पर्यावरण एवं वन मंत्रालय 10वीं पंचवर्षीय योजना में विभिन्न क्रियान्वयन करने वाली संस्थाओं को, “हरित”-भारत” योजना के लिए अनुदान सहायता राशि के रूप में वितीय सहायता प्रदान कर रहा है | योजना के अन्तर्गत, वनीकरण और गुणवतापूर्ण रोपण सामग्री उत्पादन हेतु उच्च तकनीक वाली / उपग्रह पौधशालाओं की स्थापना सरकारी, सामुदायिक और निजीभूमि पर करने हेतु वितीय सहायता |प्रदान की जाती है | योजना की मार्गदर्शिका एवं आवेदन पत्र के प्रारूप की प्रतियाँ सभी राज्यों/संघ शासित राज्यों के प्रधान मुख्य वन संरक्षकों के पास उपलब्ध करा दी गयी हैं, इसे मंत्रालय की वेबसाइट http//www.envfor.nic.in पर भी प्राप्त किया जा सकता है |
पात्रता की शर्ते
वृक्षारोपण | उपग्रह पौधशाला की स्थापना करना | केन्द्रीय उच्च तकनीक पौधशाला | |
थ्कयान्वय करने वाली संस्थायें | सरकारी विभाग, नगरीय स्थानीय संस्थायें, पंचायती राज संस्थायें राज्य वन विभाग, पंजीकृत सामाजिक संस्थायें, अलाभकृत संस्थायें सहकारी समितियों, परोपकारी न्यास, स्वयं सेवी संस्थायें, सार्वजनिक संस्थान, स्वायत संस्थायें पंजीकृत विद्यालय, कालेज एवं विश्वविद्यालय | (i) राज्य के वन विभाग या अन्य वानिकी /कृषि अनुसंधान संस्थानों / वन विकास अभिकरणों/किसान जो गरीबी रेखा से नीचे के हैं / वृक्ष उगाने वाली सहकारी समितियों / पंचायत के साथ मिलकर |(ii) कोई भी व्यक्ति / किसान जो गरीबी रेखा के नीचे के हों और निजी कार्मिक | | राज्य के वन विभाग स्वयं या वानिकी / कृषि अनुसंधान संस्थानों /वन विकास अभिकरणों /किसान जो गरीबी रेखा से नीचे हों /वृक्ष उगाने वाली सहकारी समितियों / पंचायत के साथ मिलकर | |
पंजीकरण की कम से कम अवधि | 31 मार्च तक पंजीकरण कराये हुए 5 वर्ष पुरे करे लिए हों | | आवेदन करते समय स्थानीय नियमों एवं कानूनी प्रावधानों के अनुरूप पंजीकृत होना चाहिए | | लागु नहीं |
टनुभव | पर्यावरण या उससे सम्बन्धित सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने का कम से कम 3 वर्ष का अनुभव | गुणवता पूर्ण वृक्षारोपण की सामग्री तैयार करने, उसके साधनों की तथा पौधशला तैयार करने का कम से कम 3 वर्ष का अनुभव | लागू नहीं |
राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (PCCF) को वृक्षारोपण और उपग्रह पौधशाला तैयार करने सम्बन्धी परियोजना प्रस्तावों को प्राप्त करने एवं उनकी जाँच करने के लिए राज्य में मुख्य बिन्दु के रूप में अधिकृति किया गया है | हर प्रकार से पूर्ण परियोजना प्रस्ताव निर्धारित प्रपत्र पर दो प्रतियों में सीधे सम्बन्धित राज्य/केन्द्र शासित राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक को प्रस्तुत किये जाने चाहिए| योजना की मार्गदर्शिका के अनुरूप तैयार परियोजना प्रस्ताव राज्य / केन्द्र शासित राज्य के वन-विभागों के पास प्रति वर्ष 30 जून तक प्राप्त किये जायेगें | प्रत्येक राज्य के परियोजना प्रस्तावों को प्रधान मुख्य वन संरक्षक द्वारा अच्छी प्रकार से जाँच करके एवं प्राथमिकता के आधार पर अग्रसारित किया जाना चाहिए | प्रधान मुख्य वन संरक्षकों के पास से सभी आवश्यक सामग्री के साथ परियोजना प्रस्तावों को इस मंत्रालय के पास प्रति वर्ष 31 जुलाई तक भेजने की अंतिम तिथि है | सभी परियोजना प्रस्तावों/ आवश्यक सामग्री/ कागजातों को केवल पंजीकृत डाक द्वारा ही भेजा जा सकता है |
कोई भी परियोजना प्रस्ताव मंत्रालय द्वारा सीधे प्राप्त अथवा ग्रहण नहीं किया जायेगा |
संचालक मार्गदर्शिका
राष्ट्रीय वन-नीति 1988 के प्रावधानों के अनुरूप देश के भौगोलिक क्षेत्र के एक तिहाई भाग पर वनों एवं वृक्षों का आवरण बढ़ाना, देश की आर्थिक एवं पारिस्थितिकी सुरक्षा की दृष्टि से विशेषकर ग्रामीण निर्धनों के लिए अत्यावश्यक है | एक तिहाई भूमि पर वन एवं वृक्षारोपण आवरण के लक्ष्य को प्राप्त करने में वनों के बाहरी क्षेत्रों के वर्तमान वार्षिक वृक्षारोपण कार्यक्रम में 4 गुना वृद्धि करनी होगी | वनों के बाहरी क्षेत्रों की भूमि पर वृक्षारोपण करने का कार्य वृक्षारोपण करने वालो को बहुत कम लाभ होने की वजह से बहुत मन्द हो गया | यह मुख्य रूप से कम उत्पाद और वनोत्पादनों की घटिया किस्म की वजह से हुआ | वृक्ष उगाने वालों को उच्च उत्पादकता वाले (क्यू.पी.एम.) पौधे आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाते, इसका कारण यह है कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छे किस्म के पौधे उगानें की सुविधा नहीं है और अच्छे किस्म के पौधों के उत्पादन से होने वाले लाभों के बारे में जागरूकता का भी अभाव है | इन बाधाओं को ध्यान में रखकर अनुदान सहायता राशि योजना के स्वरूप को बदलते हुए स्वैच्छिक संस्थाओं को वृक्षारोपण के लिए सहायता प्रदान करते हुए उसमें एक अतिरिक्त घटक अच्छी किस्म वाली पौध-सामग्री (क्यू.पी.एम.) का उत्पादन और उसके लिए जन-जागरण के कार्यक्रम को शामिल किया गया है | पुनगर्ठन योजना जिसका नाम “हरित भारत के लिए अनुदान सहायता राशि” योजना रखा गया है यह विस्तृत रूप से वृक्षारोपण के 3 स्वरूपों पर केन्द्रित होगी-
(अ) अच्छी किस्म वाली प्रजातियों के पौधें (क्यू.पी.एम.) और वृक्षारोपण के विषय में जन-जागरण उत्पन्न करना|
(ब) अच्छी किस्म वाली प्रजातियों (क्यू.पी.एम.) के उत्पादन की क्षमता बढ़ाना |
(स) लोगों की भागीदारी द्वारा वृक्षारोपण करना |
योजना के उद्देश्य
इसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं –
(i) विभिन्न स्तरों पर वृक्षारोपण और अच्छी किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री के उत्पादन एवं उसके प्रयोग के विषय में क्षमता-संवर्ध्दन का वातावरण तैयार कर समर्थ बनाना|
(ii) उच्च तकनीकी पौधशालाओं (high tech nurseries) की स्थापना द्वारा अच्छी किस्म की वृक्षारोपण सामग्री उपलब्ध करवाना|
(iii) लोगों में वृक्षारोपण की उच्च तकनीक और अच्छी किस्म की वृक्षारोपण सामग्री (क्यू.पी.एम) के उत्पादन के प्रयोग के बारे में जागरूकता फैलाना|
(iv) अच्छी किस्म वाली प्रजातियों के उत्पादन तंत्र को विकसित करना तथा उसके उपयोग करने वालो के बीच समन्वय स्थापित करने में सहायता करना|
(v) गैर वन-भूमि को केन्द्रित कर देश में वन आवरण बढ़ाने में योगदान देना|
जनता की भागीदारी
जनता की भागीदारी का प्रकरण योजना का केन्द्र होगा |राज्य के वन विभाग और अन्य क्रियान्वयन /सहयोगी अभिकरणों और विभागों से इस प्रसंग/प्रकरण को ध्यान में रखकर अच्छी किस्म की उत्पादन सामग्री को उत्पन्न करने से सम्बन्धित सभी क्रिया-कलापों के बारे में योजना बनाने की अपेक्षा की जाती है | प्रजातियों का चयन, पौधशाला का स्थान,पौध-रोपण का स्थान,व्यक्तिगत स्तर पर लाभार्थी इत्यादि का चयन सम्बन्धित लोगों से परामर्श करके किया जाना चाहिए| कार्यक्रम में क्रियान्वयन/सहयोगी अभिकरण (जैसा 4.3.1 में दिया गया है)जनता की भागीदारी के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य करेंगी |
योजना के अन्तर्गत लाभर्थियों का चयन विशेषकर स्थानीय लोगों, गरीबी रेखा से नीचे वाले किसानों को ग्राम पंचायत /ग्राम सभा /संयुक्त वन-प्रबन्ध समिति/ स्थानीय संस्थाओं आदि से परामर्श के पश्चात किया जाना चाहिए| परियोजना स्थल पर पौध लगाने के लिए प्रजातियों का चयन और भूमि से मिलने वाली उपज के बँटवारे तथा वृक्षारोपण से होने वाले लाभ के वितरण की युक्ति ग्राम पंचायत/ग्राम सभा/ संयुक्त वन प्रबन्ध समिति/ स्थानीय निकाय से परामर्श के पश्चात निश्चित की जानी चाहिए और विचारों एवं लिये गये निर्णयों को सूक्ष्म योजना के रूप में क्षेत्र में क्रियान्वयन करने के लिए आकर देना चाहिए|परियोजना प्रस्ताव में पहचान किये गये लाभर्थियों की सूची और लाभार्थियों को शामिल करके तैयार की गयी सूक्ष्म योजना को भी शामिल किया जाना चाहिए| सूक्ष्म योजना के अंतर्गत प्रजातियां जिनका वृक्षारोपण करना है, देखभाल करने का तरीका, किस वर्ष में लाभ मिलेगा और लाभ को वितरित करने का तरीका आदि को सम्मिलित किया जाना चाहिए|
फसल की कटाई और लाभ वितरण की प्रक्रिया
योजना का मुख्य उद्देश्य हरियाली को बढ़ाना और सुरक्षा के लिए लोगों को शामिल करना है| लोगों की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए, यह अति आवश्यक है कि एक ऐसी व्यवस्था की जाय कि लोगों को लगातार इससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लाभ मिलता रहे| एक बार प्रजातियाँ जिनका चयन वृक्षारोपण के लिए कर लिया गया है और फसल की कटाई या उसके तैयार होने की अवधि निश्चित कर ली गयी है, उसके पूरा होने पर एक तिहाई क्षेत्र, जिस पर वृक्षारोपण किया गया है, सिल्वीकल्चर के सिद्धान्त के अनुसार उसकी कटाई एवं उस पर पुन:वृक्षारोपण कर लेना चाहिए तथा बाकी भाग को अगले दो वर्षो में दोहराया जाना चाहिए जिससे पुरे क्षेत्र में पुन:वृक्षारोपण हो सके और लोगों को निकले हुए उत्पादों के रूप में लाभ प्राप्त हो सके |मध्य-कालिक एवं अन्तिम पैदावार के लिए सूक्ष्म योजना के एक भाग के रूप में लाभ-वितरण की युक्ति को तय किये जाने की आवश्यकता है| उपरोक्त बातें सामुदायिक भूमि के लिए लागू हैं | व्यक्तिगत भूमि के मामले में, शत-प्रतिशत लाभ भूमि के मालिक को मिलेगा| वन-भूमि के मामले में इस प्रकार की युक्ति को स्थानीय वन विभाग के अधिकारीयों से,जैसा कि राज्य के संयुक्त वन प्रबन्ध प्रस्ताव में दिया गया है, परामर्श के पश्चात अन्तिम रूप दिया जाना चाहिए| क्रियान्वयन करने वाली एजेंसी की यह जिम्मेदारी होगी कि वह सुनिश्चित करे कि उपरोक्त प्रक्रियाओं का पालन किया गया है |
योजना के घटक
योजना के मुख्य घटक निम्न हैं –
1 जागरूकता पैदा करना, विस्तार एवं प्रशिक्षण |
2 वृक्षारोपण हेतु अच्छे प्रकार के पौधों का उत्पादन|
3 वृक्षारोपण |
जागरूकता पैदा करना, विस्तार एवं प्रशिक्षण
राज्य के वन विभाग को वितीय सहायता केन्द्रीय वन विकास अभिकरण,जो राज्य की राजधानी में स्थित अथवा प्रधान मुख्य वन संरक्षक के कार्यलय के स्थान में गठित की गयी है, द्वारा दी जायेगी जिसका उद्देश्य निम्न प्रकार है:
1.1 निम्नलिखित चीजें प्रवाकर तथा उसे वितरित करवाकर जारुकता उत्पन्न करना-
– पौधशाला / वृक्षारोपण की तकनीक, महत्वपूर्ण वृक्षों की प्रजातियों की बाजार व्यवस्था एवं उससे होने वाले आर्थिक लाभ के विषय में पर्चे|
– उच्च तकनीक / सैटेलाइट पौधशाला की स्थापना, प्रजातियों (प्रकार एवं मात्रा) का आंकलन करना तथा भूमि की उपलब्धता का आंकलन|
1.2 अच्छी किस्म वाली पौध-सामग्री के उत्पादन, वृक्षारोपण, सूक्ष्म नियोजन के लिए प्रशिक्षण |
1.3 सर्वेक्षण – गैर वन भूमि एवं वन भूमि की उपलब्धता की सीमा, प्रजातियों का चयन एवं उनकी आवश्यक मात्रा, सुनिश्चित करने हेतु एक आंकलन सर्वेक्षण प्रत्येक राज्य के वन विभाग द्वारा संख्या जानने एवं केन्द्रीय उच्च तकनीक / सैटेलाइट पौधशालाओं के स्थान निर्धारित करने के लिए किया जायेगा |
उच्च कोटि की पौध-सामग्री उत्पन्न करना
2.1. योजना के अंतर्गत वितीय सहायता, राज्य के वन विभाग को एक केन्द्रीय वन विकास अभिकरण, जो राज्य की राजधानी में या प्रधान मुख्य वन संरक्षक के कार्यलय में स्थित होगी, जो उच्च कोटि की पौध सामग्री के उत्पादन एवं उपलब्धता की सुविधा प्रदान करेगी | केन्द्रीय वन विकास अभिकरण प्रधान मुख्य वन संरक्षक के आदेश पर वितीय सहायता जारी करेगी |
2.2. राज्य वन विभाग, उच्च कोटि की पौध सामग्री (क्यू.पी.एम.) के उत्पादन एवं उसकी उपलब्धता सुनिश्चित कराने हेतु एक अग्रणीय अभिकरण (नोडल एजेंसी) के रूप में कार्य करेगी |ये या तो स्वयं वानिकी/कृषि अनुसंधान संगठनों /वन विकास अभिकरणों / गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले किसानों /पौधे उगाने वाली सहकारी संस्थाओं और पंचायतों के साथ सहयोग करके उच्च कोटि की पौध सामग्री तैयार करेंगे | व्यक्ति / निजी प्रतिष्ठान जिनमें गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले किसान / जो अपनी पौधशला स्थापित करना चाहते हैं उन्हें सैटेलाइट पौधशला स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा | इस प्रकार के व्यक्ति /प्रतिष्ठान/ गरीबी रेखा के नीचे वाले किसानों को आवेदन करते समय स्थानीय नियमों एवं अधिनियमों के प्रावधानों के अनुरूप पंजीकृत होने चाहिए |
उच्च कोटि की पौध-सामग्री की बिक्री से प्राप्त लाभ नोडल वन विकास अभिकरण के पास वापस आयेगा जिसका उपयोग एक चक्रीय कृषि के रूप में पौधशालाओं को भविष्य में चलते रहने के लिए किया जायेगा सैटेलाइट /उच्च तकनीक पौधशला की स्थापना हेतु दृष्टान्तयुक्त मार्गदर्शिका संलग्नक VI में दी गयी है |
2.3 उच्च कोटि वाली पौध-सामग्री के उत्पादन के अन्तर्गत क्रियायें समाहित होंगी –
(अ) उच्च कोटि पौध सामग्री का उत्पादन हाइटेक पौधशाला / सैटेलाइट पौधशाला की स्थापना उच्च कोटि की तकनीकी सुविधा बढाकर करना, जिसमें प्रति हेक्टेयर क्षेत्र के अन्तर्गत प्रत्येक वर्ष 1 लाख पौधें उगाये जा सके (कम से कम एक सैटेलाइट पौधशाला के लिए 500 वर्ग मिटर भूमि उपलब्ध करानी होगी) |
(ब) उच्च कोटि की पौध-सामग्री को प्रमाणित करना |
– राज्य के वन विभाग को इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि एजेंसी / सरकारी विभाग जिन्हें योजना के अन्तर्गत वृक्षारोपण हेतु वितीय सहायता प्रदान की जा रही है या प्रदान की जाने वाली है, उनके द्वारा अच्छी किस्म वाली पौध-सामग्री की पौधशला स्थापित करने की योजना तथा स्थान का चुनाव करते समय पौध की खपत का सही आंकलन कर लिया है |
2.4 उच्च कोटि की पौध रोपण सामग्री के उत्पादन के लिए अर्हतायें (Eligibility criteria for production of QPM)
(अ) राज्य में विशेषकर राज्य की राजधानी में पहले से बनी हुई पौधशालायें जिनकी क्षमता 1 लाख पौधें की है उन्हें केन्द्रीय उच्च तकनीकी पौधशालाओं की स्थापना हेतु वरीयता दी जा सकती है |
(ब) सैटेलाइटे पौधशला स्थापित करने वाले आवेदक को आवश्यक सामग्री जैसे भूमि, पानी का स्रोत इत्यादि का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करना चाहिए जो पौधशालाओं को लम्बे समय तक जारी रखने के लिए आवश्यक है | आवेदक को पौधशालाओं के उगाने का कम से कम 3 वर्षो का अनुभव होना आवश्यक है, उसे अच्छी किस्म वाली पौध सामग्री प्राप्त करने वाले स्रोतों का ज्ञान जागरूकता होनी चाहिए |ऐसे व्यक्ति/प्रतिष्ठान /किसान को आवेदन करते समय वर्तमान स्थानीय अधिनियमों एवं नियमों के अन्तर्गत पंजीकृत होना चाहिए |
(स) सैटेलाइट /उच्च तकनीक पौधशालाओं की स्थापना हेतु सार्वजनिक, निजी अथवा व्यक्तिगत भूमि का उपयोग किया जा सकता है |
नोट: (वन विकास अभिकरण के कार्यकलापो एवं उतरदायित्वों के विषय में संलग्नक-| में दिया गया है) |
2.5 उच्च कोटि की पौध-रोपण सामग्री को प्रमाणित करना
उच्च कोटि की पौध-रोपण सामग्री जो उच्च तकनीकी पौधशालाओं या टिस्यू-कल्चर प्रयोगशाला में विश्वसनीय वनस्पतियों से या बीज से उत्पन्न हों और जिनका दीर्धकालिक समय तक जीवित (बने) रहले का उच्च स्तर का विश्वसनीय रिकार्ड हो, और तिव्र वृद्धि वाले अच्छी पैदावार वाले पौधों का, जो दीमक एवं अन्य रोगों से बचने की क्षमता रखते हों और जो स्थानीय जैव-भौतिकी, जलवायु और सामाजिक-आर्थिक दशाओं के अनुरूप हों तथा जिनकी बाजार में अत्यधिक माँग हो, वे ही अच्छी किस्म वाली पौधों सामग्री के लिए पात्र हैं | उच्च कोटि की पौध रोपण सामग्री का स्रोत समुचित रूप से स्थापित बीज-उद्यान, क्लोनल उद्यानों, टूटे (pins trees), वृक्षों एवं उच्च तकनीकी पौधशालायें ही होनी चाहिए | उत्पादक-कलम (mother stock) जिसका उपयोग उच्च तकनीक वाली और सैटेलाइट पौधशालाओं में अच्छे किस्म के पौध रोपण सामग्री के लिये किया जाना है, के भिन्न-भिन्न अनुवांशिक स्रोतों से प्राप्त की जानी चाहिए | राज्य के वन विभाग अच्छी किस्म वाली पौध-रोपण सामग्री को प्रमाणित करने के लिए उतरदायी होंगे | इसके लिए क्षेत्रीय/ सामाजिक वानिकी वन अधिकारियों को प्रमाणीकरण हेतु अधिकृत किया जा सकता है |प्राधिकारी उच्च कोटि की पौध रोपण सामग्री के उत्पादक स्रोत के रूप में बीज-उद्यानों , क्लोनल उद्यानों/छंटे वृक्षों /उच्च तकनीकी पौधशालाओं /टिस्यूकल्चर वाली सुविधाओं / सरकारी विभागों /व्यक्तिगत संस्थाओं /व्यक्तियों की सैटेलाइट पौधशालाओं का उच्च कोटि के पौधों के उत्पादक स्रोत में पंजीकरण करेगा | अधिकृत व्यक्ति को समय-समय पर यह सुनिश्चित करने के लिए निरिक्षण/जाँच करनी होगी कि वृक्षारोपण वाली सामग्री जो पौधशालाओं /प्रयोगशालाओं में उत्पन्न की जा रही है उच्च श्रेणी की हैं प्रमाणीकरण अधिकारी वृक्षारोपण सामग्री जो पंजीकृत पौधशालाओं के अलावा अन्य स्रोतों से अच्छी किस्म वाली पौधरोपण सामग्री के रूप में आ रही हैं, उन्हें भी प्रमाणित करने का अधिकार होगा | राज्य के वन विभाग प्रमाणीकरण अधिकारी अच्छी किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री को प्रमाणित करने में जिन प्रक्रियाओं का पालन करना होगा उसके लिए अधिसूचना जारी करेंगे |
वृक्षारोपण
वृक्षारोपण हेतु, वितिय सहायता सीधे स्वैच्छिक संस्थाओं, किसान समितियों, वृक्ष उगाने वाली समितियों,पंजीकृत शौक्षिक संस्थाओं, ट्रस्ट आदि प्रदान की जायेगी | सरकारी विभागों द्वारा वृक्षारोपण कार्य करने के लिए वितीय सहायता राज्य के वन विभाग के माध्यम से प्रदान की जायेगी |
3.1. वृक्षारोपण हेतु संस्थायें,जिन्हें मदद की जा सकती है
राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद की “हरित भारत” योजना के लिए अनुदान सहायता राशि योजना के अन्तर्गत वितीय सहायता के लिए परियोजना प्रारूप जो परिषद को भेंजे गये हैं, केवल निम्नलिखित से ही स्वीकार किये जायेंगे |
(अ) सरकारी विभाग, शहरी स्थानीय निकाय, पंचायती राज संस्थायें |
(ब) सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, स्वायत निकाय |
(स) पंजीकृत सहकारी समितियाँ, अलाभकारी संस्थायें, सहकारी समितियाँ, परोपकारी न्यास (चैरिटेबल ट्रस्ट),स्वैच्छिक संस्थाये |
(द) पंजीकृत विध्यालय, महाविद्यालय (कालेज), विश्व-विद्यालय |
(य) राज्य क वन विभाग |
1.2. केवल उन संस्थाओं को ही वितीय सहायता प्रदान करने पर विचार किया जायेगा , जिनका पंजीकरण 5 वर्ष पुराना हो और जिन्हें (कम से कम 3 वर्षे का) पर्यावरण के क्षेत्र में या इससे सम्बन्धित सामाजिक क्षेत्रों में लोगों के बीच कार्य करने का अनुभव हो | सरकारी विभागों के अलावा अन्य संस्थाओं के मामले में उन्हें पिछले लगातार 3 वर्षे के खातों का अंकेक्षित लेखा-जोखा भी भेजना होगा | उस समय जब तक उच्च कोटि की वृक्षारोपण सामग्री उच्च तकनीक/सैटलाइट पौधशाओं, जिन्हें इस योजना के अन्तर्गत सहायता मिली हो, से प्राप्त नहीं हो जाती, संस्थाओं को अच्छे किस्म वाली प्रमाणित वृक्षारोपण सामग्री दूसरे अन्य स्रोतों द्वारा प्राप्त करना होगा जिसे राज्य के वन विभाग द्वारा प्रमाणित किया गया हो |
1 उच्च तकनीकी / सैटेलाइट पौधाशालयें उच्च कोटि की रोपण सामग्री इस योजना से सहायता प्राप्त संस्थाओं को उपलब्ध करायेंगी लिकिन एक पौधें का मूल्य रु 10.00 से अधिक नही होगा | उच्च कोटि की रोपण सामग्री का उत्पादन और पूर्ति में लगभग दो वर्ष का समय लगेगा जो जागृति के स्तर व राज्य में उपलब्ध साधनों पर निर्भर होगा | जब तक उच्च कोटि की रोपण सामग्री उपलब्ध नही हो जाती योजना में सबसे अच्छी रोपण सामग्री जो राज्य वन विभाग द्वारा | प्रमाणित हो उसका प्रयोग किया जायेगा |
1.3. सरकारी विभागों के अतिरिक्त अन्य संस्थाओं में समुचित ढंग से गठित एक प्रबन्ध समिति होनी चाहिए, जिसके अधिकार, कर्तव्यों और उतरदायित्यों का वर्णन लिखित रूप से एवं संविधान/नियमावली में दिया गया हो |
1.4 संस्था की वितीय स्थिति, जिस प्रकार की परियोजना को चलाना चाहती है उसके लिए, ठीक होनी चाहिए | इसे किसी व्यक्ति या लोगों के समूह के लाभ के लिए नहीं चलाया जा सकता | परियोजना के सफल क्रियान्वयन हेतु उसके पास सुविधायें, संसाधन, अनुभव और कर्मचारी होने चाहिए |
1.5 क्रियान्वयन करने वाली एजेंसी नीचे दिये गये ढंग से वृक्षारोपण कार्य करेगी –
– लाभ रहित संस्थायें/स्वैच्छिक संस्थाये (निजी भूमि, सामुदायिक /भूमि , वन भूमि राज्य के वन विभाग के सहयोग से)
– शैक्षिक संस्थायें /ट्रस्ट /स्वायत-निकाय/ (अपनी/सामुदायिक / सार्वजनिक भूमि /खाली की गयी खदानों वाली भूमि जो औध्योगिक कचरे द्वारा प्रभावित हो)|
– सहकारी समितियाँ, संयुक्त वन प्रबन्ध समितियों के अलावा/स्थानीय निकाय (सार्वजनिक पार्क, पट्टी वृक्षारोपण, औध्योगिक कचरे से प्रभावित खदानों वाली भूमि जो खाली की गयी हो)|
– सरकारी विभाग, पंचायती राज संस्थायें (निजी संस्थागत भूमि, सड़क के किनारे, नहर के किनारे, रेलवे-पटरी के किनारे, औध्योगिक कचरों की वजह से खाली पड़ी खदानों वाली भूमि पर) |
– राज्य के वन विभाग (वन क्षेत्र,संयुक्त वन प्रबन्ध समितियों द्वारा) |
– पंचायत (पंचायत भूमि) |
देखभाल एवं परामर्शदाता सेवायें
पहले से स्थापित क्लोनल उध्यानों के रख-रखाब और योजना के मुल्यांकन का अलग प्रावधान किया गया है |
क्रिया-कलापों को सिलसिलेवार (अनुक्रम में) बनाना
राज्य के वन-विभाग योजना के सफल क्रियान्वयन के लिए तकनीकी सहयोग देंगे | 10वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान अच्छी किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री के उपयोग पौधशाला /वृक्षारोपण तकनीकों की जानकारी रखने वाले व्यक्तियों, विभिन्न प्रजातियों वाले पौधों /वृक्षों को उगाने पर लागत/ लाभ का विश्लेषण करने,पोषक क्षेत्रों और वृक्षारोपण हेतु प्रजातियों की पहचान करने के ऊपर विशेष ध्यान दिया जायेगा | राज्य के वन-विभाग हाइटेक पौधशालायें खुद या उपयुक्त संस्थाओं के साथ मिलकर तैयार करेंगे |सैटेलाइट पौधशालाओं की स्थापना हेतु निजी प्रतिष्ठानों /किसानों को प्रोत्साहन दिया जायेगा |राज्य के वन विभाग अपनी पौधशालाओं को उन्नतिशील किस्म का बनाने एवं उनके पुनर्स्थापन के लिए व्यक्तिगत लोगों को शामिल करके इस अवसर का लाभ उठा सकते हैं | अच्छी किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री की पौधशालाओं की स्थापना एवं उसके लिए स्थान का चयन करने की योजना बनाते समय राज्य के वन विभाग इस योजना के अन्तगर्त वृक्षारोपण हेतु वितीय सहायता प्राप्त कर रही/प्राप्त करने वाली एजेन्सी/सरकारी विभागों की माँगों को ध्यान में रखकर ही किया जायेगा |10वीं पंचवर्षीय योजना (2005-06 से 2006-07) के अन्तर्गत वर्ष-वार क्रियाकलापों की विस्तृत रुपरेखा, जिसे किया जाना है, नीचे दी गयी है –
प्रथम-वर्ष (First year): स्थानीय भाषा में साहित्य तथा जिसमें आर्थिक एवं सामाजिक महत्व की दृष्टि से वृक्षों एवं पौधों की प्रजातियँ जिनका लागत /लाभ के रूप में विश्लेषण किया गया हो उन पर काफी मात्रा में साहित्य लोगों के लिए नि:शुल्क उपलब्ध कराया जायेगा| जन-संचार माध्यमों का प्रयोग वृक्षों/पौधों के आर्थिक, पर्यावरण सम्बन्धी एवं मामाजिक दृष्टि से महत्व को प्रभावशाली ढंग से करने के लिए जायेगा |प्रत्येक राज्य के वन विभाग द्वारा केन्द्रीय/सैटेलाइट पौधशालाओं की संख्या एवं स्थान की स्थिति जानने के लिए एक अनुमानित सर्वेक्षण कराया जायेगा, ताकि गैर-वन भूमि कितनी उपलब्ध हो सकती है तथा प्रजातियों के प्रकार तथा आवश्यक मात्रा आदि का अनुमान लागया जा सके | राज्य के वन-विभाग ठीक प्रकार से आवश्यक सामग्री और वास्तविक रूप में हाइटेक/सैटेलाइट पौधशालाओं की स्थापना करने में अन्य सिविल/यान्त्रिक कार्यो के निर्माण की आवश्यकता पड़ेगी उसका विस्तृत विवरण उपलब्ध करायेंगे, जिससे कि प्रथम वर्ष में ही केन्द्रीय हाइटेक एवं सैटेलाइट पौधशालाओं की स्थापना की जा सके | राज्य के वन विभाग द्वारा अच्छी किस्म की वृक्षारोपण सामग्री के उत्पादन एवं वृक्षारोपण से सम्बन्धित प्रशिक्षण कार्यशालाओं/ संगोष्ठियों के रूप में निजी प्रतिष्ठानों/पौधशालाओं के कर्मचारियों/ किसानों एवं अन्य क्रियान्वयन करने वाले अभिकरणों को प्रदान की जायेगी | जहाँ तक वृक्षारोपण का प्रश्न है इसके लिए राज्य के वन विभाग द्वारा अभिकरणों/सरकारी विभागों से परियोजना प्रस्ताव आमन्त्रित किये जायेंगे तथा उनकी समुचित जाँच, मुल्यांकन, छंटनी और अग्रसारण के पश्चात उन्हें राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद को भेंजे जायेंगे |राज्य के वन विभागों द्वारा परियोजना प्रस्तावों को अग्रसारित करते समय यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रस्तावित संस्थाओं ने अच्छी किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री के प्रयोग के लिये परियोजना में प्राविधान किया है |
व्दितीय वर्ष (Second year): अधिक संख्या में केन्द्रीय उच्च तकनीकी पौधशालायें राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में स्थापित की जायेगी जिनकी क्षमता कम से कम प्रतिवर्ष 1लाख पौधों की होगी |ये पौधाशालायें नमूना (प्रतिरूप) पौधाशालायें होंगी और विभिन्न जैविक प्रकार की उच्च कोटि की वृक्षारोपण सामग्री का स्रोत होंगी जिन्हें जिसकी योजना राज्य के प्रत्येक जिले को सैटेलाइट पौधशालाओं द्वारा समाहित करने की है | ये पौधशालाओं में पौधे उगाने, वृक्षारोपण कार्य, स्थानीय रूप से महत्वपूर्ण वृक्षों/पौधों की प्रजातियों और उनके यौगिकों (derivatives) के विपणन से सम्बन्धित सभी पहलुओं के छपे हुए, मौखिक और इलेक्ट्रनिक सामग्री के विस्तार के लिए
सूचना केन्द्र के रूप में भी कार्य करेंगी | सैटेलाइट पौधशालायें जो स्थानीय उपलब्ध तकनीकों का उपयोग करेगी उन्हें जिले के सम्भावित वृक्षारोपण` क्षेत्रों के समीप स्थापित किया जायेगा | उच्च तकनीक/सैटेलाइट पौधशालाओं से उत्पन्न अच्छी किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री का उपयोग करके वृक्षारोपण कार्य करने से समन्धित परियोजना प्रस्ताव अधिक संख्या में राज्य के वन विभाग द्वारा राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद को अग्रसारित किये जायेंगे |
यह 10वीं पंचवर्षीय योजना का अन्तिम वर्ष होने के कारण इसे अब तक क्रियान्वित कार्यकलापों के मुल्यांकन हेतु उपयोग किया जायेगा| विस्तृत क्षेत्र स्तरीय अध्ययन कम से कम 7 प्रतिनिधि राज्यों द्वारा स्वतन्त्र मुल्यांकनकर्ताओं को रख कर कराया जायेगा|
परियोजना क्षेत्र और आकर
अवनत सरकारी (वन भूमि सहित) अथवा निजी भूमि,खाली की गयी खदानें, औध्योगिक कचरों से प्रभावित भूमि, सामुदायिक भूमि, सड़क के किनारे की भूमि, नहर, बैंक और रेलवे की भूमि, संस्थागत भूमि आदि को वृक्षारोपण के लिए लिया जा सकता है | ऐसे क्षेत्र जो विकास खण्डों के बहुत समीप हों, उन्हें वृक्षारोपण के लिए वरीयता दी जायेगी |उसके साथ जलाशय का भी निर्माण कराया जायेगा | हाइटेक/सैटेलाइट पौधशालाओं की स्थापना सार्वजनिक, व्यक्तिगत या निजी भूमि पर की जा सकती है | भूमि जहाँ पर क्रिया-कलाप प्रस्तावित हैं उसकी ठीक प्रकार से और पूरी तरह पहचान की जानी चाहिए | भूमि का विस्तृत विवरण जैसे सर्वेक्षण संख्या, क्षेत्र, मालिकों का नाम परियोजना के लिये इंगित विभिन्न क्षेत्रों की स्थिति तथा उनके क्षेत्रफल का योग दिया जाना चाहिए|ऐसे विस्तृत विवरण सम्बन्धित भूमि के मालिक/संस्था/प्राधिकारी से प्रमाणित करा लेनी चाहिए |
पहचान की गयी परियोजना-भूमि सैटेलाइट पौधशाला/वृक्षारोपण के लिए उपयुक्त होनी चाहिए और वह घोषित वन-भूमि क्षेत्र, जो राज्य के वन विभाग के लिए ही निर्धारित है, उसे छोड़कर कहीं भी स्थापित की जा सकती है |दूसरों के लिए परियोजना क्षेत्र की पहचान करते समय जंगल के पास वाली जमीनों को वरीयता दी जानी चाहिए संस्थाओं के मामलों में, जो सरकरी विभागों से भिन्न है PSUs वृक्षारोपण क्षेत्र 50 हेक्टेयर से सामान्यत: अधिक नही होना चाहिए|
सरकारी विभागों, PSUs के लिए परियोजना क्षेत्र के लिए कोई भी ऊपरी सीमा नहीं है | सैटेलाइट पौधशाला के मामले में न्यूनतम आकार 500 वर्गमीटर स्वीकृत किया जायेगा |
वित-पोषण का तरीका
योजना का क्रियान्वयन केन्द्रीय क्षेत्र योजना के रूप में शत-प्रतिशत केन्द्रीय वित-पोषण द्वारा किया जायेगा जिसके लिए परियोजनायें सीधे राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद द्वारा स्वीकृत की जायेंगी |
लागत का नमूना
(अ) अच्छी किस्म वाली उत्पादन सामग्री का उत्पादन (QPM Production)
i. जागरूकता, प्रसार एवं प्रशिक्षण | रु 8.00 लाख (एक मुश्त केवल राज्य के वन विभाग के लिए) |
ii. हाइटेक केन्द्रीय पौधशालायेंकुहरेनुमा कमरों व उसमें छिडंकाव करने वाली मशीन, रूट-ट्रेनर,अन्य उन्नत तकनीकों से भिन्न-भिन्न वानस्पतिक या बीजों से उत्पन्न पौध-सामग्री के उत्पादन मे सक्षम हो जो विधिवत स्थापित बीज उध्यानों, क्लोनल उध्यानों और उन्नत वृक्षों से प्राप्त की गई हो | | रु० 10.00 लाख प्रति हेक्टेयर पौधशाला(एक बार अनुदान)प्रत्येक वर्ष कम से कम एक लाख पौधें उत्पन्न करने के लिए| यह अनुदान राशि अच्छी किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री उत्पन्न करने को बढ़ावा देने के लिए है | |
iii. सैटेलाइट पौधशालायेंस्थानीय तकनीकों का उपयोग जैसे-छप्पर की छाया ,छिडंकाव करने वाली जारनुमा मशीन इत्यादि | | रु० 1.00 लाख प्रति एक हेक्टेयर पौधशाला(एक बार अनुदान)प्रत्येक वर्ष एक लाख पौधे उत्पादन करने की क्षमता रखती हो | |
२ छोटी पौधशालायें जिनकी क्षमता कम क्षेत्र वाली और कम उत्पादन की है, उन्हें वितीय सहायता रु.1.00 प्रत्येक उगाये गये पौधे की दर से स्वीकृत की जायेंगी |साधारणत: पौधशाला का क्षेत्रफल (आकर) 1/20 हेक्टेयर से कम नहीं होना चाहिए| सहायता पुरानी पौधशालाओं में सुधर एवं उसे उन्नतिशील बनाकर उसे चालू रखने हेतु भी दी जायेगी| यह सहायता राशि केवल अच्छी किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री के उत्पादन हेतु ही अनुदान के रूप में होगी|सहायता राशि का भुगतान करने से पहले ऐसे मामलों में पौधशालाओं को उन्नत किस्म का बनाने एवं नवीनीकरण से सम्बन्धित वास्तविक कार्य जो किया है, उसकी विधिवत जाँच की जायेगी |
(ब) वृक्षारोपण (Planting)
सरकारी /सामुदायिक भूमि(1100 पौधे/हेक्टेयर)
रु.25/-प्रति पौधे जिसमें सभी लागत शामिल है, जैसे पौधे का मूल्य, ढुलाई,अग्रिम कार्य,रोपण,मृदा एवं नमी संरक्षण (SMC) मृत पौधा का पुन: स्थापन,पुनर्स्थापन ,सुरक्षा, जागरूकता एवं ऊपरी व्यय (OVERHEADA) |
ii. निजी भूमि (1100 पौधे /हेक्टेयर)
रु. 18.0 प्रति पौधा जिसमें सभी लागत शामिल है जैसे-पौधे की कीमत, ढुलाई अग्रिम कार्य, रोपण, मृदा, एवं नमी संरक्षण (SMC), मृत पौधों का पुनर्स्थापन, सुरक्षा, जागरूकता एवं ऊपरी व्यय|
iii. खाली की गयी खानें /खदानें, औध्योगिक कचरों से प्रभावित भूमि, विशिष्ट समस्या युक्त भूमि जैसे लैटेराइट मृदा, कंकर पैन वाली ऊसर भूमि, काफी समय से पत्थर युक्त बंजर भूमि, अत्यधिक ढलान वाली भूमि इत्यादि |
(1100 पौधे /हेक्टेयर) रु.30 प्रति पौधे, जिसमें सभी लागत शामिल है जैसे-भूमि सुधर, पौधे की कीमत, ढुलाई, अग्रिम कार्य, वृक्षारोपण, मृदा एवं नमी संरक्षण आकस्मिक पुनर्स्थापन, सुरक्षा, जागरूकता एवं ऊपरी व्यय|
(स) क्लोन-उध्यानों का रख-रखाव /सुधर कार्य-
(Maintenance/improvement of clonal orchards)
रूपये 5,000 प्रति हेक्टेयर (एक मुश्त सहायता) केन्द्रीय वन विकास अभिकरणों द्वारा दो समान किश्तों में जारी होगी |
प्रजातियों का अनुपात
वृक्षारोपण के लिए पौधों की प्रजातियों और उनके अनुपात का सावधानी-पूर्वक निर्धारण लाभार्थियों और स्थानीय प्रतिनिधियों अथवा इस विषय का ज्ञान रखने वाले व्यक्तियों से परामर्श करके किया जाना चाहिए| प्रति हेक्टेयर पौधों की संख्या प्रत्येक प्रकार के पौधों की वानिकी आवश्यकताओं के ऊपर निर्भर करेगी और इसका निर्धारण इस विषय का तकनीकी ज्ञान रखने वाले व्यक्ति से परामर्श के बाद ही किया जाना चाहिए |प्रजातियाँ, जिन्हें वन-भूमि, सामुदायिक भूमि और निजी भूमि पर वृक्षारोपण/वनीकरण के लिए शामिल करना है उनमें, तेजी से वृद्धि करने वाली स्थानीय जलाऊ लकड़ी, चारा, छोटी इमारती लकड़ियाँ, फल एवं दूसरी अन्य प्रजातियाँ जो समान अवधि में तैयार होने वाली हों तथा जो स्थानीय लोगों को भूमि का स्तर सुधरने के अलावा उन्हें फल एवं आमदनी दे सकें, जैसे- अर्जुन, शहतूत इत्यादि |इसे सूक्ष्म योजना के एक भाग के रूप में परियोजना प्रस्ताव के साथ संलग्न किया जाना चाहिए|
3 इस प्रकार की भूमि को विशिष्ट सुधर एवं उन्नत तकनीकों की आवश्यकता होती है इसलिए लागत प्रतिमान अधिक है |
परियोजना नियोजन
उच्च कोटि वृक्षारोपण सामग्री के उत्पादन/वृक्षारोपण कार्य की परियोजना एक सुनिश्चित स्थान पर और सम्भव हो सम्मलित खण्ड में होना चाहिए| परियोजन,जिसमें वृक्षारोपण कार्य करना है सामान्यत: विस्तृत क्षेत्र कई जिले शामिल हों, फैली नहीं होनी चाहिए|
- संस्था/एजेंसी को परियोजना के प्रत्येक कार्य के भौतिक एवं वितीय लक्ष्यों, और विभिन्न कार्यो की कार्य अवधि लिए वितीय सहायता की आवश्यकता है, का नियोजन कर लेना चाहिये |
- परियोजना क्षेत्र के लिए सूक्ष्म-योजना तैयार करते समय जहाँ तक सम्भव हो, स्थानीय समुदाय/लाभार्थियों से पर कर लेना चाहिए |सूक्ष्म योजना में निम्नलिखित शामिल करें-
- लाभार्थियों की सूची जो सूक्ष्म योजना बनाने में शामिल थे |
- कार्य-स्थल के सीमांकन और प्रबन्धन को दर्शाते मानचित्र|
- वृक्षारोपण कार्यक्रम जिनमें कार्ये के लक्ष्य और समय सारिणी शामिल हो|
- कार्य-स्थल की तैयारी |
- प्रजातियों का चुनाव और अच्छी किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री को तैयार करने की विधि एवं वृक्षारोपण की तकनीक,रख-रखाव इत्यादि को विस्तृत रूप से दिया जाना चाहिए|
- चारे की कटाई |
- वृक्षों/पौधों की परिपक्वता की अवधि और प्रत्येक वर्ष की जलावन लकड़ी, चारा, छोटी इमारती एवं इमारती लकडियों की प्राप्ति की सारिणी|
- रख-रखाव एवं उसकी देखभाल,की विधि ग्रामीण समुदाय को स्थानीय दशाओं के अनुकूल बना लेना चाहिए|
- लाभ वितरण की प्रकिया |
प्रलेखन
निम्नलिखित आवश्यक कागजात,जो जहाँ लागु हों, आवेदन पत्र के साथ जमा किये जायेंगे (वृक्षारोपण और सैटेलाइट/हाइटेक पौधशाला की स्थापना करने के लिए आवेदन पत्र का प्रारूप संलग्नक II एवं III में क्रमश: दिये गये हैं)|
I. संस्था/एजेंसी का पंजीकरण प्रमाणपत्र और संस्था के नियमों/सहचारिका पत्रकं की प्रमाणित प्रतिलिपि|
II. पिछले तीन लगातार वर्षो का महा-लेखा परीक्षक की सूची में शामिल लेखाकार द्वारा अंकेक्षित अभिलेखों की प्रमाणित प्रतिलिपियों |
III. पिछले किये गये कार्यो का संक्षिप्त नोट, विशेषकर वानिकी के विकास या इससे सम्बन्धित सामाजिक क्षेत्रों सम्बन्धित कार्य तथा अच्छी किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री को उगाने का तीन वर्ष का अनुभव एवं अच्छी किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री को प्राप्त करने के स्रोतों का ज्ञान एवं जानकारी |
IV. लाभार्थियों की सूची जिसमें भूमि का विस्तृत विवरण जिसमें पौधशाला तैयार करना/वृक्षारोपण करना विशेषकर सर्वेक्षण/खसरा नं०, क्षेत्र हेक्टेयर में, एवं प्रत्येक गांव के अनुसार जमीन के मालिक का नाम|
V. जमीन के मालिकों की लिखित सहमति कि उनकी जमीनों में जो पौधशाला/वनीकरण सम्बन्धी कार्यक्रम किये जाने वाले हैं उसमें उन्हें कोई आपति नहीं है |निजी भूमि के मामलों में, विस्तृत विवरण जैसे ऊपर (iv) में है उन्हें सहमति के साथ आवेदन पत्र के साथ भेजा जाना चाहिए| इन विस्तृत विवरणों को सम्बन्धित राजस्व अधिकारीयों /ग्राम संभाओं (स्वायतशासी पूर्वीतर क्षेत्र के पहाड़ी जिलों के लिए) द्वारा प्रमाणित और सत्यापित करा लेनी चाहिए तथा उन्हें सम्बन्धित संयुक्त वन प्रबन्ध समिति/पारिस्थितिकी विकास समिति के सचिव अथवा सम्बन्धित वन-अधिकारी/क्षेत्रीय वन अधिकारी द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित करा लेनी चाहिए| एजेंसी को लाभार्थियों की सूची पर प्रमाणित करना होगा कि एजेंसी ने सभी सम्बन्धित लाभार्थियों से पौधशाला, वृक्षारोपण और रख-रखाव तथा तत्पश्चात देख-रेख से सम्बन्धित क्रिया-कलापों के बारे में सहमति प्राप्त कर ली है और वह जाँच के लिए एजेंसी के कार्यालय में उपलब्ध है |
VI. एक प्रमाण पत्र एजेंसी द्वारा कि इसमें कम से कम 50%सभार्थी अनुसूचित जाति/जनजाति अथवा समाज के पिछड़े वर्ग से सम्बन्धित हैं | इस पर अत्याधिक जोर वहाँ नहीं दिया जायेगा जहाँ पर अनुसूचित जाति/जनजाति की जनसंख्या इस नियम को पूरा करने में अपर्याप्त है| सम्पूर्ण लाभार्थियों में कम से कम 50% महिलायें होनी चाहिए| इसे सम्बन्धित ग्राम पंचायत/ग्राम सभा/स्थानीय निकाय द्वारा प्रति हस्ताक्षरित होना चाहिए|
VII. क्षेत्र में परियोजना का क्रियान्वयन करने वाली संस्था/एजेंसी के संगठनात्मक ढाँचें, बैंक खाता संख्या इत्यादि का विस्तृत विवरण |
जनता/लाभार्थियों से परामर्श के पश्चात तैयार की गयी सूक्ष्म-योजना|
परियोजना-प्रारूप को प्रस्तुत करना
अच्छी किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री तैयार करने के लिए परियोजना प्रारूप एजेंसी द्वारा सम्बन्धित राज्य के वन विभागों के पास भेंजे जायेंगे |राज्य के वन-विभाग उच्च कोटि की रोपण सामग्री के उत्पादन के प्रस्तावों को एकत्रित कर विधिवत जाँच के पश्चात इन्हें राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद के पास विचार करने के लिए अग्रसारित करेंगे | इस प्रकार से स्वैच्छिक वृक्षारोपण के लिए परियोजना प्रस्ताव निर्धारित प्रारूप में सभी प्रकार से पूरा करने के पश्चात दो प्रतियों में विधिवत भरकर सम्बन्धित राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों के प्रधान मुख्य वन संरक्षकों के पास जमा किये जाने चाहिए| योजना की मार्गदर्शिका के अनुरूप पूरी तरह से भरे हुए परियोजना प्रस्तावों को राज्यों के वन विभागों द्वारा स्वीकार किया जायेगा और इनकी विधिवत जाँच के पश्चात इन्हें राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद को प्रकाशित निर्धारित तिथि के पहिले उनके पास अग्रसारित करेंगे| कुछ विशेष परिस्थितियों में राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद जारी तिथि के अनुसार इन्हें (एन.ए.इ.बी.) के पास अग्रसारित करेंगे| जबकि,कुछ विशेष परिस्थितियों में राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद निर्धारित सारिणी में परिवर्तन कर तिथि के आगे भी प्रधान मुख्य वन संरक्षकों के द्वारा भेजें गये परियोजना प्रस्तावों को ग्रहण कर सकती है |राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद “स्वैच्छिक वृक्षारोपण” योजना के अर्न्तगत अथवा “अच्छे किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री के उत्पादन करने “सम्बन्धी कोई भी परियोजना प्रस्ताव परिषद के पास सीधे भेंजे जाने पर न तो ग्रहण करेगा और न उन पर विचार करेगा |
आवेदनों की छानबीन (सूक्ष्म जाँच)
1 वृक्षारोपण –Tree Planting
प्रधान मुख्य वन संरक्षकों के पास जमा परियोजना प्रस्तावों को उनकी श्रेष्ठता/योग्यता एवं तकनीकी उपयुक्ता अनुसार उनकी वरीयता सूची बनाकर 10-15 प्रस्ताव अपनी अनुशंषा के साथ राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद के पास विचार करने हेतु भेजा जायेगा| पूर्व अनुशंसा का निर्धारित प्रारूप संल्गन-IV मे दिया है |आवस्यक सूचनाओं/कागजातों सम्बन्धित प्रधान मुख्य वन संरक्षक/परियोजना प्रस्तावों की जाँच-परख और उनकी छंटनी करने की सम्बन्धित तरीके/उपायों को निर्धारित करेंगे| राज्यों के वन विभाग द्वारा प्रधान मुख्य वन-संरक्षक की अध्यक्षता में प्रस्ताव की जाँच करने से सम्बन्धित एक विस्तृत समिति का गठन किया जायेगा जिसमें स्वैच्छिक संस्थाओं/गैर सरकारी और रेखांकित (Line) विभागों के प्रतिनिधि भी शामिल किये जायेंगे |
राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद के पास अग्रसारित करने के लिए परियोजना प्रस्तावों के चयन निम्नलिखित तरीका (सिद्धांत) लागु किया जा सकता है-
- राज्य में एक तरफ से दूसरी तरफ क्षेत्रीय स्तर पर बँटवारे को सुनिश्चित करना|
- परियोजनायें जिनमें अधिक अनुपात में समुसयिक अथवा शासकीय राजस्व विभाग की भूमि शामिल हो उन्हें वरियत दी जानी चाहिए|
- परियोजना क्षेत्र व उनकी स्थिति
- अवनत भूमि, भूमि-क्षरण क्षेत्र, सुखा प्रभावित, मानव विकास स्तर, बंजर-भूमि की उपलब्धता,वन/वृक्ष आच्छादार स्थिति
- एजेंसी का पिछला कार्य-कलाप और उसकी विश्वसनीयता,जिसमें उसकी वितीय स्थिति और असामाजिक रष्ट्र-विरोधी कार्यो में शमिन न होने की स्थिति का भी आंकलन शामिल है |
अपनी संस्तुतियों को अग्रसरित करते समय प्रधान मुख्य वन संरक्षकों को सम्पूर्ण प्रस्ताव जो प्राप्त हुए हैं और जिन्हें परिषद के पास विचार करके अग्रसारित किया जा रहा है उनका संक्षिप्त सारांश बनाकर भेजना चाहिए | परिषद केवल एक बार हैं अंतिम रूप से अग्रसारित परियोजना प्रस्तावों को जो राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद द्वारा विज्ञापित अन्तिम तिथि से पहले प्राप्त होंगे उन्हें स्वीकार करेगा | प्रधान मुख्य वन संरक्षकों द्वारा प्राथमिकता के तौर पर अग्रसारित किये गये परियोजना प्रस्ताव केवल उसी वितीय वर्ष के लिए वैध होंगे, उन्हें अगले वितीय वर्ष में विचार करने के लिए नही रखा जायेगा | अग्रसारित प्रस्तावों को वर्ष में केवल एक बार प्रधान मुख्य वन संरक्षकों द्वारा भेंजा जायेगा|
2 अच्छे किस्म की वृक्षारोपण सामग्री (Quality Planting Materials)
राज्यों के वन-विभाग से प्राप्त परियोजना प्रस्तावों की परिषद द्वारा गहन छानबीन की जायेगी और श्रेष्ठता के अनुसार उनकी सूची बनाकर उनके लिए स्वीकृत राशि राज्यों के पास भेंज दी जायेगी| (संलग्नक-V में प्रस्तावों के पूर्व-आंकलन के प्रारूप दिया गया है)|
परियोजना प्रस्तावों को स्वीकृत करना
सम्बन्धित प्रधान मुख्य वन संरक्षकों से परियोजना प्रस्ताव प्राप्त हो जाने पर एन.ए.इ.बी. इन्हें स्वीकृत करने के विषय में आगे कार्यवाही करने पर विचार कर सकता है | 10वीं पंचवर्षीय योजना में इस योजना के अन्तर्गत नये परियोजना प्रस्तावों को स्वीकृत करने के लिए निम्नलिखित निर्धारक तत्व शामिल होंगे-
- राज्य में वनीकरण की सम्भावना के आधार पर देश के एक भाग से दुसरे भाग को वरीयता | वनिकरण सम्भावना की गणना बहुत से तत्वों के आधार पर की जाती है- जैसे हरित भागों वाले क्षेत्र का प्रतिशत, राज्य का क्षेत्रफल, भूमि की उपलब्धता, राज्य में अवनत भूमि,जलवायु, राज्य को हरा-भरा बनाने के विषय में उसकी बचनबध्दता आदि |
- योजना के अन्तर्गत उपलब्ध धन राशि |
- राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य/आकस्मिकता के आधार पर आपेक्षिक प्राथमिकतायें
- राष्ट्रीय वनिकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद द्वारा अपनाया जाने वाला कोई अन्य तरीका
परियोजना प्रस्तावों की स्वीकृति के बारे में की जा रही कार्यवाही में अत्यधिक पारदर्शीता लाने के लिए आवेदन पत्रों के प्रारूपों के अलावा सभी प्राप्त परियोजना प्रस्तावों की स्थिति और जिन्हें स्वीकृत किया गया, उन्हें परिषद की वेबसाइट पर भी जारी किया जायेगा |
निगरानी और मुल्यांकन
राज्य के वन विभाग द्वारा योजना को सुचारू रूप से चलाते रहने के लिए सभी प्रकार के कार्यों जैसे-पौधशालाओं की तैयारी वृक्षारोपण कार्य, जिसकी जिम्मेदारी क्रियान्वयन एजेंसे को दी गयी है, उसका भौतिक सत्यापन तथा निगरानी एवं मुल्यांकन की व्यवस्था अगली किश्तों के जारी करते समय विशेषकर दुसरे एवं तीसरे वर्षों में की जायेगी| निगरानी एवं सत्यापन के लिए आवश्यक सहायता राज्यों के प्रधान मुख्य वन संरक्षकों को केन्द्रीय वन विकास अभिकरण द्वारा प्रदान की जायेगी| राज्यों के वन विभागों द्वारा राज्य में चल रही योजना की वार्षिक निगरानी भी की जायेगी | देश में चल रही योजना का एक साथ मुल्यांकन राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद द्वारा किसी स्वतन्त्र एजेंसे के माध्यम से कराया जायेगा, इसके मुल्यांकन का तरीका राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास परिषद द्वारा निर्धारित किया जायेगा |
अनुबन्ध एवं शर्ते
सरकारी विभागों को छोड़कर संस्थाओं के मामलें में वितीय सहायता प्राप्त करने वाली संस्था को सामान्य वितीय अधिनियमों के अन्तर्गत निर्धारित प्रपत्र पर भरकर एक अनुबन्ध (Bond) पत्र हस्ताक्षर करके परिषद के पास तथा उसकी प्रति प्रधान मुख्य वन संरक्षक के पास इस योजना के अन्तर्गत परियोजना प्रस्तावों की स्वीकृत के पश्चात और वितीय सहायता जारी करने से पहले, जमा करना होगा |
दुसरे सभी प्रकार की पूर्ववर्ति अनुबन्ध एवं शर्ते जो सामान्य वितीय अधिनियमों (G.F.R.) के अधीन अनुदान सहायता राशि प्राप्त करने वाली संस्थाओं, सरकारी विभागों समेत सभी पर लागू होंगी |
अनुदान सहायता राशि के दुरुप्योग के मामले में दंड
(Penalities in case of misutilization of grants)
1.स्वैच्छिक संस्थाओं के प्रशासनिक समिति के सदस्य दुरुप्योग की गयी अनुदान राशि की भरपायी के लिए कानूनी रूप से जिम्मेदार ठहराये जायेंगे | स्वैच्छिक संस्था और उसके प्रबन्ध समिति के सदस्यों को मंत्रालय की काली-सूची में शामिल किया जा सकता है |
2. मंत्रालय द्वारा दिये गये अनुदान राशि से जो भी अचल सम्पति (सामान) अर्जित की गयी होगी, अगर वह योजना के अन्तर्गत दी गयी शर्तो के अनुसार उपयोग में नहीं लायी गयी तो उसका अधिग्रहण स्थानीय निकायों, राज्य सरकार या एन.ए.इ.बी. द्वारा नामित किसी भी अभिकरण द्वारा कर लिया जायेगा |
स्वैच्छिक संस्थाओं के क्रिया-कलापों को रोकना/बन्द करना
(Cessation of voluntary agencies activities)
स्वैच्छिक संस्थाओं द्वारा किसी क्षेत्र में परियोजना के पूर्ण रूपेण बन्द कर दिये जाने पर अचल सम्पति जो मंत्रालय द्वारा दिये गये अनुदान राशि द्वारा अर्जित की गयी है उसे स्थानीय निकाय या पंचायत को राज्य सरकार द्वारा सौंप दी जायेगी |
अनुदान सहायता राशि योजन के अन्तर्गत जारी परियोजनायें
(On-going projects under GIA Scheme)
वर्ष 2004-05 में अनुदान सहायता राशि योजना के अन्तर्गत स्वीकृत परियोजनायें जिनका क्रियान्वयन हो रहा है वे पूर्ववर्ती अनुदान सहायता राशि (GIA) मार्गदर्शिका का अनुसरण करेंगे| इन परियोजनायें से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अच्छे किस्म वाली वृक्षारोपण सामग्री का उपयोग, जब उन्हें उपलब्ध होता है, करेंगे |
पर्यावरण एवं वन मंत्रालय , भारत सरकार