परिचय
नारियल विकास बोर्ड (सीबीडी) देश में नारियल की खेती और उद्योग के समेकित विकास के लिए कृषि मंत्रालय के अंतर्गतस्थापित एक सांविधिक निकाय है। रोपण सामग्री के उत्पादन और वितरण, नारियल के तहत क्षेत्र के विस्तार, उत्पादकता में सुधार, प्रौद्योगिकी प्रदर्शन के लिए एकीकृत खेती जैसी योजनाओं के बारे में जानकारी का पता लगाएं, जैसे नारियल पानी, खोपरा, नारियल तेल, कच्चे गिरी, नारियल केक नारियल उत्पादों से संबंधित विवरण प्राप्त करें। नारियल उत्पादों के प्रसंस्करण, प्रौद्योगिकी आदि की सूचना दी जाती है। प्रयोक्तां सीबीडी नियमों, विनियमों, और अधिनियमों से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
भूमिका
नारियल कृषि को कई खतरों का सामना करना पड़ता है जैसे कृषि जलवायु में आने वाले भारी परिवतर्न, प्राकृतिक आपदाएं, कीट-रोगों का प्रकोप आदि आदि। कभी कभी ऐसा भी होता है कि प्राकृतिक आपदाओं या कीट प्रकोप से किसी क्षेत्र की नारियल खेती पूर्णतया नष्ट हो जाती है। नारियल एक बहुवर्षी फसल है और इस फसल को हानि पहुँचने पर कृषकों को काफी अधिक नुकसान होता है अत: इस समस्या का निदान करना बहुत ज़रूरी है। अनाज, बाजरा, दलहन, तिलहन और बागवानी फसलों की बीमा परिरक्षा के लिए राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना हैं, जबकि मौजूदा हालात ऐसे है कि नारियल खेती की सुरक्षा के लिए कोई भी बीमा योजना नहीं है।
नारियल पेड़ बहुवर्षी फसल है, किंतु ताड़ वृक्षों में फलन और पैदावार आवर्ती होती है अत: मौसमीय वार्षिक फसलो से समानता रखती है। तदनुसार बीमा परिरक्षा के लिए यह भी योग्य है। चूँकि नारियल की खेती वर्षा पर निर्भर होती है और जीवीय एवं अजीवीय दबावों के प्रति संवेदनशील होती है अत: यह अत्यंत आवश्यक है कि नारियल पेड़ों का बीमा कराके नारियल कृषकों के खास तौर से छोटे एवं सीमाँत किसानों के खतरों को कम करें।
नारियल पेड़ बीमा योजना का उद्देश्य
- प्राकृतिक तथा अन्य खतरों से सुरक्षा हेतु नारियल कृषकों को नारियल पेड़ों के बीमा करवाने के लिए सहायता।
- पेड़ों की अचानक मृत्यु होने के कारण आय में नुकसान होने वाले कृषकों को समय पर राहत दिलाना।
- नारियल खेती लाभकर बनाने के लिए पुनर्रोपण एवं पुनरुज्जीवन कार्य को बढ़ावा देना और खतरा कम करना।
प्रयोजनीयता
नारियल खेती का बीमा करने के लिए प्रारंभित बीमा योजना पहले पायलट आधार पर कार्यान्वित की जाती है और यह ऐसे सभी स्वस्थ फलदायी नारियल पेड़ों के लिए लागू होगी जो एकल या अंतराफसल के रूप में बांध के फार्मों में या वासस्थानों में उगाए जाते हैं। लंबी, बौनी और संकर सहित सभी किस्मों के नारियल पेड़ों को बीमा परिरक्षा मिलेगी। चूँकि बौनी एवं संकर किस्मों में रोपाई के चौथे वर्ष से फलन शुरू होते हैं, अत: इन किस्मों के नारियल पेड़ों को 4-60 वर्ष की आयु तक बीमा परिरक्षा मिलेगी। किंतु लंबी किस्म के नारियल पेड़ो को 7-60 वर्ष की आयु तक परिरक्षा मिलेगी। कमज़ोर और बूढ़े पेड़ों को परिरक्षा नहीं मिलेगी।
योग्यता मानदंड
इस योजना के अनुसार ऐसे नारियल किसान/ कृषक बीमा परिरक्षा के लिए योग्य हैं जिनके, सटे हुए क्षेत्र/प्लॉट में निर्दिष्ट आयु के (बौने, संकर पेड़ों के लिए 4-60 वर्ष एवं लंबे पेड़ों के लिए 7-60 वर्ष) कम से कम 10 फलदायी स्वस्थ पेड़ हैं ।
परिरक्षा क्षेत्र
इस योजना के पायलट आधार पर कार्यान्वयन के लिए चुने गए क्षेत्रों/जिलाओं के बीमा योग्य आयु के सभी स्वस्थ पेड़ों को इसके अंतर्गत परिरक्षा मिलेगी। सटे हुए क्षेत्र की रोपणी का भागिक रूप से बीमाकरण संभव नहीं है। बीमा परिरक्षा 4/7 से 60 वर्ष तक है और प्रीमियम एवं बीमा कराई राशि तय करने के लिए दो आयु ग्रूपों में विभाजित किया गया है यानी 4-15 वर्ष तक और 16-60 वर्ष तक।
जिस किसान/ कृषक ने नारियल का बीमा करवाया है उसके द्वारा बीमा प्रस्ताव में आयु ग्रूपों के संबंध में स्व घोषणा स्वीकार्य होगी। भारतीय कृषि बीमा कंपनी लि. पोलिसी की अवधि समाप्त होने से पहले या दावा के भुगतान से पूर्व किसी भी वक्त, प्रामाणिकता का पता करने के लिए बीमा कराए पेड़ों की जाँच कराएगी। यदि बीमा कराए व्यक्ति ने पेड़ की आयु या किसी अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में गलत घोषणा दी है तो बीमा रद्द माना जाएगा।
बीमा कराने के इच्छुक किसान/कृषक सीधे कृषि बीमा कंपनी के प्रतिनिधियों/प्राधिकृत एजेंटों से या कृषि/बागवानी विभाग के निकटस्थ कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं। कृषक/किसान प्रीमियम सब्सिडी घटाकर शेष राशि नकद द्वारा या भारतीय कृषि बीमा कंपनी लिमिटेड के नाम चेक/बैंक ड्राफ्ट द्वारा अदा करेगा।
आकस्मिकता
जिसके लिए बीमा कराया गया है| जिन खतरों के लिए पेड़ का बीमा कराया गया है उनसे पेड़ों की मृत्यु हो जाए या वह अनुत्पादक हो जाए तो पेड़ की पूर्ण क्षति के लिए बीमा पोलिसी की राशि का भुगतान किया जाएगा। यदि पेड़ की मृत्यु शीघ्र न हो जाती तो ऐसे मामलो में नारियल विकास बोर्ड/कृषि/बागवानी विभाग से पेड़ अनुत्पादक हो जाने का कारण बताते हुए प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने पर बीमा राशि का भुगतान किया जाएगा। कोई पेड़ तभी अनुत्पादक घोषित किया जा सकता है जब उन खतरों के बाद पेड़ की बढ़वार रुक जाती है/पेड़ का पुनरुज्जीवन संभव न हो। लेकिन बीमा कराए व्यक्ति को उन्हीं पेड़ों को काट निकालना चाहिए या गिराना चाहिए। यदि कृषक/किसान अनुत्पादक पेड़ को काटना नहीं चाहता और वैसे ही रखना चाहता है तो बचाव मूल्य के तौर पर बीमा राशि के 50 प्रतिशत की दावे से कटौती की जाएगी। किसी भी मामले में यह सिद्ध करना ज़रूरी है कि पेड़ को उन्हीं खतरों से क्षति हुई है जिसके लिए पेड़ का बीमा कराया गया है।
खतरे जिसके लिए परिरक्षा प्राप्त हैं
इस योजना के अंतर्गत निम्नलिखित खतरों से पेड़ की मृत्यु/पेड़ अनुत्पादक हो जाने से परिरक्षा मिलेगी।
- तूफान, ओला-वृष्टि, चक्रवात, टाइफून, बवंडर, भारी वर्षा
- बाढ़ और उससे जलमग्न हो जाना
- कीटों एवं रोगों के व्यापक प्रकोप से पेड़ की संपूर्ण क्षति हो जाना
- वन में आग लगना, झाड़ियों में आग लगना, बिजली गिरना आदि सहित आग की दुर्घटना
- भूकंप, भूस्खलन व सुनामी
- सूखा पड़ना और उससे होने वाली संपूर्ण हानि
बीमा परिरक्षा नहीं मिलेगी
जिन खतरों के लिए बीमा किया गया है उससे पेड़ को हुई हानि फैंचाइस के अंतर्गत ही है तो इस योजना के अधीन दावे के लिए भुगतान नहीं किया जाएगा। जिन खतरों के लिए बीमा किया गया है उसके बाहर के खतरों से पेड़ को पहुँचे नुकसान के सिलसिले में बीमेदार द्वारा किए गए किसी भी प्रकार के खर्च के भुगतान करने के लिए, इस पोलिसी के अधीन, बीमाकर्ता बाध्य नहीं होगा। निम्नलिखित मामलों में बीमा परिरक्षा नहीं मिलेगी –
- चोरी, लड़ाई, हमला, सिविल युद्ध, बगावत, क्रांति, विद्रोह, दंगा, तालाबंदी, विद्वेषपूर्ण नुक्सान, साजि़श, सेना द्वारा/अनधिकृत सत्ता ग्रहण, नागरिकों द्वारा शोरगुल, जब्ती, विधित:/वस्तुत: किसी सरकारी आदेश से/ किसी सार्वजनिक/नगरपालिका/स्थानीय प्राधिकरण द्वारा अधिग्रहण/नुकसान/हानि तथा बिजली प्रसारण के सिलसिले में होने वाला नुकसान
- अणु रिऐक्शन, अणु विकिरण या रेडियोएक्टिव संदूषण
- हवाईयान या अन्य वस्तुओं के गिरने पर होने वाला नुकसान
- जिस किसान ने बीमा करवाया है उनके द्वारा या उसके लिए कार्य करने वाले व्यक्ति द्वारा जानबूझकर लापरवाही
- मनुष्य, पक्षी या किसी पशु द्वारा नुकसान पहुंचाना
- पेड़ों का ठीक तरह से रख-ऱखाव न करना
- पेड़ों का कमज़ोर या बूढ़ा हो जाना
- स्वाभाविक रूप से पेड़ का मर जाना, जड़ों के कट जाने से पेड़ का उखाड़ना
- पूंजी निवेश में हानि जैसे ज़मीन के मूल्य में गिरावट या बीमा करवाए पेड़ को आधार देने वाली वस्तुओं को हानि, सिंचाई प्रणाली, कृषि उपस्कर एवं औजारों को नुकसान
बीमा राशि व प्रीमियम
बीमा राशि व प्रीमियम: बीमा राशि प्रति पेड़ 600 रुपए (4 से 15 वर्ष के आयु ग्रूप के लिए) से प्रति पेड़ 1150 रुपए (16 से 60 वर्ष के आयु ग्रूप के लिए) हो सकती है। नारियल पेड़ बीमा योजना के अधीन विविध आयु ग्रूपों की बीमा राशि एवं देय प्रीमियम निम्नलिखित हैं-
नारियल पेड़ कीआयु(वर्ष) | प्रति पेड़ बीमा राशि (रुपए) | प्रति पौधा प्रति वर्ष प्रीमियम(रुपए) | प्रति पेड़ प्रीमियम (सेवा कर@10.30%) |
4-15 | 600 | 4.25 | 4.69 |
16 से 60 | 1150 | 5.75 | 6.35 |
प्रीमियम सब्सिडी
ऊपर पैरा में दी गई राशि में से 50 प्रतिशत नारियल विकास बोर्ड द्वारा और 25 प्रतिशत संबंधित राज्य सरकार द्वारा तथा शेष 25 प्रतिशत किसान/ कृषक द्वारा अदा किया जाएगा। यदि प्रीमियम के 25 प्रतिशत का भुगतान करने के लिए राज्य सरकार तैयार नहीं है तो बीमा योजना में शामिल करने के इच्छुक कृषकों को प्रीमियम का 50 प्रतिशत अदा करना पड़ेगा। कृषि बीमा कंपनी को प्रीमियम सब्सिडी राशि (50 प्रतिशत नाविबो द्वारा और 25 प्रतिशत सहभागी राज्यों द्वारा) आकलित करके अग्रिम रूप में विमोचित की जाएगी जो तिमाही/वार्षिक आधार पर भरी या समायोजित की जाएगी।
बीमा की अवधि
बीमा पोलिसी के पायलट स्टेज के दौरान मात्र वार्षिक पोलिसी जारी की जाएगी। यह सुनिश्चित करने के लिए कोशिश की जाएगी कि इस वर्ष के 31 मार्च तक योग्य सभी किसानों/ कृषकों को योजना में शामिल कराएँ। तथापि जो किसान/कृषक 31 मार्च तक योजना में शामिल नहीं हुआ है वे बाद में शामिल हो सकता है और ऐसे मामलों में खतरे के लिए बीमा परिरक्षा आगामी महीने की पहली तारीख से ही मिलेगी। आने वाले सालों में उन कृषकों को वरीयता मिलेगी जो योजना में शामिल हो चुके हैं और उपलब्ध बजट प्रावधान के अनुसार बोर्ड द्वारा निर्धारित संख्या में नए कृषकों को शामिल किया जाएगा।
प्रतीक्षा अवधि
बीमा योजना में शामिल होकर 30 दिन के अंदर पेड़ की हानि/मृत्यु हो जाती है तो बीमा राशी अदा नहीं की जाएगी लेकिन समय पर नवीकरण किए गए बीमा के लिए यह शर्त लागू नहीं होगी।
फ्रेंचाइस
बीमा के लिए दावा तभी निर्धारित किया जाएगा जब किसी सटे हुए क्षेत्र में बीमा किए खतरे से हानि हुए पेड़ों की संख्या नीचे विभिन्न स्लैबों में दर्शाए गए पेड़ों की संख्या से अधिक हो।
क्र.सं. | किसी सटे हुए क्षेत्र में बीमा किए पेड़ों की संख्या | फैंचाइस(पेड़) |
1 | 10-30 | 1 |
2 | 31-100 | 2 |
3 | >100 | 3 |
आधिक्य
इस पोलिसी के अधीन बीमा किए किसानों/ कृषकों को निर्धारित हानि के प्रथम 20 प्रतिशत के लिए खुद का बीमाकर्ता माना जाएगा और मात्र 80 प्रतिशत नुकसान का ही भुगतान किया जाएगा।
बीमा योजना चालू राज्य एवं कार्यक्षेत्र
यह पायलट परियोजना आंध्र प्रदेश, गोवा, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, उड़ीसा एवं तमिलनाडु के कुछ चयनित जिलाओं में कार्यान्वित की जाएगी। किसानों/कृषकों द्वारा सटे हुए क्षेत्रों के सभी स्वस्थ एव फलदायी नारियल पेड़ों का बीमा कराया जाएगा और नारियल विकास बोर्ड द्वारा पायलट जिलाओं के सभी क्लस्टर ग्रामों के सभी फलदायी एवं स्वस्थ पेड़ों का बीमा करवाने की पूरी कोशिश की जाएगी।
बीमा पोलिसी जारी करना
कृषि बीमा कंपनी, बीमा कराए सभी किसानों/कृषकों को उनके प्रस्ताव प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर अपेक्षित प्रीमियम के अंतर्गत बीमा प्रमाणपत्र/परिरक्षा नोट जारी करेगी। कृषि बीमा कंपनी बीमा कराए किसानों / कृषकों की समेकित जिलावार सूची नारियल विकास बोर्ड को हर तिमाही में प्रस्तुत करेगी।
दावा निर्धारित करने और निपटान की कार्यविधि
बीमा कराए व्यक्ति को खतरा होने के सात दिन के अंदर ही बीमा किए पेड़ों को हुई क्षति के बारे में संगत ब्योरे के साथ कृषि बीमा कंपनी को सूचित करना चाहिए। नारियल विकास बोर्ड/कृषि/बागवानी विभाग/राज्य कृषि विश्वविद्यालय जो भी कृषि बीमा कंपनी द्वारा प्रत्येक जिले के लिए प्राधिकृत किया गया है, पेड़ को हुई क्षति की सूचना मिलने के सात दिन के अंतर क्षति के कारण की सफाई देते हुए क्षति निर्धारण प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना होगा। कृषि बीमा कंपनी अपने विवेकानुसार अपने प्रतिनिधि को, हानि प्रमाणित करने के लिए नामित एजेंसी के साथ, नुकसान निर्धारित करने के लिए भेजेगी। कंपनी अपने कार्यालय में दावा संबंधी सभी संगत प्रमाणित ब्योरे प्राप्त होने के एक महीने के अंदर बीमा कराए किसान/ कृषक को दावा विमोचित करेगी। तथापि दावा राशि का विमोचन नाविबो एवं संबंधित राज्यों से प्रीमियम सब्सिडी प्राप्त होने के आधार पर होगा।
एक बार पूरे दावे का भुगतान हो जाने पर बीमा समाप्त हो जाएगा।
नुकसान प्रमाणित करने वाले कृषि/बागवानी विभाग या राज्य कृषि विश्वविद्यालयों को कंपनी और संबंधित एजेंसी के बीच तय हुई दर पर सेवा प्रभार का भुगतान किया जाएगा।
स्रोत : भारत सरकार का कृषि विभाग