रोजगार के महत्‍वपूर्ण अवसर प्राप्त होने की संभावना है।
  4. अभिहित खाद्य पार्कों और इनमें स्थित कृषि-प्रसंस्‍करण यूनिटों को रियायती ब्‍याज दर पर वहनीय क्रेडिट उपलब्‍ध कराने के लिए भारत सरकार ने नाबार्ड में 2000 करोड़ रूपए का विशेष कोष भी स्‍थापित किया है।
  5. योजना के तहत आवेदक धरोहर जमा राशि के लिए वेतन एवं लेखा अधिकारी, खाद्य प्रसंस्करण उधोग मंत्रालय, नई दिल्ली (सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया) के खाता संख्या 3516103454, आईएफएससी कोड- CBIN0282169 के माध्यम से 100000 रुपये का ऑनलाइन पेमेंट कर सकते है।

निवेशकों की सहूलियत के लिए कृषि बागवानी उत्पादन क्लस्टरों की सूचि मंत्रालय वेबसाइट खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय पर अपलोड की गई है ।

योजना को लागू करने के लिए भारत सरकार द्वारा उठाये गये कदम

यह बहुत ही अच्छी योजना है सरकार हर हाल में इसको सफल बनाने के लिए प्रयासरत है।

  1. खाद्य प्रसंस्‍करण और खुदरा क्षेत्र में निवेश को गति देने के लिए सरकार ने भारत में निर्मित और अथवा उत्‍पादित खाद्य उत्‍पादों के बारे में ई-कॉमर्स के माध्‍यम से व्‍यापार सहित व्‍यापार में 100 प्रतिशत प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दी है। इससे किसानों को बहुत अधिक लाभ होगा तथा बैक एंड अवसंरचना का सृजन होगा और रोजगार के महत्‍वपूर्ण अवसर होने की संभावना है।
  2. भारत सरकार ने अभिहित खाद्य पार्कों और इनमें स्थित कृषि-प्रसंस्‍करण यूनिटों को रियायती ब्‍याज दर पर वहनीय क्रेडिट उपलब्‍ध कराने के लिए नाबार्ड में 2000 करोड़ रूपए का विशेष कोष भी स्‍थापित किया है।
  3. खाद्य एवं कृषि आधारित प्रसंस्‍करण यूनिटों तथा शीतश्रृंखला अवसंरचना को प्राथमिकता क्षेत्र उधारी (पीएसएल) की परिधि में लाया गया है ताकि खाद्य प्रसंस्‍करण कार्यकलापों और अवसंरचना के लिए अतिरिक्‍त क्रेडिट उपलब्‍ध कराया जा सके और इस प्रकार खाद्य प्रसंस्‍करण को प्रोत्‍साहन मिलेगा, बर्बादी में कमी आएगी, रोजगार सृजित होगा एवं किसानों की आय बढ़ेगी।
  4. प्रधानमंत्री किसान सम्‍पदा योजना के कार्यान्‍वयन से खेत से लेकर खुदरा दुकानों तक कार्यक्षम आपूर्ति प्रबंधन सहित आधुनिक अवसंरचना का सृजन होगा। यह देश में न केवल खाद्य प्रसंस्‍करण क्षेत्र के लिए न केवल बड़ा प्रोत्‍साहन होगा बल्कि किसानों को बेहतर मूल्‍य प्राप्‍त करने मे सहायक होगा और किसानों की आय को दुगुना करने की एक बड़ा कदम है।

किसान सम्पदा योजना के फायदे

  1. पीएमकेएसवाई के कार्यान्‍वयन से आधुनिक आधारभूत संरचना का निर्माण और प्रभावी आपूर्ति श्रृंखला तथा फार्म के गेट से खुदरा दुकान तक प्रभावी प्रबंधन होने की संभावना है।
  2. इस योजना से देश में खाद्य प्रसंस्‍करण को व्‍यापक बढ़ावा मिलेगा।
  3. इसके साथ ही किसानों को बेहतर मूल्‍य पाने में सहायता मिलेगी और यह किसानों की आमदनी दोगुना करने के दिशा में एक बड़ा और महत्वपूर्ण कदम है।
  4. इस योजना से रोजगार के बड़े अवसर विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्‍ध हो सकेंगे।
  5. किसान सम्पदा योजना से कृषि उत्‍पादों की बर्बादी रोकने, प्रसंस्‍करण स्‍तर बढ़ाने, उपभोक्‍तआओं को उचित मूल्‍य पर सुरक्षित और सुविधाजनक प्रसंस्‍कृत खाद्यान्‍न की उपलब्‍धता के साथ प्रसंस्‍कृत खाद्यान्‍न का निर्यात बढ़ाने में मदद मिलेगी।

स्रोत: भारत सरकार का खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय

प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा)
प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा)

कैबिनेट ने नई समग्र योजना प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान(पीएम-आशा) को मंजूरी दी है, प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान(पीएम-आशा) के तहत किसानों को एमएसपी संबंधी आश्वासन दिया जाएगा यह अन्न‍दाता के प्रति सरकार की कटिबद्धता का एक प्रतिबिम्ब हैI सरकार की किसान अनुकूल पहलों को काफी बढ़ावा देने के साथ-साथ अन्नदाता  के प्रति अपनी कटिबद्धता को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र  मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय  मंत्रिमंडल ने एक नई समग्र योजना प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा) को मंजूरी दे दी है।

योजना का उद्देश्य

किसानों को उनकी उपज के लिए उचित मूल्य दिलाना है, जिसकी घोषणा वर्ष 2018 के केंद्रीय  बजट में की गई है।

यह किसानों की आय के संरक्षण की दिशा में भारत सरकार द्वारा उठाया गया एक असाधारण कदम है जिससे किसानों के कल्याण में काफी हद तक सहूलियत होने की आशा है। सरकार उत्पादन  लागत का डेढ़ गुना तय करने के सिद्धांत पर चलते हुए खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्यों (एमएसपी) में पहले ही वृद्धि कर चुकी है। यह उम्मीद की जा रही है कि एमएसपी में वृद्धि की बदौलत राज्य सरकारों के सहयोग से खरीद व्यवस्था को काफी बढ़ावा मिलेगा जिससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी।

पीएम-आशा के महत्वपूर्ण घटक

प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा) के महत्वपूर्ण घटक इस प्रकार हैं –

उचित मूल्य सुनिश्चित करने की व्यवस्था

नई समग्र योजना में किसानों के लिए उचित मूल्य सुनिश्चित करने की व्यवस्था  शामिल है और इसके अंतर्गत निम्नलिखित समाहित हैं –

  1. मूल्य  समर्थन योजना (पीएसएस)
  2. मूल्य न्यूनता भुगतान योजना (पीडीपीएस)
  3. निजी खरीद एवं स्टॉकिस्ट पायलट योजना (पीपीपीएस)

भारत सरकार किसी भी मसले को टुकड़ों-टुकड़ों के बजाय समग्र रूप से सुलझाने की दिशा में काम कर रही है। एमएसपी बढ़ाना पर्याप्त नहीं है और इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि किसानों को घोषित एमएसपी का पूर्ण लाभ मिले। इस दिशा में सरकार को इस बात का एहसास है कि यह आवश्यक है कि यदि बाजार में कृषि उपज का मूल्य  एमएसपी से कम है तो वैसी स्थिति में राज्य‍ सरकार और केन्द्र  सरकार को या तो इसे एमएसपी पर खरीदना चाहिए अथवा कुछ ऐसा तरीका अपनाना चाहिए जिससे कि किसी अन्य व्यवस्था  के जरिए किसानों को एमएसपी सुनिश्चित कर दी जाए। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार ने तीन उप-योजनाओं के साथ समग्र योजना पीएम-आशा को मंजूरी दी है। मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस), मूल्य न्यूनता भुगतान योजना (पीडीपीएस) और निजी खरीद एवं स्टॉकिस्ट पायलट योजना (पीडीपीएस) इन उप-योजनाओं में शामिल हैं।

मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस)

योजना के तहत दालों, तिलहन और गरी (कोपरा) की भौतिक खरीदारी राज्य सरकारों के सक्रिय सहयोग से केंद्रीय नोडल एजेंसियों द्वारा की जाएगी। यह भी निर्णय लिया गया है कि नैफेड के अलावा भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) भी राज्यों/जिलों में पीएसएस परिचालन की जिम्मेदारी संभालेगा। खरीद पर होने वाले व्यय और खरीद के दौरान होने वाले नुकसान को केंद्र सरकार मानकों के मुताबिक वहन करेगी

मूल्य न्यूनता भुगतान योजना (पीडीपीएस)

योजना के तहत उन सभी तिलहन को कवर करने का प्रस्ताव किया गया है। जिसके लिए एमएसपी को अधिसूचित कर दिया जाता है। इसके तहत एमएसपी और बिक्री/औसत (मोडल) मूल्य  के बीच के अंतर का सीधा भुगतान पहले से ही पंजीकृत उन किसानों को किया जाएगा जो एक पारदर्शी नीलामी प्रक्रिया के जरिए अधिसूचित बाजार यार्ड में अपनी उपज की बिक्री करेंगे। समस्त भुगतान सीधे किसान के पंजीकृत बैंक खाते में किया जाएगा। इस योजना के तहत फसलों की कोई भौतिक खरीदारी नहीं की जाती है क्योंकि अधिसूचित बाजार में बिक्री करने पर एमएसपी और बिक्री/मोडल मूल्य में अंतर का भुगतान किसानों को कर दिया जाता है। पीडीपीएस के लिए केन्द्र सरकार द्वारा सहायता तय मानकों के मुताबिक दी जायेगी।

निजी खरीद एवं स्टॉकिस्ट पायलट योजना (पीपीपीएस)

तिलहन के मामले में यह निर्णय लिया गया है कि राज्यों के पास यह विकल्प रहेगा कि वे चुनिंदा जिले/जिले की एपीएमसी में प्रायोगिक आधार पर निजी खरीद स्टॉकिस्ट योजना (पीपीएसएस) शुरू कर सकते हैं जिसमें निजी स्टॉकिस्टों की भागीदारी होगी। प्रायोगिक आधार पर चयनित जिला/जिले की चयनित एपीएमसी तिलहन की ऐसी एक अथवा उससे अधिक फसल को कवर करेगी जिसके लिए एमएसपी को अधिसूचित किया जा चुका है। चूंकि यह योजना अधिसूचित जिन्स की भौतिक खरीदारी की दृष्टि से पीएसएस से काफी मिलती-जुलती है, इसलिए यह प्रायोगिक आधार पर चयनित जिलों में पीएसएस/पीडीपीएस को प्रतिस्थापित करेगी।

जब भी बाजार में कीमतें अधिसूचित एमएसपी से नीचे आ जाएंगी तो चयनित निजी एजेंसी पीपीएसएस से जुड़े दिशा-निर्देशों को ध्यान में रखते हुए पंजीकृत किसानों से अधिसूचित अवधि के दौरान अधिसूचित बाजारों में एमएसपी पर जिन्स की खरीदारी करेगी। जब भी निजी चयनित एजेंसी को बाजार में उतरने के लिए राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश की सरकार द्वारा अधिकृत किया जायेगा और अधिसूचित एमएसपी के 15 प्रतिशत तक अधिकतम सेवा शुल्कर देय होगा, तो ठीक यही व्यवस्थाएँ अमल में लायी जायेगी।

व्यय

कैबिनेट ने 16,550 करोड़ रुपये की अतिरिक्तम सरकारी गारंटी देने का फैसला किया है जिससे यह कुल मिलाकर 45,550 करोड़ रुपये के स्तरर पर पहुंच गई है।

इसके अलावा खरीद परिचालन के लिए बजट प्रावधान भी बढ़ा दिया गया है और पीएम-आशा के क्रियान्वायन के लिए 15,053 करोड़ रुपये मंजूर किये गये हैं। अब से यह योजना हमारे अन्नदाता के प्रति सरकार की कटिबद्धता एवं समर्पण का एक प्रतिबिम्ब है।

विगत वर्षों के दौरान खरीद

वित्तव वर्षों 2010-14 के दौरान केवल 3500 करोड़ रुपये मूल्य की कुल खरीद की गई, जबकि वित्तर वर्षों 2014-18 के दौरान यह दस गुना बढ़ गई है और 34,000 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गई है।  वित्तं वर्षों 2010-14 के दौरान इन कृषि – जिन्सों की खरीद के लिए सिर्फ 300 करोड़ रुपये के व्यिय के साथ 2500 करोड़ रुपये की सरकारी गारंटी दी गई, जबकि वित्त  वर्षों 2014-18 के दौरान 1,000 करोड़ रुपये के व्यय के साथ 29,000 करोड़ रुपये की सरकारी गारंटी दी गई है।

सरकार की किसान अनुकूल पहल

सरकार वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के विजन को साकार करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके तहत उत्पादकता बढ़ाने, खेती की लागत घटाने और बाजार ढांचे सहित फसल कटाई उपरांत प्रबंधन को सुदृढ़ करने पर विशेष जोर दिया जा रहा है। अनेक बाजार सुधारों को लागू किया गया है। इनमें मॉडल कृषि उपज एवं पशुधन विपणन अधिनियम, 2017 और मॉडल अनुबंध खेती एवं सेवा अधिनियम, 2018 भी शामिल हैं। अनेक राज्यों  ने कानून के जरिए इन्हें  अपनाने के लिए आवश्यक कदम उठाये हैं।

एक नया बाजार ढांचा स्थापित करने के लिए भी प्रयास किये जा रहे हैं, ताकि किसानों को उनकी उपज के उचित या लाभकारी मूल्य दिलाये जा सकें। इनमें ग्रामीण कृषि बाजारों (ग्राम) की स्थापना करना भी शामिल है, ताकि खेतों के काफी निकट ही 22,000 खुदरा बाजारों को प्रोत्साहित किया जा सके। इसी तरह ई-नाम के जरिए एपीएमसी पर प्रतिस्पर्धी एवं पारदर्शी थोक व्यापार सुनिश्चित करना और एक सुव्यवस्थित एवं किसान अनुकूल निर्यात नीति तैयार करना भी इन प्रयासों में शामिल हैं।

इसके अलावा, कई अन्य  किसान अनुकूल पहल की गई हैं जिनमें प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना एवं परंपरागत कृषि विकास योजना का क्रियान्वयन करना और मृदा स्वास्थ्य कार्डों का वितरण करना भी शामिल हैं। खेती की लागत के डेढ़ गुने के फॉर्मूले के आधार पर न्यू‍नतम समर्थन मूल्य की घोषणा करने का असाधारण निर्णय भी किसानों के कल्याण के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को प्रतिबिम्बित करता है।

स्रोत लिंक: पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार

परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई)
परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई)

भारत में जैविक खेती की परंपरा और महत्व आरम्भ से ही रही हैI पूर्ण रूप से जैविक खादों पर आधारित फसल पैदा करनाजैविक खेती कहलाता है। दुनिया के लिए भले ही यह नई तकनीक हो, लेकिन देश में परंपरागत रूप से जैविक खाद पर आधारित खेती होती आई है। जैविक खाद का इस्तेमाल करना देश में परंपरागत रूप से होता रहा है।

इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ़ आर्गेनिक एग्रीकल्चर मूवमेंट (आईऍफ़ओएएम) द्वारा किए गए 2013 के एक अध्ययन के अनुसार, पूरे विश्व में लगभग दो लाख किसान जो जैविक खेती के तरीकों का अभ्यास करते है उन फार्मों का लगभग 80 प्रतिशत भारत में हैं। यह मानना गलत नहीं होगा कि हमारे देश में एक जैविक क्रांति का केंद्र बिंदु है जो पूरे विश्व को अपने क्रांति लहर में समेट लेगा I भारत में जैविक खेती की बहुतायत निश्चित रूप से आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि यह सदियों से पुराने हमारे पूर्वजों द्वारा की जानेवाली खेती प्रथाओं के एक निरंतरता है।

हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में रसायनिक खादों पर निर्भरता बढ़ने के बाद से जैविक खाद का इस्तेमाल नगण्य हो गया है।आज के समय में बढ़ते हुए रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग को देखते हुए जैविक खेती भारत में और भी महत्वपूर्ण बन गया है। दुनिया भर में जैविक खाद्य के लिए मांग में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। इन जैविक खेती की तकनीक को बढ़ावा मिलने से भारत इन खाद्य पदार्थों के विशाल निर्यात की संभावनाओं को साकार कर सकता है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार ने परम्परागत कृषि विकास योजना को शुरू किया है।

परम्परागत कृषि विकास योजना

राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन के अंतर्गत मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन का एक सविस्तारित घटक है। परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई)के तहत जैविक खेती को क्लस्टर पद्धति और पीजीएस प्रमाणीकरण द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है। भारत सरकार कृषि एवं सहकारिता विभाग द्वारा वर्ष 2015-16 से एक नई-परम्परागत कृषि विकास योजना का शुभारम्भ किया गया है।इस योजना का उद्देश्य जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण और विपणन को प्रोत्साहन करना है। योजनान्तर्गत सम्मिलित घटक सहभागिता जैविक प्रतिभूति प्रणाली या पार्टीसिपेटरी ग्यारन्टी स्कीम (पी.जी.एस.) को सुदृढ़ता प्रदान करने के तारतम्य में हैं। इसी दिशा में भारत सरकार कृषि एवं सहकारिता विभाग द्वारा क्षेत्रीय परिषद (रीजनल काउन्सिल) के रूप में राष्ट्रीय जैविक खेती केन्द्र गाजियाबाद से पंजीयन करवाकर, पीजीएस लागू करने संबंधी कार्यवाही के लिये जिला आत्मा समितियों को अधिकृत किया गया है।

योजना के अंतर्गत एनजीओ के जरिए प्रत्येक क्लस्टर को विभिन्न सुविधाएं उपलब्ध कराईं जाएंगी। एक क्लस्टर पर कुल 14.35 लाख रुपये खर्च किए जाएंगे। पहले वर्ष में 6,80 लाख रुपये, दूसरे वर्ष में 4.81 लाख रुपये व तीसरे वर्ष में 2.72 लाख रुपये की मदद प्रत्येक क्लस्टर को दी जाएगी।

इन रुपयों का इस्तेमाल किसानों को जैविक खेती के बारे में बताने के लिए होने वाली बैठक, एक्सपोजर विजिट, ट्रेनिंग सत्र, ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन, मृदा परीक्षण, ऑर्गेनिक खेती व नर्सरी की जानकारी, लिक्विड बायोफर्टीलाइजर, लिक्विड बायो पेस्टीसाइड उपलब्ध कराने, नीम तेल, बर्मी कंपोस्ट और कृषि यंत्र आदि उपलब्ध कराने पर किया जाएगा। वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन एवं उपयोग, बायोफर्टीलाइजर और बायोपेस्टीसाइड के बारे में प्रशिक्षण, पंच गव्य, के उपयोग और उत्पादन पर प्रशिक्षण आदि इसके साथ ही जैविक खेती से पैदा होने वाले उत्पाद की पैकिंग व ट्रांसपोर्टेशन के लिए भी अनुदान दिया जाएगा।

अद्यतन

परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई)- पीकेवीवाई को देश में जैविक खेती को प्रोत्‍साहित करने के उद्देश्‍य से कार्यान्‍वित किया जा रहा है। यह मृदा स्‍वास्‍थ्‍य एवं जैविक पदार्थ सामग्री में सुधार लाएगा तथा किसानों की निवल आय में बढ़ोत्‍तरी होगी ताकि प्रीमियम मूल्‍यों की पहचान किया जा सके। लक्षित 50 एकड़ (2015-16 से 2017-18) तक की प्रगति संतोषजनक है। अब इसे कलस्‍टर आधार (लगभग प्रति 1000 हैक्‍टेयर) पर शुरू किया गया है।

अपेक्षित परिणाम

इस योजना की परिकल्पना की गई है नीचे दी गयी उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए जो इस प्रकार से हैं –

1.  प्रमाणित जैविक खेती के माध्यम से वाणिज्यिक जैविक उत्पादन को बढ़ावा देना।

2.  उपज कीटनाशक मुक्त होगा जो उपभोक्ता के अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में योगदान देगा।

3.  यह किसानों की आय में बढ़ोतरी करेगा और व्यापारियों के लिए संभावित बाजार देगा।

4.  यह उत्पादन आगत के लिए प्राकृतिक संसाधन जुटाने के लिए किसानों को प्रेरित करेगा।

कार्यक्रम का कार्यान्वयन

  • किसानों के समूहों को परम्‍परागत कृषि विकास योजना के तहत जैविक खेती शुरू करने के लिए प्रेरित किया जायेगा। इस योजना के तहत जैविक खेती का काम शुरू करने के लिए 50 या उससे ज्‍यादा ऐसे किसान एक क्‍लस्‍टर बनायेंगे, जिनके पास 50 एकड़ भूमि होगी। इस तरह तीन वर्षों के दौरान जैविक खेती के तहत 10,000 क्‍लस्‍टर बनाये जायेंगे, जो 5 लाख एकड़ के क्षेत्र को कवर करेंगे।
  • प्रमाणीकरण पर व्यय के लिए किसानों पर कोई भार/दायित्व नहीं होगा।
  • फसलों की पैदावार के लिए, बीज खरीदने और उपज को बाजार में पहुंचाने के लिए हर किसान को तीन वर्षों में प्रति एकड़ 20,000 रुपये दिए जायेंगे।
  • परंपरागत संसाधनों का उपयोग करके जैविक खेती को प्रोत्साहित किया जाएगा और जैविक उत्पादों को बाजार के साथ जोड़ा जाएगा।
  • यह किसानों को शामिल करके घरेलू उत्पादन और जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण को बढ़ाएगा I

घटक और सहायता का पैटर्न

क्लस्टर पद्धति के द्वारा पार्टिसिपेटरी गारंटी सिस्टम (पीजीएस) को अपनाना

पीजीएस प्रमाणीकरण के लिए 50 एकड़ भूमि के साथ किसानों/स्थानीय लोगों को क्लस्टर बनाने के लिए प्रोत्साहित करना

  1. लक्षित क्षेत्रों में जैविक खेती क्लस्टर निर्माण हेतु किसानों के बैठकों और विचार विमर्श के आयोजन के लिए @ रु. 200 / किसान
  2. क्लस्टर के सदस्य को जैविक खेती क्षेत्रों का एक्सपोज़र विजिट कराना @ रु. 200 / किसान
  3. पीजीएस व्यवस्था के लिए क्लस्टर से संसाधन व्यक्ति की पहचान (एलआरपी)करना
  4. क्लस्टर के सदस्यों को जैविक खेती पर प्रशिक्षण (3 प्रशिक्षण@ रु.20000 प्रति प्रशिक्षण)

पीजीएस प्रमाणीकरण और गुणवत्ता नियंत्रण

  1. पीजीएस प्रमाणीकरण पर 2 दिवसीय प्रशिक्षण @ रु. 200 प्रति एलआरपी
  2. प्रशिक्षकों (20) का प्रशिक्षण लीड संसाधन व्यक्ति@ रु. 250 / दिन / प्रति क्लस्टर 3 दिनों के लिए।
  3. किसानों का ऑनलाइन पंजीकरण@ रु. 100 प्रति क्लस्टर सदस्य x 50
  4. मृदा नमूना संग्रह और परीक्षण(21 नमूने / वर्ष /क्लस्टर) @ रु. 190 प्रति नमूना तीन साल के लिए
  5. पीजीएस प्रमाणीकरण के लिए जैविक विधियों, इस्तेमाल किये गए आगतों, अनुगमन किये गए क्रॉपिंग पैटर्न, प्रयोग में लाये गए जैविक खाद और उर्वरक आदि के रूपांतरण की प्रक्रिया प्रलेखन, @ रुपए 100 प्रति सदस्य x 50
  6. क्षेत्र के क्लस्टर सदस्यों का निरीक्षण @ रुपए 400 / निरीक्षण x  3 (3 निरीक्षण प्रति वर्ष प्रति क्लस्टर किया जाएगा)
  7. एनएबीएल में नमूने का विश्लेषण (प्रति वर्ष  प्रति क्लस्टर 8 नमूने होंगें) @ रु. 10, 000 / नमूना
  8. प्रमाणीकरण  शुल्क
  9. प्रमाणीकरण लिए प्रशासनिक व्यय

क्लस्टर पद्धति के माध्यम से खाद प्रबंधन और जैविक नाइट्रोजन कटाई के लिए जैविक गांव को अपनाना

एक क्लस्टर में जैविक खेती के लिए कार्य योजना बनाना

  1. भूमि का रूपांतरण जैविक की ओर@ रु.  1000/ एकड़ x 50
  2. फसल प्रणाली की शुरूआत; जैविक बीज खरीद या जैविक नर्सरी स्थापना @ रु. 500 / एकड़ / वर्ष x 50 एकड़ जमीन
  3. परंपरागत जैविक आगत उत्पादन इकाई जैसे पंचगव्य, बीजामृत और जीवामृत आदि @ रु. 1500 / यूनिट / एकड़ x 50 एकड़
  4. जैविक नाइट्रोजन फसल रोपण (ग्लिरीसीडिया, सेस्बनिया, आदि) @ रु. 2000 / एकड़ x 50 एकड़
  5. वानस्पतिक अर्क उत्पादन इकाइयां(नीम केक, नीम का तेल) @ रु.  1000 / यूनिट / एकड़ x 50 एकड़

एकीकृत खाद प्रबंधन

  1. लिक्विड बायोफ़र्टिलाइजर कांसोर्टिया (नाइट्रोजन फिक्सिंग/फास्फेट सोलुबीलाईजिंग/ पोटेशियम मोबिलाईजिंग बायोफ़र्टिलाइजर) @ रु.  500 / एकड़ x 50
  2. लिक्विड बायोपेस्टीसाइड(ट्राईकोडर्मा विरीडे, प्सुडोमोनस फ्लोरीसेंस, मेटारहिजियम, बेविऔरिए बस्सिअना, पेसलोम्यसेस,वेर्तिसिल्लिऊ एम) @ रु.  500 / एकड़ x 50
  3. नीम केक / नीम तेल @ रु.  500 / एकड़ x 50
  4. फास्फेट रिच आर्गेनिक मैनयोर / जाइम ग्रानयूल्स @ रु.  1000 / एकड़ x 50
  5. वर्मीकम्पोस्ट  (साइज 7’x3’x1’) @ रु.  5000/ यूनिट  x 50

कस्टम हायरिंग चार्जेज  (सीएचसी)

  1. कृषि औजार (एसएमएएम दिशा-निर्देशों के अनुसार) – पावर टिलर, कोनो वीडर, पैडी थ्रेशर, फुर्रो ओपनर, स्प्रेयर, गुलाब कैन, टॉप पैन बैलेंस
  2. बागवानी के लिए वाक इन टनलस(एमआईडीएच के दिशा-निर्देशों के अनुसार)
  3. पशु खाद के लिए मवेशी छायाघर/पोल्ट्री/ पिगरी(गोकुल स्कीम के दिशा-निर्देशों के अनुसार)

क्लस्टर के जैविक उत्पादों की पैकिंग, लेबलिंग और ब्रांडिंग

  1. पीजीएस लोगो के साथ पैकिंग सामग्री+ होलोग्राम मुद्रण @ रु. 2500 / एकड़  x 50
  2. जैविक उत्पाद ढुलाई (चार व्हीलर, 1.5 टन भार क्षमता) @ रु. अधिकतम 120000 1 क्लस्टर के लिए
  3. जैविक मेला (अधिकतम सहायता @ रु.  36330 प्रति क्लस्टर दी जाएगी)

स्रोत: कृषि और सहकारिता विभाग, भारत सरकार

नारियल विकास बोर्ड की नारियल पेड़ बीमा योजना
नारियल विकास बोर्ड की नारियल पेड़ बीमा योजना

परिचय

नारियल विकास बोर्ड (सीबीडी) देश में नारियल की खेती और उद्योग के समेकित विकास के लिए कृषि मंत्रालय के अंतर्गतस्थापित एक सांविधिक निकाय है। रोपण सामग्री के उत्पादन और वितरण, नारियल के तहत क्षेत्र के विस्तार, उत्पादकता में सुधार, प्रौद्योगिकी प्रदर्शन के लिए एकीकृत खेती जैसी योजनाओं के बारे में जानकारी का पता लगाएं, जैसे नारियल पानी, खोपरा, नारियल तेल, कच्चे गिरी, नारियल केक नारियल उत्पादों से संबंधित विवरण प्राप्त करें। नारियल उत्पादों के प्रसंस्करण, प्रौद्योगिकी आदि की सूचना दी जाती है। प्रयोक्तां सीबीडी नियमों, विनियमों, और अधिनियमों से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

भूमिका

नारियल कृषि को कई खतरों का सामना करना पड़ता है जैसे कृषि जलवायु में आने वाले भारी परिवतर्न, प्राकृतिक आपदाएं, कीट-रोगों का प्रकोप आदि आदि। कभी कभी ऐसा भी होता है कि प्राकृतिक आपदाओं या कीट प्रकोप से किसी क्षेत्र की नारियल खेती पूर्णतया नष्‍ट हो जाती है। नारियल एक बहुवर्षी फसल है और इस फसल को हानि पहुँचने पर कृषकों को काफी अधिक नुकसान होता है अत: इस समस्‍या का निदान करना बहुत ज़रूरी है। अनाज, बाजरा,  दलहन, तिलहन और बागवानी फसलों की बीमा परिरक्षा के लिए राष्‍ट्रीय कृषि बीमा योजना हैं, जबकि मौजूदा हालात ऐसे है कि नारियल खेती की सुरक्षा के लिए कोई भी बीमा योजना नहीं है।

नारियल पेड़ बहुवर्षी फसल है, किंतु ताड़ वृक्षों में फलन और पैदावार आवर्ती होती है अत: मौसमीय वार्षिक फसलो से समानता रखती है। तदनुसार बीमा परिरक्षा   के लिए यह भी योग्‍य है। चूँकि नारियल की खेती वर्षा पर निर्भर होती है और जीवीय एवं अजीवीय दबावों  के प्रति संवेदनशील होती है अत: यह अत्यंत आवश्यक है कि नारियल पेड़ों का बीमा कराके नारियल कृषकों के खास तौर से छोटे एवं सीमाँत किसानों के खतरों को कम करें।

नारियल पेड़ बीमा योजना का उद्देश्य

  1. प्राकृतिक तथा अन्‍य खतरों से सुरक्षा हेतु नारियल कृषकों को नारियल पेड़ों के बीमा करवाने के लिए सहायता।
  2. पेड़ों की अचानक मृत्यु होने के कारण आय में नुकसान होने वाले कृषकों को समय पर राहत दिलाना।
  3. नारियल खेती लाभकर बनाने के लिए पुनर्रोपण एवं पुनरुज्‍जीवन कार्य को बढ़ावा देना और खतरा कम करना।

प्रयोजनीयता

नारियल खेती का बीमा करने के लिए प्रारंभित बीमा योजना पहले पायलट आधार पर कार्यान्वित की जाती है और यह ऐसे सभी स्‍वस्‍थ फलदायी नारियल पेड़ों के लिए लागू होगी जो एकल या अंतराफसल के रूप में बांध के फार्मों में या वासस्‍थानों में उगाए जाते हैं। लंबी, बौनी और संकर सहित सभी किस्मों के नारियल पेड़ों को बीमा परिरक्षा   मिलेगी। चूँकि बौनी एवं संकर किस्मों में रोपाई के चौथे वर्ष से फलन शुरू होते हैं, अत: इन किस्‍मों के नारियल पेड़ों को 4-60 वर्ष की आयु तक बीमा परिरक्षा   मिलेगी। किंतु लंबी किस्‍म के नारियल पेड़ो को 7-60 वर्ष की आयु तक  परिरक्षा   मिलेगी। कमज़ोर और बूढ़े पेड़ों को परिरक्षा   नहीं मिलेगी।

योग्यता मानदंड

इस योजना के अनुसार ऐसे नारियल किसान/ कृषक बीमा परिरक्षा   के लिए योग्य हैं जिनके, सटे हुए क्षेत्र/प्‍लॉट में निर्दिष्‍ट आयु के (बौने, संकर पेड़ों के लिए 4-60 वर्ष एवं लंबे पेड़ों के लिए 7-60 वर्ष) कम से कम 10 फलदायी स्‍वस्‍थ पेड़ हैं ।

परिरक्षा क्षेत्र

इस योजना के पायलट आधार पर कार्यान्‍वयन के लिए चुने गए क्षेत्रों/जिलाओं के बीमा योग्‍य आयु के सभी स्‍वस्‍थ पेड़ों को इसके अंतर्गत परिरक्षा   मिलेगी। सटे हुए क्षेत्र की रोपणी का भागिक रूप से बीमाकरण संभव नहीं है। बीमा परिरक्षा   4/7 से 60 वर्ष तक है और प्रीमियम एवं बीमा कराई राशि तय करने के लिए दो आयु ग्रूपों में विभाजित किया गया है यानी 4-15 वर्ष तक और 16-60 वर्ष तक।

जिस किसान/ कृषक ने नारियल का बीमा करवाया है उसके द्वारा बीमा प्रस्‍ताव में आयु ग्रूपों के संबंध में स्‍व घोषणा स्‍वीकार्य  होगी। भारतीय कृषि बीमा कंपनी लि. पोलिसी की अवधि समाप्‍त होने से पहले या दावा के भुगतान से पूर्व किसी भी वक्‍त, प्रामाणिकता का पता करने के लिए बीमा कराए पेड़ों की जाँच कराएगी। यदि बीमा कराए व्यक्ति ने पेड़ की आयु या किसी अन्‍य महत्‍वपूर्ण तथ्‍यों के बारे में गलत घोषणा दी है तो बीमा रद्द माना जाएगा।

बीमा कराने के इच्‍छुक किसान/कृषक सीधे कृषि बीमा कंपनी के प्रतिनिधियों/प्राधिकृत एजेंटों से या कृषि/बागवानी विभाग के निकटस्‍थ कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं। कृषक/किसान प्रीमियम सब्सिडी घटाकर शेष राशि नकद द्वारा या भारतीय कृषि बीमा कंपनी लिमिटेड के नाम चेक/बैंक ड्राफ्ट द्वारा अदा करेगा।

आकस्मिकता

जिसके लिए बीमा कराया गया है| जिन खतरों के लिए पेड़ का बीमा कराया गया है उनसे पेड़ों की मृत्‍यु हो जाए या वह अनुत्‍पादक हो जाए तो पेड़ की पूर्ण क्षति के लिए बीमा पोलिसी की राशि का भुगतान किया जाएगा। यदि पेड़ की मृत्‍यु शीघ्र न हो जाती तो ऐसे मामलो में नारियल विकास बोर्ड/कृषि/बागवानी विभाग से पेड़ अनुत्‍पादक हो जाने  का कारण बताते हुए प्रमाणपत्र प्रस्‍तुत करने पर बीमा राशि का भुगतान किया जाएगा। कोई पेड़ तभी अनुत्‍पादक घोषित किया जा सकता है जब उन खतरों के बाद पेड़ की बढ़वार रुक जाती है/पेड़ का पुनरुज्‍जीवन संभव न हो। लेकिन  बीमा कराए व्यक्ति को उन्हीं पेड़ों को काट निकालना चाहिए या गिराना चाहिए। यदि कृषक/किसान अनुत्‍पादक पेड़ को  काटना नहीं चाहता और वैसे ही रखना चाहता है तो बचाव मूल्य के तौर पर बीमा राशि के 50 प्रतिशत की दावे से कटौती की जाएगी। किसी भी मामले में यह सिद्ध करना ज़रूरी है कि पेड़ को उन्हीं खतरों से क्षति हुई है जिसके लिए पेड़ का बीमा कराया गया है।

खतरे जिसके लिए परिरक्षा प्राप्त हैं

इस योजना के अंतर्गत निम्‍नलिखित खतरों से पेड़ की मृत्‍यु/पेड़ अनुत्‍पादक हो जाने से  परिरक्षा   मिलेगी।

  1. तूफान, ओला-वृष्टि, चक्रवात, टाइफून, बवंडर, भारी वर्षा
  2. बाढ़ और उससे जलमग्न हो जाना
  3. कीटों एवं रोगों के व्यापक प्रकोप से पेड़ की संपूर्ण क्षति हो जाना
  4. वन में आग लगना, झाड़ियों में आग लगना, बिजली गिरना आदि सहित आग की दुर्घटना
  5. भूकंप, भूस्‍खलन व सुनामी
  6. सूखा पड़ना और उससे होने वाली संपूर्ण हानि

बीमा परिरक्षा नहीं मिलेगी

जिन खतरों के लिए बीमा किया गया है उससे पेड़ को हुई हानि  फैंचाइस के अंतर्गत  ही है तो इस योजना के अधीन दावे के लिए भुगतान नहीं किया जाएगा। जिन खतरों के लिए बीमा किया गया है उसके बाहर के खतरों से पेड़ को पहुँचे नुकसान के सिलसिले में बीमेदार द्वारा किए गए  किसी भी प्रकार के खर्च के भुगतान करने के लिए, इस पोलिसी के अधीन, बीमाकर्ता बाध्य नहीं होगा। निम्‍नलिखित मामलों में बीमा परिरक्षा नहीं मिलेगी –

  1. चोरी, लड़ाई, हमला, सिविल युद्ध, बगावत, क्रांति, विद्रोह, दंगा, तालाबंदी, विद्वेषपूर्ण नुक्‍सान, साजि़श, सेना द्वारा/अनधिकृत सत्ता ग्रहण, नागरिकों द्वारा शोरगुल, जब्‍ती, विधित:/वस्‍तुत: किसी सरकारी आदेश से/ किसी सार्वजनिक/नगरपालिका/स्‍थानीय प्राधिकरण द्वारा अधिग्रहण/नुकसान/हानि तथा बिजली प्रसारण  के सिलसिले में होने वाला नुकसान
  2. अणु रिऐक्शन, अणु विकिरण या रेडियोएक्टिव संदूषण
  3. हवाईयान या अन्‍य वस्‍तुओं के गिरने पर होने वाला नुकसान
  4. जिस किसान ने बीमा करवाया है उनके द्वारा या उसके लिए कार्य करने वाले व्‍यक्ति द्वारा जानबूझकर लापरवाही
  5. मनुष्‍य, पक्षी या किसी पशु द्वारा नुकसान पहुंचाना
  6. पेड़ों का ठीक तरह से रख-ऱखाव न करना
  7. पेड़ों का कमज़ोर या बूढ़ा हो जाना
  8. स्‍वाभाविक रूप से पेड़ का मर जाना, जड़ों के कट जाने से पेड़ का उखाड़ना
  9. पूंजी निवेश में हानि जैसे ज़मीन के मूल्य में गिरावट या बीमा करवाए पेड़ को आधार देने वाली वस्तुओं को हानि, सिंचाई प्रणाली, कृषि उपस्‍कर एवं औजारों को नुकसान

बीमा राशि व प्रीमियम

बीमा राशि व प्रीमियम: बीमा राशि प्रति पेड़ 600 रुपए (4 से 15 वर्ष के आयु ग्रूप के लिए) से प्रति पेड़ 1150 रुपए (16 से 60  वर्ष के आयु ग्रूप के लिए) हो सकती है। नारियल पेड़ बीमा योजना के अधीन विविध आयु ग्रूपों की बीमा राशि एवं देय प्रीमियम निम्‍नलिखित हैं-

नारियल पेड़ कीआयु(वर्ष) प्रति पेड़ बीमा राशि (रुपए) प्रति पौधा प्रति वर्ष प्रीमियम(रुपए) प्रति पेड़ प्रीमियम (सेवा कर@10.30%)
4-15 600 4.25 4.69
16 से 60 1150 5.75 6.35

प्रीमियम सब्सिडी

ऊपर पैरा में दी गई राशि में से 50 प्रतिशत नारियल विकास बोर्ड द्वारा और 25 प्रतिशत संबंधित राज्‍य सरकार द्वारा तथा शेष 25 प्रतिशत किसान/ कृषक द्वारा अदा किया जाएगा। यदि प्रीमियम के 25 प्रतिशत का भुगतान करने के लिए राज्‍य सरकार तैयार नहीं है तो बीमा योजना में शामिल करने के इच्‍छुक कृषकों को प्रीमियम का 50 प्रतिशत अदा करना पड़ेगा। कृषि बीमा कंपनी को प्रीमियम सब्सिडी राशि (50 प्रतिशत नाविबो द्वारा और 25 प्रतिशत सहभागी राज्‍यों द्वारा) आकलित करके अग्रिम रूप में विमोचित की जाएगी जो तिमाही/वार्षिक आधार पर भरी या समायोजित की जाएगी।

बीमा की अवधि

बीमा पोलिसी के पायलट स्‍टेज के दौरान मात्र वार्षिक पोलिसी जारी की जाएगी। यह सुनिश्चित करने के लिए कोशिश की जाएगी कि इस वर्ष के 31 मार्च तक योग्य सभी किसानों/ कृषकों को योजना में शामिल कराएँ। तथापि जो किसान/कृषक 31 मार्च तक योजना में शामिल नहीं हुआ है वे बाद में शामिल हो सकता है और ऐसे मामलों में खतरे के लिए बीमा परिरक्षा   आगामी महीने की पहली तारीख से ही मिलेगी। आने वाले सालों में उन कृषकों को वरीयता मिलेगी जो योजना में शामिल हो चुके हैं और उपलब्ध बजट प्रावधान के अनुसार बोर्ड द्वारा निर्धारित संख्‍या में नए कृषकों को शामिल किया जाएगा।

प्रतीक्षा अवधि

बीमा योजना में शामिल होकर  30 दिन के अंदर पेड़ की हानि/मृत्‍यु हो जाती है तो बीमा राशी अदा नहीं की जाएगी लेकिन समय पर नवीकरण किए गए बीमा के लिए यह शर्त लागू नहीं होगी।

फ्रेंचाइस

बीमा के लिए दावा तभी निर्धारित किया जाएगा जब किसी सटे हुए क्षेत्र में बीमा किए खतरे से हानि हुए पेड़ों की संख्या नीचे विभिन्न स्लैबों में दर्शाए गए पेड़ों की संख्या से अधिक हो।

क्र.सं. किसी सटे हुए क्षेत्र में बीमा किए पेड़ों की संख्‍या फैंचाइस(पेड़)
1 10-30 1
2 31-100 2
3 >100 3

आधिक्य

इस पोलिसी के अधीन बीमा किए किसानों/ कृषकों को निर्धारित हानि  के प्रथम 20 प्रतिशत के लिए खुद का बीमाकर्ता माना जाएगा और मात्र 80 प्रतिशत नुकसान का ही भुगतान किया जाएगा।

बीमा योजना चालू राज्य एवं कार्यक्षेत्र

यह पायलट परियोजना आंध्र प्रदेश, गोवा, कर्नाटक, केरल, महाराष्‍ट्र, उड़ीसा एवं तमिलनाडु के कुछ चयनित जिलाओं में कार्यान्वित की जाएगी। किसानों/कृषकों द्वारा सटे हुए क्षेत्रों के सभी स्‍वस्‍थ एव फलदायी नारियल पेड़ों का बीमा कराया जाएगा और नारियल विकास बोर्ड द्वारा पायलट जिलाओं के सभी क्‍लस्‍टर ग्रामों के सभी फलदायी एवं स्‍वस्‍थ पेड़ों का बीमा करवाने की पूरी कोशिश की जाएगी।

बीमा पोलिसी जारी करना

कृषि बीमा कंपनी, बीमा कराए सभी किसानों/कृषकों को उनके प्रस्‍ताव प्राप्‍त होने के 30 दिनों के भीतर  अपेक्षित प्रीमियम के अंतर्गत बीमा प्रमाणपत्र/परिरक्षा   नोट जारी करेगी। कृषि बीमा कंपनी  बीमा कराए किसानों / कृषकों की समेकित जिलावार सूची नारियल विकास बोर्ड को हर तिमाही में प्रस्‍तुत करेगी।

दावा निर्धारित करने और निपटान की कार्यविधि

बीमा कराए व्यक्ति को खतरा होने के सात दिन के अंदर ही बीमा किए  पेड़ों को हुई क्षति के बारे में संगत ब्‍योरे के साथ कृषि बीमा कंपनी को सूचित करना चाहिए। नारियल विकास बोर्ड/कृषि/बागवानी विभाग/राज्‍य कृषि विश्‍वविद्यालय जो भी कृषि बीमा कंपनी द्वारा प्रत्‍येक जिले के लिए प्राधिकृत किया गया है, पेड़ को हुई क्षति की सूचना मिलने के सात दिन के अंतर क्षति  के कारण की सफाई देते हुए क्षति निर्धारण प्रमाणपत्र प्रस्‍तुत करना होगा। कृषि बीमा कंपनी अपने विवेकानुसार अपने प्रतिनिधि को, हानि प्रमाणित करने के लिए नामित  एजेंसी के साथ, नुकसान निर्धारित करने के लिए भेजेगी। कंपनी अपने कार्यालय में दावा संबंधी सभी संगत प्रमाणित ब्‍योरे प्राप्‍त होने के एक महीने के अंदर बीमा कराए किसान/ कृषक को दावा विमोचित करेगी। तथापि दावा राशि का विमोचन नाविबो एवं संबंधित राज्‍यों से प्रीमियम सब्सिडी प्राप्त होने के आधार पर होगा।

एक बार पूरे दावे का भुगतान हो जाने पर बीमा समाप्‍त हो जाएगा।

नुकसान प्रमाणित करने वाले कृषि/बागवानी विभाग या राज्‍य कृषि विश्‍वविद्यालयों को कंपनी और संबंधित एजेंसी के बीच तय हुई दर पर सेवा प्रभार का भुगतान किया जाएगा।

स्रोत : भारत सरकार का कृषि विभाग

एकीकृत बागवानी विकास मिशन
एकीकृत बागवानी विकास मिशन

मिशन के बारे मेें

एकीकृत बागवानी विकास मिशन (एमआईडीएच) फलों, सब्जियों, जड़ व कन्द फसलों, मशरूम, मसाले, फूल, सुगंधित पौधों, नारियल, काजू, कोको और बांस इत्यादि उत्पादों के चौमुखी विकास की केंद्रीय वित्त पोषित योजना है। पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों को छोड़कर देश के सभी प्रदेशों में लागू इस योजना से जुड़े विकास कार्यक्रमों के कुल बजट का 85 प्रतिशत हिस्सा भारत सरकार देती है जबकि शेष 15 प्रतिशत राज्य सरकारें खुद वहन करती हैं। पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के मामले में शत-प्रतिशत बजट केंद्र सरकार ही वहन करती है। इसी तरह बांस विकास सहित राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (एनएचबी), नारियल विकास बोर्ड, केंद्रीय बागवानी संस्थान, नागालैंड और राष्ट्रीय एजेंसियों (एनएलए) के कार्यक्रमों के लिए भी शत-प्रतिशत बजटीय योगदान भारत सरकार का ही होगा।

मिशन के उद्देश्य

मिशन के मुख्य उद्देश्य हैं:

A. बागवानी क्षेत्र के चौमुखी विकास को बढ़ावा देना जिसमें बांस और नारियल भी शामिल है। इस क्रम में प्रत्येक राज्य अथवा  क्षेत्र की जलवायु विविधता के अनुरूप क्षेत्र आधारित अलग-अलग कार्यनीति अपनाना। इसमें शामिल है-अनुसंधान, तकनीक को बढ़ावा, विस्तारीकरण, फसलोपरांत प्रबंधन, प्रसंस्करण और विपणन इत्यादि।

B. कृषकों को एफआईजी, एफपीओ व एफपीसी जैसे कृषक समूहों से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करना ताकि समानता और व्यापकता आधारित आर्थिकी का निर्माण किया जा सके।

C. बागवानी उत्पादन की उन्नति, कृषक संख्या में वृद्धि, आमदनी और पोषाहार सुरक्षा

D. गुणवत्ता, पौध सामग्री और सूक्ष्म सिंचाई के प्रभावी उपयोग के जरिये उत्पादकता सुधार

E. बागवानी क्षेत्र में ग्रामीण युवाओं में मेधा विकास को प्रोत्साहन देना और रोजगार उत्पन्न करना तथा खासकर फसलोपरांत शीत श्रृंखला के क्षेत्र में उचित प्रबंधन

उप-योजनाएं और कार्यक्षेत्र

एकीकृत बागवानी विकास मिशन के अंतर्गत ये उप-योजनाएं और कार्यक्षेत्र होंगेः

संख्या उप-योजना समूह/कार्य क्षेत्र
1 राष्ट्रीय  बागवानी मिशन पूर्वोत्तर व हिमालयी राज्यों के अलावा सभी राज्य व केंद्र शासित प्रदेश
2 पूर्वोत्तर व हिमालयी राज्य बागवानी मिशन सभी पूर्वोत्तर व हिमालयी क्षेत्र
3 राष्ट्रीय बांस मिशन राज्य व केंद्र शासित प्रदेश
4 राष्ट्रीय  बागवानी बोर्ड व्यावसायिक बागवानी पर जोर देने वाले सभी राज्य व केंद्र शासित प्रदेश
5 नारियल विकास बोर्ड नारियल  उत्पादक सभी राज्य व केंद्र शासित प्रदेश
6 केंद्रीय बागवानी संस्था मानव संसाधन व क्षमता विकास पर जोर देने वाले पूर्वोत्तर के राज्य

कार्यनीति

उपरोक्त उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मिशन निम्नलिखित कार्यनीतियों को अपनाएगाः

  • उत्पादन-पूर्व, उत्पादन के दौरान और उत्पादन के उपरांत ठोस प्रबंधन के लिए एक सिरे से दूसरे सिरे तक चौतरफा नजरिया अपनाना। साथ ही प्रसंस्करण और विपणन के जरिये यह सुनिश्चित करना कि उत्पादकों को फसल का सही लाभ मिल सके।
  • खेती, उत्पादन, फसलोपरांत प्रबंधन और शीत श्रृंखला पर विशेष ध्यान देते हुए जल्द खराब होने वाले उत्पादों के प्रसंस्करण इत्यादि के लिए अनुसंधान और विकास संबंधी तकनीक को बढ़ावा देना।
  • गुणवत्ता के जरिये उत्पादन सुधार के लिए निम्नलिखित उपाय करनाः

  1. पारंपरिक खेती की बजाय बागीचों को बढ़ावा देना। इस क्रम में फलों के बागानों, अंगूर के बागों, फूलों, सब्जी के बगीचों और बांस की खेती पर जोर देना।
  2. सरंक्षित खेती और आधुनिक कृषि सहित उन्नत बागवानी के लिए किसानों तक सही तकनीक का विस्तार करना।
  3. खासकर उन राज्यों में जहां बागवानी का क्षेत्र कुल कृषि क्षेत्र के 50 प्रतिशत से कम है, वहां एकड़ के हिसाब से बांस और नारियल सहित फलोद्यान और बागीचा खेती का विस्तार करना।

  • फसलोपरांत प्रबंधन, प्रसंस्करण और विपणन की परिस्थितियों में सुधार लाना।
  • परस्पर समन्वय और सहभागिता को अपनाना, अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में आगे बढ़ना व इसे लोगों तक पहुंचाना तथा राष्ट्रीय, क्षेत्रीय, राज्यीय व उपराज्यीय स्तर पर सार्वजनिक व निजी क्षेत्र की प्रसंस्करण और विपणन इकाईयों को बढ़ावा देना।
  • उपज का उचित लाभ हासिल करने के लिए कृद्गाक उत्पादक संगठनों (एफपीओ) को बढ़ावा देना तथा विपणन संघों व वित्तीय संस्थानों के साथ संबंध स्थापित करना।

नए दिशा-निर्देशों की ज्यादा जानकारी के लिए देंखे राष्ट्रीय बागवानी मिशन 

स्त्रोत : एकीकृत राष्ट्रीय बागवानी विकास मिशन,कृषि एवं सहकारिता विभाग,कृषि मंत्रालय

ग्रामीण भंडार योजना
ग्रामीण भंडार योजना

ग्रामीण भंडार योजना-एक परिचय

यह सर्वविदित है कि छोटे किसानों की आर्थिक सामर्थ्‍य इतनी नहीं होती कि वे बाजार में अनुकूल भाव मिलने तक अपनी उपज को अपने पास रख सकें। देश में इस बात की आवश्‍यकता महसूस की जाती रही है कि कृषक समुदाय को भंडारण की वैज्ञानिक सुविधाएं प्रदान की जाएं ताकि उपज की हानि और क्षति रोकी जा सके और साथ ही किसानों की ऋण संबंधी जरूरतें पूरी की जा सकें। इससे किसानों को ऐसे समय मजबूरी में अपनी उपज बेचने से रोका जा सकता है जब बाजार में उसके दाम कम हों। ग्रामीण गोदामों का नेटवर्क बनाने से छोटे किसानों की भंडारण क्षमता बढ़ाई जा सकती है। इससे वे अपनी उपज उस समय बेच सकेंगे जब उन्‍हें बाजार में लाभकारी मूल्‍य मिल रहा हो और किसी प्रकार के दबाव में बिक्री करने से उन्‍हें बचाया जा सकेगा। इसी बात को ध्‍यान में रख कर 2001-02 में ग्रामीण गोदामों के निर्माण/जीर्णोद्धार के लिए ग्रामीण भंडार योजना नाम का पूंजी निवेश सब्सिडी कार्यक्रम शुरू किया गया था।

उद्देश्य

इस कार्यक्रम के मुख्‍य उद्देश्‍यों में कृषि उपज और संसाधित कृषि उत्‍पादों के भंडारण की किसानों की जरूरतें पूरी करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में अनुषंगी सुविधाओं के साथ वैज्ञानिक भंडारण क्षमता का निर्माण; कृषि उपज के बाजार मूल्‍य में सुधार के लिए ग्रेडिंग, मानकीकरण और गुणवत्‍ता नियंत्रण को बढ़ावा देना; वायदा वित्‍त व्‍यवस्‍था और बाजार ऋण सुविधा प्रदान करते हुए फसल कटाई के तत्‍काल बाद संकट और दबावों के कारण फसल बेचने की किसानों की मजबूरी समाप्‍त करना; कृषि जिन्‍सों के संदर्भ में राष्‍ट्रीय गोदाम प्रणाली प्राप्तियों की शुरूआत करते हुए देश में कृषि विपणन ढांचा मजबूत करना शामिल है। इसके जरिए निजी और सहकारी क्षेत्र को देश में भंडारण ढांचे के निर्माण में निवेश के लिए प्रेरित करते हुए कृषि क्षेत्र में लागत कम करने में मदद की जा सकती है।
ग्रामीण गोदाम के निर्माण की परियोजना देशभर में व्‍यक्तियों, किसानों, कृषक/उत्‍पादक समूहों, प्रतिष्‍ठानों, गैर सरकारी संगठनों, स्‍वयं सहायता समूहों, कम्‍पनियों, निगमों, सहकारी संगठनों, परिसंघों और कृषि उपज विपणन समिति द्वारा शुरू की जा सकती है।

स्‍थान

इस कार्यक्रम के अंतर्गत उद्यमी को इस बात की आजादी है कि वह अपने वाणिज्यिक निर्णय के अनुसार किसी भी स्‍थान पर गोदाम का निर्माण कर सकता है। परंतु गोदाम का स्‍थान नगर निगम क्षेत्र की सीमाओं से बाहर होना चाहिए। खाद्य प्रसंस्‍करण उद्योग मंत्रालय द्वारा प्रोन्‍नत फूड पार्कों में बनाए जाने वाले ग्रामीण गोदाम भी इस कार्यक्रम के अंतर्गत सहायता प्राप्‍त करने के पात्र हैं।

आकार

गोदाम की क्षमता का निर्णय उद्यमी द्वारा किया जाएगा। लेकिन इस कार्यक्रम के अंतर्गत सब्सिडी प्राप्‍त करने के लिए गोदाम की क्षमता 100 टन से कम और 30 हजार टन से अधिक नहीं होनी चाहिए। 50 टन क्षमता तक के ग्रामीण गोदाम भी इस कार्यक्रम के अंतर्गत विशेष मामले के रूप में सब्सिडी के पात्र हो सकते हैं, जो व्‍यवहार्यता विश्लेषण पर निर्भर करेंगे। पर्वतीय क्षेत्रों में 25 टन क्षमता के आकार वाले ग्रामीण गोदाम भी सब्सिडी के हकदार होंगे।

स्थान आकार और क्षमता को संक्षेप में इस प्रकार दिया जा सकता है-लोकेशन, आकार और क्षमता :

  • गोदाम म्युनिसिपल क्षेत्र की सीमा के बाहर होना चाहिए।
  • न्यूनतम क्षमता :   50 मैट्रिक टन
  • अधिकतम क्षमता : 10,000 मैट्रिक टन
  • गोदाम की ऊचाई :  4-5 मीटर से कम नहीं होनी चाहिए
  • गोदाम की क्षमता :  1 क्सूबिक मीटर क्षेत्र त्र 0-4 मैट्रिक टन की गणना का पैमाना

वैज्ञानिक भंडारण के लिए शर्तें

कार्यक्रम के अंतर्गत निर्मित गोदाम इंजीनियरी अपेक्षाओं के अनुरूप ढांचागत दृष्टि से मजबूत होने चाहिए और कार्यात्‍मक दृष्‍टि से कृषि उपज के भंडारण के उपयुक्‍त होने चाहिए। उद्यमी को गोदाम के प्रचालन के लिए लाइसेंस प्राप्‍त करना पड़ सकता है, बशर्ते राज्‍य गोदाम अधिनियम या किसी अन्‍य सम्‍बद्ध कानून के अंतर्गत राज्‍य सरकार द्वारा ऐसी अपेक्षा की गई हो। 1000 टन क्षमता या उससे अधिक के ग्रामीण गोदाम केंद्रीय भंडारण निगम (सीडब्‍ल्‍यूसी) से प्रत्‍यायित होने चाहिए।वैज्ञानिक भण्डारण हेतु अपनाई जाने वाली पूर्व शर्ते को संक्षेप में इस प्रकार दिया जा सकता है :

1) सीपीडब्ल्यूडी/एसपीडब्ल्यूडी-के विनिदेशानुसार निर्माण
2) कीटाणुओं से सुरक्षा (अस्थाई सीड़ियों के साथ ऊचा पक्का क्लेटफार्म चूहारोधक व्यवस्था सहित)
3) पक्षियों से सुरक्षा जाली वाली खिड़कियॉ/रोशनदान
4) प्रभावी धूम्रीकरण फयूमीगेशन के लिए दरवाजों, खिड़कियों की वायुअवरोधकता
5) गोदाम कॉम्पलेक्स में निम्न सुविधाऐं होनी चाहिए
6) सुगम पक्की सड़क
7) पक्की आंतरिक सड़के
8) जल निकासी की समुचित व्यवस्था
9) अग्नि शमन/ सुरक्षा व्यवस्था
10) सामान लादने/ उतारने की उचित व्यवस्था

ऋण से सम्‍बद्ध सहायता

इस कार्यक्रम के अंतर्गत सब्सिडी संस्‍थागत ऋण से सम्‍बद्ध होती है और केवल ऐसी परियोजनाओं के लिए दी जाती है जो वाणिज्यिक बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, राज्‍य सहकारी बैंकों, राज्‍य सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंकों, कृषि विकास वित्‍त निगमों, शहरी सहकारी बैंकों आदि से वित्‍त पोषित की गई हों।

कार्यक्रम के अंतर्गत सब्सिडी गोदाम के प्रचालन के लिए कार्यात्‍मक दृष्टि से अनुषंगी सुविधाओं जैसे चाहर दिवारी, भीतरी सड़क, प्‍लेटफार्म, आतरिक जल निकासी प्रणाली के निर्माण, धर्मकांटा लगाने, ग्रेडिंग, पैकेजिंग, गुणवत्‍ता प्रमाणन, वेयरहाउसिंग सुविधाओं सहित गोदाम के निर्माण की पूंजी लागत पर दी जाती है।

वायदा ऋण सुविधा

इन गोदामों में अपनी उपज रखने वाले किसानों को उपज गिरवी रख कर वायदा ऋण प्राप्‍त करने का पात्र समझा जाएगा। वायदा ऋणों के नियम एवं शर्तों, ब्‍याज दर, गिरवी रखने की अवधि, राशि आदि का निर्धारण रिजर्व बैंक/नाबार्ड द्वारा जारी दिशा निर्देशों और वित्‍तीय संस्‍थानों द्वारा अपनाई जाने वाली सामान्‍य बैंकिंग पद्धतियों के अनुसार किया जाएगा।

बीमा

गोदाम के बीमे की जिम्मेवारी गोदाम के मालिक की होगी।

सब्सिडी

सब्सिडी की दरें इस प्रकार होंगी :-

क) अजा/अजजा उद्यमियों और इन समुदायों से सम्‍बद्ध सहकारी संगठनों तथा पूर्वोत्‍तर राज्‍यों, पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित परियोजनाओं के मामले में परियोजना की पूंजी लागत का एक तिहाई (33.33 प्रतिशत) सब्सिडी के रूप में दिया जाएगा, जिसकी अधिकतम सीमा 3 करोड़ रुपये होगी।

ख) किसानों की सभी श्रेणियों, कृषि स्‍नातकों और सहकारी संगठनों से सम्‍बद्ध परियोजना की पूंजी लागत का 25 प्रतिशत सब्सिडी दी जाएगी जिसकी अधिकतम सीमा 2.25 करोड़ रुपये होगी।

ग) अन्‍य सभी श्रेणियों के व्‍यक्तियों, कंपनियों और निगमों आदि को परियोजना की पूंजी लागत का 15 प्रतिशत सब्सिडी दी जाएगी जिसकी अधिकतम सीमा1.35 करोड़ रुपये होगी।

घ) एनसीडीसी की सहायता से किए जा रहे सहकारी संगठनों के गोदामों के जीर्णोद्धार की परियोजना लागत का 25 प्रतिशत सब्सिडी दी जाएगी।

ड.) कार्यक्रम के अंतर्गत सब्सिडी के प्रयोजन के लिए परियोजना की पूंजी लागत की गणना निम्‍नांकित अनुसार की जाएगी :-

क) 1000 टन क्षमता तक के गोदामों के लिए – वित्‍त प्रदाता बैंक द्वारा मूल्‍यांकित परियोजना लागत या वास्‍तविक लागत या रुपये 3500 प्रति टन भंडारण क्षमता की दर से आने वाली लागत, इनमें जो भी कम हो;

ख) 1000 टन से अधिक क्ष्‍ामता वाले गोदामों के लिए  :- बैंक द्वारा मूल्‍यांकित परियोजना लागत या वास्‍तविक लागत या रुपये 1500 प्रति टन की दर से आने वाली लागत, इनमें जो भी कम हो।

वाणिज्यिक/सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा वित्‍त पोषित परियोजनाओं के मामले में सब्सिडी नाबार्ड के जरिए जारी की जाएगी। यह राशि वित्‍तप्रदाता बैंक के सब्सिडी रिजर्व निधि खाते में रखी जाएगी और कर से मुक्‍त होगी।

स्त्रोत: एमवीएस प्रसाद(संयुक्‍त निदेशक, पत्र सूचना कार्यालय, चेन्‍नई) द्वारा लिखित,पत्र सूचना कार्यालय(पसूका-प्रेस इंफार्मेशन ब्यूरो)

समेकित वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम
समेकित वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम

समेकित वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम-एक परिचय

समेकित वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम (आईडब्लनयूएमपी) तत्काकलीन सूखा प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम (डीपीएपी) मरुभूमि विकास कार्यक्रम (डीपीएपी) और भूमि संसाधन विभाग के समेकित बंजरभूमि विकास कार्यक्रम (आईडब्यूा डीपी) का संशोधित कार्यक्रम है। यह संयोजन संसाधनों, स्थायी निष्कर्ष और एकीकृत योजना के अधिकतम उपयोग के लिए है। यह योजना 2009-10 के दौरान शुरू की गई थी। कार्यक्रम को वाटरशेड विकास परियोजना 2008 के सामान्य दिशा-निर्देशों के अनुसार कार्यान्‍वित किया जा रहा है। आईडब्यूएमपी का मुख्य उद्देश्य मृदा, वनस्पति और जल जैसे अवक्रमित प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल, संरक्षण और विकास करके पारिस्थितिकी संतुलन को बहाल करना है। इसके परिणामस्वरूप मृदा ह्रास पर रोक लगती है, प्राकृतिक वनस्पति का पुनर्सृजन होता है, वर्षाजल एकत्रीकरण होता है तथा भूजल स्तर का संभरण होता है। इससे बहु-फसलें लगाने और विविध कृषि आधारित कार्यकलाप चलाने में मदद मिलती है, जिससे वाटरशेड क्षेत्र में रह रहे लोगों को स्थायी आजीविका उपलब्ध् कराने में सहायता मिलती है।

कार्यक्रम की मुख्य विशेषताएं

आईडब्यूएमपी की मुख्य विशेषताएं निम्न् प्रकार हैं:
(i) राज्य स्तर पर बहु-विषयक विशेषज्ञों सहित समर्पित संस्था‍नों की स्थापना करना – राज्यस्तरीय नोडल एजेंसी (एसएलएनए), जिला स्तर-वाटरशेड प्रकोष्ठस-सह-डॉटा सेंटर (डब्ल-यूसीडीसी), परियोजना स्तर – परियोजना कार्यान्वयन एजेंस (पीआईए) और ग्राम स्तर – वाटरशेड समिति (डब्यूंरीसी)।
(ii) परियोजनाओं का चयन और तैयार करने में सामूहिक दृष्टिजकोण: परियोजना का औसत आकार-लगभग 5,000 हेक्टेयर।
(iii) मैदानी क्षेत्रों में लागत मानदण्डों को 6,000 रुपए प्रति हेक्‍टेयर से बढ़ाकर 12,000 रुपए/हेक्टेयर किया गया है; दुर्गम/पहाड़ी क्षेत्रों में यह 15,000 रुपए/हेक्टेयर है।
(iv) केन्द्र् और राज्यों के बीच 90:10 अनुपात में एक – समान वित्त़-पोषण पद्धति।
(v) पांच स्था्पनाओं की बजाय तीन स्थापनाओं (20%, 50% और 30%) में केन्द्रीय सहायता की रिलीज।
(vi) परियोजना अवधि में लचीलापन अर्थात् 4 से 7 वर्ष।
(vii) सूचना प्रौद्योगिकी, दूरसंवेदी तकनीकों, योजना, और निगरानी एवं मूल्यांकन के लिए जीआईएस सुविधाओं का प्रयोग करके परियोजनाओं के शुरू में की वैज्ञानिक योजना बनाना।
(viii) डीपीआर तैयार करने के लिए परियोजना निधियों का निर्धारण करना (1%)।
(ix) वाटरशेड परियोजनाओं के अंतर्गत परियोजना निधियों के निर्धारण सहित नए आजीविका घटक को लागू करना अर्थात् बिना परिसंपत्ति वाले लोगों की आजीविका के लिए परियोजना निधि का 9% तथा उत्पाकद प्रणाली और सूक्ष्मि उद्यमों के लिए 10% निर्धारित करना।
(x) राज्यों को परियोजनाओं की संस्वीकृत शक्तियों का प्रत्यायोजन करना।

स्त्रोत-भूमि संसाधन विभाग,भारत सरकार

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